Friday, December 28, 2007
सरकार के दावे और हकीकत
सरकार का दावा है कि इससे इंदौर समेत पूरे राज्य की किस्मत बदल जाएगी। पर हाल ही में हुए उपचुनावों ने बता दिया कि किसकी किस्मत बदल सकती है। लोगों को मीट से ज्यादा विकास और सुशासन की जरूरत है।
पर यह सब तो सिर्फ उस कहावत की तरह थे कि चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात। मीट खत्म होते ही बिजली कटने लगी वो भी दो घंटे के लिए। साथ ही रातों-रात पुलिस चौकिंयों को भी ट्रकों में लादकर उठा ले गया प्रशासन। ताकि फिर कभी कोई मीट हो या कोई वीआईपी आए तो उन्हें दोबारा रखकर व्ववस्था का दिखावा किया जा सके।
ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार और प्रशासन ने जनता को एकदम ही मूर्ख समझ लिया है। एक तरफ सरकार है जो सिर्फ इंवेस्टर्स मीट कर रही है पर जनता के लिए मूलभूत सुविधाऒं की सुध कौन लेगा यह कोई नहीं जानता है। यदि बेसिक जरूरते जनता को ही उपलब्ध नहीं होंगी तो इन निवेशकों को क्या मिलेगा भगवान ही जानता होगा या फिर खुद सरकार।
सरकार के दावे और हकीकत
सरकार का दावा है कि इससे इंदौर समेत पूरे राज्य की किस्मत बदल जाएगी। पर हाल ही में हुए उपचुनावों ने बता दिया कि किसकी किस्मत बदल सकती है। लोगों को मीट से ज्यादा विकास और सुशासन की जरूरत है।
पर यह सब तो सिर्फ उस कहावत की तरह थे कि चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात। मीट खत्म होते ही बिजली कटने लगी वो भी दो घंटे के लिए। साथ ही रातों-रात पुलिस चौकिंयों को भी ट्रकों में लादकर उठा ले गया प्रशासन। ताकि फिर कभी कोई मीट हो या कोई वीआईपी आए तो उन्हें दोबारा रखकर व्ववस्था का दिखावा किया जा सके।
ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार और प्रशासन ने जनता को एकदम ही मूर्ख समझ लिया है। एक तरफ सरकार है जो सिर्फ इंवेस्टर्स मीट कर रही है पर जनता के लिए मूलभूत सुविधाऒं की सुध कौन लेगा यह कोई नहीं जानता है। यदि बेसिक जरूरते जनता को ही उपलब्ध नहीं होंगी तो इन निवेशकों को क्या मिलेगा भगवान ही जानता होगा या फिर खुद सरकार।
Thursday, December 27, 2007
जयश्री पिंगले को दिल्ली भेजा
Wednesday, December 26, 2007
सुर्खियों में सुष्मिता सेन
जानिए बिंदास सुष के बारे में :
सुष्मिता ने 1994 में 18 साल की कम उम्र में गोवा में नई दुनिया में कदम रखा और मिस इंडिया का खिताब जीता। हालांकि इसके लिए फॉर्म भरने के बाद यह जानने पर कि ऐश्वर्या राय भी मिस इंडिया प्रतियोगिता में हिस्सा ले रही हैं, जिन बाइस लडकियों ने अपना नाम वापस लेने का फैसला किया था, उनमें सुष्मिता भी एक थीं। लेकिन बाद में मां के समझाने पर उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया।
इस टक्कर में सुष्मिता व ऐश्वर्या अंत तक बराबरी पर रहीं लेकिन अंत में टाई ब्रेकिंग प्रश्न पर वह ऐश्वर्या पर भारी पडीं और ऐसी पहली भारतीय बनीं, जिसे मिस यूनीवर्स का खिताब मिला। यह शुभारंभ था मध्यमवर्गीय परिवार की सुष्मिता के करियर का।
तो यह तो था सुष का छोटा सा परिचय। आपका पन्ना के माध्यम से हम चाहते हैं कि आप सब भी खुशबू और सुष्मिता के बयान पर अपना पक्ष रखें।
सुर्खियों में सुष्मिता सेन
जानिए बिंदास सुष के बारे में :
सुष्मिता ने 1994 में 18 साल की कम उम्र में गोवा में नई दुनिया में कदम रखा और मिस इंडिया का खिताब जीता। हालांकि इसके लिए फॉर्म भरने के बाद यह जानने पर कि ऐश्वर्या राय भी मिस इंडिया प्रतियोगिता में हिस्सा ले रही हैं, जिन बाइस लडकियों ने अपना नाम वापस लेने का फैसला किया था, उनमें सुष्मिता भी एक थीं। लेकिन बाद में मां के समझाने पर उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया।
इस टक्कर में सुष्मिता व ऐश्वर्या अंत तक बराबरी पर रहीं लेकिन अंत में टाई ब्रेकिंग प्रश्न पर वह ऐश्वर्या पर भारी पडीं और ऐसी पहली भारतीय बनीं, जिसे मिस यूनीवर्स का खिताब मिला। यह शुभारंभ था मध्यमवर्गीय परिवार की सुष्मिता के करियर का।
तो यह तो था सुष का छोटा सा परिचय। आपका पन्ना के माध्यम से हम चाहते हैं कि आप सब भी खुशबू और सुष्मिता के बयान पर अपना पक्ष रखें।
Sunday, December 23, 2007
११००० डालर राशि वाला पत्रकारिता पुरस्कार
Thursday, December 20, 2007
टाइम्स ग्रुप में श्री निधीश त्यागी
Thursday, December 13, 2007
जनवरी के अंत तक एक ग्लैमर चैनल
Monday, December 3, 2007
मीडिया से जुड़ी दो खबरें
Monday, November 26, 2007
दैनिक आई नेक्स्ट आगरा में
साभार- जागरण
Wednesday, November 21, 2007
वो गलियाँ...
ऐसी दुनिया, मेरे मन में भी यह बात बैठ गई थी कि ये गलियाँ यूँ बदनाम कही जाती हैं, यहाँ तो इतना ऐशो-आराम है कि लोग चाह कर भी उसे पा नहीं सकते। खैर बचपन की वो कल्पनाएँ धुँधली पड़ गई, पर मन के किसी कोने में वह दुनिया आज भी कहीं दबी पड़ी थी। मैं एक छोटे शहर से आती हूँ, जहाँ जीने लायक सुविधाएँ तो थीं, लेकिन समाज को उसकी विषमताओं को अपने नजरिए से देखना स्वीकार्य नहीं था। जहाँ देखने को कहा जाए, वहाँ देखो, जहाँ चलने को कहा जाए, वहाँ चलो।
खैर बात कहाँ से शुरू हुई थी और मैं आपको कहाँ ले जा रही हूँ...बात हो रही थी बदनाम गलियों की। आज भी मुझे याद है- एक दिन हमारा फिल्म देखने का कार्यक्रम बना, पूरा परिवार साथ-साथ रिक्शों की सवारी पर निकल पड़ा। चूँकि शहर छोटा था और गलियाँ काफी तंग, जहाँ रिक्शों को बार-बार रूकना पड़ रहा था।
मैंने पहले सुन रखा था कि टॉकिज जाने के रास्ते में वही...गलियाँ आती हैं। घर की महिलाओं और लड़कियों को पहले ही संकेतों में यह हिदायत दे दी गई थी कि रास्ते में ज्यादा चूँ-चपड़ नहीं करनी है, इसलिए सभी आदेशों के पालन में लगी हुई थीं। मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था कि पता नहीं कितनी चमक हो उन घरों, कैसी सजी-धजी दिखती होंगी, मुझे रेखा के उस गाने– ‘इन आँखों की मस्ती...’का पूरा दृश्य घूम गया। लग रहा रिक्शा उड़कर उन भव्य इमारतों के सामने पहुँच जाए।
भइया पापा से नजरें बचाकर तिरछी नजरों से उधर देख रहे थे। मुझे समझ आ गया कि हम उसी इमारत के सामने से गुजर रहे हैं। चूँकि रिक्शा बहुत धीरे-धीरे चल रहा था, इसलिए मैं सुबकुछ साफ-साफ देख सकती थी, जो भी मैंने देखा वह मेरी कल्पनाओं से भी परे था। न तो कोई चकाचौंध, न ही भव्य इमारत, और न ही किसी गहने की कोई चमक थी।
था तो केवल अँधेरा, मैले से पेटीकोट और ब्लाउज में कुछ महिलाएँ खड़ी थीं, अपने पेटीकोट को भी उन्होंने घुटने तक उठा रखा था, उनकी आँखों में न कोई शरारत थी न ही वह अदा, सबकुछ स्याह काला, ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने काली रात का अँधेरा उनकी देहरी पर पटक दिया हो। सारी आपस में बातें कर रही थीं, कोई किसी के सिर से जुएँ निकल रही थीं कोई शून्य नजरों से सड़को को ताक रही थीं।
उनकी बेबाकी उनके हाव-भव में झलक रही थी। इतने में हमारा रिक्शा आगे बढ़ गया। अब मुझे महसूस हुआ कि क्यों हैं ये बदनाम गलियाँ, लेकिन रेखा के उस गाने का क्या॥या उन तमाम फिल्मों का क्या, जो सपनों की दुनिया से भी ज्यादा चौंधयाई हुई है।
- नीहारिका
वो गलियाँ...
ऐसी दुनिया, मेरे मन में भी यह बात बैठ गई थी कि ये गलियाँ यूँ बदनाम कही जाती हैं, यहाँ तो इतना ऐशो-आराम है कि लोग चाह कर भी उसे पा नहीं सकते। खैर बचपन की वो कल्पनाएँ धुँधली पड़ गई, पर मन के किसी कोने में वह दुनिया आज भी कहीं दबी पड़ी थी। मैं एक छोटे शहर से आती हूँ, जहाँ जीने लायक सुविधाएँ तो थीं, लेकिन समाज को उसकी विषमताओं को अपने नजरिए से देखना स्वीकार्य नहीं था। जहाँ देखने को कहा जाए, वहाँ देखो, जहाँ चलने को कहा जाए, वहाँ चलो।
खैर बात कहाँ से शुरू हुई थी और मैं आपको कहाँ ले जा रही हूँ...बात हो रही थी बदनाम गलियों की। आज भी मुझे याद है- एक दिन हमारा फिल्म देखने का कार्यक्रम बना, पूरा परिवार साथ-साथ रिक्शों की सवारी पर निकल पड़ा। चूँकि शहर छोटा था और गलियाँ काफी तंग, जहाँ रिक्शों को बार-बार रूकना पड़ रहा था।
मैंने पहले सुन रखा था कि टॉकिज जाने के रास्ते में वही...गलियाँ आती हैं। घर की महिलाओं और लड़कियों को पहले ही संकेतों में यह हिदायत दे दी गई थी कि रास्ते में ज्यादा चूँ-चपड़ नहीं करनी है, इसलिए सभी आदेशों के पालन में लगी हुई थीं। मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था कि पता नहीं कितनी चमक हो उन घरों, कैसी सजी-धजी दिखती होंगी, मुझे रेखा के उस गाने– ‘इन आँखों की मस्ती...’का पूरा दृश्य घूम गया। लग रहा रिक्शा उड़कर उन भव्य इमारतों के सामने पहुँच जाए।
भइया पापा से नजरें बचाकर तिरछी नजरों से उधर देख रहे थे। मुझे समझ आ गया कि हम उसी इमारत के सामने से गुजर रहे हैं। चूँकि रिक्शा बहुत धीरे-धीरे चल रहा था, इसलिए मैं सुबकुछ साफ-साफ देख सकती थी, जो भी मैंने देखा वह मेरी कल्पनाओं से भी परे था। न तो कोई चकाचौंध, न ही भव्य इमारत, और न ही किसी गहने की कोई चमक थी।
था तो केवल अँधेरा, मैले से पेटीकोट और ब्लाउज में कुछ महिलाएँ खड़ी थीं, अपने पेटीकोट को भी उन्होंने घुटने तक उठा रखा था, उनकी आँखों में न कोई शरारत थी न ही वह अदा, सबकुछ स्याह काला, ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने काली रात का अँधेरा उनकी देहरी पर पटक दिया हो। सारी आपस में बातें कर रही थीं, कोई किसी के सिर से जुएँ निकल रही थीं कोई शून्य नजरों से सड़को को ताक रही थीं।
उनकी बेबाकी उनके हाव-भव में झलक रही थी। इतने में हमारा रिक्शा आगे बढ़ गया। अब मुझे महसूस हुआ कि क्यों हैं ये बदनाम गलियाँ, लेकिन रेखा के उस गाने का क्या॥या उन तमाम फिल्मों का क्या, जो सपनों की दुनिया से भी ज्यादा चौंधयाई हुई है।
- नीहारिका
Tuesday, November 20, 2007
दिल्ली में एक और समाचार पत्र
Sunday, November 18, 2007
बदल सकती है आपकी किस्मत शिवा सीमेंट से
आईपीओ
रिनेसां ज्वेलरी 10 रुपए मूल्य के 125-150 रुपए के सीमा मूल्य में 53।24 लाख शेयर का पहला पब्लिक इश्यू (आईपीओ) ला रही है।यह इश्यू 19 नवम्बर को खुलेगा और 21 नवम्बर 2007 को बंद होगा। जानकार कहते हैं कि यह बेहतर इश्यू है। सरकारी नीतियां ऐसी कम्पनियों के पक्ष में दिखाई देती हैं। लम्बी अवधि को ध्यान में रखकर निवेश करना चाहिए।
Saturday, November 17, 2007
नीरज के परिजनों को जरुरत है आपकी
हम सब अपने अपने स्तर पर नीरज जी के परिवार की कुछ न कुछ मदद कर सकते हैं. यदि आप कुछ मदद करना चाहे तो यशवंत जी से ९९९९३-३००९९ पर या मुझसे ९८६७५-७५१७६ पर बात कर सकते हैं. नीरज के परिजनों से बात करने के बाद आपको उनका एकाउंट नंबर बता दिया जाएगा, जिसमें आप रकम ट्रांसफर कर देंगे. अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें.हम उम्मीद करते हैं कि आप अपने स्तर पर जरुर कुछ न कुछ मदद कर सकते हैं.
आशीष महर्षि
Friday, November 16, 2007
आईबीएन 7 ने माफ़ी मांगी
Thursday, November 15, 2007
एनडीटीवी लाएगा नया चैनल
इससे पहले ख़बर आई थी कि एनडीटीवी जल्दी ही अपना एक हिन्दी न्यूज़ पोर्टल लाँच करने वाला है. दुनिया भर में इंटरनेट के बढ़ते उपयोग को देखते हुए यह फ़ैसला लिया है. एनडीटीवी इस पोर्टल से पहले एक मोबाइल पोर्टल लाँच करेगी जिसका नाम एनडीटीवी एक्टिव होगा. कहा जा रहा है कि मध्य नवम्बर से यह चालू हो सकता है. जबकि हिन्दी न्यूज़ पोर्टल जिसका नाम एनडीटीवी ख़बर होगा, यह दो महीने बाद यानी अगले साल तक लाँच हो जाएगा. एनडीटीवी इसके अलावा लाइफ स्टाइल, बालीवुड और शिक्षा को लेकर भी कुछ वेब पोर्टल लाने पर कार्य कर रहा है
Monday, November 12, 2007
प्रलय...कोहराम...कत्ले आम.....फिर खामोशी.....और बस सन्नाटा
प्रलय...कोहराम...कत्ले आम.....फिर खामोशी.....और बस सन्नाटा
Sunday, November 11, 2007
पिता
सफलता, खुशियां, ममता तेरी झोली में डालूंगा,
पिता हूं तेरे सारे दु:ख हरूंगा।
पकड़कर ऊंगली जब सीखा तूने चलना,
मन पुलकित और हर्षित हुआ ,
तुझे ले जाऊंगा बादलों के भी पार,
सपना यह संजोता रहा।
तेरी हर इच्छा पूरी करूं,
मैं संभालूं, मैं संजोऊं तेरे सपनों का घरौंदा।
यह जाने बिना कि तू पंछी है किसी और डाल की
तेरा दाना-पानी नहीं हमारे अंगान का,
तू बादल है उमड़ता-घुमड़ता,
जो बरसेगा किसी और की बगिया में।
घर में शहनाई, मेहमानों का शोर है
तेरी किलकारियां अब खामोश हैं
ना तूने थामी है मेरी ऊंगली अब,
शर्माई, सकुचाई-सी एक मूरत, आंसुओं की बहती धार,
मैं भी हूं एक असहाय पिता
जो केवल संजो सकता है सपने अपनी बिटिया के,
आकार पाते हैं वो सपने दूर कहीं, दूर कहीं....।
पिता
सफलता, खुशियां, ममता तेरी झोली में डालूंगा,
पिता हूं तेरे सारे दु:ख हरूंगा।
पकड़कर ऊंगली जब सीखा तूने चलना,
मन पुलकित और हर्षित हुआ ,
तुझे ले जाऊंगा बादलों के भी पार,
सपना यह संजोता रहा।
तेरी हर इच्छा पूरी करूं,
मैं संभालूं, मैं संजोऊं तेरे सपनों का घरौंदा।
यह जाने बिना कि तू पंछी है किसी और डाल की
तेरा दाना-पानी नहीं हमारे अंगान का,
तू बादल है उमड़ता-घुमड़ता,
जो बरसेगा किसी और की बगिया में।
घर में शहनाई, मेहमानों का शोर है
तेरी किलकारियां अब खामोश हैं
ना तूने थामी है मेरी ऊंगली अब,
शर्माई, सकुचाई-सी एक मूरत, आंसुओं की बहती धार,
मैं भी हूं एक असहाय पिता
जो केवल संजो सकता है सपने अपनी बिटिया के,
आकार पाते हैं वो सपने दूर कहीं, दूर कहीं....।
Saturday, November 3, 2007
बोल हल्ला की नई पहल...पत्रकारों का अपना कोना
Wednesday, October 31, 2007
लीजिये एक और चैनल
देश मे आज २०० से अधिक चैनल हैं. चैनलों के इस हुजूम में इस नए चैनल का भी स्वागत हैं. १९९१ में देश में केवल ६ ही चैनल थे.
Friday, October 26, 2007
सुरक्षित सेक्स और महाराष्ट्र
सुरक्षित सेक्स और महाराष्ट्र
Thursday, October 25, 2007
अजीब सा कुछ था उसकी आंखों में...लेकिन क्या ??
अजीब सा कुछ था उसकी आंखों में...लेकिन क्या ??
Wednesday, October 10, 2007
मैं मांगती हूं
देने वाला दानवीर है,
तो आजादी, खुशी और
जीने की एक अदद वजह मांगती हूं।
मां कहलाने के लिए भी तो मांगना होता है
अपनी पहचान, जो तुमसे शुरू होकर तुमपर खत्म होती है
क्योंकि बिना पहचान के कुल्टा हूं और पहचान के साथ भी बेनाम,
ऐसी जिंदगी के संग जीने की अदद वजह मांगती हूं।
- नीहारिका
मैं मांगती हूं
देने वाला दानवीर है,
तो आजादी, खुशी और
जीने की एक अदद वजह मांगती हूं।
मां कहलाने के लिए भी तो मांगना होता है
अपनी पहचान, जो तुमसे शुरू होकर तुमपर खत्म होती है
क्योंकि बिना पहचान के कुल्टा हूं और पहचान के साथ भी बेनाम,
ऐसी जिंदगी के संग जीने की अदद वजह मांगती हूं।
- नीहारिका
Wednesday, October 3, 2007
एक निवाला
कई निवाले,
मैं तो कई सदियों से हूँ भूखा,
अभागा, लाचार, लतियाया हुआ।
रोज गुजरता हूँ तुम्हारी देहरी से
आस लिए कि कभी तो पड़ेगी तुम्हारी भी नजर,
इसी उम्मीद से हर रोज आता हूँ,
फिर भी पहचान क्या बताऊँ अपनी,
कभी विदर्भ तो कभी कालाहांडी से छपता हूँ,
गुमनामी की चीत्कार लिए,
जो नहीं गूँजती इस हो-हंगामे में।
ना नाम माँगता हूँ,
ना ही कोई मुआवजा,
उन अनगिनत निवालों का हिसाब भी नहीं,
विनती है ! केवल इतनी,
मौत का एक निवाला चैन से लेने दो ।
-नीहारिका झा
एक निवाला
कई निवाले,
मैं तो कई सदियों से हूँ भूखा,
अभागा, लाचार, लतियाया हुआ।
रोज गुजरता हूँ तुम्हारी देहरी से
आस लिए कि कभी तो पड़ेगी तुम्हारी भी नजर,
इसी उम्मीद से हर रोज आता हूँ,
फिर भी पहचान क्या बताऊँ अपनी,
कभी विदर्भ तो कभी कालाहांडी से छपता हूँ,
गुमनामी की चीत्कार लिए,
जो नहीं गूँजती इस हो-हंगामे में।
ना नाम माँगता हूँ,
ना ही कोई मुआवजा,
उन अनगिनत निवालों का हिसाब भी नहीं,
विनती है ! केवल इतनी,
मौत का एक निवाला चैन से लेने दो ।
-नीहारिका झा
Monday, October 1, 2007
यह भी सच है
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार इन शहरी बस्तियों में रहने वाले लोग भय, असुरक्षा, गरीबी और मानवाधिकारों से वंचित जीवन जी रहे हैं जहां मूलभूत आवश्यकताओं का भारी अभाव है तथा हिंसा व अपराध एक गंभीर समस्या बनती जा रही है।
संयुक्त राष्ट्र ने इस साल विश्व आवास दिवस का विषय या थीम एक सुरक्षित शहर ही वास्तविक शहर' चुना है। वास्तव में यह विषय मानव बस्तियों की हालत पर नजर डालता है। संयुक्त राष्ट्र ने शहरी सुरक्षा, सामाजिक न्याय खासतौर पर शहरी अपराध और हिंसा, बलात् निष्कासन, असुरक्षित शहरी निवास के साथ साथ प्रकृति व मनुष्यजन्य आपदाओं के प्रति जागरूकता और इस बारे में प्रयासों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से ही एक 'सुरक्षित शहर ही वास्तविक शहर' विषय चुना है।
वर्तमान समय और परिस्थितियों में अधिकतर शहरों में भय और असुरक्षा का एक प्रमुख कारण अपराध और हिंसा है। संयुक्त राष्ट्र ने इस साल विश्व आवास दिवस-2007 के अंतरराष्ट्रीय आयोजन का नेतृत्व नीदरलैंड की राजधानी हेग शहर को सौंपा है। इस अवसर पर वहां एक सम्मेलन का आयोजन किया गया है, जिसमें सभी स्तर के पेशेवर लोगों को आमंत्रित किया गया है जो विकसित और विकासशील देशों में शहरी सुरक्षा और बचाव में आ रही चुनौतियों पर अपने विचार रखेंगे।
यह भी सच है
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार इन शहरी बस्तियों में रहने वाले लोग भय, असुरक्षा, गरीबी और मानवाधिकारों से वंचित जीवन जी रहे हैं जहां मूलभूत आवश्यकताओं का भारी अभाव है तथा हिंसा व अपराध एक गंभीर समस्या बनती जा रही है।
संयुक्त राष्ट्र ने इस साल विश्व आवास दिवस का विषय या थीम एक सुरक्षित शहर ही वास्तविक शहर' चुना है। वास्तव में यह विषय मानव बस्तियों की हालत पर नजर डालता है। संयुक्त राष्ट्र ने शहरी सुरक्षा, सामाजिक न्याय खासतौर पर शहरी अपराध और हिंसा, बलात् निष्कासन, असुरक्षित शहरी निवास के साथ साथ प्रकृति व मनुष्यजन्य आपदाओं के प्रति जागरूकता और इस बारे में प्रयासों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से ही एक 'सुरक्षित शहर ही वास्तविक शहर' विषय चुना है।
वर्तमान समय और परिस्थितियों में अधिकतर शहरों में भय और असुरक्षा का एक प्रमुख कारण अपराध और हिंसा है। संयुक्त राष्ट्र ने इस साल विश्व आवास दिवस-2007 के अंतरराष्ट्रीय आयोजन का नेतृत्व नीदरलैंड की राजधानी हेग शहर को सौंपा है। इस अवसर पर वहां एक सम्मेलन का आयोजन किया गया है, जिसमें सभी स्तर के पेशेवर लोगों को आमंत्रित किया गया है जो विकसित और विकासशील देशों में शहरी सुरक्षा और बचाव में आ रही चुनौतियों पर अपने विचार रखेंगे।
लिया बहुत-बहुत ज़्यादा दिया बहुत-बहुत कम
लिया बहुत-बहुत ज़्यादा दिया बहुत-बहुत कम
शिल्पा शेट्टी के साथ फिर बेअदबी
Saturday, September 29, 2007
दैनिक हिंदुस्तान का भोपाल संस्करण
Friday, September 28, 2007
पत्रकारों की सज़ा पर रोकी सुप्रीम कोर्ट ने
खबर के अनुसार अदालत की अवमानना के एक मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने 'मिड डे' अख़बार के चार पत्रकारों को चार-चार महीने की जेल की सज़ा सुनाई थी। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अरिजीत पसायत और पी सदाशिवम ने चारों पत्रकारों की याचिका स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट से उन्हें मिली सज़ा पर रोक लगा दी।
हाईकोर्ट ने जिन्हें सज़ा सुनाई थी उनमें 'मिड डे' के स्थानीय संपादक और प्रकाशक के साथ-साथ एक कार्टूनिस्ट भी हैं. 'मिड डे' में छपे लेख में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायधीश वाईके सभरवाल पर दिल्ली में अवैध तरीक़े से रिहायशी इलाक़ों में चल रही दुकानों को सील करने के आदेश से संबंधित कुछ टिप्पणियाँ की थीं। अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि 'लेख से सुप्रीम कोर्ट की छवि धूमिल होती है। इससे इस संस्था में आम लोगों के विश्वास में कमी आ सकती है।'
पत्रकार इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गए थे और सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि दोषी ठहराए गए लोगों को उच्च न्यायालय तत्काल ज़मानत दे दे जिसके बाद चारों को ज़मानत दे दी गई।
पत्रकारों की सज़ा पर रोकी सुप्रीम कोर्ट ने
खबर के अनुसार अदालत की अवमानना के एक मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने 'मिड डे' अख़बार के चार पत्रकारों को चार-चार महीने की जेल की सज़ा सुनाई थी। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अरिजीत पसायत और पी सदाशिवम ने चारों पत्रकारों की याचिका स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट से उन्हें मिली सज़ा पर रोक लगा दी।
हाईकोर्ट ने जिन्हें सज़ा सुनाई थी उनमें 'मिड डे' के स्थानीय संपादक और प्रकाशक के साथ-साथ एक कार्टूनिस्ट भी हैं. 'मिड डे' में छपे लेख में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायधीश वाईके सभरवाल पर दिल्ली में अवैध तरीक़े से रिहायशी इलाक़ों में चल रही दुकानों को सील करने के आदेश से संबंधित कुछ टिप्पणियाँ की थीं। अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि 'लेख से सुप्रीम कोर्ट की छवि धूमिल होती है। इससे इस संस्था में आम लोगों के विश्वास में कमी आ सकती है।'
पत्रकार इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गए थे और सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि दोषी ठहराए गए लोगों को उच्च न्यायालय तत्काल ज़मानत दे दे जिसके बाद चारों को ज़मानत दे दी गई।
Tuesday, September 25, 2007
लेकिन अब गंगा तेरे शहर से मेरे शहर में नहीं आती
जब मेरे शहर को आती थी
लेकिन अब गंगा तेरे शहर से
लेकिन अब गंगा तेरे शहर से मेरे शहर में नहीं आती
जब मेरे शहर को आती थी
लेकिन अब गंगा तेरे शहर से
Monday, September 24, 2007
पास थे कभी
एक घर हमने भी बनाया था अपने लिए,
चुनकर लाए थे खुशियों के एक-एक फूल,
रंग भरे थे सपनों की रंगीन कूची से,
आज भी देखती हूँ उस ख्वाब की दुनिया के अवशेष
जिसकी रंगहीन दीवारें आज भी कुछ यादों को
सहेजे हुए है किसी बदरंग तस्वीर की तरह।
- Niharika
पास थे कभी
एक घर हमने भी बनाया था अपने लिए,
चुनकर लाए थे खुशियों के एक-एक फूल,
रंग भरे थे सपनों की रंगीन कूची से,
आज भी देखती हूँ उस ख्वाब की दुनिया के अवशेष
जिसकी रंगहीन दीवारें आज भी कुछ यादों को
सहेजे हुए है किसी बदरंग तस्वीर की तरह।
- Niharika
Friday, September 21, 2007
प्रेयसी को पत्र
प्रिये, तुम्हें खत लिखने की सोचते सोचते पूरी ऋतु गुजर गई। ग्रीष्म ऋतु में बिजली की कमी के कारण तुम भी किसी कोने में पसीना बहा रही होगी यही सोचकर तुम्हें छेड़ने का मेरा मन नहीं हुआ। बिजलीघर तो जैसा तुम्हारा वैसा हमारा। अब मौसम बदला है तो कलम अपने आप ही बहने लगी है। लेखनी फेंकने की अपेक्षा तुम्हें एक खत लिख दूं, यही ठीक रहेगा सो लिखता हूं। सुमुखि, तुम्हारा चंद्रमुख देखने के लिए दिन रात तरसता हूँ। फोटो में जैसा है वैसा दिखता है, इससे तो कल्पना में देखना ठीक है। मनरूपी कंप्यूटर में कल्पना के टूल्स बार से रंग और डिजाइन उठाकर फिट करता हूं, ठीक लगने लगता है तो देख लेता हूं। इतनी मेहनत मैं करता हूं सो तुम्हारे लिए। एक बार दिख जाओ तो रोज की यह कसरत बंद हो जाये। मनोहरे, बाहर बरसात हो रही है। कोई कवि होता तो ऐसे में मिलने की बात जरूर कहता। जानता है ऐसे में आ जाओगी तो जाओगी बारिश बंद होने पर ही। देर तक सानिध्य रहेगा। लेकिन मैं डरता हूँ। तुम कवि की प्रेयसी नहीं, आधुनिक प्रेमी की चाहत हो। अधिक देर तुम्हारे रुकने पर बोरियत का शिकार होने का डर है। वैसे भी जेब में पैसे न हों तो आदमी जल्दी बोर होने लगता है। ऐसे में प्रेमिका पास हो तो हासिल में बेइज्जती के अलावा कुछ बचता नहीं है। इसीलिए सूखे में आना और सूखे में जाना। कपड़े भी ज्यादा चलेंगे। धन्ये, तुम सचमुच धन्य हो। कानून की तरह किताबों में कैद रहने में तुम्हें कितना मजा आता है! कब से बुला रहा हूँ लेकिन आने का नाम नहीं लेतीं। क्या तुम्हें भी किसी पुलिसवाले ने कब्जिया लिया है? अगर ऐसा है तो उस पुलिसवाले के आका का उल्लेख खत में जरूर करना। आज के समय में पुलिस इशारे के बिना काम नहीं करती। यह कोई अमेरिका की पुलिस नहीं है जो साक्ष्यों के अनुसार चले। इशारा करने वाला अगर सचमुच ताकतवर है तो मैं कहीं और देखूंगा। तुम्हे नाहक परेशान होने की जरूरत नहीं है। तुम अगर पुलिस के पास हो तो सारा हिंदुस्तान तुम्हारे पास है। ललिते, वैसे तो मैं खत में मोबाइल नंबर लिख देता, तुम्हें बात करने में आसानी रहती। लेकिन सुरक्षा के लिहाज से ठीक नहीं है। आती बारी में अपना लिख भेजना। तुम्हें अधिक सोचने की जरूरत नहीं है। यह बंदा अपना नंबर चाहे जितना बांट दे लेकिन तुम्हारा तो अपने पास गोपन ही रखना अधिक पसंद करेगा। चंद्रमुखी, तुम क्यों चिंता करती हो। आ भी जाओ। अगर कोई काम नहीं मिलेगा तो दलाली करने लगूंगा। हमारी सभ्यता ने इस काम को भी सम्मान दिला दिया है। दो लोगों को धोखे में रखकर कितना भी पैसा कमाया जा सकता है। हां, यह धन होता दो नंबर का है इसीलिए खर्च भी जल्दी करना पड़ता है। हांलाकि तुम्हारे लिए तो यह खुशी की बात है। सुभगे, कल तुम्हें बाजार में देखा। जान पड़ा कि तुम्हीं हो। हांलाकि कल्पना से मैच नहीं करतीं लेकिन पहनावे से अच्छे घर की जान पड़ती हो। मैंने सोचा तुम्हीं ठीक हो। शाम तक मेरी बेपनाह मुहव्वत मुझ पर हावी हो गई। अब नये ढंग से मैं तुमसे नया प्रेम करने लगा हूँ। कल्पनावाली की मैंने छुट्टी कर दी है। प्राणवल्लभे, अब तो मैं तुम्हारे अलावा कुछ भी नहीं सोचता हूँ। बात यह है कि फिल्में सब एकसी आती हैं। किताबें मैं पढ़ता नहीं। दोस्त सब इधर उधर हो गये हैं। इसलिए सोचने के लिए मेरे पास और कुछ है भी नहीं। यह मैं इसलिए बता रहा हूँ कि तुम विश्वास कर सको कि मैं आजकल तुम्हारे बारे में ही अधिक सोचता हूँ। शकुंतले, दुष्यंत की तरह मैं तुम्हें नहीं भूलूंगा। मेरे पास एक ही अंगूठी है, उसे मैं तुम्हें दे दूंगा। उसकी चिंता रहेगी तो तुम्हारी भी याद रहेगी। पुरुष स्त्री को जो दे देता है उसके लिए भी उसे याद रखता है। मनोविज्ञान का यह नियम अखबारों से तुम तक भी आ गया होगा। इसलिए उल्लेख कर रहा हूँ। सखि, अब कितना लिखूं? इतना तो मैंने पूरे परीक्षा काल में भी नहीं लिखा। संक्षेप में मेरी स्थिति जो है सो लिखता हूँ। इसी से समझ लेना। मुझे गरज किसी से क्या वास्ता मुझे काम अपने काम से।तेरे जिक्र से तेरी फिक्र से तेरी याद से तेरे नाम से। मानिनी, पता नहीं तुम लड़कियों को इतना घमंड किस बात का होता है। तुमने एक भी खत का जबाब नहीं दिया। कोई लड़का भी तुम्हारे आसपास नहीं दिखता। पता नहीं किन सपनों में खोई रहती हो। उस दिन भीड़ में धक्का दिया, तुमने ध्यान नहीं दिया। सीटी बजाने पर मुड़ कर भी नहीं देखा। क्या तुम्हारा स्वभाव भी पांच साल में एक बार मुड़कर देखने वाला है? तो अपने चुनाव की साल बता रखना। मैं प्रचार का बजट बना रखूँगा। रूपा, मेरा अब यह आखिरी खत है। अब और नहीं। पाकिस्तानी जनता की तरह डेमोक्रेसी का इंतजार अनंतकाल तक मैं नहीं कर सकता। उधर नेपाल में भी जनता को सरकार मिल गई है। सोचता हूं अब मुझे भी अपने लिए कोई ठीक करनी ही पड़ेगी। साफ बता देता हूँ, तू नहीं और सही, और नहीं और सही। सजनि, तुम्हारा जबाब पाकर खुश हुआ। हिंदी जरूर तुम्हारी खराब है लेकिन उसकी चिंता तो किसी को भी नहीं है। हमीं क्यों नाहक परेशान हों? तुमने तो जबाब में फिल्मी गीत तक लिखे हैं। मैं इतने की उम्मीद नहीं करता था। तो कल बाजार में मिलना। चोरी की कुछ सीडीं मेरे पास भी हैं। सब तुम्हें दे दूंगा। काम्या, तुमसे मिलकर आया तो दिनभर खुश रहा। पर देखना हमारे मिलन का हाल मुशर्रफ-बेनजीर सा न हो। मुलाकात के समय कुछ और अपनी जगह पर कुछ और। हमारे तुम्हारे बीच मौकापरस्त नवाज शरीफ हो सकते हैं। तुम्हारे पितारूपी सुप्रीम कोर्ट का सहारा लेकर वे लौट सकते हैं, सावधान रहना। मेरी सरकार, मुझे तुम्हारा प्रधानमंत्री होने में कोई बुराई नजर नहीं आती। पद तो मेरा है। भाषण और प्रोग्राम तुम्हारे चलेंगे। बस लेफ्ट फ्रंट की तरह लेफ्ट मत हो जाना। वैसे वे भी जल्दी मान जाते हैं। मनमोहिनी, कल मां के बारे में तुम्हारे विचार जानने को मिले। जानकर खुशी हुई कि वे मेरी मां के बारे में थे, तुम्हारी मां के बारे में नहीं। हिंदी की तरह मेरी मां खराब हो सकती हैं लेकिन अंग्रेजी की तरह तुम्हारी मां की अहमियत से मैं क्या कोई भी इंकार नहीं कर सकता। निर्मोहिणी, तुम क्यों रूठ गईं? मैंने तुम्हारे पिता को कब बुरा भला कहा था? मैं तो अपने प्रिंसीपल की शिकायत कर रहा था। कसम से एक बार भी जो पढ़ाई छोड़ने के बाद उसने किताब उठाई है। खुद अब तक जैसे का तैसा है और हमें जाने क्या समझता है! निर्दयी, हाय! तुम्हें मनाना कितना कठिन काम है। मुझे दोस्तों से उधार लेना पड़ा। अब मुझे उनको भी तुमसे दोस्ती करने की अनुमति देनी पड़ेगी। तुम्हारे चयन के अधिकार के बढ़ जाने से चिंतित रहने लगा हूँ। चुनाव आयोग की तरह तुम्हारे सख्त व्यवहार का नतीजा किसके पक्ष में जायेगा इसका पता मैं चुनाव पूर्व के शराब वितरण जैसी मशक्कत के बावजूद नहीं जान सकता। चपले, तुम चली गईं। सत्ता की तरह चली जाओगी, नेता की तरह मुझे अंदाज था। जनता जैसा मन है तुम्हारा। मैं अब हिंदी के लेखक की तरह अस्त व्यस्त रहने लगा हूँ। देश के अधकचरे पढ़े लिखे लोगों जैसा मेरा घमंड न जाने कहां चला गया है। अब तो उन्हीं के अंदाज में नये प्रेमियों को समझाने में लगा रहता हूँ। प्रेयसि, फिल्मी लेखक की तरह चोरी की कहानी को अपना कहने लगा हूँ। निर्देशक की तरह उसे आजमाने में लगा हूँ। एक दोस्त की प्रेमिका से मिलने लगा हूँ। वह भी बोर है। जान पड़ता है प्रेम हो ही जायेगा। लेखक प्रेम कहानियां लिख लिख कर बोर नहीं होते। हम लोग प्रेम कर करके। सोचा तुम्हें बता दूँ। कहीं एकदम लौट पड़ीं तो जगह की तंगी का शिकार हो सकते हैं हम लोग। तबादला खा चुके अधिकारी को कोर्ट से स्टे मिल जाने के बाद जैसे दो अधिकारी एक ही कुर्सी पर फंस जाते हैं और ठीक से खा पी नहीं पाने के कारण दुखी रहते हैं वैसे मैं तुम्हें दुखी नहीं देखना चाहता। सांवरी, फेयर क्रीम लगा कर साफ रहना। अपने नये प्रेमी का वजन कम करती रहना। उसे अपने अनुभवों को बताना। साफ साफ बताना, सरकारी बाबुओं जैसी गोलमोल भाषा का इस्तेमाल मत करना। अखबारी संवाददाता की तरह अपने कम ज्ञान पर भी पूरा भरोसा रखना। स्वास्थ्य का ध्यान रखना, साथ वाले का भी। जितना सहन कर सके उसे उतना ही दुख देना।
- संजीव
(यह गुस्ताखी माफ़ से लिया गया हैं।)
प्रेयसी को पत्र
प्रिये, तुम्हें खत लिखने की सोचते सोचते पूरी ऋतु गुजर गई। ग्रीष्म ऋतु में बिजली की कमी के कारण तुम भी किसी कोने में पसीना बहा रही होगी यही सोचकर तुम्हें छेड़ने का मेरा मन नहीं हुआ। बिजलीघर तो जैसा तुम्हारा वैसा हमारा। अब मौसम बदला है तो कलम अपने आप ही बहने लगी है। लेखनी फेंकने की अपेक्षा तुम्हें एक खत लिख दूं, यही ठीक रहेगा सो लिखता हूं। सुमुखि, तुम्हारा चंद्रमुख देखने के लिए दिन रात तरसता हूँ। फोटो में जैसा है वैसा दिखता है, इससे तो कल्पना में देखना ठीक है। मनरूपी कंप्यूटर में कल्पना के टूल्स बार से रंग और डिजाइन उठाकर फिट करता हूं, ठीक लगने लगता है तो देख लेता हूं। इतनी मेहनत मैं करता हूं सो तुम्हारे लिए। एक बार दिख जाओ तो रोज की यह कसरत बंद हो जाये। मनोहरे, बाहर बरसात हो रही है। कोई कवि होता तो ऐसे में मिलने की बात जरूर कहता। जानता है ऐसे में आ जाओगी तो जाओगी बारिश बंद होने पर ही। देर तक सानिध्य रहेगा। लेकिन मैं डरता हूँ। तुम कवि की प्रेयसी नहीं, आधुनिक प्रेमी की चाहत हो। अधिक देर तुम्हारे रुकने पर बोरियत का शिकार होने का डर है। वैसे भी जेब में पैसे न हों तो आदमी जल्दी बोर होने लगता है। ऐसे में प्रेमिका पास हो तो हासिल में बेइज्जती के अलावा कुछ बचता नहीं है। इसीलिए सूखे में आना और सूखे में जाना। कपड़े भी ज्यादा चलेंगे। धन्ये, तुम सचमुच धन्य हो। कानून की तरह किताबों में कैद रहने में तुम्हें कितना मजा आता है! कब से बुला रहा हूँ लेकिन आने का नाम नहीं लेतीं। क्या तुम्हें भी किसी पुलिसवाले ने कब्जिया लिया है? अगर ऐसा है तो उस पुलिसवाले के आका का उल्लेख खत में जरूर करना। आज के समय में पुलिस इशारे के बिना काम नहीं करती। यह कोई अमेरिका की पुलिस नहीं है जो साक्ष्यों के अनुसार चले। इशारा करने वाला अगर सचमुच ताकतवर है तो मैं कहीं और देखूंगा। तुम्हे नाहक परेशान होने की जरूरत नहीं है। तुम अगर पुलिस के पास हो तो सारा हिंदुस्तान तुम्हारे पास है। ललिते, वैसे तो मैं खत में मोबाइल नंबर लिख देता, तुम्हें बात करने में आसानी रहती। लेकिन सुरक्षा के लिहाज से ठीक नहीं है। आती बारी में अपना लिख भेजना। तुम्हें अधिक सोचने की जरूरत नहीं है। यह बंदा अपना नंबर चाहे जितना बांट दे लेकिन तुम्हारा तो अपने पास गोपन ही रखना अधिक पसंद करेगा। चंद्रमुखी, तुम क्यों चिंता करती हो। आ भी जाओ। अगर कोई काम नहीं मिलेगा तो दलाली करने लगूंगा। हमारी सभ्यता ने इस काम को भी सम्मान दिला दिया है। दो लोगों को धोखे में रखकर कितना भी पैसा कमाया जा सकता है। हां, यह धन होता दो नंबर का है इसीलिए खर्च भी जल्दी करना पड़ता है। हांलाकि तुम्हारे लिए तो यह खुशी की बात है। सुभगे, कल तुम्हें बाजार में देखा। जान पड़ा कि तुम्हीं हो। हांलाकि कल्पना से मैच नहीं करतीं लेकिन पहनावे से अच्छे घर की जान पड़ती हो। मैंने सोचा तुम्हीं ठीक हो। शाम तक मेरी बेपनाह मुहव्वत मुझ पर हावी हो गई। अब नये ढंग से मैं तुमसे नया प्रेम करने लगा हूँ। कल्पनावाली की मैंने छुट्टी कर दी है। प्राणवल्लभे, अब तो मैं तुम्हारे अलावा कुछ भी नहीं सोचता हूँ। बात यह है कि फिल्में सब एकसी आती हैं। किताबें मैं पढ़ता नहीं। दोस्त सब इधर उधर हो गये हैं। इसलिए सोचने के लिए मेरे पास और कुछ है भी नहीं। यह मैं इसलिए बता रहा हूँ कि तुम विश्वास कर सको कि मैं आजकल तुम्हारे बारे में ही अधिक सोचता हूँ। शकुंतले, दुष्यंत की तरह मैं तुम्हें नहीं भूलूंगा। मेरे पास एक ही अंगूठी है, उसे मैं तुम्हें दे दूंगा। उसकी चिंता रहेगी तो तुम्हारी भी याद रहेगी। पुरुष स्त्री को जो दे देता है उसके लिए भी उसे याद रखता है। मनोविज्ञान का यह नियम अखबारों से तुम तक भी आ गया होगा। इसलिए उल्लेख कर रहा हूँ। सखि, अब कितना लिखूं? इतना तो मैंने पूरे परीक्षा काल में भी नहीं लिखा। संक्षेप में मेरी स्थिति जो है सो लिखता हूँ। इसी से समझ लेना। मुझे गरज किसी से क्या वास्ता मुझे काम अपने काम से।तेरे जिक्र से तेरी फिक्र से तेरी याद से तेरे नाम से। मानिनी, पता नहीं तुम लड़कियों को इतना घमंड किस बात का होता है। तुमने एक भी खत का जबाब नहीं दिया। कोई लड़का भी तुम्हारे आसपास नहीं दिखता। पता नहीं किन सपनों में खोई रहती हो। उस दिन भीड़ में धक्का दिया, तुमने ध्यान नहीं दिया। सीटी बजाने पर मुड़ कर भी नहीं देखा। क्या तुम्हारा स्वभाव भी पांच साल में एक बार मुड़कर देखने वाला है? तो अपने चुनाव की साल बता रखना। मैं प्रचार का बजट बना रखूँगा। रूपा, मेरा अब यह आखिरी खत है। अब और नहीं। पाकिस्तानी जनता की तरह डेमोक्रेसी का इंतजार अनंतकाल तक मैं नहीं कर सकता। उधर नेपाल में भी जनता को सरकार मिल गई है। सोचता हूं अब मुझे भी अपने लिए कोई ठीक करनी ही पड़ेगी। साफ बता देता हूँ, तू नहीं और सही, और नहीं और सही। सजनि, तुम्हारा जबाब पाकर खुश हुआ। हिंदी जरूर तुम्हारी खराब है लेकिन उसकी चिंता तो किसी को भी नहीं है। हमीं क्यों नाहक परेशान हों? तुमने तो जबाब में फिल्मी गीत तक लिखे हैं। मैं इतने की उम्मीद नहीं करता था। तो कल बाजार में मिलना। चोरी की कुछ सीडीं मेरे पास भी हैं। सब तुम्हें दे दूंगा। काम्या, तुमसे मिलकर आया तो दिनभर खुश रहा। पर देखना हमारे मिलन का हाल मुशर्रफ-बेनजीर सा न हो। मुलाकात के समय कुछ और अपनी जगह पर कुछ और। हमारे तुम्हारे बीच मौकापरस्त नवाज शरीफ हो सकते हैं। तुम्हारे पितारूपी सुप्रीम कोर्ट का सहारा लेकर वे लौट सकते हैं, सावधान रहना। मेरी सरकार, मुझे तुम्हारा प्रधानमंत्री होने में कोई बुराई नजर नहीं आती। पद तो मेरा है। भाषण और प्रोग्राम तुम्हारे चलेंगे। बस लेफ्ट फ्रंट की तरह लेफ्ट मत हो जाना। वैसे वे भी जल्दी मान जाते हैं। मनमोहिनी, कल मां के बारे में तुम्हारे विचार जानने को मिले। जानकर खुशी हुई कि वे मेरी मां के बारे में थे, तुम्हारी मां के बारे में नहीं। हिंदी की तरह मेरी मां खराब हो सकती हैं लेकिन अंग्रेजी की तरह तुम्हारी मां की अहमियत से मैं क्या कोई भी इंकार नहीं कर सकता। निर्मोहिणी, तुम क्यों रूठ गईं? मैंने तुम्हारे पिता को कब बुरा भला कहा था? मैं तो अपने प्रिंसीपल की शिकायत कर रहा था। कसम से एक बार भी जो पढ़ाई छोड़ने के बाद उसने किताब उठाई है। खुद अब तक जैसे का तैसा है और हमें जाने क्या समझता है! निर्दयी, हाय! तुम्हें मनाना कितना कठिन काम है। मुझे दोस्तों से उधार लेना पड़ा। अब मुझे उनको भी तुमसे दोस्ती करने की अनुमति देनी पड़ेगी। तुम्हारे चयन के अधिकार के बढ़ जाने से चिंतित रहने लगा हूँ। चुनाव आयोग की तरह तुम्हारे सख्त व्यवहार का नतीजा किसके पक्ष में जायेगा इसका पता मैं चुनाव पूर्व के शराब वितरण जैसी मशक्कत के बावजूद नहीं जान सकता। चपले, तुम चली गईं। सत्ता की तरह चली जाओगी, नेता की तरह मुझे अंदाज था। जनता जैसा मन है तुम्हारा। मैं अब हिंदी के लेखक की तरह अस्त व्यस्त रहने लगा हूँ। देश के अधकचरे पढ़े लिखे लोगों जैसा मेरा घमंड न जाने कहां चला गया है। अब तो उन्हीं के अंदाज में नये प्रेमियों को समझाने में लगा रहता हूँ। प्रेयसि, फिल्मी लेखक की तरह चोरी की कहानी को अपना कहने लगा हूँ। निर्देशक की तरह उसे आजमाने में लगा हूँ। एक दोस्त की प्रेमिका से मिलने लगा हूँ। वह भी बोर है। जान पड़ता है प्रेम हो ही जायेगा। लेखक प्रेम कहानियां लिख लिख कर बोर नहीं होते। हम लोग प्रेम कर करके। सोचा तुम्हें बता दूँ। कहीं एकदम लौट पड़ीं तो जगह की तंगी का शिकार हो सकते हैं हम लोग। तबादला खा चुके अधिकारी को कोर्ट से स्टे मिल जाने के बाद जैसे दो अधिकारी एक ही कुर्सी पर फंस जाते हैं और ठीक से खा पी नहीं पाने के कारण दुखी रहते हैं वैसे मैं तुम्हें दुखी नहीं देखना चाहता। सांवरी, फेयर क्रीम लगा कर साफ रहना। अपने नये प्रेमी का वजन कम करती रहना। उसे अपने अनुभवों को बताना। साफ साफ बताना, सरकारी बाबुओं जैसी गोलमोल भाषा का इस्तेमाल मत करना। अखबारी संवाददाता की तरह अपने कम ज्ञान पर भी पूरा भरोसा रखना। स्वास्थ्य का ध्यान रखना, साथ वाले का भी। जितना सहन कर सके उसे उतना ही दुख देना।
- संजीव
(यह गुस्ताखी माफ़ से लिया गया हैं।)
Tuesday, September 18, 2007
सरकारी धन से स्तन वृद्धि और फिर बवाल
अभी अभी मेरे एक दोस्त ने एक न्यूज़ का लिंक भेजा हैं। जरा आप भी गौर फरमाइये. न्यूज़ वेब दुनिया से ली गई है। यहाँ भी न्यूज़ पर नज़र डाली जा सकती हैं।
ऑस्ट्रेलिया में महिला नौसैनिकों को स्तनों का आकार बढ़ाने वाली सर्जरी के लिए सरकारी कोष से पैसे देने पर विवाद खड़ा हो गया है। विपक्षी लेबर पार्टी ने कहा है कि जनता से वसूले गए पैसों का इस्तेमाल इस तरह के कार्यों में करना ठीक नहीं है।हालाँकि सेना के प्रवक्ता ने इस तरह की सर्जरी को सही ठहराया है। उनका कहना है कि इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण हैं न कि महिला नौसैनिकों को 'सेक्सी' दिखाना।ब्रिगेडियर एंड्र्यू निकोलिक ने कहा कि रक्षा नीति के तहत कर्मचारियों की 'व्यापक जरूरतों' का ध्यान रखा जाता है। उन्होंने कहा कि स्तन वृद्धि की सर्जरी के लिए धन मुहैया कराना सेना की कोई सामान्य नीति नहीं है।ब्रिगेडियर निकोलिक ने कहा कि हम अपने लोगों की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक जरूरतों का ध्यान रखते हैं। वो कहते हैं कि लेकिन ये कहना ठीक नहीं होगा कि अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि वह अच्छा नहीं दिख रहा है तो सेना रुटिन के तहत स्तन वृद्धि जैसे कामों के लिए पैसे दे।सेना का बयान ऐसे समय में आया है जब एक प्लास्टिक सर्जन ने कहा कि उसने स्तन का आकार बढ़ाने के लिए दो महिला सैनिकों की सर्जरी की है और इस पर चार हजार 200 पाउंड खर्च हुए। ब्रिगेडियर नोकिलक ने कहा कि इस तरह की सर्जरी का फैसला प्राथमिक चिकित्सा जाँच के बाद ही होता है।लेकिन विपक्षी लिबरल पार्टी ने पूरे मामले पर स्पष्टीकरण माँगा है। उसका कहना है कि जनता के टैक्स के पैसों से इस तरह की सर्जरी कराना कई सवाल खड़े करता है।
सरकारी धन से स्तन वृद्धि और फिर बवाल
अभी अभी मेरे एक दोस्त ने एक न्यूज़ का लिंक भेजा हैं। जरा आप भी गौर फरमाइये. न्यूज़ वेब दुनिया से ली गई है। यहाँ भी न्यूज़ पर नज़र डाली जा सकती हैं।
ऑस्ट्रेलिया में महिला नौसैनिकों को स्तनों का आकार बढ़ाने वाली सर्जरी के लिए सरकारी कोष से पैसे देने पर विवाद खड़ा हो गया है। विपक्षी लेबर पार्टी ने कहा है कि जनता से वसूले गए पैसों का इस्तेमाल इस तरह के कार्यों में करना ठीक नहीं है।हालाँकि सेना के प्रवक्ता ने इस तरह की सर्जरी को सही ठहराया है। उनका कहना है कि इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण हैं न कि महिला नौसैनिकों को 'सेक्सी' दिखाना।ब्रिगेडियर एंड्र्यू निकोलिक ने कहा कि रक्षा नीति के तहत कर्मचारियों की 'व्यापक जरूरतों' का ध्यान रखा जाता है। उन्होंने कहा कि स्तन वृद्धि की सर्जरी के लिए धन मुहैया कराना सेना की कोई सामान्य नीति नहीं है।ब्रिगेडियर निकोलिक ने कहा कि हम अपने लोगों की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक जरूरतों का ध्यान रखते हैं। वो कहते हैं कि लेकिन ये कहना ठीक नहीं होगा कि अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि वह अच्छा नहीं दिख रहा है तो सेना रुटिन के तहत स्तन वृद्धि जैसे कामों के लिए पैसे दे।सेना का बयान ऐसे समय में आया है जब एक प्लास्टिक सर्जन ने कहा कि उसने स्तन का आकार बढ़ाने के लिए दो महिला सैनिकों की सर्जरी की है और इस पर चार हजार 200 पाउंड खर्च हुए। ब्रिगेडियर नोकिलक ने कहा कि इस तरह की सर्जरी का फैसला प्राथमिक चिकित्सा जाँच के बाद ही होता है।लेकिन विपक्षी लिबरल पार्टी ने पूरे मामले पर स्पष्टीकरण माँगा है। उसका कहना है कि जनता के टैक्स के पैसों से इस तरह की सर्जरी कराना कई सवाल खड़े करता है।
Monday, September 17, 2007
उधार का ज्ञान, अपनों का अपमान ----नरेंद्र कोहली
उधार का ज्ञान, अपनों का अपमान ----नरेंद्र कोहली
दो नव पत्रकारों की जरुरत है
Sunday, September 16, 2007
नासा की तस्वीरें राम सेतु का सबूत नहीं
एक बार मंदिर के मुद्दे को भुनाने की कोशिश की गइ अब सेतु को। न जाने देश को किस आग में झोंकने की कोशिश की जा रही है।
Thursday, September 13, 2007
ना जाने वो मुझसे क्यों खफा हो गए
ना जाने वो मुझसे क्यों खफा हो गए
जाते जाते मैं उन्हें मना नही सका
और वो मुझे माफ़ कर ना सके
ना जाने वो मुझसे क्यों खफा हो गए
ना जाने वो मुझसे क्यों खफा हो गए
जाते जाते मैं उन्हें मना नही सका
और वो मुझे माफ़ कर ना सके
Friday, September 7, 2007
सपनों के टूटे कांच चुभते हैं दिल में
सपनों के टूटे कांच चुभते हैं दिल में
लेकिन हर बार की तरह हम सपने देखते हैं
और महसूस करते हैं उस चुभन को
मैने भी हर बार यही किया
और जगा दिया गया हर बार सपनों के टूटने से पहले
लेकिन क्या मुझे कोई हक नहीं है अपने सपनों को एक नाम देने का
नहीं मुझे कोई हक नहीं है
मेरे सपनों की नींव किसी की सच्चाई पर नहीं हो सकती है
हर बार मैं गलती करता हूं सपने देखना का
लेकिन अब नही
हां मुझे कोई हक नहीं है सपने देखने को
सपनों के टूटे कांच चुभते हैं दिल में
सपनों के टूटे कांच चुभते हैं दिल में
लेकिन हर बार की तरह हम सपने देखते हैं
और महसूस करते हैं उस चुभन को
मैने भी हर बार यही किया
और जगा दिया गया हर बार सपनों के टूटने से पहले
लेकिन क्या मुझे कोई हक नहीं है अपने सपनों को एक नाम देने का
नहीं मुझे कोई हक नहीं है
मेरे सपनों की नींव किसी की सच्चाई पर नहीं हो सकती है
हर बार मैं गलती करता हूं सपने देखना का
लेकिन अब नही
हां मुझे कोई हक नहीं है सपने देखने को
Thursday, September 6, 2007
बैग के दो नए चैनल
Wednesday, September 5, 2007
सभ्य समाज
सभ्य समाज
पुण्य प्रसून वाजपेयी ने आज तक छोड़ा
Tuesday, September 4, 2007
अजित भट्टाचार्य को छह महीने की जेल की सज़ा
ग्लैमर की दुनिया की सच्चाई
(नवभारत टाइम्स से साभार) (पूरी खबर पढ़ें : http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/2336436.cms)
ग्लैमर की दुनिया की सच्चाई
(नवभारत टाइम्स से साभार) (पूरी खबर पढ़ें : http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/2336436.cms)
लुधियाना में भास्कर समूह का अखबार
खबर को विस्तृत में पड़ने के लिए यहाँ http://bhadas.blogspot.com/ क्लिक करें।
098100120640
09878452567
rajiiv.puru@gmail.com
rajiivsingh@yahoo.com
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम
ना मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूं दिल नवाजी की
न तुम मेरी तरफ देखो गलत अंदाज नजरो
दिल की धड़कन लड़खड़ाएं तेरी बातों पर
न जाहिर हो तुम्हारी कशमकश का राज नजरों से
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से
मुझे भी लोग ये कहते हैं कि जलवे पराए
मेरे हमराह की रुसवाइयां है मेरे माजी की
तुम्हारे साथ भी गुजरी हुई यादों के साएं
इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम
ताल्लुफ रोग हो जाए तो उसे भूलना बेहतर
ताल्लुक बोझ बन जाए उसे तोड़ना अच्छा
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो
एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा
चलो इक बार फिर से अजनबी बन
(साहिर लुधियानवी)
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम
ना मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूं दिल नवाजी की
न तुम मेरी तरफ देखो गलत अंदाज नजरो
दिल की धड़कन लड़खड़ाएं तेरी बातों पर
न जाहिर हो तुम्हारी कशमकश का राज नजरों से
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से
मुझे भी लोग ये कहते हैं कि जलवे पराए
मेरे हमराह की रुसवाइयां है मेरे माजी की
तुम्हारे साथ भी गुजरी हुई यादों के साएं
इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम
ताल्लुफ रोग हो जाए तो उसे भूलना बेहतर
ताल्लुक बोझ बन जाए उसे तोड़ना अच्छा
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो
एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा
चलो इक बार फिर से अजनबी बन
(साहिर लुधियानवी)
Monday, September 3, 2007
कब खुलेगी सरकार की नींद
कब खुलेगी सरकार की नींद
अपनी लगाइ आग में जल रहा है पाकिस्तान
अपनी लगाइ आग में जल रहा है पाकिस्तान
चीन में भी लड़कियों की कमी
चीन में भी लड़कियों की कमी
Sunday, September 2, 2007
तेरी खामोशी को मैं एक शब्द देना चाहता हूँ
तुझे हसंता और चहकता देखना चाहता हूँ
ज़ालिम जमाने से तुझे महफूज रखना चाहता हूँ
तेरी खामोशी से मुझे आज भी डर लगता
बस तू अपनी खामोशी को एक शब्द देगे
तेरी खामोशी को मैं एक शब्द देना चाहता हूँ
तुझे हसंता और चहकता देखना चाहता हूँ
ज़ालिम जमाने से तुझे महफूज रखना चाहता हूँ
तेरी खामोशी से मुझे आज भी डर लगता
बस तू अपनी खामोशी को एक शब्द देगे
तान्या
है अधिकार मुझको भी जन्म लेने का,
अपनी कोंख में मुझको पनाह दे दो मां।
सृष्टि के रचयिता की इस अनुपम कृति की,
मैं भी बन सकूं साक्षी वो राह दे दो मां।।
पिता की थाम कर ऊंगला मैं चलना सीखूंगी,
बैठ बाबा के कांधे पर देखूंगी जहां सारा।
सजा कर भाई की सूनी कलाई रेशम के धागे से,
दादी मां की आंखों का बन जाऊं मैं तारा।।
रिश्तों के माधुर्य़ से पुलकित हो जो बगिया,
अपने मातृत्व की वही ठंडी छांव दे दो मा।।
हैं अरमान कुछ मेरे,सजाए स्वप्न नयनों ने,
मगर डर है कहीं ये ख्वाब न रह जाएं अधूरे।
जो लोग कहते हैं नहीं मैं वंश तेरी मां,
टिकी है मुझ पर अब उनकी विषभरी नजरें।।
बना लो अंश मुझको अपने कोंमल ह्दय का
अपनी तान्या को बस इतना अधिकार दे दो मां।।
तान्या
है अधिकार मुझको भी जन्म लेने का,
अपनी कोंख में मुझको पनाह दे दो मां।
सृष्टि के रचयिता की इस अनुपम कृति की,
मैं भी बन सकूं साक्षी वो राह दे दो मां।।
पिता की थाम कर ऊंगला मैं चलना सीखूंगी,
बैठ बाबा के कांधे पर देखूंगी जहां सारा।
सजा कर भाई की सूनी कलाई रेशम के धागे से,
दादी मां की आंखों का बन जाऊं मैं तारा।।
रिश्तों के माधुर्य़ से पुलकित हो जो बगिया,
अपने मातृत्व की वही ठंडी छांव दे दो मा।।
हैं अरमान कुछ मेरे,सजाए स्वप्न नयनों ने,
मगर डर है कहीं ये ख्वाब न रह जाएं अधूरे।
जो लोग कहते हैं नहीं मैं वंश तेरी मां,
टिकी है मुझ पर अब उनकी विषभरी नजरें।।
बना लो अंश मुझको अपने कोंमल ह्दय का
अपनी तान्या को बस इतना अधिकार दे दो मां।।
Friday, August 31, 2007
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