Friday, December 28, 2007

सरकार के दावे और हकीकत

मध्यप्रदेश सरकार ने विकास के नाम पर ग्लोबल इंवेस्टर्स आयोजित की थी। उसके लिए तैयारियां भी खूब जोर शोर से की गई थी। पूरे शहर को साफ किया गया। दिन में एक बार नहीं बल्कि ३-४ बार सड़कें साफ की जाती थीं। शहर में एक मिनट के लिए भी बिजली नहीं कटती थी। जिस स्थान पर मीट हो रही थी वहां के आसपास के इलाकों में तुरत-फुरत में मोबाइल पुलिस चौकियां बना दी गईं और जिन चौराहों पर कभी एक सिपाही तक नहीं खड़ा होता था वहां टीआई और एसआई खड़े होने लगे।

सरकार का दावा है कि इससे इंदौर समेत पूरे राज्य की किस्मत बदल जाएगी। पर हाल ही में हुए उपचुनावों ने बता दिया कि किसकी किस्मत बदल सकती है। लोगों को मीट से ज्यादा विकास और सुशासन की जरूरत है।

पर यह सब तो सिर्फ उस कहावत की तरह थे कि चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात। मीट खत्म होते ही बिजली कटने लगी वो भी दो घंटे के लिए। साथ ही रातों-रात पुलिस चौकिंयों को भी ट्रकों में लादकर उठा ले गया प्रशासन। ताकि फिर कभी कोई मीट हो या कोई वीआईपी आए तो उन्हें दोबारा रखकर व्ववस्था का दिखावा किया जा सके।

ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार और प्रशासन ने जनता को एकदम ही मूर्ख समझ लिया है। एक तरफ सरकार है जो सिर्फ इंवेस्टर्स मीट कर रही है पर जनता के लिए मूलभूत सुविधाऒं की सुध कौन लेगा यह कोई नहीं जानता है। यदि बेसिक जरूरते जनता को ही उपलब्ध नहीं होंगी तो इन निवेशकों को क्या मिलेगा भगवान ही जानता होगा या फिर खुद सरकार।

सरकार के दावे और हकीकत

मध्यप्रदेश सरकार ने विकास के नाम पर ग्लोबल इंवेस्टर्स आयोजित की थी। उसके लिए तैयारियां भी खूब जोर शोर से की गई थी। पूरे शहर को साफ किया गया। दिन में एक बार नहीं बल्कि ३-४ बार सड़कें साफ की जाती थीं। शहर में एक मिनट के लिए भी बिजली नहीं कटती थी। जिस स्थान पर मीट हो रही थी वहां के आसपास के इलाकों में तुरत-फुरत में मोबाइल पुलिस चौकियां बना दी गईं और जिन चौराहों पर कभी एक सिपाही तक नहीं खड़ा होता था वहां टीआई और एसआई खड़े होने लगे।

सरकार का दावा है कि इससे इंदौर समेत पूरे राज्य की किस्मत बदल जाएगी। पर हाल ही में हुए उपचुनावों ने बता दिया कि किसकी किस्मत बदल सकती है। लोगों को मीट से ज्यादा विकास और सुशासन की जरूरत है।

पर यह सब तो सिर्फ उस कहावत की तरह थे कि चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात। मीट खत्म होते ही बिजली कटने लगी वो भी दो घंटे के लिए। साथ ही रातों-रात पुलिस चौकिंयों को भी ट्रकों में लादकर उठा ले गया प्रशासन। ताकि फिर कभी कोई मीट हो या कोई वीआईपी आए तो उन्हें दोबारा रखकर व्ववस्था का दिखावा किया जा सके।

ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार और प्रशासन ने जनता को एकदम ही मूर्ख समझ लिया है। एक तरफ सरकार है जो सिर्फ इंवेस्टर्स मीट कर रही है पर जनता के लिए मूलभूत सुविधाऒं की सुध कौन लेगा यह कोई नहीं जानता है। यदि बेसिक जरूरते जनता को ही उपलब्ध नहीं होंगी तो इन निवेशकों को क्या मिलेगा भगवान ही जानता होगा या फिर खुद सरकार।

Thursday, December 27, 2007

जयश्री पिंगले को दिल्ली भेजा

नईदुनिया और दैनिक भास्कर में लंबा अनुभव हासिल कर चुकीं विशेष संवाददाता जयश्री पिंगले को दिल्ली भेज दिया गया है। अब वे दिल्ली भास्कर ब्यूरो में महत्वपूर्ण भूमिका में नजर आएंगी।

Wednesday, December 26, 2007

सुर्खियों में सुष्मिता सेन


शादी से पहले सेक्स विषय पर बयान के कारण एक बार फिर सुष्मिता सेन सुर्खियों में हैं। वैसे सुष ने जो कहा उससे उन्हे कोई रंज भी नहीं है पर पता नहीं क्यों तथाकथित महिलावादी पुरुषों और उन्हीं की भाषा बोलने वाले कुछ संगठनों को इससे आपत्ति है। उन्होंने मामले को अदालत तक पहुंचा दिया। लगता है कि हमारे देश में कुछ ही दिनों में सच बोलना भी बंद हो जाएगा।


जानिए बिंदास सुष के बारे में :
प्रदेश के हैदराबाद शहर में सुष्मिता का जन्म हुआ। इनके पिता आर्मी ऑफिसर थे व मां फैशन आर्टिस्ट व ज्यूलरी डिजाइनर। घर में इनके अलावा इनके एक भाई राजीव व बहन नीलम थी। सुष्मिता का बचपन बीता दिल वालों के शहर दिल्ली में। इनकी तमन्ना अंग्रेजी की पढाई कर पत्रकारिता में जाने की थी, लेकिन भाग्य को शायद कुछ और ही मंजूर था।

सुष्मिता ने 1994 में 18 साल की कम उम्र में गोवा में नई दुनिया में कदम रखा और मिस इंडिया का खिताब जीता। हालांकि इसके लिए फॉर्म भरने के बाद यह जानने पर कि ऐश्वर्या राय भी मिस इंडिया प्रतियोगिता में हिस्सा ले रही हैं, जिन बाइस लडकियों ने अपना नाम वापस लेने का फैसला किया था, उनमें सुष्मिता भी एक थीं। लेकिन बाद में मां के समझाने पर उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया।

इस टक्कर में सुष्मिता व ऐश्वर्या अंत तक बराबरी पर रहीं लेकिन अंत में टाई ब्रेकिंग प्रश्न पर वह ऐश्वर्या पर भारी पडीं और ऐसी पहली भारतीय बनीं, जिसे मिस यूनीवर्स का खिताब मिला। यह शुभारंभ था मध्यमवर्गीय परिवार की सुष्मिता के करियर का।


तो यह तो था सुष का छोटा सा परिचय। आपका पन्ना के माध्यम से हम चाहते हैं कि आप सब भी खुशबू और सुष्मिता के बयान पर अपना पक्ष रखें।

सुर्खियों में सुष्मिता सेन


शादी से पहले सेक्स विषय पर बयान के कारण एक बार फिर सुष्मिता सेन सुर्खियों में हैं। वैसे सुष ने जो कहा उससे उन्हे कोई रंज भी नहीं है पर पता नहीं क्यों तथाकथित महिलावादी पुरुषों और उन्हीं की भाषा बोलने वाले कुछ संगठनों को इससे आपत्ति है। उन्होंने मामले को अदालत तक पहुंचा दिया। लगता है कि हमारे देश में कुछ ही दिनों में सच बोलना भी बंद हो जाएगा।


जानिए बिंदास सुष के बारे में :
प्रदेश के हैदराबाद शहर में सुष्मिता का जन्म हुआ। इनके पिता आर्मी ऑफिसर थे व मां फैशन आर्टिस्ट व ज्यूलरी डिजाइनर। घर में इनके अलावा इनके एक भाई राजीव व बहन नीलम थी। सुष्मिता का बचपन बीता दिल वालों के शहर दिल्ली में। इनकी तमन्ना अंग्रेजी की पढाई कर पत्रकारिता में जाने की थी, लेकिन भाग्य को शायद कुछ और ही मंजूर था।

सुष्मिता ने 1994 में 18 साल की कम उम्र में गोवा में नई दुनिया में कदम रखा और मिस इंडिया का खिताब जीता। हालांकि इसके लिए फॉर्म भरने के बाद यह जानने पर कि ऐश्वर्या राय भी मिस इंडिया प्रतियोगिता में हिस्सा ले रही हैं, जिन बाइस लडकियों ने अपना नाम वापस लेने का फैसला किया था, उनमें सुष्मिता भी एक थीं। लेकिन बाद में मां के समझाने पर उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया।

इस टक्कर में सुष्मिता व ऐश्वर्या अंत तक बराबरी पर रहीं लेकिन अंत में टाई ब्रेकिंग प्रश्न पर वह ऐश्वर्या पर भारी पडीं और ऐसी पहली भारतीय बनीं, जिसे मिस यूनीवर्स का खिताब मिला। यह शुभारंभ था मध्यमवर्गीय परिवार की सुष्मिता के करियर का।


तो यह तो था सुष का छोटा सा परिचय। आपका पन्ना के माध्यम से हम चाहते हैं कि आप सब भी खुशबू और सुष्मिता के बयान पर अपना पक्ष रखें।

Sunday, December 23, 2007

११००० डालर राशि वाला पत्रकारिता पुरस्कार

राजस्थान पत्रिका समूह ने ११००० डालर राशि वाला पत्रकारिता पुरस्कार शुरू किया है। इसमें विजेता पत्रकार को राशि के साथ ही ट्राफी भी दी जाएगी। इसके लिए दुनियाभर के पत्रकारों से ३१ जनवरी २००८ तक प्रविष्ठियां आमंत्रित की गई हैं। अधिक जानकारी के लिए राजस्थान पत्रिका की वेबसाइट पर जाएं।

Thursday, December 20, 2007

टाइम्स ग्रुप में श्री निधीश त्यागी

दैनिक भास्कर के एडिटर श्री निधीश त्यागी ने भास्कर समूह छोड़कर टाइम्स आफ इंडिया समूह ज्वाइन कर लिया है। उन्हें मुंबई मिरर का डिप्टी एडिटर बनाया गया है।

Thursday, December 13, 2007

जनवरी के अंत तक एक ग्लैमर चैनल

बैग फ़िल्म एंड मीडिया लि. अगले साल जनवरी के अंत तक एक ग्लैमर चैनल लाने वाली है. जिसका नाम ए२४ हो सकता है. ऐसे ही कम्पनी अगले वर्ष के मध्य तक लाइफ स्टाइल को लेकर भी एक चैनल लाने वाली है.

Monday, December 3, 2007

मीडिया से जुड़ी दो खबरें

आपका पन्ना में आज मीडिया से जुड़ी खबर में पेश है दो खबर. रक्षित मिश्रा नेटवर्क 18 से इस्‍तीफा देकर जी न्‍यूज में बतौर प्रोडयूसर ज्‍वाइन कर रहे हैं। गौरव खोसला नेटवर्क 18 से इस्‍तीफा देकर एमएच वन न्‍यूज चैनल बतौर एसोसिएट प्रोडयूसर ज्‍वाइन कर लिया है।

Monday, November 26, 2007

दैनिक आई नेक्स्ट आगरा में

दैनिक जागरण प्रकाशन समूह के काम्पैक्ट साइज के दैनिक आई नेक्स्ट के आगरा संस्करण की शुरुआत रविवार को वैदिक रीति से हवन और पूजन के साथ हुई। कानपुर, लखनऊ और मेरठ के बाद ताजनगरी से आई नेक्स्ट का यह चौथा संस्करण है। पिछले वर्ष दिसंबर में आई नेक्स्ट के कानपुर और लखनऊ संस्करण के साथ जागरण समूह ने उत्तर भारत का पहला बाइलिंगुअल काम्पैक्ट लांच किया। आई नेक्स्ट ने अपने अंतरराष्ट्रीय स्वरूप, लेआउट और शहर की खबरों को अपने विशिष्ट अंदाज में प्रस्तुत करने की शैली के साथ पाठकों का अपार स्नेह पा लिया। कानपुर में हर रोज 75 हजार प्रतियों के प्रसार के साथ अगस्त में आई नेक्स्ट को शहर के नंबर दो दैनिक का दर्जा हासिल हुआ। लखनऊ में भी 57 हजार प्रतियों के साथ यह अखबार शहर का दूसरा सबसे बड़ा दैनिक बनने की ओर बढ़ रहा है। इसी साल सितंबर में मेरठ से निकले आई नेक्स्ट के तीसरे संस्करण को भी पाठकों ने हाथों हाथ लिया है। तीस हजार प्रतियों के प्रसार के साथ आई नेक्स्ट मेरठ में भी शहर का दूसरा सबसे बड़ा अखबार बनने की ओर अग्रसर है। ज्ञातव्य है कि इन सभी शहरों में समूह का फ्लैगशिप समाचार पत्र दैनिक जागरण शहर के नंबर एक दैनिक के रूप में पाठकों की सराहना और उनका स्नेह पाता आ रहा है। मंगलवार 27 नवंबर को आई नेक्स्ट का पांचवां संस्करण वाराणसी से लांच हो जाएगा। जागरण प्रकाशन के चेयरमैन व मैनेजिंग डायरेक्टर महेंद्र मोहन गुप्त का कहना है कि समूह न सिर्फ अपने निवेशकों को बेहतर परिणाम देने के लिए प्रयासरत है बल्कि पाठकों की निरंतर बढ़ती अपेक्षाओं को भी पूरा करता रहेगा। उन्होंने कहा कि शीघ्र ही उत्तर भारत के अन्य शहरों के पाठकों को भी आई नेक्स्ट के प्रकाशन का फायदा मिल सकेगा। जागरण के संपादक व सीईओ संजय गुप्त ने अपने बधाई संदेश में कहा कि पाठकों की सराहना और सुझावों के चलते आई नेक्स्ट का आगरा संस्करण ताज नगरी के पाठकों के सामने है। शहर के लोग पिछले दो सप्ताह से बदलते आगरा की नई धड़कन आई नेक्स्ट का प्रचार आउटडोर विज्ञापन, रेडियो, स्पाट प्रिंट और केबल विज्ञापनों के माध्यम से देख रहे थे। आई नेक्स्ट के प्रोजेक्ट हेड आलोक सांवल का कहना था कि यह दैनिक आगरा के लोगों को दूसरे सभी दैनिक अखबारों से अलग नई शैली और नए तेवर की खबरों व फीचर्स से रूबरू कराएगा। इससे पहले जागरण समूह के आगरा कार्यालय में हवन-पूजन के साथ आई नेक्स्ट की शुरुआत हुई। हवन में जागरण समूह के निदेशक देवेश गुप्त, आगरा संस्करण के स्थानीय संपादक सरोज अवस्थी, डिप्टी जनरल मैनेजर (मार्केटिंग)अमन गेरा, एरिया मैनेजर (सर्कुलेशन) राहुल चौहान, ब्रांड मैनेजर अरोजित विश्वास, मैनेजर प्रवीन गुप्ता, रोहित रायजादा, मुद्रक-प्रकाशक रामनाथ शर्मा, न्यूज एडिटर प्रभात सिंह, डिप्टी न्यूज एडिटर विजय नारायण सिंह सहित जागरण परिवार के सभी सदस्य शामिल हुए।

साभार- जागरण

Wednesday, November 21, 2007

वो गलियाँ...

फिल्‍मों में हमेशा देखती थी, समाज की बदनाम गलियाँ और वहाँ की वो सजी-धजी रातें, जो किसी भी स्‍वप्‍नलोक से कम नहीं लगता था। गहनों, भारी-भरकम कपड़ों में सजी-धजी लड़कियाँ, अपनी अदाओं और अपने गायन से मौ‍जूद लोगों को लुभाती हुई। उन्‍हें देखकर ऐसा ही लगता है कि वह जन्‍नत में जी रही हैं। जहाँ उसे सबकुछ मिला है। सच्‍चा प्‍यार भी, जो उसके लिए पूरी दुनिया से लड़ सकता है।

ऐसी दुनिया, मेरे मन में भी यह बात बैठ गई थी कि ये गलियाँ यूँ बदनाम कही जाती हैं, यहाँ तो इतना ऐशो-आराम है कि लोग चाह कर भी उसे पा नहीं सकते। खैर बचपन की वो कल्‍पनाएँ धुँधली पड़ गई, पर मन के किसी कोने में वह दुनिया आज भी कहीं दबी पड़ी थी। मैं एक छोटे शहर से आती हूँ, जहाँ जीने लायक सुविधाएँ तो थीं, लेकिन समाज को उसकी विषमताओं को अपने नजरिए से देखना स्‍वीकार्य नहीं था। जहाँ देखने को कहा जाए, वहाँ देखो, जहाँ चलने को कहा जाए, वहाँ चलो।

खैर बात कहाँ से शुरू हुई थी और मैं आपको कहाँ ले जा रही हूँ...बात हो रही थी बदनाम गलियों की। आज भी मुझे याद है- एक दिन हमारा फिल्‍म देखने का कार्यक्रम बना, पूरा परिवार साथ-साथ रिक्‍शों की सवारी पर निकल पड़ा। चूँकि शहर छोटा था और गलियाँ काफी तंग, जहाँ रिक्‍शों को बार-बार रूकना पड़ रहा था।

मैंने पहले सुन रखा था कि टॉकिज जाने के रास्‍ते में वही...गलियाँ आती हैं। घर की महिलाओं और लड़कियों को पहले ही संकेतों में यह हिदायत दे दी गई थी कि रास्‍ते में ज्‍यादा चूँ-चपड़ नहीं करनी है, इसलिए सभी आदेशों के पालन में लगी हुई थीं। मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था कि पता नहीं कितनी चमक हो उन घरों, कैसी सजी-धजी दिखती होंगी, मुझे रेखा के उस गाने– ‘इन आँखों की मस्‍ती...’का पूरा दृश्‍य घूम गया। लग रहा रिक्‍शा उड़कर उन भव्‍य इमारतों के सामने पहुँच जाए।

भइया पापा से नजरें बचाकर तिरछी नजरों से उधर देख रहे थे। मुझे समझ आ गया कि हम उसी इमारत के सामने से गुजर रहे हैं। चूँकि रिक्‍शा बहुत धीरे-धीरे चल रहा था, इसलिए मैं सुबकुछ साफ-साफ देख सकती थी, जो भी मैंने देखा वह मेरी कल्‍पनाओं से भी परे था। न तो कोई चकाचौंध, न ही भव्‍य इमारत, और न ही किसी गहने की कोई चमक थी।

था तो केवल अँधेरा, मैले से पेटीकोट और ब्‍लाउज में कुछ महिलाएँ खड़ी थीं, अपने पेटीकोट को भी उन्‍होंने घुटने तक उठा रखा था, उनकी आँखों में न कोई शरारत थी न ही वह अदा, सबकुछ स्‍याह काला, ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने काली रात का अँधेरा उनकी देहरी पर पटक दिया हो। सारी आपस में बातें कर रही थीं, कोई किसी के सिर से जुएँ निकल रही थीं कोई शून्‍य नजरों से सड़को को ताक रही थीं।

उनकी बेबाकी उनके हाव-भव में झलक र‍ही थी। इतने में हमारा रिक्‍शा आगे बढ़ गया। अब मुझे महसूस हुआ कि क्‍यों हैं ये बदनाम गलियाँ, लेकिन रेखा के उस गाने का क्‍या॥या उन तमाम फिल्‍मों का क्‍या, जो सपनों की दुनिया से भी ज्‍यादा चौंधयाई हुई है।

- नीहारिका

वो गलियाँ...

फिल्‍मों में हमेशा देखती थी, समाज की बदनाम गलियाँ और वहाँ की वो सजी-धजी रातें, जो किसी भी स्‍वप्‍नलोक से कम नहीं लगता था। गहनों, भारी-भरकम कपड़ों में सजी-धजी लड़कियाँ, अपनी अदाओं और अपने गायन से मौ‍जूद लोगों को लुभाती हुई। उन्‍हें देखकर ऐसा ही लगता है कि वह जन्‍नत में जी रही हैं। जहाँ उसे सबकुछ मिला है। सच्‍चा प्‍यार भी, जो उसके लिए पूरी दुनिया से लड़ सकता है।

ऐसी दुनिया, मेरे मन में भी यह बात बैठ गई थी कि ये गलियाँ यूँ बदनाम कही जाती हैं, यहाँ तो इतना ऐशो-आराम है कि लोग चाह कर भी उसे पा नहीं सकते। खैर बचपन की वो कल्‍पनाएँ धुँधली पड़ गई, पर मन के किसी कोने में वह दुनिया आज भी कहीं दबी पड़ी थी। मैं एक छोटे शहर से आती हूँ, जहाँ जीने लायक सुविधाएँ तो थीं, लेकिन समाज को उसकी विषमताओं को अपने नजरिए से देखना स्‍वीकार्य नहीं था। जहाँ देखने को कहा जाए, वहाँ देखो, जहाँ चलने को कहा जाए, वहाँ चलो।

खैर बात कहाँ से शुरू हुई थी और मैं आपको कहाँ ले जा रही हूँ...बात हो रही थी बदनाम गलियों की। आज भी मुझे याद है- एक दिन हमारा फिल्‍म देखने का कार्यक्रम बना, पूरा परिवार साथ-साथ रिक्‍शों की सवारी पर निकल पड़ा। चूँकि शहर छोटा था और गलियाँ काफी तंग, जहाँ रिक्‍शों को बार-बार रूकना पड़ रहा था।

मैंने पहले सुन रखा था कि टॉकिज जाने के रास्‍ते में वही...गलियाँ आती हैं। घर की महिलाओं और लड़कियों को पहले ही संकेतों में यह हिदायत दे दी गई थी कि रास्‍ते में ज्‍यादा चूँ-चपड़ नहीं करनी है, इसलिए सभी आदेशों के पालन में लगी हुई थीं। मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था कि पता नहीं कितनी चमक हो उन घरों, कैसी सजी-धजी दिखती होंगी, मुझे रेखा के उस गाने– ‘इन आँखों की मस्‍ती...’का पूरा दृश्‍य घूम गया। लग रहा रिक्‍शा उड़कर उन भव्‍य इमारतों के सामने पहुँच जाए।

भइया पापा से नजरें बचाकर तिरछी नजरों से उधर देख रहे थे। मुझे समझ आ गया कि हम उसी इमारत के सामने से गुजर रहे हैं। चूँकि रिक्‍शा बहुत धीरे-धीरे चल रहा था, इसलिए मैं सुबकुछ साफ-साफ देख सकती थी, जो भी मैंने देखा वह मेरी कल्‍पनाओं से भी परे था। न तो कोई चकाचौंध, न ही भव्‍य इमारत, और न ही किसी गहने की कोई चमक थी।

था तो केवल अँधेरा, मैले से पेटीकोट और ब्‍लाउज में कुछ महिलाएँ खड़ी थीं, अपने पेटीकोट को भी उन्‍होंने घुटने तक उठा रखा था, उनकी आँखों में न कोई शरारत थी न ही वह अदा, सबकुछ स्‍याह काला, ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने काली रात का अँधेरा उनकी देहरी पर पटक दिया हो। सारी आपस में बातें कर रही थीं, कोई किसी के सिर से जुएँ निकल रही थीं कोई शून्‍य नजरों से सड़को को ताक रही थीं।

उनकी बेबाकी उनके हाव-भव में झलक र‍ही थी। इतने में हमारा रिक्‍शा आगे बढ़ गया। अब मुझे महसूस हुआ कि क्‍यों हैं ये बदनाम गलियाँ, लेकिन रेखा के उस गाने का क्‍या॥या उन तमाम फिल्‍मों का क्‍या, जो सपनों की दुनिया से भी ज्‍यादा चौंधयाई हुई है।

- नीहारिका

Tuesday, November 20, 2007

दिल्ली में एक और समाचार पत्र

लीजिये दिल्ली में आज एक और समाचार पत्र लांच हो गया, इसका नाम है 'आज समाज'. लांचिंग सेरेमनी में केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री प्रियरंजन दास मुंशी और पंजाब के मुख्यमंत्री भी मौजूद थे। यह समूह एक मैग्जीन पहले ही लांच कर चुका है, अब टीवी चैनल लाना वाला है. जिसका नाम 'अब तक' रखा गया था लेकिन 'आज तक' ने इस नाम को लेकर एतराज किया और कोर्ट ने आज तक को स्टे दे दिया हैफिलहाल नए चैनल के नाम पर अभी कोई सहमति नहीं बन सकी है.

Sunday, November 18, 2007

बदल सकती है आपकी किस्मत शिवा सीमेंट से

यदि आप स्टॉक मार्केट में निवेश करना चाह रहे हैं तो तुरंत शिवा सीमेंट बाज़ार भाव पर उठा सके हैं। इसी तरह जायसवाल निको और सूर्य चक्र भी चमकने वाले शेयर हैं. यदि लम्बी अवधि के लिए आपको शेयर की तलाश हैं तो आप अपनी नज़र एनपीटीसी और पीटीसी पर टिका सकते हैं.

आईपीओ

रिनेसां ज्वेलरी 10 रुपए मूल्य के 125-150 रुपए के सीमा मूल्य में 53।24 लाख शेयर का पहला पब्लिक इश्यू (आईपीओ) ला रही है।यह इश्यू 19 नवम्बर को खुलेगा और 21 नवम्बर 2007 को बंद होगा। जानकार कहते हैं कि यह बेहतर इश्यू है। सरकारी नीतियां ऐसी कम्पनियों के पक्ष में दिखाई देती हैं। लम्बी अवधि को ध्यान में रखकर निवेश करना चाहिए।

Saturday, November 17, 2007

नीरज के परिजनों को जरुरत है आपकी

अंकित जी ने बताया कि सहारनपुर में कार्यरत IBN -7 के युवा पत्रकार नीरज चौधरी का देर रात एक सड़क दुर्घटना में देहावसान हो गया। नीरज सहारनपुर की पत्रकारिता में अपने अच्छे स्वभाव एव उत्कृष्ट काम के लिये जाने जाते थे। नीरज अपने परिवार में अपनी धर्म पत्नी एवं चार वर्षीय पुत्र पीछे छोड़ गये हैं। उनका अचानक यूं चला जाना पत्रकारिता जगत के लिये एक भारी सदमा हैं.

हम सब अपने अपने स्तर पर नीरज जी के परिवार की कुछ न कुछ मदद कर सकते हैं. यदि आप कुछ मदद करना चाहे तो यशवंत जी से ९९९९३-३००९९ पर या मुझसे ९८६७५-७५१७६ पर बात कर सकते हैं. नीरज के परिजनों से बात करने के बाद आपको उनका एकाउंट नंबर बता दिया जाएगा, जिसमें आप रकम ट्रांसफर कर देंगे. अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें.हम उम्मीद करते हैं कि आप अपने स्तर पर जरुर कुछ न कुछ मदद कर सकते हैं.

आशीष महर्षि

Friday, November 16, 2007

आईबीएन 7 ने माफ़ी मांगी


आईबीएन 7 ने अपने '' किस पर रोक नहीं'' कार्यक्रम के लिए खेद व्यक्त किया है. इस कार्यक्रम में चैनल ने चुम्बन के दृश्य को दिखाया था. जिसपर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने नाराज़गी जताई थी. चैनल ने इस के लिए खेद व्यक्त करते हुए कहा कि आगे इस बात का ध्यान रखा जाएगा. यह ख़बर बोल हल्ला ने दी.

Thursday, November 15, 2007

एनडीटीवी लाएगा नया चैनल

लीजये एक और ख़बर. एनडीटीवी अब मनोरंजन क्षेत्र में भी कदम रखने जा रहा है। इसके लिए वह जनवरी, 2008 के पहले सप्ताह से एक नया चैनल 'इमैजिन' शुरू करने जा रहा है। इस एंटरटेनमेंट चैनल में समाज के हर तबके को ध्यान में रखते हुए कार्यक्रमों का चुनाव किया गया है.

इससे पहले ख़बर आई थी कि एनडीटीवी जल्दी ही अपना एक हिन्दी न्यूज़ पोर्टल लाँच करने वाला है. दुनिया भर में इंटरनेट के बढ़ते उपयोग को देखते हुए यह फ़ैसला लिया है. एनडीटीवी इस पोर्टल से पहले एक मोबाइल पोर्टल लाँच करेगी जिसका नाम एनडीटीवी एक्टिव होगा. कहा जा रहा है कि मध्य नवम्बर से यह चालू हो सकता है. जबकि हिन्दी न्यूज़ पोर्टल जिसका नाम एनडीटीवी ख़बर होगा, यह दो महीने बाद यानी अगले साल तक लाँच हो जाएगा. एनडीटीवी इसके अलावा लाइफ स्टाइल, बालीवुड और शिक्षा को लेकर भी कुछ वेब पोर्टल लाने पर कार्य कर रहा है

Monday, November 12, 2007

प्रलय...कोहराम...कत्ले आम.....फिर खामोशी.....और बस सन्नाटा

मुझे उसका नाम तो याद नहीं है लेकिन उससे मेरी पहली मुलाकात उस वक्त हुई कि जब लोग एक दूसरे के लिए जान देते थे. असीम प्रेम का सबके बीच. चारों और शान्ति और सभ्य समाज था. लेकिन ना जाने उसके जाने के बाद पूरी दुनिया ही तब्दील हो गई. लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए. लोग एक दूसरे को देख नहीं सकते हैं.. ऐसा क्यों हुआ. मुझे भी नहीं मालूम? लेकिन सालों बाद उसी ने बताया कि यह सब के पीछे किसका हाथ है. वो और कोई नहीं बल्कि वही थी जिससे मेरी पहली मुलाकात उस वक्त हुई थी जब चारों और शान्ति और खुश हाली थी. तो फिर अब क्यों नहीं ऐसा है ? वजह कुछ खास थी. उसने अपनी ज़िंदगी से ही नहीं बल्कि उससे भी दगा किया जिसकी वजह से आज वो इस जहाँ में थी...आखिर ऐसा क्यों किया इसने...? अरे यह क्या ? अचानक काले काले बादल छाने लगे...चारों और शोर...कोई कुछ करता क्यों नहीं?...प्रलय...कोहराम...कत्ले आम.....फिर खामोशी.....और बस सन्नाटा ....................

प्रलय...कोहराम...कत्ले आम.....फिर खामोशी.....और बस सन्नाटा

मुझे उसका नाम तो याद नहीं है लेकिन उससे मेरी पहली मुलाकात उस वक्त हुई कि जब लोग एक दूसरे के लिए जान देते थे. असीम प्रेम का सबके बीच. चारों और शान्ति और सभ्य समाज था. लेकिन ना जाने उसके जाने के बाद पूरी दुनिया ही तब्दील हो गई. लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए. लोग एक दूसरे को देख नहीं सकते हैं.. ऐसा क्यों हुआ. मुझे भी नहीं मालूम? लेकिन सालों बाद उसी ने बताया कि यह सब के पीछे किसका हाथ है. वो और कोई नहीं बल्कि वही थी जिससे मेरी पहली मुलाकात उस वक्त हुई थी जब चारों और शान्ति और खुश हाली थी. तो फिर अब क्यों नहीं ऐसा है ? वजह कुछ खास थी. उसने अपनी ज़िंदगी से ही नहीं बल्कि उससे भी दगा किया जिसकी वजह से आज वो इस जहाँ में थी...आखिर ऐसा क्यों किया इसने...? अरे यह क्या ? अचानक काले काले बादल छाने लगे...चारों और शोर...कोई कुछ करता क्यों नहीं?...प्रलय...कोहराम...कत्ले आम.....फिर खामोशी.....और बस सन्नाटा ....................

Sunday, November 11, 2007

पिता


मेरी बिटिया रानी गढ़ूंगा तेरे लिए अलग कहानी
सफलता, खुशियां, ममता तेरी झोली में डालूंगा,
पिता हूं तेरे सारे दु:ख हरूंगा।
पकड़कर ऊंगली जब सीखा तूने चलना,
मन पुलकित और हर्षित हुआ ,
तुझे ले जाऊंगा बादलों के भी पार,
सपना यह संजोता रहा।


तेरी हर इच्‍छा पूरी करूं,
मैं संभालूं, मैं संजोऊं तेरे सपनों का घरौंदा।
यह जाने बिना कि तू पंछी है किसी और डाल की
तेरा दाना-पानी नहीं हमारे अंगान का,
तू बादल है उमड़ता-घुमड़ता,
जो बरसेगा किसी और की बगिया में।


घर में शहनाई, मेहमानों का शोर है
तेरी किलकारियां अब खामोश हैं
ना तूने थामी है मेरी ऊंगली अब,
शर्माई, सकुचाई-सी एक मूरत, आंसुओं की बहती धार,
मैं भी हूं एक असहाय पिता
जो केवल संजो सकता है सपने अपनी बिटिया के,
आकार पाते हैं वो सपने दूर कहीं, दूर कहीं....।

पिता


मेरी बिटिया रानी गढ़ूंगा तेरे लिए अलग कहानी
सफलता, खुशियां, ममता तेरी झोली में डालूंगा,
पिता हूं तेरे सारे दु:ख हरूंगा।
पकड़कर ऊंगली जब सीखा तूने चलना,
मन पुलकित और हर्षित हुआ ,
तुझे ले जाऊंगा बादलों के भी पार,
सपना यह संजोता रहा।


तेरी हर इच्‍छा पूरी करूं,
मैं संभालूं, मैं संजोऊं तेरे सपनों का घरौंदा।
यह जाने बिना कि तू पंछी है किसी और डाल की
तेरा दाना-पानी नहीं हमारे अंगान का,
तू बादल है उमड़ता-घुमड़ता,
जो बरसेगा किसी और की बगिया में।


घर में शहनाई, मेहमानों का शोर है
तेरी किलकारियां अब खामोश हैं
ना तूने थामी है मेरी ऊंगली अब,
शर्माई, सकुचाई-सी एक मूरत, आंसुओं की बहती धार,
मैं भी हूं एक असहाय पिता
जो केवल संजो सकता है सपने अपनी बिटिया के,
आकार पाते हैं वो सपने दूर कहीं, दूर कहीं....।

Saturday, November 3, 2007

बोल हल्ला की नई पहल...पत्रकारों का अपना कोना

हम ख़बर लेने वाले रोजाना न जाने कितनों की ख़बर लेते है. लेकिन आज से एक नई पहल बोल हल्ला शुरू करने जा रहा है. यह है पत्रकारों का कोना. यहाँ पत्रकारों से जुड़ी खबरों के अलावा उन खबरों को भी स्थान दिया जाएगा जिससे इस पेशे से जुड़े लोगों के आवाजाही की ख़बर होगी..ताकि जो इस पेशे से नहीं जुड़े हैं, उन्हें भी पता चले कि मीडिया जगत में क्या चल रहा है..इस कोने का मकसद किसी के मन को ठेस पहुंचाना नहीं है...

Wednesday, October 31, 2007

लीजिये एक और चैनल

लीजिये एक और चैनल देखने की आदत डाल लीजिये। बारह नवम्बर की रात ९ बजे से एक और चैनल आने वाला है. यह चैनल पीटर मुखर्जी का 9X होगा...मुम्बई में इन दिनों बड़े पैमाने पर इसका प्रचार देखने को मिल रहा है. चैनल के सभी प्रोग्राम बन चुके हैं। 9X के अलावा कम्पनी 9XM नाम का एक और मुयुजिक चैनल लाने वाली है. तीसरा चैनल अंग्रेजी का न्यूज़ चॅनल होगा।

देश मे आज २०० से अधिक चैनल हैं. चैनलों के इस हुजूम में इस नए चैनल का भी स्वागत हैं. १९९१ में देश में केवल ६ ही चैनल थे.

Friday, October 26, 2007

सुरक्षित सेक्स और महाराष्ट्र

कल एक दोस्त ने एक न्यूज़ भेजी तो आज उसे आपका पन्ना में चेप रहा हूँ. खबर यह है कि महाराष्ट्र में सुरक्षित सेक्स करने के मामले यहाँ के मर्द महिलाओं की तुलना में मीलों आगे हैं। महाराष्ट्र में किए गए सर्वे से जो तथ्य सामने आए हैं उसके मुताबिक केवल 33 प्रतिशत महिलाओं को पता है कि पहली बार सेक्स करने से भी वह गर्भवती हो सकती हैं , जबकि पुरुषों में यह आंकड़ा 46.2 फीसदी है। सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि अविवाहित महिलाओं में से केवल 55.4 फीसदी के कॉन्डम के बारे में सुना है , जबकि 95 प्रतिशत पुरुष इससे परिचित हैं। यही नहीं जितनी महिलाएं कॉन्डम के बारे में जानती हैं उनमें से केवल 18 प्रतिशत ही इसका सही उपयोग जानती हैं। विवाहित महिलाओं के मामले में भी यह आंकड़ा कोई खास उत्साह बढ़ाने वाला नहीं है। 39 फीसदी विवाहित महिलाएं ही यह जानती हैं कि सेक्स के दौरान इसके प्रयोग से गर्भवती होने से बचा जा सकता है। इनमें से केवल 9 फीसदी महिलाओं ने पहली बार गर्भवती होने से बचने के लिए कॉन्डम का इस्तेमाल किया है। इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज के सर्वे के मुताबिक कंवारे मर्दों की बात करे तो 83 फीसदी पुरुष कॉन्डम के फायदे जानते हैं और शादीशुदा पुरुषों की बात करें तो यह आंकड़ा 90 फीसदी पहुंच जाता है। सर्वे में भाग लेने वाले 25 फीसदी लोगों ने माना कि उन्होंने अपने पहले बच्चे को कॉन्डम की मदद से टाला। सर्वे में विवाह से पहले और अपने जीवनसाथी से इतर सेक्स के बारे में भी सवाल किए गए थे। केवल 3 फीसदी महिलाओं ने शादी से पहले सेक्स करने की बात कबूल की , जबकि ऐसा करने वाले पुरुष 18 प्रतिशत निकले। 25 , 541 परिवारों में किए गए इस सर्वे में 3 फीसदी पुरुषों ने विवाह होने के बाद भी दूसरे महिलाओं से शारीरिक संबंध बनाने की बात मानी।

सुरक्षित सेक्स और महाराष्ट्र

कल एक दोस्त ने एक न्यूज़ भेजी तो आज उसे आपका पन्ना में चेप रहा हूँ. खबर यह है कि महाराष्ट्र में सुरक्षित सेक्स करने के मामले यहाँ के मर्द महिलाओं की तुलना में मीलों आगे हैं। महाराष्ट्र में किए गए सर्वे से जो तथ्य सामने आए हैं उसके मुताबिक केवल 33 प्रतिशत महिलाओं को पता है कि पहली बार सेक्स करने से भी वह गर्भवती हो सकती हैं , जबकि पुरुषों में यह आंकड़ा 46.2 फीसदी है। सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि अविवाहित महिलाओं में से केवल 55.4 फीसदी के कॉन्डम के बारे में सुना है , जबकि 95 प्रतिशत पुरुष इससे परिचित हैं। यही नहीं जितनी महिलाएं कॉन्डम के बारे में जानती हैं उनमें से केवल 18 प्रतिशत ही इसका सही उपयोग जानती हैं। विवाहित महिलाओं के मामले में भी यह आंकड़ा कोई खास उत्साह बढ़ाने वाला नहीं है। 39 फीसदी विवाहित महिलाएं ही यह जानती हैं कि सेक्स के दौरान इसके प्रयोग से गर्भवती होने से बचा जा सकता है। इनमें से केवल 9 फीसदी महिलाओं ने पहली बार गर्भवती होने से बचने के लिए कॉन्डम का इस्तेमाल किया है। इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज के सर्वे के मुताबिक कंवारे मर्दों की बात करे तो 83 फीसदी पुरुष कॉन्डम के फायदे जानते हैं और शादीशुदा पुरुषों की बात करें तो यह आंकड़ा 90 फीसदी पहुंच जाता है। सर्वे में भाग लेने वाले 25 फीसदी लोगों ने माना कि उन्होंने अपने पहले बच्चे को कॉन्डम की मदद से टाला। सर्वे में विवाह से पहले और अपने जीवनसाथी से इतर सेक्स के बारे में भी सवाल किए गए थे। केवल 3 फीसदी महिलाओं ने शादी से पहले सेक्स करने की बात कबूल की , जबकि ऐसा करने वाले पुरुष 18 प्रतिशत निकले। 25 , 541 परिवारों में किए गए इस सर्वे में 3 फीसदी पुरुषों ने विवाह होने के बाद भी दूसरे महिलाओं से शारीरिक संबंध बनाने की बात मानी।

Thursday, October 25, 2007

अजीब सा कुछ था उसकी आंखों में...लेकिन क्या ??

उससे मेरी पहली और अन्तिम मुलाकात उस समय हुई थी जब मैं कुछ दिनों पहले दिल्ली से जयपुर बस के माध्यम से जा रहा था. वो जयपुर जिले के कोटपुतली कस्बे से बस में आई थी. साथ में उसके सास ससुर भी थे. वो ठेठ राजस्थानी लहंगा चोली पहन कर बस में आई थी. उसके कपडे से मुझे अंदाजा हो गया था कि हो ना हो वो जरुर यादव ही होगी. उसका लंबा सा धुंधट उसका सबूत था. शुरुआत में मैंने उसपर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया लेकिन जब उसने अपना धुंधट एक हाथ से पकड़ा तो मैं उसे देखता ही रह गया, ज़िंदगी में मैंने पहली बार इतनी खूबसूरत औरत को देखा था, कोई मेकअप कोई बनावटी पन नहीं था उसमे. मुझे उसके सामने दुनिया भर की औरते पानी भरती नज़र आ रही थीं. नाक में कुछ उसने पहना हुआ था..लेकिन क्या मुझे नहीं पता.. मैं उसे बार बार देख रहा था और उसका ससुर मुझे. लेकिन दस मिनट बाद वो अपने ससुर और सास के संग मावटा पर उतर गई और मैं उसे बस जाते हुए देख रहा था,,,उसकी आंखों में एक अजीब सा कुछ था,,लेकिन क्या??

अजीब सा कुछ था उसकी आंखों में...लेकिन क्या ??

उससे मेरी पहली और अन्तिम मुलाकात उस समय हुई थी जब मैं कुछ दिनों पहले दिल्ली से जयपुर बस के माध्यम से जा रहा था. वो जयपुर जिले के कोटपुतली कस्बे से बस में आई थी. साथ में उसके सास ससुर भी थे. वो ठेठ राजस्थानी लहंगा चोली पहन कर बस में आई थी. उसके कपडे से मुझे अंदाजा हो गया था कि हो ना हो वो जरुर यादव ही होगी. उसका लंबा सा धुंधट उसका सबूत था. शुरुआत में मैंने उसपर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया लेकिन जब उसने अपना धुंधट एक हाथ से पकड़ा तो मैं उसे देखता ही रह गया, ज़िंदगी में मैंने पहली बार इतनी खूबसूरत औरत को देखा था, कोई मेकअप कोई बनावटी पन नहीं था उसमे. मुझे उसके सामने दुनिया भर की औरते पानी भरती नज़र आ रही थीं. नाक में कुछ उसने पहना हुआ था..लेकिन क्या मुझे नहीं पता.. मैं उसे बार बार देख रहा था और उसका ससुर मुझे. लेकिन दस मिनट बाद वो अपने ससुर और सास के संग मावटा पर उतर गई और मैं उसे बस जाते हुए देख रहा था,,,उसकी आंखों में एक अजीब सा कुछ था,,लेकिन क्या??

Wednesday, October 10, 2007

मैं मांगती हूं

मांगने वाला भिखारी और
देने वाला दानवीर है,
तो आजादी, खुशी और
जीने की एक अदद वजह मांगती हूं।

मां कहलाने के लिए भी तो मांगना होता है
अपनी पहचान, जो तुमसे शुरू होकर तुमपर खत्‍म होती है
क्‍योंकि बिना पहचान के कुल्‍टा हूं और पहचान के साथ भी बेनाम,
ऐसी जिंदगी के संग जीने की अदद वजह मांगती हूं।

- नीहारिका

मैं मांगती हूं

मांगने वाला भिखारी और
देने वाला दानवीर है,
तो आजादी, खुशी और
जीने की एक अदद वजह मांगती हूं।

मां कहलाने के लिए भी तो मांगना होता है
अपनी पहचान, जो तुमसे शुरू होकर तुमपर खत्‍म होती है
क्‍योंकि बिना पहचान के कुल्‍टा हूं और पहचान के साथ भी बेनाम,
ऐसी जिंदगी के संग जीने की अदद वजह मांगती हूं।

- नीहारिका

Wednesday, October 3, 2007

एक निवाला

तुम तो रोज खाते होगे
कई निवाले,
मैं तो कई सदियों से हूँ भूखा,
अभागा, लाचार, लतियाया हुआ।
रोज गुजरता हूँ तुम्‍हारी देहरी से
आस लिए कि कभी तो पड़ेगी तुम्‍हारी भी नजर,
इसी उम्‍मीद से हर रोज आता हूँ,
फिर भी पहचान क्‍या बताऊँ अपनी,
कभी विदर्भ तो कभी कालाहांडी से छपता हूँ,
गुमनामी की चीत्कार लिए,
जो नहीं गूँजती इस हो-हंगामे में।
ना नाम माँगता हूँ,
ना ही कोई मुआवजा,
उन अनगिनत निवालों का हिसाब भी नहीं,
विनती है ! केवल इतनी,
मौत का एक निवाला चैन से लेने दो ।

-नीहारिका झा

एक निवाला

तुम तो रोज खाते होगे
कई निवाले,
मैं तो कई सदियों से हूँ भूखा,
अभागा, लाचार, लतियाया हुआ।
रोज गुजरता हूँ तुम्‍हारी देहरी से
आस लिए कि कभी तो पड़ेगी तुम्‍हारी भी नजर,
इसी उम्‍मीद से हर रोज आता हूँ,
फिर भी पहचान क्‍या बताऊँ अपनी,
कभी विदर्भ तो कभी कालाहांडी से छपता हूँ,
गुमनामी की चीत्कार लिए,
जो नहीं गूँजती इस हो-हंगामे में।
ना नाम माँगता हूँ,
ना ही कोई मुआवजा,
उन अनगिनत निवालों का हिसाब भी नहीं,
विनती है ! केवल इतनी,
मौत का एक निवाला चैन से लेने दो ।

-नीहारिका झा

Monday, October 1, 2007

यह भी सच है


संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि दुनियाभर में आज भी एक अरब से अधिक लोग शहरी स्लम बस्तियों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यदि सरकारों ने समय रहते इन्हें नियंत्रित नहीं किया तथा इनके पुनर्वास की व्यवस्था नहीं की तो अगले 30 साल में इनकी संख्या दोगुनी हो जाएगी। संयुक्त राष्ट्र एक अक्टूबर को विश्व आवास दिवस के रूप में मनाता है।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार इन शहरी बस्तियों में रहने वाले लोग भय, असुरक्षा, गरीबी और मानवाधिकारों से वंचित जीवन जी रहे हैं जहां मूलभूत आवश्यकताओं का भारी अभाव है तथा हिंसा व अपराध एक गंभीर समस्या बनती जा रही है।
संयुक्त राष्ट्र ने इस साल विश्व आवास दिवस का विषय या थीम एक सुरक्षित शहर ही वास्तविक शहर' चुना है। वास्तव में यह विषय मानव बस्तियों की हालत पर नजर डालता है। संयुक्त राष्ट्र ने शहरी सुरक्षा, सामाजिक न्याय खासतौर पर शहरी अपराध और हिंसा, बलात् निष्कासन, असुरक्षित शहरी निवास के साथ साथ प्रकृति व मनुष्यजन्य आपदाओं के प्रति जागरूकता और इस बारे में प्रयासों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से ही एक 'सुरक्षित शहर ही वास्तविक शहर' विषय चुना है।
वर्तमान समय और परिस्थितियों में अधिकतर शहरों में भय और असुरक्षा का एक प्रमुख कारण अपराध और हिंसा है। संयुक्त राष्ट्र ने इस साल विश्व आवास दिवस-2007 के अंतरराष्ट्रीय आयोजन का नेतृत्व नीदरलैंड की राजधानी हेग शहर को सौंपा है। इस अवसर पर वहां एक सम्मेलन का आयोजन किया गया है, जिसमें सभी स्तर के पेशेवर लोगों को आमंत्रित किया गया है जो विकसित और विकासशील देशों में शहरी सुरक्षा और बचाव में आ रही चुनौतियों पर अपने विचार रखेंगे।


अब आप ही बताइए देश कैसी तरक्की कर रहा है।

यह भी सच है


संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि दुनियाभर में आज भी एक अरब से अधिक लोग शहरी स्लम बस्तियों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यदि सरकारों ने समय रहते इन्हें नियंत्रित नहीं किया तथा इनके पुनर्वास की व्यवस्था नहीं की तो अगले 30 साल में इनकी संख्या दोगुनी हो जाएगी। संयुक्त राष्ट्र एक अक्टूबर को विश्व आवास दिवस के रूप में मनाता है।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार इन शहरी बस्तियों में रहने वाले लोग भय, असुरक्षा, गरीबी और मानवाधिकारों से वंचित जीवन जी रहे हैं जहां मूलभूत आवश्यकताओं का भारी अभाव है तथा हिंसा व अपराध एक गंभीर समस्या बनती जा रही है।
संयुक्त राष्ट्र ने इस साल विश्व आवास दिवस का विषय या थीम एक सुरक्षित शहर ही वास्तविक शहर' चुना है। वास्तव में यह विषय मानव बस्तियों की हालत पर नजर डालता है। संयुक्त राष्ट्र ने शहरी सुरक्षा, सामाजिक न्याय खासतौर पर शहरी अपराध और हिंसा, बलात् निष्कासन, असुरक्षित शहरी निवास के साथ साथ प्रकृति व मनुष्यजन्य आपदाओं के प्रति जागरूकता और इस बारे में प्रयासों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से ही एक 'सुरक्षित शहर ही वास्तविक शहर' विषय चुना है।
वर्तमान समय और परिस्थितियों में अधिकतर शहरों में भय और असुरक्षा का एक प्रमुख कारण अपराध और हिंसा है। संयुक्त राष्ट्र ने इस साल विश्व आवास दिवस-2007 के अंतरराष्ट्रीय आयोजन का नेतृत्व नीदरलैंड की राजधानी हेग शहर को सौंपा है। इस अवसर पर वहां एक सम्मेलन का आयोजन किया गया है, जिसमें सभी स्तर के पेशेवर लोगों को आमंत्रित किया गया है जो विकसित और विकासशील देशों में शहरी सुरक्षा और बचाव में आ रही चुनौतियों पर अपने विचार रखेंगे।


अब आप ही बताइए देश कैसी तरक्की कर रहा है।

लिया बहुत-बहुत ज़्यादा दिया बहुत-बहुत कम

जनसत्ता में छपी एक खबर के अनुसार प्रगतिवादी धारा के एक प्रमुख कवि त्रिलोचन शास्त्री गाजियाबाद के कौशांबी स्थित एक निजी अस्पताल में दाखिल हैं. यह खबर दुर्भाग्य से जनसत्ता के अलावा और कहीं नहीं छपी है. वहां शायद इसलिए छप सकी कि जनसत्ता में त्रिलोचन जी के पुत्र श्री अमित प्रकाश सिंह मुलाजिम हैं और वैसे भी जनसत्ता साहित्यिक-सांस्कृतिक सरोकारों से जुड़ी खबरें देने के ख्यात रहा है. उनके पुत्रों की बड़ी-बड़ी कोठियां हैं, जीवन भर बहुत कुछ उन लोगों ने पिता से लिया। यह जीवन, यह यौवन...नाम और हिंदी में इतना सम्मान...बहुत कुछ और अब जब उनके पिता बीमार और अशक्त हैं तो सरकार पर तोहमत आयद करने से बेहतर है कि वे लोग अपने दम पर जितना संभव हो करें। क्योंकि वे लोग हर तरीके से समर्थ हैं. (ख्वाब का दर)

लिया बहुत-बहुत ज़्यादा दिया बहुत-बहुत कम

जनसत्ता में छपी एक खबर के अनुसार प्रगतिवादी धारा के एक प्रमुख कवि त्रिलोचन शास्त्री गाजियाबाद के कौशांबी स्थित एक निजी अस्पताल में दाखिल हैं. यह खबर दुर्भाग्य से जनसत्ता के अलावा और कहीं नहीं छपी है. वहां शायद इसलिए छप सकी कि जनसत्ता में त्रिलोचन जी के पुत्र श्री अमित प्रकाश सिंह मुलाजिम हैं और वैसे भी जनसत्ता साहित्यिक-सांस्कृतिक सरोकारों से जुड़ी खबरें देने के ख्यात रहा है. उनके पुत्रों की बड़ी-बड़ी कोठियां हैं, जीवन भर बहुत कुछ उन लोगों ने पिता से लिया। यह जीवन, यह यौवन...नाम और हिंदी में इतना सम्मान...बहुत कुछ और अब जब उनके पिता बीमार और अशक्त हैं तो सरकार पर तोहमत आयद करने से बेहतर है कि वे लोग अपने दम पर जितना संभव हो करें। क्योंकि वे लोग हर तरीके से समर्थ हैं. (ख्वाब का दर)

शिल्पा शेट्टी के साथ फिर बेअदबी

शिल्पा शेट्टी के साथ फिर दुर्व्यवहार किया गया। इस बार यह करतूत मुम्बई के छत्रपति शिवाजी इंटरनैशनल एयरपोर्ट पर एक आब्रजन अधिकारी ने की। इस अधिकारी ने उनसे बड़ी बेअदबी से बात की और दो टूक कहा कि वह विदेश नहीं जा सकती हैं। शिल्पा जर्मनी जा रही थीं। वहां उन्हें वेस्ट एंड म्यूजिकल मिस बॉलिवुड में भाग लेना है। मगर बुधवार की रात आब्रजन अधिकारियों ने उन्हें एयरपोर्ट पर रोक दिया। अधिकारियों को यह पता ही नहीं था कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें विदेश जाने की अनुमति दे दी है। वे यही कहते रहे कि कोर्ट से उन्हें विदेश जाने की अनुमति नहीं मिली है। बेचारी शिल्पा ने अपने प्रवक्ता डैल भाग्वैगर को आधी रात में बुलाया। प्रवक्ता ने आकर देखा कि शिल्पा लाउंज में बैठी रो रही हैं। शिल्पा ने उन्हें बताया कि एक इमिग्रैशन इंस्पेक्टर ने उनके साथ बड़ा बुरा व्यवहार किया। शिल्पा कह रही थीं, 'मैं ऐसी बात समझ सकती हूं यदि मैंने कोई आपराधिक जुर्म किया होता। मगर इसमें मेरा क्या कसूर है यदि मैं विदेश में एक संगीत कार्यक्रम में भाग लेने जा रही हूं? अपने ही देश में मेरे साथ ऐसी बदसलूकी की गई। यह भयावह है।' खैर, शिल्पा के प्रवक्ता ने आब्रजन अधिकारियों को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने विदेश जाने के लिए शिल्पा का नाम क्लीयर कर दिया है। तब जाकर शिल्पा को जाने दिया गया।

यह ख़बर यहाँ से ली गई है।

Saturday, September 29, 2007

दैनिक हिंदुस्तान का भोपाल संस्करण

हिंदुस्तान टाइम्स अखबार समूह की एक बैठक में निर्णय लिय गया है कि अप्रैल २००८ से हर हालत में दैनिक हिंदुस्तान का भोपाल संस्करण शुरू किया जाए। इस बावत तैयारियां भी शुरू हो गई हैं।

Friday, September 28, 2007

पत्रकारों की सज़ा पर रोकी सुप्रीम कोर्ट ने

भारत में सुप्रीम कोर्ट ने अदालत की अवमानना के दोषी ठहराए गए चार पत्रकारों की सज़ा पर रोक लगा दी है। मामले की अगली सुनवाई जनवरी में होगी। यह खबर बीबीसी ने दी है।

खबर के अनुसार अदालत की अवमानना के एक मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने 'मिड डे' अख़बार के चार पत्रकारों को चार-चार महीने की जेल की सज़ा सुनाई थी। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अरिजीत पसायत और पी सदाशिवम ने चारों पत्रकारों की याचिका स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट से उन्हें मिली सज़ा पर रोक लगा दी।

हाईकोर्ट ने जिन्हें सज़ा सुनाई थी उनमें 'मिड डे' के स्थानीय संपादक और प्रकाशक के साथ-साथ एक कार्टूनिस्ट भी हैं. 'मिड डे' में छपे लेख में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायधीश वाईके सभरवाल पर दिल्ली में अवैध तरीक़े से रिहायशी इलाक़ों में चल रही दुकानों को सील करने के आदेश से संबंधित कुछ टिप्पणियाँ की थीं। अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि 'लेख से सुप्रीम कोर्ट की छवि धूमिल होती है। इससे इस संस्था में आम लोगों के विश्वास में कमी आ सकती है।'

पत्रकार इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गए थे और सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि दोषी ठहराए गए लोगों को उच्च न्यायालय तत्काल ज़मानत दे दे जिसके बाद चारों को ज़मानत दे दी गई।

पत्रकारों की सज़ा पर रोकी सुप्रीम कोर्ट ने

भारत में सुप्रीम कोर्ट ने अदालत की अवमानना के दोषी ठहराए गए चार पत्रकारों की सज़ा पर रोक लगा दी है। मामले की अगली सुनवाई जनवरी में होगी। यह खबर बीबीसी ने दी है।

खबर के अनुसार अदालत की अवमानना के एक मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने 'मिड डे' अख़बार के चार पत्रकारों को चार-चार महीने की जेल की सज़ा सुनाई थी। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अरिजीत पसायत और पी सदाशिवम ने चारों पत्रकारों की याचिका स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट से उन्हें मिली सज़ा पर रोक लगा दी।

हाईकोर्ट ने जिन्हें सज़ा सुनाई थी उनमें 'मिड डे' के स्थानीय संपादक और प्रकाशक के साथ-साथ एक कार्टूनिस्ट भी हैं. 'मिड डे' में छपे लेख में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायधीश वाईके सभरवाल पर दिल्ली में अवैध तरीक़े से रिहायशी इलाक़ों में चल रही दुकानों को सील करने के आदेश से संबंधित कुछ टिप्पणियाँ की थीं। अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि 'लेख से सुप्रीम कोर्ट की छवि धूमिल होती है। इससे इस संस्था में आम लोगों के विश्वास में कमी आ सकती है।'

पत्रकार इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गए थे और सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि दोषी ठहराए गए लोगों को उच्च न्यायालय तत्काल ज़मानत दे दे जिसके बाद चारों को ज़मानत दे दी गई।

Tuesday, September 25, 2007

लेकिन अब गंगा तेरे शहर से मेरे शहर में नहीं आती


तेरे शहर से होकर गंगा
जब
मेरे शहर को आती थी
अपने साथ तेरे होने का
अहसास लाती थी
इन्‍हीं अहसासो ने
मुझे जीने की प्रेरणा दी
लेकिन अब गंगा तेरे शहर से
मेरे शहर में नहीं आती

फिर हम एक न हो सके तो क्‍या
तेरे अहसास को
मैने हमेशा अपना बना कर रखा
मुझे विश्‍वास है हम मिलेंगे फिर से
लेकिन रिश्‍तों मे शायद वो पहली सी बात न हो
लेकिन मै महसूस करूंगा
उस हर पल को जो मैने तेरे साथ बिताए हैं

लेकिन अब गंगा तेरे शहर से मेरे शहर में नहीं आती


तेरे शहर से होकर गंगा
जब
मेरे शहर को आती थी
अपने साथ तेरे होने का
अहसास लाती थी
इन्‍हीं अहसासो ने
मुझे जीने की प्रेरणा दी
लेकिन अब गंगा तेरे शहर से
मेरे शहर में नहीं आती

फिर हम एक न हो सके तो क्‍या
तेरे अहसास को
मैने हमेशा अपना बना कर रखा
मुझे विश्‍वास है हम मिलेंगे फिर से
लेकिन रिश्‍तों मे शायद वो पहली सी बात न हो
लेकिन मै महसूस करूंगा
उस हर पल को जो मैने तेरे साथ बिताए हैं

Monday, September 24, 2007

पास थे कभी

पास थे कभी, दूर न होने के लिए,
एक घर हमने भी बनाया था अपने लिए,
चुनकर लाए थे खुशियों के एक-एक फूल,
रंग भरे थे सपनों की रंगीन कूची से,
आज भी देखती हूँ उस ख्‍वाब की दुनिया के अवशेष
जिसकी रंगहीन दीवारें आज भी कुछ यादों को
सहेजे हुए है किसी बदरंग तस्‍वीर की तरह।
- Niharika

पास थे कभी

पास थे कभी, दूर न होने के लिए,
एक घर हमने भी बनाया था अपने लिए,
चुनकर लाए थे खुशियों के एक-एक फूल,
रंग भरे थे सपनों की रंगीन कूची से,
आज भी देखती हूँ उस ख्‍वाब की दुनिया के अवशेष
जिसकी रंगहीन दीवारें आज भी कुछ यादों को
सहेजे हुए है किसी बदरंग तस्‍वीर की तरह।
- Niharika

Friday, September 21, 2007

प्रेयसी को पत्र

(रास्ते पर गुजरते हुए लेखक को बटुआ पड़ा मिला। नोटों के चक्कर में उठा लिया। देखा तो उसमें किसी भावुक के प्रेमपत्र जमा थे। पाठकों को कुछ लाभ होगा इसीलिए पत्रों के कुछ अंश नीचे दिये जा रहे हैं। पूरा छापना किसी की प्राइवेसी का उल्लंघन होगा। कॉपीराइट का उल्लंघन भी हो सकता है। जिन सज्जन का हो वे इन अंशों को पहचान कर अपना बटुआ वापस ले जा सकते हैं।)

प्रिये, तुम्हें खत लिखने की सोचते सोचते पूरी ऋतु गुजर गई। ग्रीष्म ऋतु में बिजली की कमी के कारण तुम भी किसी कोने में पसीना बहा रही होगी यही सोचकर तुम्हें छेड़ने का मेरा मन नहीं हुआ। बिजलीघर तो जैसा तुम्हारा वैसा हमारा। अब मौसम बदला है तो कलम अपने आप ही बहने लगी है। लेखनी फेंकने की अपेक्षा तुम्हें एक खत लिख दूं, यही ठीक रहेगा सो लिखता हूं। सुमुखि, तुम्हारा चंद्रमुख देखने के लिए दिन रात तरसता हूँ। फोटो में जैसा है वैसा दिखता है, इससे तो कल्पना में देखना ठीक है। मनरूपी कंप्यूटर में कल्पना के टूल्स बार से रंग और डिजाइन उठाकर फिट करता हूं, ठीक लगने लगता है तो देख लेता हूं। इतनी मेहनत मैं करता हूं सो तुम्हारे लिए। एक बार दिख जाओ तो रोज की यह कसरत बंद हो जाये। मनोहरे, बाहर बरसात हो रही है। कोई कवि होता तो ऐसे में मिलने की बात जरूर कहता। जानता है ऐसे में आ जाओगी तो जाओगी बारिश बंद होने पर ही। देर तक सानिध्य रहेगा। लेकिन मैं डरता हूँ। तुम कवि की प्रेयसी नहीं, आधुनिक प्रेमी की चाहत हो। अधिक देर तुम्हारे रुकने पर बोरियत का शिकार होने का डर है। वैसे भी जेब में पैसे न हों तो आदमी जल्दी बोर होने लगता है। ऐसे में प्रेमिका पास हो तो हासिल में बेइज्जती के अलावा कुछ बचता नहीं है। इसीलिए सूखे में आना और सूखे में जाना। कपड़े भी ज्यादा चलेंगे। धन्ये, तुम सचमुच धन्य हो। कानून की तरह किताबों में कैद रहने में तुम्हें कितना मजा आता है! कब से बुला रहा हूँ लेकिन आने का नाम नहीं लेतीं। क्या तुम्हें भी किसी पुलिसवाले ने कब्जिया लिया है? अगर ऐसा है तो उस पुलिसवाले के आका का उल्लेख खत में जरूर करना। आज के समय में पुलिस इशारे के बिना काम नहीं करती। यह कोई अमेरिका की पुलिस नहीं है जो साक्ष्यों के अनुसार चले। इशारा करने वाला अगर सचमुच ताकतवर है तो मैं कहीं और देखूंगा। तुम्हे नाहक परेशान होने की जरूरत नहीं है। तुम अगर पुलिस के पास हो तो सारा हिंदुस्तान तुम्हारे पास है। ललिते, वैसे तो मैं खत में मोबाइल नंबर लिख देता, तुम्हें बात करने में आसानी रहती। लेकिन सुरक्षा के लिहाज से ठीक नहीं है। आती बारी में अपना लिख भेजना। तुम्हें अधिक सोचने की जरूरत नहीं है। यह बंदा अपना नंबर चाहे जितना बांट दे लेकिन तुम्हारा तो अपने पास गोपन ही रखना अधिक पसंद करेगा। चंद्रमुखी, तुम क्यों चिंता करती हो। आ भी जाओ। अगर कोई काम नहीं मिलेगा तो दलाली करने लगूंगा। हमारी सभ्यता ने इस काम को भी सम्मान दिला दिया है। दो लोगों को धोखे में रखकर कितना भी पैसा कमाया जा सकता है। हां, यह धन होता दो नंबर का है इसीलिए खर्च भी जल्दी करना पड़ता है। हांलाकि तुम्हारे लिए तो यह खुशी की बात है। सुभगे, कल तुम्हें बाजार में देखा। जान पड़ा कि तुम्हीं हो। हांलाकि कल्पना से मैच नहीं करतीं लेकिन पहनावे से अच्छे घर की जान पड़ती हो। मैंने सोचा तुम्हीं ठीक हो। शाम तक मेरी बेपनाह मुहव्वत मुझ पर हावी हो गई। अब नये ढंग से मैं तुमसे नया प्रेम करने लगा हूँ। कल्पनावाली की मैंने छुट्टी कर दी है। प्राणवल्लभे, अब तो मैं तुम्हारे अलावा कुछ भी नहीं सोचता हूँ। बात यह है कि फिल्में सब एकसी आती हैं। किताबें मैं पढ़ता नहीं। दोस्त सब इधर उधर हो गये हैं। इसलिए सोचने के लिए मेरे पास और कुछ है भी नहीं। यह मैं इसलिए बता रहा हूँ कि तुम विश्वास कर सको कि मैं आजकल तुम्हारे बारे में ही अधिक सोचता हूँ। शकुंतले, दुष्यंत की तरह मैं तुम्हें नहीं भूलूंगा। मेरे पास एक ही अंगूठी है, उसे मैं तुम्हें दे दूंगा। उसकी चिंता रहेगी तो तुम्हारी भी याद रहेगी। पुरुष स्त्री को जो दे देता है उसके लिए भी उसे याद रखता है। मनोविज्ञान का यह नियम अखबारों से तुम तक भी आ गया होगा। इसलिए उल्लेख कर रहा हूँ। सखि, अब कितना लिखूं? इतना तो मैंने पूरे परीक्षा काल में भी नहीं लिखा। संक्षेप में मेरी स्थिति जो है सो लिखता हूँ। इसी से समझ लेना। मुझे गरज किसी से क्या वास्ता मुझे काम अपने काम से।तेरे जिक्र से तेरी फिक्र से तेरी याद से तेरे नाम से। मानिनी, पता नहीं तुम लड़कियों को इतना घमंड किस बात का होता है। तुमने एक भी खत का जबाब नहीं दिया। कोई लड़का भी तुम्हारे आसपास नहीं दिखता। पता नहीं किन सपनों में खोई रहती हो। उस दिन भीड़ में धक्का दिया, तुमने ध्यान नहीं दिया। सीटी बजाने पर मुड़ कर भी नहीं देखा। क्या तुम्हारा स्वभाव भी पांच साल में एक बार मुड़कर देखने वाला है? तो अपने चुनाव की साल बता रखना। मैं प्रचार का बजट बना रखूँगा। रूपा, मेरा अब यह आखिरी खत है। अब और नहीं। पाकिस्तानी जनता की तरह डेमोक्रेसी का इंतजार अनंतकाल तक मैं नहीं कर सकता। उधर नेपाल में भी जनता को सरकार मिल गई है। सोचता हूं अब मुझे भी अपने लिए कोई ठीक करनी ही पड़ेगी। साफ बता देता हूँ, तू नहीं और सही, और नहीं और सही। सजनि, तुम्हारा जबाब पाकर खुश हुआ। हिंदी जरूर तुम्हारी खराब है लेकिन उसकी चिंता तो किसी को भी नहीं है। हमीं क्यों नाहक परेशान हों? तुमने तो जबाब में फिल्मी गीत तक लिखे हैं। मैं इतने की उम्मीद नहीं करता था। तो कल बाजार में मिलना। चोरी की कुछ सीडीं मेरे पास भी हैं। सब तुम्हें दे दूंगा। काम्या, तुमसे मिलकर आया तो दिनभर खुश रहा। पर देखना हमारे मिलन का हाल मुशर्रफ-बेनजीर सा न हो। मुलाकात के समय कुछ और अपनी जगह पर कुछ और। हमारे तुम्हारे बीच मौकापरस्त नवाज शरीफ हो सकते हैं। तुम्हारे पितारूपी सुप्रीम कोर्ट का सहारा लेकर वे लौट सकते हैं, सावधान रहना। मेरी सरकार, मुझे तुम्हारा प्रधानमंत्री होने में कोई बुराई नजर नहीं आती। पद तो मेरा है। भाषण और प्रोग्राम तुम्हारे चलेंगे। बस लेफ्ट फ्रंट की तरह लेफ्ट मत हो जाना। वैसे वे भी जल्दी मान जाते हैं। मनमोहिनी, कल मां के बारे में तुम्हारे विचार जानने को मिले। जानकर खुशी हुई कि वे मेरी मां के बारे में थे, तुम्हारी मां के बारे में नहीं। हिंदी की तरह मेरी मां खराब हो सकती हैं लेकिन अंग्रेजी की तरह तुम्हारी मां की अहमियत से मैं क्या कोई भी इंकार नहीं कर सकता। निर्मोहिणी, तुम क्यों रूठ गईं? मैंने तुम्हारे पिता को कब बुरा भला कहा था? मैं तो अपने प्रिंसीपल की शिकायत कर रहा था। कसम से एक बार भी जो पढ़ाई छोड़ने के बाद उसने किताब उठाई है। खुद अब तक जैसे का तैसा है और हमें जाने क्या समझता है! निर्दयी, हाय! तुम्हें मनाना कितना कठिन काम है। मुझे दोस्तों से उधार लेना पड़ा। अब मुझे उनको भी तुमसे दोस्ती करने की अनुमति देनी पड़ेगी। तुम्हारे चयन के अधिकार के बढ़ जाने से चिंतित रहने लगा हूँ। चुनाव आयोग की तरह तुम्हारे सख्त व्यवहार का नतीजा किसके पक्ष में जायेगा इसका पता मैं चुनाव पूर्व के शराब वितरण जैसी मशक्कत के बावजूद नहीं जान सकता। चपले, तुम चली गईं। सत्ता की तरह चली जाओगी, नेता की तरह मुझे अंदाज था। जनता जैसा मन है तुम्हारा। मैं अब हिंदी के लेखक की तरह अस्त व्यस्त रहने लगा हूँ। देश के अधकचरे पढ़े लिखे लोगों जैसा मेरा घमंड न जाने कहां चला गया है। अब तो उन्हीं के अंदाज में नये प्रेमियों को समझाने में लगा रहता हूँ। प्रेयसि, फिल्मी लेखक की तरह चोरी की कहानी को अपना कहने लगा हूँ। निर्देशक की तरह उसे आजमाने में लगा हूँ। एक दोस्त की प्रेमिका से मिलने लगा हूँ। वह भी बोर है। जान पड़ता है प्रेम हो ही जायेगा। लेखक प्रेम कहानियां लिख लिख कर बोर नहीं होते। हम लोग प्रेम कर करके। सोचा तुम्हें बता दूँ। कहीं एकदम लौट पड़ीं तो जगह की तंगी का शिकार हो सकते हैं हम लोग। तबादला खा चुके अधिकारी को कोर्ट से स्टे मिल जाने के बाद जैसे दो अधिकारी एक ही कुर्सी पर फंस जाते हैं और ठीक से खा पी नहीं पाने के कारण दुखी रहते हैं वैसे मैं तुम्हें दुखी नहीं देखना चाहता। सांवरी, फेयर क्रीम लगा कर साफ रहना। अपने नये प्रेमी का वजन कम करती रहना। उसे अपने अनुभवों को बताना। साफ साफ बताना, सरकारी बाबुओं जैसी गोलमोल भाषा का इस्तेमाल मत करना। अखबारी संवाददाता की तरह अपने कम ज्ञान पर भी पूरा भरोसा रखना। स्वास्थ्य का ध्यान रखना, साथ वाले का भी। जितना सहन कर सके उसे उतना ही दुख देना।

- संजीव

(यह गुस्ताखी माफ़ से लिया गया हैं।)

प्रेयसी को पत्र

(रास्ते पर गुजरते हुए लेखक को बटुआ पड़ा मिला। नोटों के चक्कर में उठा लिया। देखा तो उसमें किसी भावुक के प्रेमपत्र जमा थे। पाठकों को कुछ लाभ होगा इसीलिए पत्रों के कुछ अंश नीचे दिये जा रहे हैं। पूरा छापना किसी की प्राइवेसी का उल्लंघन होगा। कॉपीराइट का उल्लंघन भी हो सकता है। जिन सज्जन का हो वे इन अंशों को पहचान कर अपना बटुआ वापस ले जा सकते हैं।)

प्रिये, तुम्हें खत लिखने की सोचते सोचते पूरी ऋतु गुजर गई। ग्रीष्म ऋतु में बिजली की कमी के कारण तुम भी किसी कोने में पसीना बहा रही होगी यही सोचकर तुम्हें छेड़ने का मेरा मन नहीं हुआ। बिजलीघर तो जैसा तुम्हारा वैसा हमारा। अब मौसम बदला है तो कलम अपने आप ही बहने लगी है। लेखनी फेंकने की अपेक्षा तुम्हें एक खत लिख दूं, यही ठीक रहेगा सो लिखता हूं। सुमुखि, तुम्हारा चंद्रमुख देखने के लिए दिन रात तरसता हूँ। फोटो में जैसा है वैसा दिखता है, इससे तो कल्पना में देखना ठीक है। मनरूपी कंप्यूटर में कल्पना के टूल्स बार से रंग और डिजाइन उठाकर फिट करता हूं, ठीक लगने लगता है तो देख लेता हूं। इतनी मेहनत मैं करता हूं सो तुम्हारे लिए। एक बार दिख जाओ तो रोज की यह कसरत बंद हो जाये। मनोहरे, बाहर बरसात हो रही है। कोई कवि होता तो ऐसे में मिलने की बात जरूर कहता। जानता है ऐसे में आ जाओगी तो जाओगी बारिश बंद होने पर ही। देर तक सानिध्य रहेगा। लेकिन मैं डरता हूँ। तुम कवि की प्रेयसी नहीं, आधुनिक प्रेमी की चाहत हो। अधिक देर तुम्हारे रुकने पर बोरियत का शिकार होने का डर है। वैसे भी जेब में पैसे न हों तो आदमी जल्दी बोर होने लगता है। ऐसे में प्रेमिका पास हो तो हासिल में बेइज्जती के अलावा कुछ बचता नहीं है। इसीलिए सूखे में आना और सूखे में जाना। कपड़े भी ज्यादा चलेंगे। धन्ये, तुम सचमुच धन्य हो। कानून की तरह किताबों में कैद रहने में तुम्हें कितना मजा आता है! कब से बुला रहा हूँ लेकिन आने का नाम नहीं लेतीं। क्या तुम्हें भी किसी पुलिसवाले ने कब्जिया लिया है? अगर ऐसा है तो उस पुलिसवाले के आका का उल्लेख खत में जरूर करना। आज के समय में पुलिस इशारे के बिना काम नहीं करती। यह कोई अमेरिका की पुलिस नहीं है जो साक्ष्यों के अनुसार चले। इशारा करने वाला अगर सचमुच ताकतवर है तो मैं कहीं और देखूंगा। तुम्हे नाहक परेशान होने की जरूरत नहीं है। तुम अगर पुलिस के पास हो तो सारा हिंदुस्तान तुम्हारे पास है। ललिते, वैसे तो मैं खत में मोबाइल नंबर लिख देता, तुम्हें बात करने में आसानी रहती। लेकिन सुरक्षा के लिहाज से ठीक नहीं है। आती बारी में अपना लिख भेजना। तुम्हें अधिक सोचने की जरूरत नहीं है। यह बंदा अपना नंबर चाहे जितना बांट दे लेकिन तुम्हारा तो अपने पास गोपन ही रखना अधिक पसंद करेगा। चंद्रमुखी, तुम क्यों चिंता करती हो। आ भी जाओ। अगर कोई काम नहीं मिलेगा तो दलाली करने लगूंगा। हमारी सभ्यता ने इस काम को भी सम्मान दिला दिया है। दो लोगों को धोखे में रखकर कितना भी पैसा कमाया जा सकता है। हां, यह धन होता दो नंबर का है इसीलिए खर्च भी जल्दी करना पड़ता है। हांलाकि तुम्हारे लिए तो यह खुशी की बात है। सुभगे, कल तुम्हें बाजार में देखा। जान पड़ा कि तुम्हीं हो। हांलाकि कल्पना से मैच नहीं करतीं लेकिन पहनावे से अच्छे घर की जान पड़ती हो। मैंने सोचा तुम्हीं ठीक हो। शाम तक मेरी बेपनाह मुहव्वत मुझ पर हावी हो गई। अब नये ढंग से मैं तुमसे नया प्रेम करने लगा हूँ। कल्पनावाली की मैंने छुट्टी कर दी है। प्राणवल्लभे, अब तो मैं तुम्हारे अलावा कुछ भी नहीं सोचता हूँ। बात यह है कि फिल्में सब एकसी आती हैं। किताबें मैं पढ़ता नहीं। दोस्त सब इधर उधर हो गये हैं। इसलिए सोचने के लिए मेरे पास और कुछ है भी नहीं। यह मैं इसलिए बता रहा हूँ कि तुम विश्वास कर सको कि मैं आजकल तुम्हारे बारे में ही अधिक सोचता हूँ। शकुंतले, दुष्यंत की तरह मैं तुम्हें नहीं भूलूंगा। मेरे पास एक ही अंगूठी है, उसे मैं तुम्हें दे दूंगा। उसकी चिंता रहेगी तो तुम्हारी भी याद रहेगी। पुरुष स्त्री को जो दे देता है उसके लिए भी उसे याद रखता है। मनोविज्ञान का यह नियम अखबारों से तुम तक भी आ गया होगा। इसलिए उल्लेख कर रहा हूँ। सखि, अब कितना लिखूं? इतना तो मैंने पूरे परीक्षा काल में भी नहीं लिखा। संक्षेप में मेरी स्थिति जो है सो लिखता हूँ। इसी से समझ लेना। मुझे गरज किसी से क्या वास्ता मुझे काम अपने काम से।तेरे जिक्र से तेरी फिक्र से तेरी याद से तेरे नाम से। मानिनी, पता नहीं तुम लड़कियों को इतना घमंड किस बात का होता है। तुमने एक भी खत का जबाब नहीं दिया। कोई लड़का भी तुम्हारे आसपास नहीं दिखता। पता नहीं किन सपनों में खोई रहती हो। उस दिन भीड़ में धक्का दिया, तुमने ध्यान नहीं दिया। सीटी बजाने पर मुड़ कर भी नहीं देखा। क्या तुम्हारा स्वभाव भी पांच साल में एक बार मुड़कर देखने वाला है? तो अपने चुनाव की साल बता रखना। मैं प्रचार का बजट बना रखूँगा। रूपा, मेरा अब यह आखिरी खत है। अब और नहीं। पाकिस्तानी जनता की तरह डेमोक्रेसी का इंतजार अनंतकाल तक मैं नहीं कर सकता। उधर नेपाल में भी जनता को सरकार मिल गई है। सोचता हूं अब मुझे भी अपने लिए कोई ठीक करनी ही पड़ेगी। साफ बता देता हूँ, तू नहीं और सही, और नहीं और सही। सजनि, तुम्हारा जबाब पाकर खुश हुआ। हिंदी जरूर तुम्हारी खराब है लेकिन उसकी चिंता तो किसी को भी नहीं है। हमीं क्यों नाहक परेशान हों? तुमने तो जबाब में फिल्मी गीत तक लिखे हैं। मैं इतने की उम्मीद नहीं करता था। तो कल बाजार में मिलना। चोरी की कुछ सीडीं मेरे पास भी हैं। सब तुम्हें दे दूंगा। काम्या, तुमसे मिलकर आया तो दिनभर खुश रहा। पर देखना हमारे मिलन का हाल मुशर्रफ-बेनजीर सा न हो। मुलाकात के समय कुछ और अपनी जगह पर कुछ और। हमारे तुम्हारे बीच मौकापरस्त नवाज शरीफ हो सकते हैं। तुम्हारे पितारूपी सुप्रीम कोर्ट का सहारा लेकर वे लौट सकते हैं, सावधान रहना। मेरी सरकार, मुझे तुम्हारा प्रधानमंत्री होने में कोई बुराई नजर नहीं आती। पद तो मेरा है। भाषण और प्रोग्राम तुम्हारे चलेंगे। बस लेफ्ट फ्रंट की तरह लेफ्ट मत हो जाना। वैसे वे भी जल्दी मान जाते हैं। मनमोहिनी, कल मां के बारे में तुम्हारे विचार जानने को मिले। जानकर खुशी हुई कि वे मेरी मां के बारे में थे, तुम्हारी मां के बारे में नहीं। हिंदी की तरह मेरी मां खराब हो सकती हैं लेकिन अंग्रेजी की तरह तुम्हारी मां की अहमियत से मैं क्या कोई भी इंकार नहीं कर सकता। निर्मोहिणी, तुम क्यों रूठ गईं? मैंने तुम्हारे पिता को कब बुरा भला कहा था? मैं तो अपने प्रिंसीपल की शिकायत कर रहा था। कसम से एक बार भी जो पढ़ाई छोड़ने के बाद उसने किताब उठाई है। खुद अब तक जैसे का तैसा है और हमें जाने क्या समझता है! निर्दयी, हाय! तुम्हें मनाना कितना कठिन काम है। मुझे दोस्तों से उधार लेना पड़ा। अब मुझे उनको भी तुमसे दोस्ती करने की अनुमति देनी पड़ेगी। तुम्हारे चयन के अधिकार के बढ़ जाने से चिंतित रहने लगा हूँ। चुनाव आयोग की तरह तुम्हारे सख्त व्यवहार का नतीजा किसके पक्ष में जायेगा इसका पता मैं चुनाव पूर्व के शराब वितरण जैसी मशक्कत के बावजूद नहीं जान सकता। चपले, तुम चली गईं। सत्ता की तरह चली जाओगी, नेता की तरह मुझे अंदाज था। जनता जैसा मन है तुम्हारा। मैं अब हिंदी के लेखक की तरह अस्त व्यस्त रहने लगा हूँ। देश के अधकचरे पढ़े लिखे लोगों जैसा मेरा घमंड न जाने कहां चला गया है। अब तो उन्हीं के अंदाज में नये प्रेमियों को समझाने में लगा रहता हूँ। प्रेयसि, फिल्मी लेखक की तरह चोरी की कहानी को अपना कहने लगा हूँ। निर्देशक की तरह उसे आजमाने में लगा हूँ। एक दोस्त की प्रेमिका से मिलने लगा हूँ। वह भी बोर है। जान पड़ता है प्रेम हो ही जायेगा। लेखक प्रेम कहानियां लिख लिख कर बोर नहीं होते। हम लोग प्रेम कर करके। सोचा तुम्हें बता दूँ। कहीं एकदम लौट पड़ीं तो जगह की तंगी का शिकार हो सकते हैं हम लोग। तबादला खा चुके अधिकारी को कोर्ट से स्टे मिल जाने के बाद जैसे दो अधिकारी एक ही कुर्सी पर फंस जाते हैं और ठीक से खा पी नहीं पाने के कारण दुखी रहते हैं वैसे मैं तुम्हें दुखी नहीं देखना चाहता। सांवरी, फेयर क्रीम लगा कर साफ रहना। अपने नये प्रेमी का वजन कम करती रहना। उसे अपने अनुभवों को बताना। साफ साफ बताना, सरकारी बाबुओं जैसी गोलमोल भाषा का इस्तेमाल मत करना। अखबारी संवाददाता की तरह अपने कम ज्ञान पर भी पूरा भरोसा रखना। स्वास्थ्य का ध्यान रखना, साथ वाले का भी। जितना सहन कर सके उसे उतना ही दुख देना।

- संजीव

(यह गुस्ताखी माफ़ से लिया गया हैं।)

Tuesday, September 18, 2007

सरकारी धन से स्तन वृद्धि और फिर बवाल

अभी अभी मेरे एक दोस्त ने एक न्यूज़ का लिंक भेजा हैं। जरा आप भी गौर फरमाइये. न्यूज़ वेब दुनिया से ली गई है। यहाँ भी न्यूज़ पर नज़र डाली जा सकती हैं।

ऑस्ट्रेलिया में महिला नौसैनिकों को स्तनों का आकार बढ़ाने वाली सर्जरी के लिए सरकारी कोष से पैसे देने पर विवाद खड़ा हो गया है। विपक्षी लेबर पार्टी ने कहा है कि जनता से वसूले गए पैसों का इस्तेमाल इस तरह के कार्यों में करना ठीक नहीं है।हालाँकि सेना के प्रवक्ता ने इस तरह की सर्जरी को सही ठहराया है। उनका कहना है कि इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण हैं न कि महिला नौसैनिकों को 'सेक्सी' दिखाना।ब्रिगेडियर एंड्र्यू निकोलिक ने कहा कि रक्षा नीति के तहत कर्मचारियों की 'व्यापक जरूरतों' का ध्यान रखा जाता है। उन्होंने कहा कि स्तन वृद्धि की सर्जरी के लिए धन मुहैया कराना सेना की कोई सामान्य नीति नहीं है।ब्रिगेडियर निकोलिक ने कहा कि हम अपने लोगों की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक जरूरतों का ध्यान रखते हैं। वो कहते हैं कि लेकिन ये कहना ठीक नहीं होगा कि अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि वह अच्छा नहीं दिख रहा है तो सेना रुटिन के तहत स्तन वृद्धि जैसे कामों के लिए पैसे दे।सेना का बयान ऐसे समय में आया है जब एक प्लास्टिक सर्जन ने कहा कि उसने स्तन का आकार बढ़ाने के लिए दो महिला सैनिकों की सर्जरी की है और इस पर चार हजार 200 पाउंड खर्च हुए। ब्रिगेडियर नोकिलक ने कहा कि इस तरह की सर्जरी का फैसला प्राथमिक चिकित्सा जाँच के बाद ही होता है।लेकिन विपक्षी लिबरल पार्टी ने पूरे मामले पर स्पष्टीकरण माँगा है। उसका कहना है कि जनता के टैक्स के पैसों से इस तरह की सर्जरी कराना कई सवाल खड़े करता है।

सरकारी धन से स्तन वृद्धि और फिर बवाल

अभी अभी मेरे एक दोस्त ने एक न्यूज़ का लिंक भेजा हैं। जरा आप भी गौर फरमाइये. न्यूज़ वेब दुनिया से ली गई है। यहाँ भी न्यूज़ पर नज़र डाली जा सकती हैं।

ऑस्ट्रेलिया में महिला नौसैनिकों को स्तनों का आकार बढ़ाने वाली सर्जरी के लिए सरकारी कोष से पैसे देने पर विवाद खड़ा हो गया है। विपक्षी लेबर पार्टी ने कहा है कि जनता से वसूले गए पैसों का इस्तेमाल इस तरह के कार्यों में करना ठीक नहीं है।हालाँकि सेना के प्रवक्ता ने इस तरह की सर्जरी को सही ठहराया है। उनका कहना है कि इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण हैं न कि महिला नौसैनिकों को 'सेक्सी' दिखाना।ब्रिगेडियर एंड्र्यू निकोलिक ने कहा कि रक्षा नीति के तहत कर्मचारियों की 'व्यापक जरूरतों' का ध्यान रखा जाता है। उन्होंने कहा कि स्तन वृद्धि की सर्जरी के लिए धन मुहैया कराना सेना की कोई सामान्य नीति नहीं है।ब्रिगेडियर निकोलिक ने कहा कि हम अपने लोगों की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक जरूरतों का ध्यान रखते हैं। वो कहते हैं कि लेकिन ये कहना ठीक नहीं होगा कि अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि वह अच्छा नहीं दिख रहा है तो सेना रुटिन के तहत स्तन वृद्धि जैसे कामों के लिए पैसे दे।सेना का बयान ऐसे समय में आया है जब एक प्लास्टिक सर्जन ने कहा कि उसने स्तन का आकार बढ़ाने के लिए दो महिला सैनिकों की सर्जरी की है और इस पर चार हजार 200 पाउंड खर्च हुए। ब्रिगेडियर नोकिलक ने कहा कि इस तरह की सर्जरी का फैसला प्राथमिक चिकित्सा जाँच के बाद ही होता है।लेकिन विपक्षी लिबरल पार्टी ने पूरे मामले पर स्पष्टीकरण माँगा है। उसका कहना है कि जनता के टैक्स के पैसों से इस तरह की सर्जरी कराना कई सवाल खड़े करता है।

Monday, September 17, 2007

उधार का ज्ञान, अपनों का अपमान ----नरेंद्र कोहली

मैं एएसआई वालों से पूछना चाहूंगा कि क्या वे दस-पंद्रह पीढ़ी पहले के अपने पूर्वजों का प्रमाण दे सकते हैं? रामसेतु के बहाने रामायण के पात्रों को काल्पनिक बताकर केंद्र सरकार ने फिर हिंदुओं को क्लेश दिया है। मैं सोनिया गांधी की बात नहीं करता, किंतु प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तो इसी देश के हैं। वह क्यों नहीं बोलते? इस देश में तो जैसे माफिया राज चल रहा है। हिंदू की छाती पर बैठकर उसका उपहास उड़ाया जा रहा है। अर्जुन सिंह जैसे लोग हैं जो कुछ संगठनों को पैसे देकर रामकथा के खिलाफ प्रदर्शनी लगवाते हैं। क्या किसी और देश में वहां के धर्मग्रंथों के बारे में ऐसी बातें कही जा सकती हैं? पश्चिम के लोगों ने कहा कि मूसा ने तूर पर्वत पर प्रकाश देखा तो हमने भी मान लिया, कोई सवाल तो नहीं उठाया। भारत में सरकार हिंदुओं से द्वेष रखती है, हिंदूद्रोही है। हिंदुओं का जितना उत्पीड़न अब हो रहा है उतना तो औरंगजेब के जमाने में भी नहीं हुआ। एएसआई के अधिकारी अंग्रेजों का लिखा इतिहास पढ़ते हैं। उनकी जानकारी भी उतनी ही है। इसी आधार पर वे कहते हैं कि न महाभारत की लड़ाई हुई और न राम-रावण युद्ध। मैं जानना चाहता हूं कि क्या एएसआई ने कुरुक्षेत्र के नीचे खुदाई की, क्या उसने मथुरा, हस्तिनापुर और द्वारिका को तलाशने की कोशिश की। अगर नहीं की तो वे निष्कर्ष कैसे निकाल सकते हैं। इन लोगों की जानकारी की सीमा केवल पिछले दो हजार साल की है। वहीं तक उनका ज्ञान है। जो उन्होंने पढ़ा नहीं, भारत में उससे पहले घटी घटनाओं को वे तत्काल अपने सीमित ज्ञान के बल पर अमान्य कर देते हैं। जिनके हाथ में पुरातत्व और इतिहास है वे विदेशियों द्वारा दी गई जानकारी के आसरे हैं। बिल्कुल ऐसा ही मिस्त्र में हुआ जहां के पिरामिडों के निर्माण की तकनीकी कुशलता स्वीकार करने में पश्चिमी विद्वानों को दिक्कतें आ रही थीं। वे हमेशा यही कहते रहे कि गुलामों की पीठ पर कोड़े मार कर इतनी ऊंचाई तक पत्थर पहुंचाए गए। यही अब हमारे साथ हो रहा है। हां, यहां अज्ञानता में नहीं, दुष्टता में हमारे प्रतीकों का मजाक उड़ाया जा रहा है। मैं अभी आस्था की नहीं, केवल भौतिक प्रमाणों की बात कर रहा हूं। जहां राम ने शिव की आराधना की वह रामेश्वरम तो आज भी है। वहां पहले जो रियासत थी उसका नाम ही रामनाड यानी राम की भूमि था। वह जिला आज भी इसी नाम का है। वहीं से आगे समुद्र में धनुषकोटि नामक रेलवे स्टेशन था

उधार का ज्ञान, अपनों का अपमान ----नरेंद्र कोहली

मैं एएसआई वालों से पूछना चाहूंगा कि क्या वे दस-पंद्रह पीढ़ी पहले के अपने पूर्वजों का प्रमाण दे सकते हैं? रामसेतु के बहाने रामायण के पात्रों को काल्पनिक बताकर केंद्र सरकार ने फिर हिंदुओं को क्लेश दिया है। मैं सोनिया गांधी की बात नहीं करता, किंतु प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तो इसी देश के हैं। वह क्यों नहीं बोलते? इस देश में तो जैसे माफिया राज चल रहा है। हिंदू की छाती पर बैठकर उसका उपहास उड़ाया जा रहा है। अर्जुन सिंह जैसे लोग हैं जो कुछ संगठनों को पैसे देकर रामकथा के खिलाफ प्रदर्शनी लगवाते हैं। क्या किसी और देश में वहां के धर्मग्रंथों के बारे में ऐसी बातें कही जा सकती हैं? पश्चिम के लोगों ने कहा कि मूसा ने तूर पर्वत पर प्रकाश देखा तो हमने भी मान लिया, कोई सवाल तो नहीं उठाया। भारत में सरकार हिंदुओं से द्वेष रखती है, हिंदूद्रोही है। हिंदुओं का जितना उत्पीड़न अब हो रहा है उतना तो औरंगजेब के जमाने में भी नहीं हुआ। एएसआई के अधिकारी अंग्रेजों का लिखा इतिहास पढ़ते हैं। उनकी जानकारी भी उतनी ही है। इसी आधार पर वे कहते हैं कि न महाभारत की लड़ाई हुई और न राम-रावण युद्ध। मैं जानना चाहता हूं कि क्या एएसआई ने कुरुक्षेत्र के नीचे खुदाई की, क्या उसने मथुरा, हस्तिनापुर और द्वारिका को तलाशने की कोशिश की। अगर नहीं की तो वे निष्कर्ष कैसे निकाल सकते हैं। इन लोगों की जानकारी की सीमा केवल पिछले दो हजार साल की है। वहीं तक उनका ज्ञान है। जो उन्होंने पढ़ा नहीं, भारत में उससे पहले घटी घटनाओं को वे तत्काल अपने सीमित ज्ञान के बल पर अमान्य कर देते हैं। जिनके हाथ में पुरातत्व और इतिहास है वे विदेशियों द्वारा दी गई जानकारी के आसरे हैं। बिल्कुल ऐसा ही मिस्त्र में हुआ जहां के पिरामिडों के निर्माण की तकनीकी कुशलता स्वीकार करने में पश्चिमी विद्वानों को दिक्कतें आ रही थीं। वे हमेशा यही कहते रहे कि गुलामों की पीठ पर कोड़े मार कर इतनी ऊंचाई तक पत्थर पहुंचाए गए। यही अब हमारे साथ हो रहा है। हां, यहां अज्ञानता में नहीं, दुष्टता में हमारे प्रतीकों का मजाक उड़ाया जा रहा है। मैं अभी आस्था की नहीं, केवल भौतिक प्रमाणों की बात कर रहा हूं। जहां राम ने शिव की आराधना की वह रामेश्वरम तो आज भी है। वहां पहले जो रियासत थी उसका नाम ही रामनाड यानी राम की भूमि था। वह जिला आज भी इसी नाम का है। वहीं से आगे समुद्र में धनुषकोटि नामक रेलवे स्टेशन था

दो नव पत्रकारों की जरुरत है

वाह मनी ब्‍लॉग को दो ऐसे नव पत्रकारों की जरुरत है जो बिजनैस समाचारों की शुरूआती समझ बूझ रखते हों। अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद और कंप्‍यूटर पर कम्‍पोजिंग एवं इंटरनेट की जानकारी जरुरी। शेयर बाजार लाइव के साथ कार्य करने की क्षमता। मुंबई में नियुक्ति के साथ बैचलर आवास सुविधा। संपर्क ईमेल : kamaljalaj@gmail.com

Sunday, September 16, 2007

नासा की तस्वीरें राम सेतु का सबूत नहीं

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का ताजा बयान राम सेतु के समर्थकों को थोड़ा परेशान कर सकता है। नासा ने कहा है कि अंतरिक्ष से खींची गईं पॉक स्ट्रेट की तस्वीरें राम सेतु के अस्तित्व को प्रमाणित नहीं करतीं। पॉक स्ट्रेट ही वह जगह है, जहां राम सेतु होने का दावा किया जाता रहा है। नासा के प्रवक्ता माइकल ब्राउकस के हमारे अंतरिक्ष यात्रियों ने पॉक स्ट्रेट की तस्वीरें खींची हैं। लेकिन इनसे यह पता नहीं लगाया जा सकता कि वहां मौजूद उथली चट्टानों की चेन कितनी पुरानी है। उसकी भूगर्भीय स्थिति क्या है। ये किस चीज की बनी हैं और क्या इन्हें इंसानों ने बनाया है। इसलिए इन दावों का कोई आधार नहीं है। नासा के इस स्पष्टीकरण से राम सेतु को तोड़ने के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे बीजेपी और दूसरे हिंदुत्ववादियों को झटका लग सकता है। हालांकि यह बयान केंद्र सरकार को थोड़ी राहत पहुंचा सकता है, जो आजकल राम सेतु पर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामों को लेकर आलोचनाएं झेल रही है।
एक बार मंदिर के मुद्दे को भुनाने की कोशिश की गइ अब सेतु को। न जाने देश को किस आग में झोंकने की कोशिश की जा रही है।

Thursday, September 13, 2007

ना जाने वो मुझसे क्यों खफा हो गए

जिनसे मैंने दोस्ती की इबादत सीखा
ना जाने वो मुझसे क्यों खफा हो गए
जाते जाते मैं उन्हें मना नही सका
और वो मुझे माफ़ कर ना सके

ना जाने वो मुझसे क्यों खफा हो गए

जिनसे मैंने दोस्ती की इबादत सीखा
ना जाने वो मुझसे क्यों खफा हो गए
जाते जाते मैं उन्हें मना नही सका
और वो मुझे माफ़ कर ना सके

Friday, September 7, 2007

सपनों के टूटे कांच चुभते हैं दिल में

जब सपने टूटते हैं तो तकलीफ होती है
सपनों के टूटे कांच चुभते हैं दिल में
लेकिन हर बार की तरह हम सपने देखते हैं
और महसूस करते हैं उस चुभन को
मैने भी हर बार यही किया
और जगा दिया गया हर बार सपनों के टूटने से पहले
लेकिन क्‍या मुझे कोई हक नहीं है अपने सपनों को एक नाम देने का
नहीं मुझे कोई हक नहीं है
मेरे सपनों की नींव किसी की सच्‍चाई पर नहीं हो सकती है
हर बार मैं गलती करता हूं सपने देखना का
लेकिन अब नही
हां मुझे कोई हक नहीं है सपने देखने को

सपनों के टूटे कांच चुभते हैं दिल में

जब सपने टूटते हैं तो तकलीफ होती है
सपनों के टूटे कांच चुभते हैं दिल में
लेकिन हर बार की तरह हम सपने देखते हैं
और महसूस करते हैं उस चुभन को
मैने भी हर बार यही किया
और जगा दिया गया हर बार सपनों के टूटने से पहले
लेकिन क्‍या मुझे कोई हक नहीं है अपने सपनों को एक नाम देने का
नहीं मुझे कोई हक नहीं है
मेरे सपनों की नींव किसी की सच्‍चाई पर नहीं हो सकती है
हर बार मैं गलती करता हूं सपने देखना का
लेकिन अब नही
हां मुझे कोई हक नहीं है सपने देखने को

Thursday, September 6, 2007

बैग के दो नए चैनल

खबर हैं कि बैग मध्य नवंबर से दो चैनल लाने जा रहा हैं। एक चैनल समाचार चैनल होगा जिसका नाम न्यूज़ २४ होगा। जबकि दूसरा चैनल मनोरंजन चैनल होगा जिसका नाम ई २४ होगा।

Wednesday, September 5, 2007

सभ्य समाज

कहने को तो हम सभ्य समाज में रह रहें है। और बात-बात पर ग्लोबलाइजेशन और तरक्की की बातें करते हैं, लेकिन जालंधर में हुई एक घटना से तस्वीर का एक दूसरा ही पहलू नजर आता है। जहां एक मासूम को घोड़े से बांधकर खींचा गया। जालंधर पठान कोट रोड के ही पास के एक गांव में रहने वाले 10 साल के इतवारी के माता-पिता ने बताया कि हम गांव के नंबरदार लखबीर सिंह के खेत को जोत रहे थे। उस समय इतवारी भी हमारे साथ था तभी उस खेत में गांव के ही गुर्जर समुदाय के एक व्यक्ति का घोडा़ आ गया और चरने लगा। इसी कारण इतवारी उस घोडे़ को बाहर करने लगा। इसी बात से नाराज़ होकर उस गुर्जर समुदाय के व्यक्ति ने इतवारी को घोड़े के पीछे रस्सी से बांधकर खींचने लगा। बच्चे की आवाज सुन उसकी मां सोमवती वहां पहुंच गई और उसे छुड़ा लिया पर तब तक वह काफी बुरी तरह से घायल हो चुका था। घायल अवस्था में उसे हॉस्पीटल में भर्ती कराया गया। बाद में पुलिस को सूचित कर दिया गया। पुलिस के मुताबिक, दोनों पक्ष इस मामले पर आपस में सुलह कर चुके हैं।

सभ्य समाज

कहने को तो हम सभ्य समाज में रह रहें है। और बात-बात पर ग्लोबलाइजेशन और तरक्की की बातें करते हैं, लेकिन जालंधर में हुई एक घटना से तस्वीर का एक दूसरा ही पहलू नजर आता है। जहां एक मासूम को घोड़े से बांधकर खींचा गया। जालंधर पठान कोट रोड के ही पास के एक गांव में रहने वाले 10 साल के इतवारी के माता-पिता ने बताया कि हम गांव के नंबरदार लखबीर सिंह के खेत को जोत रहे थे। उस समय इतवारी भी हमारे साथ था तभी उस खेत में गांव के ही गुर्जर समुदाय के एक व्यक्ति का घोडा़ आ गया और चरने लगा। इसी कारण इतवारी उस घोडे़ को बाहर करने लगा। इसी बात से नाराज़ होकर उस गुर्जर समुदाय के व्यक्ति ने इतवारी को घोड़े के पीछे रस्सी से बांधकर खींचने लगा। बच्चे की आवाज सुन उसकी मां सोमवती वहां पहुंच गई और उसे छुड़ा लिया पर तब तक वह काफी बुरी तरह से घायल हो चुका था। घायल अवस्था में उसे हॉस्पीटल में भर्ती कराया गया। बाद में पुलिस को सूचित कर दिया गया। पुलिस के मुताबिक, दोनों पक्ष इस मामले पर आपस में सुलह कर चुके हैं।

पुण्य प्रसून वाजपेयी ने आज तक छोड़ा

ख़बर हैं कि पुण्य प्रसून वाजपेयी ने आज तक को छोड़कर सहारा टीवी से जुड़ गए हैं। पिछले कई दिनों से हल्ला था कि वाजपेयी जी आज तक छोड़कर और कहीँ जा सकते हैं। वाजपेयी जी साथ आज तक से कई लोगों ने सहारा का सहारा लिया हैं।

Tuesday, September 4, 2007

अजित भट्टाचार्य को छह महीने की जेल की सज़ा

पॉयनियर के तत्कालीन संपादक अजित भट्टाचार्य, 'स्वतंत्र भारत' के तत्कालीन संपादक घनश्याम पंकज और प्रिंटर-प्रकाशक संजीव कंवर और दीपक मुखर्जी को भी छह-छह महीने की जेल की सज़ा सुनाई गई है। जबकी पॉनियर अख़बार के तत्कालीन रिपोर्टर रमन कृपाल को एक वर्ष सश्रम कारावास और 5500 रुपए जुर्माना भरने की सज़ा सुनाई गई। यह खबर आज ही बीबीसी में आई हैं। खबर में कहा गया हैं कि लखनऊ की एक अदालत ने एक प्रशासनिक अधिकारी का 'फ़र्ज़ी और छवि को नुक़सान पहुँचाने वाला इंटरव्यू' छापने के लिए तीन वरिष्ठ पत्रकारों को सज़ा सुनाई हैं। ज्यादा जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।http://www.bbc.co.uk/hindi/regionalnews/story/2007/09/070904_jpurnalists_sentence.shtml

ग्लैमर की दुनिया की सच्चाई


1990 दशक के शुरुआती दिनों में लेडी श्रीराम कॉलेज की गीतांजलि नागपाल पूर्व मिस यूनिवर्स सुष्मिता सेन के साथ रैम्प पर कैटवॉक किया करती थीं लेकिन आज उनकी हालत खुद ब खुद ग्लैमर की दुनिया की स्याह कहानी बयां कर रही है। गीतांजलि एक आर्मी अफसर की बेटी हैं, जो पूरी दुनिया में छा जाना चाहती थीं। पर रविवार के दिन उनकी जिंदगी का दूसरा पहलू देखने को मिला। आज वह मंदिर की सीढ़ियों , पार्कों और सड़कों के किनारे रात गुजारने को बेबस है। मांउट कारमेल स्कूल की यह पूर्व छात्रा एक घर में मैड का काम करने के साथ अपनी रातें कई लोगों के साथ गुजार चुकी है सिर्फ और सिर्फ अपनी ड्रग्स की लत को शांत करने के लिए। और अब अपना समय फुटपाथों पर बिता रही हैं। गीतांजलि का पति जर्मनी में उनके बच्चे के साथ रह रहा है और अभी भी उनका इंतजार कर रहा है। जब मेट्रो नाओ ने बातचीत के दौरान उसका फोटो लेने को कहा तो एक फेमस मॉडल की तरह उन्होंने अपनी टी-शर्ट को कंधे तक नीचे कर लिया और एक खूबसूरत पोज में खड़ी हो गईं। सोमवार के दिन स्टोरी छपने के बाद से गीतांजलि फिर से लाइट में आ गईं। बाद में पुलिस उन्हें पकड़कर थाने ले गई और फिर क्वॉलिस गाड़ी से विमहंस अस्पताल भेज दिया जहां दिमागी बीमारों का इलाज किया जाता है। साइकाइट्रिस्टों ने चैकअप के बाद बताया कि वह क्वॉलिस गाड़ी से बाहर नहीं उतरना चाह रही थीं और जो लोग उसका पीछा कर रहे थे उन्हें रास्ते भर गालियां देती रहीं। साथ ही उन्होंने शिकायत की कि उसके पूरे शरीर पर गंदगी की वजह से रेशेज हो रहे हैं और वह चिढ़चिढ़े स्वभाव की हो गई हैं। गीतांजलि की इस बदहाली के लिए आप किसे जिम्मेदार मानते हैं खुद गीतांजलि को, समाज को या फिर फैशन इंडस्ट्री को ? क्या गीतांजलि हाई क्लास लड़कियों की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं का एक बिगड़ा रूप है ?
(नवभारत टाइम्स से साभार) (पूरी खबर पढ़ें : http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/2336436.cms)

ग्लैमर की दुनिया की सच्चाई


1990 दशक के शुरुआती दिनों में लेडी श्रीराम कॉलेज की गीतांजलि नागपाल पूर्व मिस यूनिवर्स सुष्मिता सेन के साथ रैम्प पर कैटवॉक किया करती थीं लेकिन आज उनकी हालत खुद ब खुद ग्लैमर की दुनिया की स्याह कहानी बयां कर रही है। गीतांजलि एक आर्मी अफसर की बेटी हैं, जो पूरी दुनिया में छा जाना चाहती थीं। पर रविवार के दिन उनकी जिंदगी का दूसरा पहलू देखने को मिला। आज वह मंदिर की सीढ़ियों , पार्कों और सड़कों के किनारे रात गुजारने को बेबस है। मांउट कारमेल स्कूल की यह पूर्व छात्रा एक घर में मैड का काम करने के साथ अपनी रातें कई लोगों के साथ गुजार चुकी है सिर्फ और सिर्फ अपनी ड्रग्स की लत को शांत करने के लिए। और अब अपना समय फुटपाथों पर बिता रही हैं। गीतांजलि का पति जर्मनी में उनके बच्चे के साथ रह रहा है और अभी भी उनका इंतजार कर रहा है। जब मेट्रो नाओ ने बातचीत के दौरान उसका फोटो लेने को कहा तो एक फेमस मॉडल की तरह उन्होंने अपनी टी-शर्ट को कंधे तक नीचे कर लिया और एक खूबसूरत पोज में खड़ी हो गईं। सोमवार के दिन स्टोरी छपने के बाद से गीतांजलि फिर से लाइट में आ गईं। बाद में पुलिस उन्हें पकड़कर थाने ले गई और फिर क्वॉलिस गाड़ी से विमहंस अस्पताल भेज दिया जहां दिमागी बीमारों का इलाज किया जाता है। साइकाइट्रिस्टों ने चैकअप के बाद बताया कि वह क्वॉलिस गाड़ी से बाहर नहीं उतरना चाह रही थीं और जो लोग उसका पीछा कर रहे थे उन्हें रास्ते भर गालियां देती रहीं। साथ ही उन्होंने शिकायत की कि उसके पूरे शरीर पर गंदगी की वजह से रेशेज हो रहे हैं और वह चिढ़चिढ़े स्वभाव की हो गई हैं। गीतांजलि की इस बदहाली के लिए आप किसे जिम्मेदार मानते हैं खुद गीतांजलि को, समाज को या फिर फैशन इंडस्ट्री को ? क्या गीतांजलि हाई क्लास लड़कियों की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं का एक बिगड़ा रूप है ?
(नवभारत टाइम्स से साभार) (पूरी खबर पढ़ें : http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/2336436.cms)

लुधियाना में भास्कर समूह का अखबार

पिछले दिनों भडास पर एक खबर पड़ने को मिली। सो सोच रहा हूँ क्यों नहीं यह आप लोगों के साथ बाँट ली जाये। मुझे उम्मीद हैं कि भडास के मेरे साथी मुझे इस बात के लिए माफ कर देंगे कि मैं यह खबर उन्हीं के शब्दों में उपयोग कर रहा हूँ। भडास ने लिखा हैं कि हिंदी के सीनियर जर्नलिस्ट राजीव सिंह ने भास्कर में रेजीडेंट एडीटर पद पर ज्वाइन किया है। वे लुधियाना में भास्कर समूह का अखबार लांच करेंगे। फिलहाल में अपनी नई टीम बनाने में जुटे हुए हैं। अगर कोई पत्रकार उनसे संपर्क करना चाहता है, उनकी टीम का पार्ट बनना चाहता है, उन्हें बधाई देना चाहता है तो निम्न फोन नंबरों पर वे उपलब्ध हैं। साथ ही, इस ई-मेल आईडी पर मेल किया जा सकता है

खबर को विस्तृत में पड़ने के लिए यहाँ http://bhadas.blogspot.com/ क्लिक करें।


098100120640
09878452567
rajiiv.puru@gmail.com

rajiivsingh@yahoo.com

चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम

चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम
ना मैं तुमसे कोई उम्‍मीद रखूं दिल नवाजी की
न तुम मेरी तरफ देखो गलत अंदाज नजरो
दिल की धड़कन लड़खड़ाएं तेरी बातों पर
न जा‍हिर हो तुम्‍हारी कशमकश का राज नजरों से
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम
तुम्‍हें भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से
मुझे भी लोग ये कहते हैं कि जलवे पराए
मेरे हमराह की रुसवाइयां है मेरे माजी की
तुम्‍हारे साथ भी गुजरी हुई यादों के साएं
इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम
ताल्‍लुफ रोग हो जाए तो उसे भूलना बेहतर
ताल्‍लुक बोझ बन जाए उसे तोड़ना अच्‍छा
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो
एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्‍छा
चलो इक बार फिर से अजनबी बन
(साहिर लुधियानवी)

चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम

चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम
ना मैं तुमसे कोई उम्‍मीद रखूं दिल नवाजी की
न तुम मेरी तरफ देखो गलत अंदाज नजरो
दिल की धड़कन लड़खड़ाएं तेरी बातों पर
न जा‍हिर हो तुम्‍हारी कशमकश का राज नजरों से
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम
तुम्‍हें भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से
मुझे भी लोग ये कहते हैं कि जलवे पराए
मेरे हमराह की रुसवाइयां है मेरे माजी की
तुम्‍हारे साथ भी गुजरी हुई यादों के साएं
इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम
ताल्‍लुफ रोग हो जाए तो उसे भूलना बेहतर
ताल्‍लुक बोझ बन जाए उसे तोड़ना अच्‍छा
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो
एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्‍छा
चलो इक बार फिर से अजनबी बन
(साहिर लुधियानवी)

Monday, September 3, 2007

कब खुलेगी सरकार की नींद

बिहार में इस बार भी बाढ़ ने जहां छह लाख परिवारों के घर उजाड़े वहीं, 545 लोग डूब गये तथा उफनाती नदियों की वेगवती धारा में 65 की जान नाव पलटने से चली गयी। उक्त आंकड़ा बरामद शवों के आधार पर है। जबकि अभी सैकड़ों लोगों के शव नहीं मिले है। सरकारी रिकार्ड में सात साल के बाद बाढ़ में लापता हुए लोगों को मृत मानता है। बाढ़ के पानी ने खेतों को भी बर्बाद किया तथा सार्वजनिक संपत्तिको लीला। 17 लाख हेक्टेयर में खड़ी फसल नष्ट हो गयी है, यानी राज्य के एक तिहाई भू-भाग की किसानी कमर टूट चुकी है। कृषि इनपुट सब्सिडी के जरिये सरकार ने इसे दुरुस्त करने की ठानी है। इस मद में ही करीब चार-पांच सौ करोड़ खर्च होंगे। सार्वजनिक संपत्तियानी सड़क, पुल, पुलिया, स्कूल, अस्पताल, पेयजल स्रोत आदि की क्षति तो बेइंतहां हुई है। करीब 642 करोड़। इसमें बाढ़ से सर्वाधिक तबाह मुजफ्फरपुर, पूर्वी चम्पारण, समस्तीपुर सरीखे जिलों का ब्योरा शामिल नहीं हैं। इन्हें शामिल करने पर जोड़ हजार करोड़ के पार जाएगा। यह सब उस सवाल का इकट्ठा जवाब है कि बिहार क्यों पिछड़ा है, यहां की आधारभूत संरचना क्यों छिन्न-भिन्न हो जाती है! हालात को पटरी पर लाने की सरकारी कोशिशों पर 'पानी', कैसे सालाना पानी फेर देता है। प्रभावित इलाकों में जनजीवन को बचाने, पटरी पर लाने में ही सरकारी खजाने पर करीब हजार करोड़ से अधिक का भार पड़ने वाला है। करोड़ों की इमदाद तो बंट चुकी है।

कब खुलेगी सरकार की नींद

बिहार में इस बार भी बाढ़ ने जहां छह लाख परिवारों के घर उजाड़े वहीं, 545 लोग डूब गये तथा उफनाती नदियों की वेगवती धारा में 65 की जान नाव पलटने से चली गयी। उक्त आंकड़ा बरामद शवों के आधार पर है। जबकि अभी सैकड़ों लोगों के शव नहीं मिले है। सरकारी रिकार्ड में सात साल के बाद बाढ़ में लापता हुए लोगों को मृत मानता है। बाढ़ के पानी ने खेतों को भी बर्बाद किया तथा सार्वजनिक संपत्तिको लीला। 17 लाख हेक्टेयर में खड़ी फसल नष्ट हो गयी है, यानी राज्य के एक तिहाई भू-भाग की किसानी कमर टूट चुकी है। कृषि इनपुट सब्सिडी के जरिये सरकार ने इसे दुरुस्त करने की ठानी है। इस मद में ही करीब चार-पांच सौ करोड़ खर्च होंगे। सार्वजनिक संपत्तियानी सड़क, पुल, पुलिया, स्कूल, अस्पताल, पेयजल स्रोत आदि की क्षति तो बेइंतहां हुई है। करीब 642 करोड़। इसमें बाढ़ से सर्वाधिक तबाह मुजफ्फरपुर, पूर्वी चम्पारण, समस्तीपुर सरीखे जिलों का ब्योरा शामिल नहीं हैं। इन्हें शामिल करने पर जोड़ हजार करोड़ के पार जाएगा। यह सब उस सवाल का इकट्ठा जवाब है कि बिहार क्यों पिछड़ा है, यहां की आधारभूत संरचना क्यों छिन्न-भिन्न हो जाती है! हालात को पटरी पर लाने की सरकारी कोशिशों पर 'पानी', कैसे सालाना पानी फेर देता है। प्रभावित इलाकों में जनजीवन को बचाने, पटरी पर लाने में ही सरकारी खजाने पर करीब हजार करोड़ से अधिक का भार पड़ने वाला है। करोड़ों की इमदाद तो बंट चुकी है।

अपनी लगाइ आग में जल रहा है पाकिस्तान

इस्लामाबाद । पाकिस्तान में हुए दो बम विस्फोटों में कम से कम 15 व्यक्ति के मारे जाने तथा कई के घायल होने की खबर है। पहला विस्फोट रावलपिंडी में सरकारी कर्मचारियों को लेकर जा रही एक बस में हुआ जबकि दूसरा राजधानी स्थित एक व्यावसायिक केंद्र में हुआ। सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल वहीद अरशद ने बताया कि बस में सरकारी कर्मचारी सवार थे। इस हादसे में कम से कम दस लोग मारे गए। दूसरा बम विस्फोट रावलपिंडी के एक व्यावसायिक जिले में हुआ जिसमें कम से कम पांच व्यक्ति मारे गए। अफजल के अनुसार मृतकों और घायलों को दो अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। पाकिस्तान में पिछले दिनों बम विस्फोट की कुछ घटनाएं हुई हैं। अधिकारियों ने इसके लिए तालिबान समर्थकों और अलकायदा तत्वों को जिम्मेदार ठहराया है।

अपनी लगाइ आग में जल रहा है पाकिस्तान

इस्लामाबाद । पाकिस्तान में हुए दो बम विस्फोटों में कम से कम 15 व्यक्ति के मारे जाने तथा कई के घायल होने की खबर है। पहला विस्फोट रावलपिंडी में सरकारी कर्मचारियों को लेकर जा रही एक बस में हुआ जबकि दूसरा राजधानी स्थित एक व्यावसायिक केंद्र में हुआ। सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल वहीद अरशद ने बताया कि बस में सरकारी कर्मचारी सवार थे। इस हादसे में कम से कम दस लोग मारे गए। दूसरा बम विस्फोट रावलपिंडी के एक व्यावसायिक जिले में हुआ जिसमें कम से कम पांच व्यक्ति मारे गए। अफजल के अनुसार मृतकों और घायलों को दो अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। पाकिस्तान में पिछले दिनों बम विस्फोट की कुछ घटनाएं हुई हैं। अधिकारियों ने इसके लिए तालिबान समर्थकों और अलकायदा तत्वों को जिम्मेदार ठहराया है।

चीन में भी लड़कियों की कमी


बीजिंग । चीन में भी लड़कों के फेर में पड़कर मादा भ्रूण को खत्म कराने के प्रचलन का दुष्प्रभाव अब देखने को मिल रहा है। यहां के कुछ शहरों में लड़कियों की संख्या जबर्दस्त तरीके से कम हो गई है। सरकारी संवाद समिति शिन्हुआ ने बताया कि देश भर में इस समय सौ लड़कियों पर 119 लड़के हैं। राजधानी बीजिंग में भी यह समस्या धीरे-धीरे विकराल होती जा रही है। इसका कारण पारंपरिक रूप से लड़कों की चाहत और केवल एक ही संतान पैदा करने की सरकारी नीति बताई जा रही है। भ्रूण के लिंग का पता लगाने और मादा भ्रूण को खत्म करने के लिए भावी माता-पिता किसी भी सूरत में अल्ट्रासाउंड कराते हैं जबकि चीन में यह कानूनन अपराध है। शोधकर्ताओं ने आगाह किया है कि इन प्रचलनों से लिंग अनुपात बुरी तरह गड़बड़ा जाएगा और एक समय ऐसा भी आएगा जब लाखों पुरुष विवाह से वंचित रह जाएंगे। ऐसी सूरत में असामाजिक और हिंसक घटनाओं में इजाफा होगा । चीन में सबसे बुरा हाल जियांग्सू प्रांत के लियानयुनगांग में है। वहां सौ लड़कियों पर 136 लड़के हैं। इसका अर्थ है कि यहां आठ लड़कों पर पांच लड़कियां हैं। आगे जाकर बड़ी संख्या में लड़कों को कुंवारा रहना पड़ सकता है ।

चीन में भी लड़कियों की कमी


बीजिंग । चीन में भी लड़कों के फेर में पड़कर मादा भ्रूण को खत्म कराने के प्रचलन का दुष्प्रभाव अब देखने को मिल रहा है। यहां के कुछ शहरों में लड़कियों की संख्या जबर्दस्त तरीके से कम हो गई है। सरकारी संवाद समिति शिन्हुआ ने बताया कि देश भर में इस समय सौ लड़कियों पर 119 लड़के हैं। राजधानी बीजिंग में भी यह समस्या धीरे-धीरे विकराल होती जा रही है। इसका कारण पारंपरिक रूप से लड़कों की चाहत और केवल एक ही संतान पैदा करने की सरकारी नीति बताई जा रही है। भ्रूण के लिंग का पता लगाने और मादा भ्रूण को खत्म करने के लिए भावी माता-पिता किसी भी सूरत में अल्ट्रासाउंड कराते हैं जबकि चीन में यह कानूनन अपराध है। शोधकर्ताओं ने आगाह किया है कि इन प्रचलनों से लिंग अनुपात बुरी तरह गड़बड़ा जाएगा और एक समय ऐसा भी आएगा जब लाखों पुरुष विवाह से वंचित रह जाएंगे। ऐसी सूरत में असामाजिक और हिंसक घटनाओं में इजाफा होगा । चीन में सबसे बुरा हाल जियांग्सू प्रांत के लियानयुनगांग में है। वहां सौ लड़कियों पर 136 लड़के हैं। इसका अर्थ है कि यहां आठ लड़कों पर पांच लड़कियां हैं। आगे जाकर बड़ी संख्या में लड़कों को कुंवारा रहना पड़ सकता है ।

Sunday, September 2, 2007

तेरी खामोशी को मैं एक शब्‍द देना चाहता हूँ

तेरी खामोशी को मैं एक शब्‍द देना चाहता हूँ
तुझे हसंता और चहकता देखना चाहता हूँ
ज़ालिम जमाने से तुझे महफूज रखना चाहता हूँ
तेरी खामोशी से मुझे आज भी डर लगता
बस तू अपनी खामोशी को एक शब्‍द देगे

तेरी खामोशी को मैं एक शब्‍द देना चाहता हूँ

तेरी खामोशी को मैं एक शब्‍द देना चाहता हूँ
तुझे हसंता और चहकता देखना चाहता हूँ
ज़ालिम जमाने से तुझे महफूज रखना चाहता हूँ
तेरी खामोशी से मुझे आज भी डर लगता
बस तू अपनी खामोशी को एक शब्‍द देगे

तान्या

तान्या

है अधिकार मुझको भी जन्म लेने का,
अपनी कोंख में मुझको पनाह दे दो मां।
सृष्टि के रचयिता की इस अनुपम कृति की,
मैं भी बन सकूं साक्षी वो राह दे दो मां।।

पिता की थाम कर ऊंगला मैं चलना सीखूंगी,
बैठ बाबा के कांधे पर देखूंगी जहां सारा।
सजा कर भाई की सूनी कलाई रेशम के धागे से,
दादी मां की आंखों का बन जाऊं मैं तारा।।

रिश्तों के माधुर्य़ से पुलकित हो जो बगिया,
अपने मातृत्व की वही ठंडी छांव दे दो मा।।

हैं अरमान कुछ मेरे,सजाए स्वप्न नयनों ने,
मगर डर है कहीं ये ख्वाब न रह जाएं अधूरे।
जो लोग कहते हैं नहीं मैं वंश तेरी मां,
टिकी है मुझ पर अब उनकी विषभरी नजरें।।

बना लो अंश मुझको अपने कोंमल ह्दय का
अपनी तान्या को बस इतना अधिकार दे दो मां।।

तान्या

तान्या

है अधिकार मुझको भी जन्म लेने का,
अपनी कोंख में मुझको पनाह दे दो मां।
सृष्टि के रचयिता की इस अनुपम कृति की,
मैं भी बन सकूं साक्षी वो राह दे दो मां।।

पिता की थाम कर ऊंगला मैं चलना सीखूंगी,
बैठ बाबा के कांधे पर देखूंगी जहां सारा।
सजा कर भाई की सूनी कलाई रेशम के धागे से,
दादी मां की आंखों का बन जाऊं मैं तारा।।

रिश्तों के माधुर्य़ से पुलकित हो जो बगिया,
अपने मातृत्व की वही ठंडी छांव दे दो मा।।

हैं अरमान कुछ मेरे,सजाए स्वप्न नयनों ने,
मगर डर है कहीं ये ख्वाब न रह जाएं अधूरे।
जो लोग कहते हैं नहीं मैं वंश तेरी मां,
टिकी है मुझ पर अब उनकी विषभरी नजरें।।

बना लो अंश मुझको अपने कोंमल ह्दय का
अपनी तान्या को बस इतना अधिकार दे दो मां।।

Friday, August 31, 2007

यहाँ क्लिक करें और........

देश में दिनोंदिन ब्लॉग की बढ़ती तादाद को देखते हुए वेबदुनिया ने एक नया प्रयोग शुरू किया हैं। इसके तहत हर शुक्रवार को ब्लॉग-चर्चा के तहत देशभर के ब्लॉग्स और ब्लॉगर्स की जानकारी दी जाएगी। वेब दुनिया ने इसके लिए शुक्रवार का दिन चुना हैं। इस बार वेबदुनिया ने चर्चा का विषय चुना है- यूनुस खान का ब्लॉग ‘रेडियोवाणी’। अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें
http://hindi.webdunia.com/samayik/article/article/0708/30/1070830081_1.htm

Wednesday, August 29, 2007

हम गुलाम ही अच्छे थे

कभी कभी मुझे लगता हैं कि इस देश का कुछ भी नहीं हो सकता हैं। हम गुलाम ही अच्छे थे। क्या कहेंगे आप इसपर।

हम गुलाम ही अच्छे थे

कभी कभी मुझे लगता हैं कि इस देश का कुछ भी नहीं हो सकता हैं। हम गुलाम ही अच्छे थे। क्या कहेंगे आप इसपर।