Wednesday, October 31, 2007

लीजिये एक और चैनल

लीजिये एक और चैनल देखने की आदत डाल लीजिये। बारह नवम्बर की रात ९ बजे से एक और चैनल आने वाला है. यह चैनल पीटर मुखर्जी का 9X होगा...मुम्बई में इन दिनों बड़े पैमाने पर इसका प्रचार देखने को मिल रहा है. चैनल के सभी प्रोग्राम बन चुके हैं। 9X के अलावा कम्पनी 9XM नाम का एक और मुयुजिक चैनल लाने वाली है. तीसरा चैनल अंग्रेजी का न्यूज़ चॅनल होगा।

देश मे आज २०० से अधिक चैनल हैं. चैनलों के इस हुजूम में इस नए चैनल का भी स्वागत हैं. १९९१ में देश में केवल ६ ही चैनल थे.

Friday, October 26, 2007

सुरक्षित सेक्स और महाराष्ट्र

कल एक दोस्त ने एक न्यूज़ भेजी तो आज उसे आपका पन्ना में चेप रहा हूँ. खबर यह है कि महाराष्ट्र में सुरक्षित सेक्स करने के मामले यहाँ के मर्द महिलाओं की तुलना में मीलों आगे हैं। महाराष्ट्र में किए गए सर्वे से जो तथ्य सामने आए हैं उसके मुताबिक केवल 33 प्रतिशत महिलाओं को पता है कि पहली बार सेक्स करने से भी वह गर्भवती हो सकती हैं , जबकि पुरुषों में यह आंकड़ा 46.2 फीसदी है। सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि अविवाहित महिलाओं में से केवल 55.4 फीसदी के कॉन्डम के बारे में सुना है , जबकि 95 प्रतिशत पुरुष इससे परिचित हैं। यही नहीं जितनी महिलाएं कॉन्डम के बारे में जानती हैं उनमें से केवल 18 प्रतिशत ही इसका सही उपयोग जानती हैं। विवाहित महिलाओं के मामले में भी यह आंकड़ा कोई खास उत्साह बढ़ाने वाला नहीं है। 39 फीसदी विवाहित महिलाएं ही यह जानती हैं कि सेक्स के दौरान इसके प्रयोग से गर्भवती होने से बचा जा सकता है। इनमें से केवल 9 फीसदी महिलाओं ने पहली बार गर्भवती होने से बचने के लिए कॉन्डम का इस्तेमाल किया है। इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज के सर्वे के मुताबिक कंवारे मर्दों की बात करे तो 83 फीसदी पुरुष कॉन्डम के फायदे जानते हैं और शादीशुदा पुरुषों की बात करें तो यह आंकड़ा 90 फीसदी पहुंच जाता है। सर्वे में भाग लेने वाले 25 फीसदी लोगों ने माना कि उन्होंने अपने पहले बच्चे को कॉन्डम की मदद से टाला। सर्वे में विवाह से पहले और अपने जीवनसाथी से इतर सेक्स के बारे में भी सवाल किए गए थे। केवल 3 फीसदी महिलाओं ने शादी से पहले सेक्स करने की बात कबूल की , जबकि ऐसा करने वाले पुरुष 18 प्रतिशत निकले। 25 , 541 परिवारों में किए गए इस सर्वे में 3 फीसदी पुरुषों ने विवाह होने के बाद भी दूसरे महिलाओं से शारीरिक संबंध बनाने की बात मानी।

सुरक्षित सेक्स और महाराष्ट्र

कल एक दोस्त ने एक न्यूज़ भेजी तो आज उसे आपका पन्ना में चेप रहा हूँ. खबर यह है कि महाराष्ट्र में सुरक्षित सेक्स करने के मामले यहाँ के मर्द महिलाओं की तुलना में मीलों आगे हैं। महाराष्ट्र में किए गए सर्वे से जो तथ्य सामने आए हैं उसके मुताबिक केवल 33 प्रतिशत महिलाओं को पता है कि पहली बार सेक्स करने से भी वह गर्भवती हो सकती हैं , जबकि पुरुषों में यह आंकड़ा 46.2 फीसदी है। सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि अविवाहित महिलाओं में से केवल 55.4 फीसदी के कॉन्डम के बारे में सुना है , जबकि 95 प्रतिशत पुरुष इससे परिचित हैं। यही नहीं जितनी महिलाएं कॉन्डम के बारे में जानती हैं उनमें से केवल 18 प्रतिशत ही इसका सही उपयोग जानती हैं। विवाहित महिलाओं के मामले में भी यह आंकड़ा कोई खास उत्साह बढ़ाने वाला नहीं है। 39 फीसदी विवाहित महिलाएं ही यह जानती हैं कि सेक्स के दौरान इसके प्रयोग से गर्भवती होने से बचा जा सकता है। इनमें से केवल 9 फीसदी महिलाओं ने पहली बार गर्भवती होने से बचने के लिए कॉन्डम का इस्तेमाल किया है। इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज के सर्वे के मुताबिक कंवारे मर्दों की बात करे तो 83 फीसदी पुरुष कॉन्डम के फायदे जानते हैं और शादीशुदा पुरुषों की बात करें तो यह आंकड़ा 90 फीसदी पहुंच जाता है। सर्वे में भाग लेने वाले 25 फीसदी लोगों ने माना कि उन्होंने अपने पहले बच्चे को कॉन्डम की मदद से टाला। सर्वे में विवाह से पहले और अपने जीवनसाथी से इतर सेक्स के बारे में भी सवाल किए गए थे। केवल 3 फीसदी महिलाओं ने शादी से पहले सेक्स करने की बात कबूल की , जबकि ऐसा करने वाले पुरुष 18 प्रतिशत निकले। 25 , 541 परिवारों में किए गए इस सर्वे में 3 फीसदी पुरुषों ने विवाह होने के बाद भी दूसरे महिलाओं से शारीरिक संबंध बनाने की बात मानी।

Thursday, October 25, 2007

अजीब सा कुछ था उसकी आंखों में...लेकिन क्या ??

उससे मेरी पहली और अन्तिम मुलाकात उस समय हुई थी जब मैं कुछ दिनों पहले दिल्ली से जयपुर बस के माध्यम से जा रहा था. वो जयपुर जिले के कोटपुतली कस्बे से बस में आई थी. साथ में उसके सास ससुर भी थे. वो ठेठ राजस्थानी लहंगा चोली पहन कर बस में आई थी. उसके कपडे से मुझे अंदाजा हो गया था कि हो ना हो वो जरुर यादव ही होगी. उसका लंबा सा धुंधट उसका सबूत था. शुरुआत में मैंने उसपर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया लेकिन जब उसने अपना धुंधट एक हाथ से पकड़ा तो मैं उसे देखता ही रह गया, ज़िंदगी में मैंने पहली बार इतनी खूबसूरत औरत को देखा था, कोई मेकअप कोई बनावटी पन नहीं था उसमे. मुझे उसके सामने दुनिया भर की औरते पानी भरती नज़र आ रही थीं. नाक में कुछ उसने पहना हुआ था..लेकिन क्या मुझे नहीं पता.. मैं उसे बार बार देख रहा था और उसका ससुर मुझे. लेकिन दस मिनट बाद वो अपने ससुर और सास के संग मावटा पर उतर गई और मैं उसे बस जाते हुए देख रहा था,,,उसकी आंखों में एक अजीब सा कुछ था,,लेकिन क्या??

अजीब सा कुछ था उसकी आंखों में...लेकिन क्या ??

उससे मेरी पहली और अन्तिम मुलाकात उस समय हुई थी जब मैं कुछ दिनों पहले दिल्ली से जयपुर बस के माध्यम से जा रहा था. वो जयपुर जिले के कोटपुतली कस्बे से बस में आई थी. साथ में उसके सास ससुर भी थे. वो ठेठ राजस्थानी लहंगा चोली पहन कर बस में आई थी. उसके कपडे से मुझे अंदाजा हो गया था कि हो ना हो वो जरुर यादव ही होगी. उसका लंबा सा धुंधट उसका सबूत था. शुरुआत में मैंने उसपर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया लेकिन जब उसने अपना धुंधट एक हाथ से पकड़ा तो मैं उसे देखता ही रह गया, ज़िंदगी में मैंने पहली बार इतनी खूबसूरत औरत को देखा था, कोई मेकअप कोई बनावटी पन नहीं था उसमे. मुझे उसके सामने दुनिया भर की औरते पानी भरती नज़र आ रही थीं. नाक में कुछ उसने पहना हुआ था..लेकिन क्या मुझे नहीं पता.. मैं उसे बार बार देख रहा था और उसका ससुर मुझे. लेकिन दस मिनट बाद वो अपने ससुर और सास के संग मावटा पर उतर गई और मैं उसे बस जाते हुए देख रहा था,,,उसकी आंखों में एक अजीब सा कुछ था,,लेकिन क्या??

Wednesday, October 10, 2007

मैं मांगती हूं

मांगने वाला भिखारी और
देने वाला दानवीर है,
तो आजादी, खुशी और
जीने की एक अदद वजह मांगती हूं।

मां कहलाने के लिए भी तो मांगना होता है
अपनी पहचान, जो तुमसे शुरू होकर तुमपर खत्‍म होती है
क्‍योंकि बिना पहचान के कुल्‍टा हूं और पहचान के साथ भी बेनाम,
ऐसी जिंदगी के संग जीने की अदद वजह मांगती हूं।

- नीहारिका

मैं मांगती हूं

मांगने वाला भिखारी और
देने वाला दानवीर है,
तो आजादी, खुशी और
जीने की एक अदद वजह मांगती हूं।

मां कहलाने के लिए भी तो मांगना होता है
अपनी पहचान, जो तुमसे शुरू होकर तुमपर खत्‍म होती है
क्‍योंकि बिना पहचान के कुल्‍टा हूं और पहचान के साथ भी बेनाम,
ऐसी जिंदगी के संग जीने की अदद वजह मांगती हूं।

- नीहारिका

Wednesday, October 3, 2007

एक निवाला

तुम तो रोज खाते होगे
कई निवाले,
मैं तो कई सदियों से हूँ भूखा,
अभागा, लाचार, लतियाया हुआ।
रोज गुजरता हूँ तुम्‍हारी देहरी से
आस लिए कि कभी तो पड़ेगी तुम्‍हारी भी नजर,
इसी उम्‍मीद से हर रोज आता हूँ,
फिर भी पहचान क्‍या बताऊँ अपनी,
कभी विदर्भ तो कभी कालाहांडी से छपता हूँ,
गुमनामी की चीत्कार लिए,
जो नहीं गूँजती इस हो-हंगामे में।
ना नाम माँगता हूँ,
ना ही कोई मुआवजा,
उन अनगिनत निवालों का हिसाब भी नहीं,
विनती है ! केवल इतनी,
मौत का एक निवाला चैन से लेने दो ।

-नीहारिका झा

एक निवाला

तुम तो रोज खाते होगे
कई निवाले,
मैं तो कई सदियों से हूँ भूखा,
अभागा, लाचार, लतियाया हुआ।
रोज गुजरता हूँ तुम्‍हारी देहरी से
आस लिए कि कभी तो पड़ेगी तुम्‍हारी भी नजर,
इसी उम्‍मीद से हर रोज आता हूँ,
फिर भी पहचान क्‍या बताऊँ अपनी,
कभी विदर्भ तो कभी कालाहांडी से छपता हूँ,
गुमनामी की चीत्कार लिए,
जो नहीं गूँजती इस हो-हंगामे में।
ना नाम माँगता हूँ,
ना ही कोई मुआवजा,
उन अनगिनत निवालों का हिसाब भी नहीं,
विनती है ! केवल इतनी,
मौत का एक निवाला चैन से लेने दो ।

-नीहारिका झा

Monday, October 1, 2007

यह भी सच है


संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि दुनियाभर में आज भी एक अरब से अधिक लोग शहरी स्लम बस्तियों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यदि सरकारों ने समय रहते इन्हें नियंत्रित नहीं किया तथा इनके पुनर्वास की व्यवस्था नहीं की तो अगले 30 साल में इनकी संख्या दोगुनी हो जाएगी। संयुक्त राष्ट्र एक अक्टूबर को विश्व आवास दिवस के रूप में मनाता है।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार इन शहरी बस्तियों में रहने वाले लोग भय, असुरक्षा, गरीबी और मानवाधिकारों से वंचित जीवन जी रहे हैं जहां मूलभूत आवश्यकताओं का भारी अभाव है तथा हिंसा व अपराध एक गंभीर समस्या बनती जा रही है।
संयुक्त राष्ट्र ने इस साल विश्व आवास दिवस का विषय या थीम एक सुरक्षित शहर ही वास्तविक शहर' चुना है। वास्तव में यह विषय मानव बस्तियों की हालत पर नजर डालता है। संयुक्त राष्ट्र ने शहरी सुरक्षा, सामाजिक न्याय खासतौर पर शहरी अपराध और हिंसा, बलात् निष्कासन, असुरक्षित शहरी निवास के साथ साथ प्रकृति व मनुष्यजन्य आपदाओं के प्रति जागरूकता और इस बारे में प्रयासों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से ही एक 'सुरक्षित शहर ही वास्तविक शहर' विषय चुना है।
वर्तमान समय और परिस्थितियों में अधिकतर शहरों में भय और असुरक्षा का एक प्रमुख कारण अपराध और हिंसा है। संयुक्त राष्ट्र ने इस साल विश्व आवास दिवस-2007 के अंतरराष्ट्रीय आयोजन का नेतृत्व नीदरलैंड की राजधानी हेग शहर को सौंपा है। इस अवसर पर वहां एक सम्मेलन का आयोजन किया गया है, जिसमें सभी स्तर के पेशेवर लोगों को आमंत्रित किया गया है जो विकसित और विकासशील देशों में शहरी सुरक्षा और बचाव में आ रही चुनौतियों पर अपने विचार रखेंगे।


अब आप ही बताइए देश कैसी तरक्की कर रहा है।

यह भी सच है


संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि दुनियाभर में आज भी एक अरब से अधिक लोग शहरी स्लम बस्तियों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यदि सरकारों ने समय रहते इन्हें नियंत्रित नहीं किया तथा इनके पुनर्वास की व्यवस्था नहीं की तो अगले 30 साल में इनकी संख्या दोगुनी हो जाएगी। संयुक्त राष्ट्र एक अक्टूबर को विश्व आवास दिवस के रूप में मनाता है।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार इन शहरी बस्तियों में रहने वाले लोग भय, असुरक्षा, गरीबी और मानवाधिकारों से वंचित जीवन जी रहे हैं जहां मूलभूत आवश्यकताओं का भारी अभाव है तथा हिंसा व अपराध एक गंभीर समस्या बनती जा रही है।
संयुक्त राष्ट्र ने इस साल विश्व आवास दिवस का विषय या थीम एक सुरक्षित शहर ही वास्तविक शहर' चुना है। वास्तव में यह विषय मानव बस्तियों की हालत पर नजर डालता है। संयुक्त राष्ट्र ने शहरी सुरक्षा, सामाजिक न्याय खासतौर पर शहरी अपराध और हिंसा, बलात् निष्कासन, असुरक्षित शहरी निवास के साथ साथ प्रकृति व मनुष्यजन्य आपदाओं के प्रति जागरूकता और इस बारे में प्रयासों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से ही एक 'सुरक्षित शहर ही वास्तविक शहर' विषय चुना है।
वर्तमान समय और परिस्थितियों में अधिकतर शहरों में भय और असुरक्षा का एक प्रमुख कारण अपराध और हिंसा है। संयुक्त राष्ट्र ने इस साल विश्व आवास दिवस-2007 के अंतरराष्ट्रीय आयोजन का नेतृत्व नीदरलैंड की राजधानी हेग शहर को सौंपा है। इस अवसर पर वहां एक सम्मेलन का आयोजन किया गया है, जिसमें सभी स्तर के पेशेवर लोगों को आमंत्रित किया गया है जो विकसित और विकासशील देशों में शहरी सुरक्षा और बचाव में आ रही चुनौतियों पर अपने विचार रखेंगे।


अब आप ही बताइए देश कैसी तरक्की कर रहा है।

लिया बहुत-बहुत ज़्यादा दिया बहुत-बहुत कम

जनसत्ता में छपी एक खबर के अनुसार प्रगतिवादी धारा के एक प्रमुख कवि त्रिलोचन शास्त्री गाजियाबाद के कौशांबी स्थित एक निजी अस्पताल में दाखिल हैं. यह खबर दुर्भाग्य से जनसत्ता के अलावा और कहीं नहीं छपी है. वहां शायद इसलिए छप सकी कि जनसत्ता में त्रिलोचन जी के पुत्र श्री अमित प्रकाश सिंह मुलाजिम हैं और वैसे भी जनसत्ता साहित्यिक-सांस्कृतिक सरोकारों से जुड़ी खबरें देने के ख्यात रहा है. उनके पुत्रों की बड़ी-बड़ी कोठियां हैं, जीवन भर बहुत कुछ उन लोगों ने पिता से लिया। यह जीवन, यह यौवन...नाम और हिंदी में इतना सम्मान...बहुत कुछ और अब जब उनके पिता बीमार और अशक्त हैं तो सरकार पर तोहमत आयद करने से बेहतर है कि वे लोग अपने दम पर जितना संभव हो करें। क्योंकि वे लोग हर तरीके से समर्थ हैं. (ख्वाब का दर)

लिया बहुत-बहुत ज़्यादा दिया बहुत-बहुत कम

जनसत्ता में छपी एक खबर के अनुसार प्रगतिवादी धारा के एक प्रमुख कवि त्रिलोचन शास्त्री गाजियाबाद के कौशांबी स्थित एक निजी अस्पताल में दाखिल हैं. यह खबर दुर्भाग्य से जनसत्ता के अलावा और कहीं नहीं छपी है. वहां शायद इसलिए छप सकी कि जनसत्ता में त्रिलोचन जी के पुत्र श्री अमित प्रकाश सिंह मुलाजिम हैं और वैसे भी जनसत्ता साहित्यिक-सांस्कृतिक सरोकारों से जुड़ी खबरें देने के ख्यात रहा है. उनके पुत्रों की बड़ी-बड़ी कोठियां हैं, जीवन भर बहुत कुछ उन लोगों ने पिता से लिया। यह जीवन, यह यौवन...नाम और हिंदी में इतना सम्मान...बहुत कुछ और अब जब उनके पिता बीमार और अशक्त हैं तो सरकार पर तोहमत आयद करने से बेहतर है कि वे लोग अपने दम पर जितना संभव हो करें। क्योंकि वे लोग हर तरीके से समर्थ हैं. (ख्वाब का दर)

शिल्पा शेट्टी के साथ फिर बेअदबी

शिल्पा शेट्टी के साथ फिर दुर्व्यवहार किया गया। इस बार यह करतूत मुम्बई के छत्रपति शिवाजी इंटरनैशनल एयरपोर्ट पर एक आब्रजन अधिकारी ने की। इस अधिकारी ने उनसे बड़ी बेअदबी से बात की और दो टूक कहा कि वह विदेश नहीं जा सकती हैं। शिल्पा जर्मनी जा रही थीं। वहां उन्हें वेस्ट एंड म्यूजिकल मिस बॉलिवुड में भाग लेना है। मगर बुधवार की रात आब्रजन अधिकारियों ने उन्हें एयरपोर्ट पर रोक दिया। अधिकारियों को यह पता ही नहीं था कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें विदेश जाने की अनुमति दे दी है। वे यही कहते रहे कि कोर्ट से उन्हें विदेश जाने की अनुमति नहीं मिली है। बेचारी शिल्पा ने अपने प्रवक्ता डैल भाग्वैगर को आधी रात में बुलाया। प्रवक्ता ने आकर देखा कि शिल्पा लाउंज में बैठी रो रही हैं। शिल्पा ने उन्हें बताया कि एक इमिग्रैशन इंस्पेक्टर ने उनके साथ बड़ा बुरा व्यवहार किया। शिल्पा कह रही थीं, 'मैं ऐसी बात समझ सकती हूं यदि मैंने कोई आपराधिक जुर्म किया होता। मगर इसमें मेरा क्या कसूर है यदि मैं विदेश में एक संगीत कार्यक्रम में भाग लेने जा रही हूं? अपने ही देश में मेरे साथ ऐसी बदसलूकी की गई। यह भयावह है।' खैर, शिल्पा के प्रवक्ता ने आब्रजन अधिकारियों को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने विदेश जाने के लिए शिल्पा का नाम क्लीयर कर दिया है। तब जाकर शिल्पा को जाने दिया गया।

यह ख़बर यहाँ से ली गई है।