Monday, November 26, 2007

दैनिक आई नेक्स्ट आगरा में

दैनिक जागरण प्रकाशन समूह के काम्पैक्ट साइज के दैनिक आई नेक्स्ट के आगरा संस्करण की शुरुआत रविवार को वैदिक रीति से हवन और पूजन के साथ हुई। कानपुर, लखनऊ और मेरठ के बाद ताजनगरी से आई नेक्स्ट का यह चौथा संस्करण है। पिछले वर्ष दिसंबर में आई नेक्स्ट के कानपुर और लखनऊ संस्करण के साथ जागरण समूह ने उत्तर भारत का पहला बाइलिंगुअल काम्पैक्ट लांच किया। आई नेक्स्ट ने अपने अंतरराष्ट्रीय स्वरूप, लेआउट और शहर की खबरों को अपने विशिष्ट अंदाज में प्रस्तुत करने की शैली के साथ पाठकों का अपार स्नेह पा लिया। कानपुर में हर रोज 75 हजार प्रतियों के प्रसार के साथ अगस्त में आई नेक्स्ट को शहर के नंबर दो दैनिक का दर्जा हासिल हुआ। लखनऊ में भी 57 हजार प्रतियों के साथ यह अखबार शहर का दूसरा सबसे बड़ा दैनिक बनने की ओर बढ़ रहा है। इसी साल सितंबर में मेरठ से निकले आई नेक्स्ट के तीसरे संस्करण को भी पाठकों ने हाथों हाथ लिया है। तीस हजार प्रतियों के प्रसार के साथ आई नेक्स्ट मेरठ में भी शहर का दूसरा सबसे बड़ा अखबार बनने की ओर अग्रसर है। ज्ञातव्य है कि इन सभी शहरों में समूह का फ्लैगशिप समाचार पत्र दैनिक जागरण शहर के नंबर एक दैनिक के रूप में पाठकों की सराहना और उनका स्नेह पाता आ रहा है। मंगलवार 27 नवंबर को आई नेक्स्ट का पांचवां संस्करण वाराणसी से लांच हो जाएगा। जागरण प्रकाशन के चेयरमैन व मैनेजिंग डायरेक्टर महेंद्र मोहन गुप्त का कहना है कि समूह न सिर्फ अपने निवेशकों को बेहतर परिणाम देने के लिए प्रयासरत है बल्कि पाठकों की निरंतर बढ़ती अपेक्षाओं को भी पूरा करता रहेगा। उन्होंने कहा कि शीघ्र ही उत्तर भारत के अन्य शहरों के पाठकों को भी आई नेक्स्ट के प्रकाशन का फायदा मिल सकेगा। जागरण के संपादक व सीईओ संजय गुप्त ने अपने बधाई संदेश में कहा कि पाठकों की सराहना और सुझावों के चलते आई नेक्स्ट का आगरा संस्करण ताज नगरी के पाठकों के सामने है। शहर के लोग पिछले दो सप्ताह से बदलते आगरा की नई धड़कन आई नेक्स्ट का प्रचार आउटडोर विज्ञापन, रेडियो, स्पाट प्रिंट और केबल विज्ञापनों के माध्यम से देख रहे थे। आई नेक्स्ट के प्रोजेक्ट हेड आलोक सांवल का कहना था कि यह दैनिक आगरा के लोगों को दूसरे सभी दैनिक अखबारों से अलग नई शैली और नए तेवर की खबरों व फीचर्स से रूबरू कराएगा। इससे पहले जागरण समूह के आगरा कार्यालय में हवन-पूजन के साथ आई नेक्स्ट की शुरुआत हुई। हवन में जागरण समूह के निदेशक देवेश गुप्त, आगरा संस्करण के स्थानीय संपादक सरोज अवस्थी, डिप्टी जनरल मैनेजर (मार्केटिंग)अमन गेरा, एरिया मैनेजर (सर्कुलेशन) राहुल चौहान, ब्रांड मैनेजर अरोजित विश्वास, मैनेजर प्रवीन गुप्ता, रोहित रायजादा, मुद्रक-प्रकाशक रामनाथ शर्मा, न्यूज एडिटर प्रभात सिंह, डिप्टी न्यूज एडिटर विजय नारायण सिंह सहित जागरण परिवार के सभी सदस्य शामिल हुए।

साभार- जागरण

Wednesday, November 21, 2007

वो गलियाँ...

फिल्‍मों में हमेशा देखती थी, समाज की बदनाम गलियाँ और वहाँ की वो सजी-धजी रातें, जो किसी भी स्‍वप्‍नलोक से कम नहीं लगता था। गहनों, भारी-भरकम कपड़ों में सजी-धजी लड़कियाँ, अपनी अदाओं और अपने गायन से मौ‍जूद लोगों को लुभाती हुई। उन्‍हें देखकर ऐसा ही लगता है कि वह जन्‍नत में जी रही हैं। जहाँ उसे सबकुछ मिला है। सच्‍चा प्‍यार भी, जो उसके लिए पूरी दुनिया से लड़ सकता है।

ऐसी दुनिया, मेरे मन में भी यह बात बैठ गई थी कि ये गलियाँ यूँ बदनाम कही जाती हैं, यहाँ तो इतना ऐशो-आराम है कि लोग चाह कर भी उसे पा नहीं सकते। खैर बचपन की वो कल्‍पनाएँ धुँधली पड़ गई, पर मन के किसी कोने में वह दुनिया आज भी कहीं दबी पड़ी थी। मैं एक छोटे शहर से आती हूँ, जहाँ जीने लायक सुविधाएँ तो थीं, लेकिन समाज को उसकी विषमताओं को अपने नजरिए से देखना स्‍वीकार्य नहीं था। जहाँ देखने को कहा जाए, वहाँ देखो, जहाँ चलने को कहा जाए, वहाँ चलो।

खैर बात कहाँ से शुरू हुई थी और मैं आपको कहाँ ले जा रही हूँ...बात हो रही थी बदनाम गलियों की। आज भी मुझे याद है- एक दिन हमारा फिल्‍म देखने का कार्यक्रम बना, पूरा परिवार साथ-साथ रिक्‍शों की सवारी पर निकल पड़ा। चूँकि शहर छोटा था और गलियाँ काफी तंग, जहाँ रिक्‍शों को बार-बार रूकना पड़ रहा था।

मैंने पहले सुन रखा था कि टॉकिज जाने के रास्‍ते में वही...गलियाँ आती हैं। घर की महिलाओं और लड़कियों को पहले ही संकेतों में यह हिदायत दे दी गई थी कि रास्‍ते में ज्‍यादा चूँ-चपड़ नहीं करनी है, इसलिए सभी आदेशों के पालन में लगी हुई थीं। मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था कि पता नहीं कितनी चमक हो उन घरों, कैसी सजी-धजी दिखती होंगी, मुझे रेखा के उस गाने– ‘इन आँखों की मस्‍ती...’का पूरा दृश्‍य घूम गया। लग रहा रिक्‍शा उड़कर उन भव्‍य इमारतों के सामने पहुँच जाए।

भइया पापा से नजरें बचाकर तिरछी नजरों से उधर देख रहे थे। मुझे समझ आ गया कि हम उसी इमारत के सामने से गुजर रहे हैं। चूँकि रिक्‍शा बहुत धीरे-धीरे चल रहा था, इसलिए मैं सुबकुछ साफ-साफ देख सकती थी, जो भी मैंने देखा वह मेरी कल्‍पनाओं से भी परे था। न तो कोई चकाचौंध, न ही भव्‍य इमारत, और न ही किसी गहने की कोई चमक थी।

था तो केवल अँधेरा, मैले से पेटीकोट और ब्‍लाउज में कुछ महिलाएँ खड़ी थीं, अपने पेटीकोट को भी उन्‍होंने घुटने तक उठा रखा था, उनकी आँखों में न कोई शरारत थी न ही वह अदा, सबकुछ स्‍याह काला, ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने काली रात का अँधेरा उनकी देहरी पर पटक दिया हो। सारी आपस में बातें कर रही थीं, कोई किसी के सिर से जुएँ निकल रही थीं कोई शून्‍य नजरों से सड़को को ताक रही थीं।

उनकी बेबाकी उनके हाव-भव में झलक र‍ही थी। इतने में हमारा रिक्‍शा आगे बढ़ गया। अब मुझे महसूस हुआ कि क्‍यों हैं ये बदनाम गलियाँ, लेकिन रेखा के उस गाने का क्‍या॥या उन तमाम फिल्‍मों का क्‍या, जो सपनों की दुनिया से भी ज्‍यादा चौंधयाई हुई है।

- नीहारिका

वो गलियाँ...

फिल्‍मों में हमेशा देखती थी, समाज की बदनाम गलियाँ और वहाँ की वो सजी-धजी रातें, जो किसी भी स्‍वप्‍नलोक से कम नहीं लगता था। गहनों, भारी-भरकम कपड़ों में सजी-धजी लड़कियाँ, अपनी अदाओं और अपने गायन से मौ‍जूद लोगों को लुभाती हुई। उन्‍हें देखकर ऐसा ही लगता है कि वह जन्‍नत में जी रही हैं। जहाँ उसे सबकुछ मिला है। सच्‍चा प्‍यार भी, जो उसके लिए पूरी दुनिया से लड़ सकता है।

ऐसी दुनिया, मेरे मन में भी यह बात बैठ गई थी कि ये गलियाँ यूँ बदनाम कही जाती हैं, यहाँ तो इतना ऐशो-आराम है कि लोग चाह कर भी उसे पा नहीं सकते। खैर बचपन की वो कल्‍पनाएँ धुँधली पड़ गई, पर मन के किसी कोने में वह दुनिया आज भी कहीं दबी पड़ी थी। मैं एक छोटे शहर से आती हूँ, जहाँ जीने लायक सुविधाएँ तो थीं, लेकिन समाज को उसकी विषमताओं को अपने नजरिए से देखना स्‍वीकार्य नहीं था। जहाँ देखने को कहा जाए, वहाँ देखो, जहाँ चलने को कहा जाए, वहाँ चलो।

खैर बात कहाँ से शुरू हुई थी और मैं आपको कहाँ ले जा रही हूँ...बात हो रही थी बदनाम गलियों की। आज भी मुझे याद है- एक दिन हमारा फिल्‍म देखने का कार्यक्रम बना, पूरा परिवार साथ-साथ रिक्‍शों की सवारी पर निकल पड़ा। चूँकि शहर छोटा था और गलियाँ काफी तंग, जहाँ रिक्‍शों को बार-बार रूकना पड़ रहा था।

मैंने पहले सुन रखा था कि टॉकिज जाने के रास्‍ते में वही...गलियाँ आती हैं। घर की महिलाओं और लड़कियों को पहले ही संकेतों में यह हिदायत दे दी गई थी कि रास्‍ते में ज्‍यादा चूँ-चपड़ नहीं करनी है, इसलिए सभी आदेशों के पालन में लगी हुई थीं। मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था कि पता नहीं कितनी चमक हो उन घरों, कैसी सजी-धजी दिखती होंगी, मुझे रेखा के उस गाने– ‘इन आँखों की मस्‍ती...’का पूरा दृश्‍य घूम गया। लग रहा रिक्‍शा उड़कर उन भव्‍य इमारतों के सामने पहुँच जाए।

भइया पापा से नजरें बचाकर तिरछी नजरों से उधर देख रहे थे। मुझे समझ आ गया कि हम उसी इमारत के सामने से गुजर रहे हैं। चूँकि रिक्‍शा बहुत धीरे-धीरे चल रहा था, इसलिए मैं सुबकुछ साफ-साफ देख सकती थी, जो भी मैंने देखा वह मेरी कल्‍पनाओं से भी परे था। न तो कोई चकाचौंध, न ही भव्‍य इमारत, और न ही किसी गहने की कोई चमक थी।

था तो केवल अँधेरा, मैले से पेटीकोट और ब्‍लाउज में कुछ महिलाएँ खड़ी थीं, अपने पेटीकोट को भी उन्‍होंने घुटने तक उठा रखा था, उनकी आँखों में न कोई शरारत थी न ही वह अदा, सबकुछ स्‍याह काला, ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने काली रात का अँधेरा उनकी देहरी पर पटक दिया हो। सारी आपस में बातें कर रही थीं, कोई किसी के सिर से जुएँ निकल रही थीं कोई शून्‍य नजरों से सड़को को ताक रही थीं।

उनकी बेबाकी उनके हाव-भव में झलक र‍ही थी। इतने में हमारा रिक्‍शा आगे बढ़ गया। अब मुझे महसूस हुआ कि क्‍यों हैं ये बदनाम गलियाँ, लेकिन रेखा के उस गाने का क्‍या॥या उन तमाम फिल्‍मों का क्‍या, जो सपनों की दुनिया से भी ज्‍यादा चौंधयाई हुई है।

- नीहारिका

Tuesday, November 20, 2007

दिल्ली में एक और समाचार पत्र

लीजिये दिल्ली में आज एक और समाचार पत्र लांच हो गया, इसका नाम है 'आज समाज'. लांचिंग सेरेमनी में केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री प्रियरंजन दास मुंशी और पंजाब के मुख्यमंत्री भी मौजूद थे। यह समूह एक मैग्जीन पहले ही लांच कर चुका है, अब टीवी चैनल लाना वाला है. जिसका नाम 'अब तक' रखा गया था लेकिन 'आज तक' ने इस नाम को लेकर एतराज किया और कोर्ट ने आज तक को स्टे दे दिया हैफिलहाल नए चैनल के नाम पर अभी कोई सहमति नहीं बन सकी है.

Sunday, November 18, 2007

बदल सकती है आपकी किस्मत शिवा सीमेंट से

यदि आप स्टॉक मार्केट में निवेश करना चाह रहे हैं तो तुरंत शिवा सीमेंट बाज़ार भाव पर उठा सके हैं। इसी तरह जायसवाल निको और सूर्य चक्र भी चमकने वाले शेयर हैं. यदि लम्बी अवधि के लिए आपको शेयर की तलाश हैं तो आप अपनी नज़र एनपीटीसी और पीटीसी पर टिका सकते हैं.

आईपीओ

रिनेसां ज्वेलरी 10 रुपए मूल्य के 125-150 रुपए के सीमा मूल्य में 53।24 लाख शेयर का पहला पब्लिक इश्यू (आईपीओ) ला रही है।यह इश्यू 19 नवम्बर को खुलेगा और 21 नवम्बर 2007 को बंद होगा। जानकार कहते हैं कि यह बेहतर इश्यू है। सरकारी नीतियां ऐसी कम्पनियों के पक्ष में दिखाई देती हैं। लम्बी अवधि को ध्यान में रखकर निवेश करना चाहिए।

Saturday, November 17, 2007

नीरज के परिजनों को जरुरत है आपकी

अंकित जी ने बताया कि सहारनपुर में कार्यरत IBN -7 के युवा पत्रकार नीरज चौधरी का देर रात एक सड़क दुर्घटना में देहावसान हो गया। नीरज सहारनपुर की पत्रकारिता में अपने अच्छे स्वभाव एव उत्कृष्ट काम के लिये जाने जाते थे। नीरज अपने परिवार में अपनी धर्म पत्नी एवं चार वर्षीय पुत्र पीछे छोड़ गये हैं। उनका अचानक यूं चला जाना पत्रकारिता जगत के लिये एक भारी सदमा हैं.

हम सब अपने अपने स्तर पर नीरज जी के परिवार की कुछ न कुछ मदद कर सकते हैं. यदि आप कुछ मदद करना चाहे तो यशवंत जी से ९९९९३-३००९९ पर या मुझसे ९८६७५-७५१७६ पर बात कर सकते हैं. नीरज के परिजनों से बात करने के बाद आपको उनका एकाउंट नंबर बता दिया जाएगा, जिसमें आप रकम ट्रांसफर कर देंगे. अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें.हम उम्मीद करते हैं कि आप अपने स्तर पर जरुर कुछ न कुछ मदद कर सकते हैं.

आशीष महर्षि

Friday, November 16, 2007

आईबीएन 7 ने माफ़ी मांगी


आईबीएन 7 ने अपने '' किस पर रोक नहीं'' कार्यक्रम के लिए खेद व्यक्त किया है. इस कार्यक्रम में चैनल ने चुम्बन के दृश्य को दिखाया था. जिसपर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने नाराज़गी जताई थी. चैनल ने इस के लिए खेद व्यक्त करते हुए कहा कि आगे इस बात का ध्यान रखा जाएगा. यह ख़बर बोल हल्ला ने दी.

Thursday, November 15, 2007

एनडीटीवी लाएगा नया चैनल

लीजये एक और ख़बर. एनडीटीवी अब मनोरंजन क्षेत्र में भी कदम रखने जा रहा है। इसके लिए वह जनवरी, 2008 के पहले सप्ताह से एक नया चैनल 'इमैजिन' शुरू करने जा रहा है। इस एंटरटेनमेंट चैनल में समाज के हर तबके को ध्यान में रखते हुए कार्यक्रमों का चुनाव किया गया है.

इससे पहले ख़बर आई थी कि एनडीटीवी जल्दी ही अपना एक हिन्दी न्यूज़ पोर्टल लाँच करने वाला है. दुनिया भर में इंटरनेट के बढ़ते उपयोग को देखते हुए यह फ़ैसला लिया है. एनडीटीवी इस पोर्टल से पहले एक मोबाइल पोर्टल लाँच करेगी जिसका नाम एनडीटीवी एक्टिव होगा. कहा जा रहा है कि मध्य नवम्बर से यह चालू हो सकता है. जबकि हिन्दी न्यूज़ पोर्टल जिसका नाम एनडीटीवी ख़बर होगा, यह दो महीने बाद यानी अगले साल तक लाँच हो जाएगा. एनडीटीवी इसके अलावा लाइफ स्टाइल, बालीवुड और शिक्षा को लेकर भी कुछ वेब पोर्टल लाने पर कार्य कर रहा है

Monday, November 12, 2007

प्रलय...कोहराम...कत्ले आम.....फिर खामोशी.....और बस सन्नाटा

मुझे उसका नाम तो याद नहीं है लेकिन उससे मेरी पहली मुलाकात उस वक्त हुई कि जब लोग एक दूसरे के लिए जान देते थे. असीम प्रेम का सबके बीच. चारों और शान्ति और सभ्य समाज था. लेकिन ना जाने उसके जाने के बाद पूरी दुनिया ही तब्दील हो गई. लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए. लोग एक दूसरे को देख नहीं सकते हैं.. ऐसा क्यों हुआ. मुझे भी नहीं मालूम? लेकिन सालों बाद उसी ने बताया कि यह सब के पीछे किसका हाथ है. वो और कोई नहीं बल्कि वही थी जिससे मेरी पहली मुलाकात उस वक्त हुई थी जब चारों और शान्ति और खुश हाली थी. तो फिर अब क्यों नहीं ऐसा है ? वजह कुछ खास थी. उसने अपनी ज़िंदगी से ही नहीं बल्कि उससे भी दगा किया जिसकी वजह से आज वो इस जहाँ में थी...आखिर ऐसा क्यों किया इसने...? अरे यह क्या ? अचानक काले काले बादल छाने लगे...चारों और शोर...कोई कुछ करता क्यों नहीं?...प्रलय...कोहराम...कत्ले आम.....फिर खामोशी.....और बस सन्नाटा ....................

प्रलय...कोहराम...कत्ले आम.....फिर खामोशी.....और बस सन्नाटा

मुझे उसका नाम तो याद नहीं है लेकिन उससे मेरी पहली मुलाकात उस वक्त हुई कि जब लोग एक दूसरे के लिए जान देते थे. असीम प्रेम का सबके बीच. चारों और शान्ति और सभ्य समाज था. लेकिन ना जाने उसके जाने के बाद पूरी दुनिया ही तब्दील हो गई. लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए. लोग एक दूसरे को देख नहीं सकते हैं.. ऐसा क्यों हुआ. मुझे भी नहीं मालूम? लेकिन सालों बाद उसी ने बताया कि यह सब के पीछे किसका हाथ है. वो और कोई नहीं बल्कि वही थी जिससे मेरी पहली मुलाकात उस वक्त हुई थी जब चारों और शान्ति और खुश हाली थी. तो फिर अब क्यों नहीं ऐसा है ? वजह कुछ खास थी. उसने अपनी ज़िंदगी से ही नहीं बल्कि उससे भी दगा किया जिसकी वजह से आज वो इस जहाँ में थी...आखिर ऐसा क्यों किया इसने...? अरे यह क्या ? अचानक काले काले बादल छाने लगे...चारों और शोर...कोई कुछ करता क्यों नहीं?...प्रलय...कोहराम...कत्ले आम.....फिर खामोशी.....और बस सन्नाटा ....................

Sunday, November 11, 2007

पिता


मेरी बिटिया रानी गढ़ूंगा तेरे लिए अलग कहानी
सफलता, खुशियां, ममता तेरी झोली में डालूंगा,
पिता हूं तेरे सारे दु:ख हरूंगा।
पकड़कर ऊंगली जब सीखा तूने चलना,
मन पुलकित और हर्षित हुआ ,
तुझे ले जाऊंगा बादलों के भी पार,
सपना यह संजोता रहा।


तेरी हर इच्‍छा पूरी करूं,
मैं संभालूं, मैं संजोऊं तेरे सपनों का घरौंदा।
यह जाने बिना कि तू पंछी है किसी और डाल की
तेरा दाना-पानी नहीं हमारे अंगान का,
तू बादल है उमड़ता-घुमड़ता,
जो बरसेगा किसी और की बगिया में।


घर में शहनाई, मेहमानों का शोर है
तेरी किलकारियां अब खामोश हैं
ना तूने थामी है मेरी ऊंगली अब,
शर्माई, सकुचाई-सी एक मूरत, आंसुओं की बहती धार,
मैं भी हूं एक असहाय पिता
जो केवल संजो सकता है सपने अपनी बिटिया के,
आकार पाते हैं वो सपने दूर कहीं, दूर कहीं....।

पिता


मेरी बिटिया रानी गढ़ूंगा तेरे लिए अलग कहानी
सफलता, खुशियां, ममता तेरी झोली में डालूंगा,
पिता हूं तेरे सारे दु:ख हरूंगा।
पकड़कर ऊंगली जब सीखा तूने चलना,
मन पुलकित और हर्षित हुआ ,
तुझे ले जाऊंगा बादलों के भी पार,
सपना यह संजोता रहा।


तेरी हर इच्‍छा पूरी करूं,
मैं संभालूं, मैं संजोऊं तेरे सपनों का घरौंदा।
यह जाने बिना कि तू पंछी है किसी और डाल की
तेरा दाना-पानी नहीं हमारे अंगान का,
तू बादल है उमड़ता-घुमड़ता,
जो बरसेगा किसी और की बगिया में।


घर में शहनाई, मेहमानों का शोर है
तेरी किलकारियां अब खामोश हैं
ना तूने थामी है मेरी ऊंगली अब,
शर्माई, सकुचाई-सी एक मूरत, आंसुओं की बहती धार,
मैं भी हूं एक असहाय पिता
जो केवल संजो सकता है सपने अपनी बिटिया के,
आकार पाते हैं वो सपने दूर कहीं, दूर कहीं....।

Saturday, November 3, 2007

बोल हल्ला की नई पहल...पत्रकारों का अपना कोना

हम ख़बर लेने वाले रोजाना न जाने कितनों की ख़बर लेते है. लेकिन आज से एक नई पहल बोल हल्ला शुरू करने जा रहा है. यह है पत्रकारों का कोना. यहाँ पत्रकारों से जुड़ी खबरों के अलावा उन खबरों को भी स्थान दिया जाएगा जिससे इस पेशे से जुड़े लोगों के आवाजाही की ख़बर होगी..ताकि जो इस पेशे से नहीं जुड़े हैं, उन्हें भी पता चले कि मीडिया जगत में क्या चल रहा है..इस कोने का मकसद किसी के मन को ठेस पहुंचाना नहीं है...