मेरी बिटिया रानी गढ़ूंगा तेरे लिए अलग कहानी
सफलता, खुशियां, ममता तेरी झोली में डालूंगा,
पिता हूं तेरे सारे दु:ख हरूंगा।
पकड़कर ऊंगली जब सीखा तूने चलना,
मन पुलकित और हर्षित हुआ ,
तुझे ले जाऊंगा बादलों के भी पार,
सपना यह संजोता रहा।
सफलता, खुशियां, ममता तेरी झोली में डालूंगा,
पिता हूं तेरे सारे दु:ख हरूंगा।
पकड़कर ऊंगली जब सीखा तूने चलना,
मन पुलकित और हर्षित हुआ ,
तुझे ले जाऊंगा बादलों के भी पार,
सपना यह संजोता रहा।
तेरी हर इच्छा पूरी करूं,
मैं संभालूं, मैं संजोऊं तेरे सपनों का घरौंदा।
यह जाने बिना कि तू पंछी है किसी और डाल की
तेरा दाना-पानी नहीं हमारे अंगान का,
तू बादल है उमड़ता-घुमड़ता,
जो बरसेगा किसी और की बगिया में।
घर में शहनाई, मेहमानों का शोर है
तेरी किलकारियां अब खामोश हैं
ना तूने थामी है मेरी ऊंगली अब,
शर्माई, सकुचाई-सी एक मूरत, आंसुओं की बहती धार,
मैं भी हूं एक असहाय पिता
जो केवल संजो सकता है सपने अपनी बिटिया के,
आकार पाते हैं वो सपने दूर कहीं, दूर कहीं....।
"मैं भी हूं एक असहाय पिता
ReplyDeleteजो केवल संजो सकता है सपने अपनी बिटिया के,
आकार पाते हैं वो सपने दूर कहीं, दूर कहीं....।"
बहुत खूब!!
बहुत बढिया रचना है।बधाई।
ReplyDeleteu r great niharika
ReplyDeleteक्या कहूँ, अजीब सा एहसास है. मेरी भी एक बेटी है. बहुत ही छोटी है अभी. लेकिन आप की कविता ने न जाने कहाँ पहुंचा दिया ........... आह !
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