Tuesday, May 24, 2011

यह कैसी महाशक्ति है?


शेर पर भौंकता हुआ कुत्ता। गूगल खोज से साभार
कुछ दिनों पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक बयान जारी कर कहा था, दुनिया के मुल्कों को भारत से शांति की शिक्षा लेनी चाहिए। ओबामा का मानना है कि यदि दक्षिण एशिया में भारत जैसा समझदार और शांतिप्रिय देश नहीं होता, तो यहां के हालात बद्तर हो सकते थे। ओबामा के इस कूटनीतिक बयान को भारत ने सकारात्मक रूप से लिया है। लेकिन क्या शांतिप्रिय बने रहना हमारे देश के लिए हमेशा फायदेमंद रहेगा? शायद नहीं।

अमेरिका जैसा देश अपने फायदे के लिए गधे को भी बाप मानने वालों में से है। यह वही देश है, जिसने ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकवादियों को तैयार किया था, जो बाद में उसके लिए ही भस्मासुर साबित हुआ था। अब जबकि ओसामा का किस्सा ही खत्म हो चुका है, तब अमेरिका ने पाकिस्तान को यह समझाना शुरू कर दिया है कि वह भारत से दोस्ती बढ़ाए। उधर पाकिस्तान ने अपनी नीतियों में बदलाव करते हुए अपनी निष्ठा को चीन की तरफ दंडवत कर दिया है।

चीन ने भी कह दिया है कि पाकिस्तान के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई को वो बर्दाश्त नहीं करेगा। चीन का इशारा अमेरिकी सैन्य कार्रवाईयों एवं भारत की ओर से संभावित कार्रवाई है। हालांकि चीन भी यह जानता है कि भारत कभी भी हमले की पहल नहीं करेगा। यहां पर भारत और पाकिस्तान की स्थिति को महाभारत काल से भी जोड़ा जा सकता है। महाभारत में श्रीकृष्ण ने शिशुपाल की मां को यह वचन दिया था कि वो शिशुपाल की सौ गलतियों को माफ कर देंगे। लेकिन 101वीं पर वो उसका वध करने के लिए मजबूर होंगे। यहां पर पाकिस्तान की स्थिति को शिशुपाल से जोड़ा तो जा सकता है, पर भारत को श्रीकृष्ण मानना हमारी भूल हो सकती है।

यदि कारगिल के बाद से लेकर अब तक की स्थितियों पर नजर दौड़ाएं तो आपको पता चलेगा कि हमारे देश का बूढ़ा नेतृत्व कितना मजबूर और इच्छाशक्ति विहीन है। कारगिल की घटना को गंभीरता से न लेने के चलते ही हमारी सेना को बड़ी संख्या में हानि उठानी पड़ी थी। उचित रणनीति के अभाव ने कई सैनिकों को जबरन काल के गाल में ढकेल दिया और उस पर भी घोटाले हुए सो अलग। देश के लोकतांत्रिक मंदिर संसद भवन पर पाकिस्तानी आतंकवादियों का हमला हुआ, तो ऐसा लगा मानो इस बार तो आरपार की लड़ाई होगी, लेकिन जो हुआ, उसे क्या संज्ञा दी जाए, समझ नहीं आता।

मुंबई में हमला हुआ तो हम पाकिस्तान से चिट्टी चिट्टी का खेल खेलने में लग गए। भारत उसे मना रहा है कि वो हमले में अपना हाथ होना कबूल कर ले। क्या चोर कभी कहेगा कि उसने चोरी की है। इतना ही नहीं, हद तो इस पर है कि अफजल गुरू नाम के षड्यंत्रकारी को, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा सुना रखी है, उसे भी हमारा देश दामाद की तरह पाल रहा है। यही हाल मुंबई हमले में पकड़े गए आमिर अजमल कसाब का भी है। उस पर मुकदमा करके उससे कबूल करवाने का प्रयत्न किया जा रहा है, ताकि वह 26/11 के हमले में अपना हाथ होना कबूल ले। इससे ज्यादा हास्यास्पद क्या होगा।

रही सही कसर आज 25 मई को पूरी हो गई, जब पाकिस्तान ने भारत द्वारा दी गई 50 मोस्ट वांटेड आतंकवादियों की सूची को यह कहते हुए लौटा दिया कि पहले भारत यह जांच ले कि इनमें से कितने लोग भारत में रह रहे हैं। इसके लिए कौन जिम्मेदार है? सरकार, नौकरशाह या फिर दोनों। अकर्मण्यता और आपसी समन्वय की कमी के चलते देश की नाक कहीं न कहीं कट ही जाती है। फिर चाहे वो अंतरराष्ट्रीय मंच पर किसी दूसरे देश का भाषण पढ़ देना हो या फिर इस तरह की सूची बनाना हो, जिसमें दिए गए नाम हमारे ही मोहल्ले में रह रहे हों।

बताइए, हम एक ऐसे विकासशील, मजबूत अर्थव्यवस्था एवं तेजी उभरती हुई महाशक्ति हैं, जिनकी मजबूती में दीमक लगी हुई है। भ्रष्टाचार की दीमक और कामचोरी की दीमक। देश में नौकरशाही अपनी ढपली बजाता है और नेता अपना राग आलापते हैं। कहीं कोई सुरताल नहीं, जिसे जो मर्जी वो कर रहा है। एक दो भ्रष्टाचारी हों तो गिनाएं भी जाएं। यहां इनकी संख्या इतनी ज्यादा है कि दो तीन भ्रष्टाचार नगर बसाए जा सकते हैं।

वैसे यह कभी न खत्म होने वाला विषय है। आप और हम इस पर लाखों पन्नों का महाकाव्य भी लिख सकते हैं। हालांकि यह किस्सा शायद तब भी खत्म न हो।

यह कैसी महाशक्ति है?

कुछ दिनों पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक बयान जारी कर कहा था, दुनिया के मुल्कों को भारत से शांति की शिक्षा लेनी चाहिए। ओबामा का मानना है कि यदि दक्षिण एशिया में भारत जैसा समझदार और शांतिप्रिय देश नहीं होता, तो यहां के हालात बद्तर हो सकते थे। ओबामा के इस कूटनीतिक बयान को भारत ने सकारात्मक रूप से लिया है। लेकिन क्या शांतिप्रिय बने रहना हमारे देश के लिए हमेशा फायदेमंद रहेगा? शायद नहीं।

अमेरिका जैसा देश अपने फायदे के लिए गधे को भी बाप मानने वालों में से है। यह वही देश है, जिसने ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकवादियों को तैयार किया था, जो बाद में उसके लिए ही भस्मासुर साबित हुआ था। अब जबकि ओसामा का किस्सा ही खत्म हो चुका है, तब अमेरिका ने पाकिस्तान को यह समझाना शुरू कर दिया है कि वह भारत से दोस्ती बढ़ाए। उधर पाकिस्तान ने अपनी नीतियों में बदलाव करते हुए अपनी निष्ठा को चीन की तरफ दंडवत कर दिया है।

चीन ने भी कह दिया है कि पाकिस्तान के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई को वो बर्दाश्त नहीं करेगा। चीन का इशारा अमेरिकी सैन्य कार्रवाईयों एवं भारत की ओर से संभावित कार्रवाई है। हालांकि चीन भी यह जानता है कि भारत कभी भी हमले की पहल नहीं करेगा। यहां पर भारत और पाकिस्तान की स्थिति को महाभारत काल से भी जोड़ा जा सकता है। महाभारत में श्रीकृष्ण ने शिशुपाल की मां को यह वचन दिया था कि वो शिशुपाल की सौ गलतियों को माफ कर देंगे। लेकिन 101वीं पर वो उसका वध करने के लिए मजबूर होंगे। यहां पर पाकिस्तान की स्थिति को शिशुपाल से जोड़ा तो जा सकता है, पर भारत को श्रीकृष्ण मानना हमारी भूल हो सकती है।

यदि कारगिल के बाद से लेकर अब तक की स्थितियों पर नजर दौड़ाएं तो आपको पता चलेगा कि हमारे देश का बूढ़ा नेतृत्व कितना मजबूर और इच्छाशक्ति विहीन है। कारगिल की घटना को गंभीरता से न लेने के चलते ही हमारी सेना को बड़ी संख्या में हानि उठानी पड़ी थी। उचित रणनीति के अभाव ने कई सैनिकों को जबरन काल के गाल में ढकेल दिया और उस पर भी घोटाले हुए सो अलग। देश के लोकतांत्रिक मंदिर संसद भवन पर पाकिस्तानी आतंकवादियों का हमला हुआ, तो ऐसा लगा मानो इस बार तो आरपार की लड़ाई होगी, लेकिन जो हुआ, उसे क्या संज्ञा दी जाए, समझ नहीं आता।

मुंबई में हमला हुआ तो हम पाकिस्तान से चिट्टी चिट्टी का खेल खेलने में लग गए। भारत उसे मना रहा है कि वो हमले में अपना हाथ होना कबूल कर ले। क्या चोर कभी कहेगा कि उसने चोरी की है। इतना ही नहीं, हद तो इस पर है कि अफजल गुरू नाम के षड्यंत्रकारी को, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा सुना रखी है, उसे भी हमारा देश दामाद की तरह पाल रहा है। यही हाल मुंबई हमले में पकड़े गए आमिर अजमल कसाब का भी है। उस पर मुकदमा करके उससे कबूल करवाने का प्रयत्न किया जा रहा है, ताकि वह 26/11 के हमले में अपना हाथ होना कबूल ले। इससे ज्यादा हास्यास्पद क्या होगा।

रही सही कसर आज 25 मई को पूरी हो गई, जब पाकिस्तान ने भारत द्वारा दी गई 50 मोस्ट वांटेड आतंकवादियों की सूची को यह कहते हुए लौटा दिया कि पहले भारत यह जांच ले कि इनमें से कितने लोग भारत में रह रहे हैं। इसके लिए कौन जिम्मेदार है? सरकार, नौकरशाह या फिर दोनों। अकर्मण्यता और आपसी समन्वय की कमी के चलते देश की नाक कहीं न कहीं कट ही जाती है। फिर चाहे वो अंतरराष्ट्रीय मंच पर किसी दूसरे देश का भाषण पढ़ देना हो या फिर इस तरह की सूची बनाना हो, जिसमें दिए गए नाम हमारे ही मोहल्ले में रह रहे हों।

बताइए, हम एक ऐसे विकासशील, मजबूत अर्थव्यवस्था एवं तेजी उभरती हुई महाशक्ति हैं, जिनकी मजबूती में दीमक लगी हुई है। भ्रष्टाचार की दीमक और कामचोरी की दीमक। देश में नौकरशाही अपनी ढपली बजाता है और नेता अपना राग आलापते हैं। कहीं कोई सुरताल नहीं, जिसे जो मर्जी वो कर रहा है। एक दो भ्रष्टाचारी हों तो गिनाएं भी जाएं। यहां इनकी संख्या इतनी ज्यादा है कि दो तीन भ्रष्टाचार नगर बसाए जा सकते हैं।

वैसे यह कभी न खत्म होने वाला विषय है। आप और हम इस पर लाखों पन्नों का महाकाव्य भी लिख सकते हैं। हालांकि यह किस्सा शायद तब भी खत्म न हो।

Tuesday, May 3, 2011

एक लादेन से खत्म नहीं होगा आतंकवाद

इधर लादेन मारा गया, उधर पूरे अमेरिका में जश्न की शुरुआत हो गई। ऐसा लग रहा है मानों अमेरिकियों ने दुनिया फतह कर ली है। दुनिया भर के अखबार लादेन की मौत की खबरों से रंगे हुए हैं। पर लाख टके का सवाल अभी वही है कि क्या लादेन के खात्मे के साथ ही दुनिया से आतंकवाद भी खत्म हो गया है। नहीं, आतंकवाद का नासूर दुनिया में इस कदर अपनी जड़ें जमाए हुए है, कि उसे एक लादेन की मौत से खत्म नहीं किया जा सकता है। लादेन की मौत ने केवल अमेरिकी गुरूर को पूरा किया है और 9/11 की राख को ठंडा किया है।

दरअसल ओसामा बिन लादेन ने आतंकवाद का जो अंपायर खड़ा किया है, उसे नेस्तनाबूद कर पाना शायद एक अकेले अमेरिका के बस में नहीं है। उसने अपने पीछे इतने सिपहसालार तो खड़े कर ही लिए हैं, जो उसके न होने पर भी आतंकी मकसद को बदस्तूर जारी रखेंगे। इसलिए दुनिया से आतंकवाद को खत्म करने के लिए दुनिया के सभी मुल्कों को एकसाथ आना होगा।

वैसे जिस तरह से अमेरिका ने पाकिस्तान को बिना विश्वास में लिए उनकी ही राजधानी के पास अपना ऑपरेशन पूरा किया, उससे एक बात तो सिद्ध होती है कि दृढ़ इच्छाशक्ति से कुछ भी किया जा सकता है। अमेरिका के लिए लादेन को को मारना एक चुनौती के साथ साथ सम्मान का विषय बन चुका था। लादेन को मारकर उन्होंने आतंकवाद के सरपरस्तों को यह संदेश भी दे दिया है कि अमेरिका के खिलाफ उठने वाले किसी भी सर को इसी तरह से कुचल दिया जाएगा। दूसरा यह भी कि उनके लिए दुनिया के मुल्कों की सीमाएं मायने नहीं रखती हैं।

हालांकि लादेन का पाकिस्तान में मारा जाना, हमारे पड़ोसी मुल्क के लिए शर्मिंदगी की बात है, क्योंकि वो शुरू से ही कहता आ रहा है कि लादेन से उसका कोई लेना देना नहीं है। पाकिस्तान ने हमेशा जोर देकर कहा है कि वो अपनी जमीन का उपयोगी आतंकी गतिविधियों के लिए नहीं करने देगा। हालांकि इस ऑपरेशन के बाद पूरी दुनिया के सामने पाकिस्तानी हुक्मरानों की भी भद पिटी है। अभी हाल में ही एक अमेरिकी रक्षा अधिकारी ने भी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को आतंकी संगठन की तरह काम करने की संज्ञा दी थी। इस घटना से यह तो तय हो गया है कि पाकिस्तान आतंकवादियों के लिए सरपरस्ती का काम कर रहा है। संभव तो यह भी है कि अब अमेरिका के दुश्मनों की फेहरिस्त में उसका नाम भी शामिल हो जाए।

अमेरिकी रणनीतिक अब यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि आखिर कैसे पाकिस्तानी प्रशासन ओसामा के पाकिस्तान में रहने से अनभिज्ञता जता रहा था। क्यों अमेरिकी शक की सूई को हर बार अफगानिस्तान की ओर घुमाता था।

जो भी हो, पर ओसामा बिन लादेन की मौत से सबसे ज्यादा फायदा अमेरिका और बराक ओबामा हो होगा, लेकिन इसका नुकसान दक्षिण एशियाई मुल्कों खासतौर पर हमारे देश को भुगतान पड़ सकता है। अलकायदा अपने नेता की मौत का बदला लेने के लिए कुछ भी करेगा। हो सकता है कि दुनिया भर में अमेरिकी नागरिकों और अमेरिका के मित्र देशों को निशाना बनाया जाए। हालांकि इससे पाकिस्तान भी अछूता रहे, ऐसा संभव नहीं दिखता है।

अब देखना यह है कि लादेन के बाद आतंकवाद क्या राह पकड़ता है और अमेरिका की रणनीति पाकिस्तान और चरमपंथियों के लिए अब क्या रहेगी।

एक लादेन से खत्म नहीं होगा आतंकवाद

इधर लादेन मारा गया, उधर पूरे अमेरिका में जश्न की शुरुआत हो गई। ऐसा लग रहा है मानों अमेरिकियों ने दुनिया फतह कर ली है। दुनिया भर के अखबार लादेन की मौत की खबरों से रंगे हुए हैं। पर लाख टके का सवाल अभी वही है कि क्या लादेन के खात्मे के साथ ही दुनिया से आतंकवाद भी खत्म हो गया है। नहीं, आतंकवाद का नासूर दुनिया में इस कदर अपनी जड़ें जमाए हुए है, कि उसे एक लादेन की मौत से खत्म नहीं किया जा सकता है। लादेन की मौत ने केवल अमेरिकी गुरूर को पूरा किया है और 9/11 की राख को ठंडा किया है।

दरअसल ओसामा बिन लादेन ने आतंकवाद का जो अंपायर खड़ा किया है, उसे नेस्तनाबूद कर पाना शायद एक अकेले अमेरिका के बस में नहीं है। उसने अपने पीछे इतने सिपहसालार तो खड़े कर ही लिए हैं, जो उसके न होने पर भी आतंकी मकसद को बदस्तूर जारी रखेंगे। इसलिए दुनिया से आतंकवाद को खत्म करने के लिए दुनिया के सभी मुल्कों को एकसाथ आना होगा।

वैसे जिस तरह से अमेरिका ने पाकिस्तान को बिना विश्वास में लिए उनकी ही राजधानी के पास अपना ऑपरेशन पूरा किया, उससे एक बात तो सिद्ध होती है कि दृढ़ इच्छाशक्ति से कुछ भी किया जा सकता है। अमेरिका के लिए लादेन को को मारना एक चुनौती के साथ साथ सम्मान का विषय बन चुका था। लादेन को मारकर उन्होंने आतंकवाद के सरपरस्तों को यह संदेश भी दे दिया है कि अमेरिका के खिलाफ उठने वाले किसी भी सर को इसी तरह से कुचल दिया जाएगा। दूसरा यह भी कि उनके लिए दुनिया के मुल्कों की सीमाएं मायने नहीं रखती हैं।

हालांकि लादेन का पाकिस्तान में मारा जाना, हमारे पड़ोसी मुल्क के लिए शर्मिंदगी की बात है, क्योंकि वो शुरू से ही कहता आ रहा है कि लादेन से उसका कोई लेना देना नहीं है। पाकिस्तान ने हमेशा जोर देकर कहा है कि वो अपनी जमीन का उपयोगी आतंकी गतिविधियों के लिए नहीं करने देगा। हालांकि इस ऑपरेशन के बाद पूरी दुनिया के सामने पाकिस्तानी हुक्मरानों की भी भद पिटी है। अभी हाल में ही एक अमेरिकी रक्षा अधिकारी ने भी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को आतंकी संगठन की तरह काम करने की संज्ञा दी थी। इस घटना से यह तो तय हो गया है कि पाकिस्तान आतंकवादियों के लिए सरपरस्ती का काम कर रहा है। संभव तो यह भी है कि अब अमेरिका के दुश्मनों की फेहरिस्त में उसका नाम भी शामिल हो जाए।

अमेरिकी रणनीतिक अब यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि आखिर कैसे पाकिस्तानी प्रशासन ओसामा के पाकिस्तान में रहने से अनभिज्ञता जता रहा था। क्यों अमेरिकी शक की सूई को हर बार अफगानिस्तान की ओर घुमाता था।

जो भी हो, पर ओसामा बिन लादेन की मौत से सबसे ज्यादा फायदा अमेरिका और बराक ओबामा हो होगा, लेकिन इसका नुकसान दक्षिण एशियाई मुल्कों खासतौर पर हमारे देश को भुगतान पड़ सकता है। अलकायदा अपने नेता की मौत का बदला लेने के लिए कुछ भी करेगा। हो सकता है कि दुनिया भर में अमेरिकी नागरिकों और अमेरिका के मित्र देशों को निशाना बनाया जाए। हालांकि इससे पाकिस्तान भी अछूता रहे, ऐसा संभव नहीं दिखता है।

अब देखना यह है कि लादेन के बाद आतंकवाद क्या राह पकड़ता है और अमेरिका की रणनीति पाकिस्तान और चरमपंथियों के लिए अब क्या रहेगी।

दुनिया की मीडिया में ओसामा बिन लादेन की मौत का कव्हरेज

दुनिया की मीडिया में ओसामा बिन लादेन की मौत का कव्हरेज