Wednesday, March 30, 2011

सबसे भ्रष्ट देशों की टॉप-5 फेहरिस्त में हमारा देश


दुनिया के अमीरों या तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के मामले में किसी सूची में भारत को शीर्ष पर देखकर भले ही सभी भारतीयों को गर्व होता है, लेकिन यह ऐसी सूची है जिसमें कभी भी भारतीय अपने को शीर्ष पर नहीं देखना चाहेंगे। भारत को एशिया प्रशांत के सबसे भ्रष्ट देशों की सूची में शामिल किया गया है। हांगकांग स्थित कारोबार सलाहकार फर्म पीईआरसी ने एशिया क्षेत्र के सर्वे में भारत को फिलीपींस और कंबोडिया के साथ एशिया के सबसे भ्रष्ट 16 देशों की सूची में शामिल किया है।

पॉलिटिकल एंड इकोनॉमिक रिस्क कंसल्टेंसी (पीईआरसी) ने भ्रष्टाचार के मामले में भारत को 8.67 की रेटिंग दी है। शून्य से 10 तक के स्केल में ज्यादा रेटिंग का मतलब है ज्यादा भ्रष्ट। सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार वाले देशों में कंबोडिया (9.27), इंडोनेशिया (9.25) और फिलीपींस (8.9) शामिल रहे। चीन की रेंकिंग 7.93 और वियतनाम की 8.3 रही है।भ्रष्ट देशों के मामले में थाईलैंड 7.55 अंकों के साथ 11वें स्थान पर है। तुलनात्मक रूप से सिंगापुर 0.37 रेटिंग के साथ सबसे कम भ्रष्ट देश रहा है। इसके बाद हांगकांग (1.10), ऑस्ट्रेलिया (1.39) जापान (1.90) और अमेरिका (2.39) सबसे कम भ्रष्टाचार वाले देश रहे हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में स्थानीय निकाय और स्थानीय स्तर के राजनेता राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के मुकाबले ज्यादा भ्रष्ट पाए गए। स्थानीय नेताओं को सूची में 9.25 अंक मिले हैं, जबकि राष्ट्रीय राजनीतिक नेतृत्व 8.97 फीसदी के साथ थोड़ा कम भ्रष्ट रहा। शहर स्तर के नौकरशाह भी केंद्रीय नौकरशाहों के मुकाबले ज्यादा भ्रष्ट पाए गए।एशियन इंटेलिजेंस रिपोर्ट में पीईआरसी ने कहा है कि भारत में भ्रष्टाचार बढ़ा है और मनमोहन ङ्क्षसह के नेतृत्व वाले यूपीए के दूसरे कार्यकाल में यह काफी भारी पड़ रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि टेलीकॉम लाइसेंस वितरण, राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी, सैन्य भूमि घोटाले और सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों द्वारा ऋण वितरण में घोटालों के कारण सरकार की नींद उड़ी हुई है।हालांकि एजेंसियां इन मामलों जांच कर रही हैं, लेकिन भारतीय जनता लगातार यह सवाल कर रही है कि प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार को रोक पाने में समर्थ भी हैं या नहीं। संसद में विपक्ष ने भी इस मामले पर सरकार को घेर रखा है। विकीलीक्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु करार पर संसद की स्वीकृत में सरकार ने सांसदों को रिश्वत दी। इसके बाद सरकार और घिर चुकी है।

हिंदी अखबार दैनिक हिंदुस्तान एवं बिज़नेस भास्कर में प्रकाशित खबरों से साभार

सबसे भ्रष्ट देशों की टॉप-5 फेहरिस्त में हमारा देश


दुनिया के अमीरों या तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के मामले में किसी सूची में भारत को शीर्ष पर देखकर भले ही सभी भारतीयों को गर्व होता है, लेकिन यह ऐसी सूची है जिसमें कभी भी भारतीय अपने को शीर्ष पर नहीं देखना चाहेंगे। भारत को एशिया प्रशांत के सबसे भ्रष्ट देशों की सूची में शामिल किया गया है। हांगकांग स्थित कारोबार सलाहकार फर्म पीईआरसी ने एशिया क्षेत्र के सर्वे में भारत को फिलीपींस और कंबोडिया के साथ एशिया के सबसे भ्रष्ट 16 देशों की सूची में शामिल किया है।

पॉलिटिकल एंड इकोनॉमिक रिस्क कंसल्टेंसी (पीईआरसी) ने भ्रष्टाचार के मामले में भारत को 8.67 की रेटिंग दी है। शून्य से 10 तक के स्केल में ज्यादा रेटिंग का मतलब है ज्यादा भ्रष्ट। सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार वाले देशों में कंबोडिया (9.27), इंडोनेशिया (9.25) और फिलीपींस (8.9) शामिल रहे। चीन की रेंकिंग 7.93 और वियतनाम की 8.3 रही है।भ्रष्ट देशों के मामले में थाईलैंड 7.55 अंकों के साथ 11वें स्थान पर है। तुलनात्मक रूप से सिंगापुर 0.37 रेटिंग के साथ सबसे कम भ्रष्ट देश रहा है। इसके बाद हांगकांग (1.10), ऑस्ट्रेलिया (1.39) जापान (1.90) और अमेरिका (2.39) सबसे कम भ्रष्टाचार वाले देश रहे हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में स्थानीय निकाय और स्थानीय स्तर के राजनेता राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के मुकाबले ज्यादा भ्रष्ट पाए गए। स्थानीय नेताओं को सूची में 9.25 अंक मिले हैं, जबकि राष्ट्रीय राजनीतिक नेतृत्व 8.97 फीसदी के साथ थोड़ा कम भ्रष्ट रहा। शहर स्तर के नौकरशाह भी केंद्रीय नौकरशाहों के मुकाबले ज्यादा भ्रष्ट पाए गए।एशियन इंटेलिजेंस रिपोर्ट में पीईआरसी ने कहा है कि भारत में भ्रष्टाचार बढ़ा है और मनमोहन ङ्क्षसह के नेतृत्व वाले यूपीए के दूसरे कार्यकाल में यह काफी भारी पड़ रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि टेलीकॉम लाइसेंस वितरण, राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी, सैन्य भूमि घोटाले और सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों द्वारा ऋण वितरण में घोटालों के कारण सरकार की नींद उड़ी हुई है।हालांकि एजेंसियां इन मामलों जांच कर रही हैं, लेकिन भारतीय जनता लगातार यह सवाल कर रही है कि प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार को रोक पाने में समर्थ भी हैं या नहीं। संसद में विपक्ष ने भी इस मामले पर सरकार को घेर रखा है। विकीलीक्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु करार पर संसद की स्वीकृत में सरकार ने सांसदों को रिश्वत दी। इसके बाद सरकार और घिर चुकी है।

हिंदी अखबार दैनिक हिंदुस्तान एवं बिज़नेस भास्कर में प्रकाशित खबरों से साभार

Thursday, March 24, 2011

भारत में धर्म है सबसे बड़ा कारोबार


किसी सभा में बाबा अपने अनुयायियों का आह्वान करते हुए

क्या आप जानते हैं कि भारत में सबसे बड़ा और अमूमन सफल कारोबार किस चीज का है। अगर नहीं जानते हैं तो आपका ज्ञानवर्धन करते हुए हम बता रहे हैं कि भारत में धर्म सबसे बड़ा कारोबार है। धर्म के नाम पर आप एक आम भारतीय से बिना किसी लाग लपेट के पैसा निकलवा सकते हैं। जी हां, यह सच है और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी ने अपने शोध में इसे साबित भी कर दिया है।

यूनिवर्सिटी की शोध में बताया गया है कि भारत में धार्मिक संगठन न सिर्फ व्यावसायिक संगठनों की तरह काम करते हैं, बल्कि लोगों की निष्ठा बरकरार रखने के लिए अपनी गतिविधियों में विविधता भी लाते रहते हैं। इतना ही नहीं इन संगठनों के बीच कारोबारी संगठनों की तरह ही कड़ी स्पर्धा भी होती है।

यह अध्ययन भारतीय मूल की शिक्षाविद श्रेया अय्यर की अगुवाई में किया गया है। भारत के धार्मिक संगठनों से जुड़े इस अध्ययन के नतीजों का विवरण रिसर्च होराइजंस के ताजा संस्करण में प्रकाशित किया गया है। यह अध्ययन महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और गुजरात स्थित धार्मिक संगठनों पर किया गया।

अर्थशास्त्र विभाग के एक दल ने दो वर्षो तक भारत के अलग-अलग 568 धार्मिक संगठनों पर अध्ययन किया। इसमें भारतीय राज्यों के धार्मिक संगठनों की धार्मिक और गैर धार्मिक गतिविधियों पर अध्ययन किया गया। जिसमें निष्कर्ष निकला कि जिस तरह कारोबारी बाजार में अपने प्रतिस्पर्धियों से आगे निकलने की कोशिश करते हैं, उसी तरह धार्मिक संगठन भी स्पर्धा में आगे निकलने के लिए अपने आसपास के राजनीतिक, आर्थिक और अन्य तरह के माहौल को बदलते हैं।

अध्ययन के मुताबिक भारतीय धार्मिक संगठन रक्तदान, नेत्र शिविर, चिकित्सा सेवा शिविर और गरीबों के लिए सामूहिक विवाह जैसे कई कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, ताकि अपने से जुड़े लोगों की निष्ठा को बरकरार रख सकें और अन्य लोगों को अपनी ओर खींच सकें। विचारधारा के मामले पर धार्मिक संगठन उसी तरह का रुख अपनाते हैं जैसे कारोबारी संगठन अपनी बिक्री बढ़ाने की कोशिश के लिए नीतियां अपनाते हैं।

एक बात और, यह धार्मिक संगठन अपने पत्र पत्रिकाएं भी प्रकाशित करते हैं तथा विभिन्न धार्मिक आयोजनों के दौरान कलम, कॉपियां, अंगूठियां, गले की चेन एवं लॉकेट, चाबी के छल्ले जैसे वस्तुएं तक बेचते हैं, जिससे इनका प्रचार भी होता है तथा आमदनी भी बढ़ती है।

भारत में धर्म है सबसे बड़ा कारोबार


किसी सभा में बाबा अपने अनुयायियों का आह्वान करते हुए

क्या आप जानते हैं कि भारत में सबसे बड़ा और अमूमन सफल कारोबार किस चीज का है। अगर नहीं जानते हैं तो आपका ज्ञानवर्धन करते हुए हम बता रहे हैं कि भारत में धर्म सबसे बड़ा कारोबार है। धर्म के नाम पर आप एक आम भारतीय से बिना किसी लाग लपेट के पैसा निकलवा सकते हैं। जी हां, यह सच है और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी ने अपने शोध में इसे साबित भी कर दिया है।

यूनिवर्सिटी की शोध में बताया गया है कि भारत में धार्मिक संगठन न सिर्फ व्यावसायिक संगठनों की तरह काम करते हैं, बल्कि लोगों की निष्ठा बरकरार रखने के लिए अपनी गतिविधियों में विविधता भी लाते रहते हैं। इतना ही नहीं इन संगठनों के बीच कारोबारी संगठनों की तरह ही कड़ी स्पर्धा भी होती है।

यह अध्ययन भारतीय मूल की शिक्षाविद श्रेया अय्यर की अगुवाई में किया गया है। भारत के धार्मिक संगठनों से जुड़े इस अध्ययन के नतीजों का विवरण रिसर्च होराइजंस के ताजा संस्करण में प्रकाशित किया गया है। यह अध्ययन महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और गुजरात स्थित धार्मिक संगठनों पर किया गया।

अर्थशास्त्र विभाग के एक दल ने दो वर्षो तक भारत के अलग-अलग 568 धार्मिक संगठनों पर अध्ययन किया। इसमें भारतीय राज्यों के धार्मिक संगठनों की धार्मिक और गैर धार्मिक गतिविधियों पर अध्ययन किया गया। जिसमें निष्कर्ष निकला कि जिस तरह कारोबारी बाजार में अपने प्रतिस्पर्धियों से आगे निकलने की कोशिश करते हैं, उसी तरह धार्मिक संगठन भी स्पर्धा में आगे निकलने के लिए अपने आसपास के राजनीतिक, आर्थिक और अन्य तरह के माहौल को बदलते हैं।

अध्ययन के मुताबिक भारतीय धार्मिक संगठन रक्तदान, नेत्र शिविर, चिकित्सा सेवा शिविर और गरीबों के लिए सामूहिक विवाह जैसे कई कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, ताकि अपने से जुड़े लोगों की निष्ठा को बरकरार रख सकें और अन्य लोगों को अपनी ओर खींच सकें। विचारधारा के मामले पर धार्मिक संगठन उसी तरह का रुख अपनाते हैं जैसे कारोबारी संगठन अपनी बिक्री बढ़ाने की कोशिश के लिए नीतियां अपनाते हैं।

एक बात और, यह धार्मिक संगठन अपने पत्र पत्रिकाएं भी प्रकाशित करते हैं तथा विभिन्न धार्मिक आयोजनों के दौरान कलम, कॉपियां, अंगूठियां, गले की चेन एवं लॉकेट, चाबी के छल्ले जैसे वस्तुएं तक बेचते हैं, जिससे इनका प्रचार भी होता है तथा आमदनी भी बढ़ती है।

क़ायम रहेगा हिंदी का वर्चस्व


भविष्य में हिंदी का वर्चस्व कम से कम दक्षिण एशिया के क्षेत्रों में तो अवश्य ही रहेगा और इसका कारण है बहुत बड़े वर्ग का हिंदी भाषा जानना.


बीबीसी हिंदी
हिंदी भाषा की महत्ता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विश्व की शीर्षतम सॉफ्टवेयर कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने अपने उत्पादों को हिंदी में बनाना भी शुरू किया है. एक कंपनी जो सारे विश्व में अंग्रेजी भाषा में अपने उत्पाद बेचती है, पर भारत में वह अपने सॉफ्टवेयर हिंदी में ला रही है.

इतना ही नहीं, मोबाइल कंपनियों ने अपने हैंडसेट्स में भारतीय भाषाओं को भी शामिल करना शुरू कर दिया है.

मीडिया सम्राट रूपर्ट मर्डोक जब भारत में अपना टीवी नेटवर्क शुरू करते हैं, तो वो भी हिंदी में. यह इस बात का इशारा है कि भारतीय जनमानस के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए हिंदी भाषा की सहायता बहुत ही ज़रूरी है.

वेब पत्रकारिता

जिस समय विश्व में इंटरनेट का पदार्पण हुआ उस समय जो डॉट कॉम कंपनियां उभरीं, उन्होंने अपना काम अंग्रेज़ी भाषा में शुरू किया, जबकि वेबदुनिया ने उस समय हिंदी पोर्टल शुरू किया.

अपने शैशव काल से लेकर आज तक इंटरनेट ने जो सीढ़ियां चढ़ीं हैं वो अपने आप में प्रतिमान हैं लेकिन जितनी प्रसिद्धि हिंदी भाषा की वेबसाइटों को मिलती है, उतनी किसी और को नहीं मिलती.

भारत में कोई भी वस्तु तब तक नहीं प्रचलित होती है, जब तक कि उसमें भारतीयता का पुट न सम्मिलित हो इसलिए हिंदी भाषा वो पुट है, जिसके बिना ख्याति संभव नहीं.

हमारे देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री अपना बधाई संदेश हिंदी में प्रसारित करते हैं क्योंकि हिंदी भाषा अपनत्व का बोध कराती है.

बीबीसी हिंदी और वेबदुनिया की वेबसाइटों को देखने वाले सबसे ज़्यादा लोग विदेशी हैं यानी वे भारतीय जो बाहर के देशों में बसे हैं. लगभग 80 प्रतिशत पेज इंप्रेशन तो उन्हीं से बनता है.

ऐसे में यह कहना कतई ग़लत नहीं होगा कि हिंदी भविष्य की भाषा है.

यदि समसामयिक गतिविधियों पर नज़र दौड़ाएंगे तो यह संभावना और भी ज़्यादा प्रबल होगी कि भविष्य में हिंदी का ही बोलबाला रहेगा.


सोमवार, 03 अप्रैल, 2006 को सर्वश्रेष्ठ हिंदी समाचार वेबसाइट बीबीसी हिंदी डॉट कॉम एवं बेवदुनिया डॉट कॉम में प्रकाशित मेरा लेख

क़ायम रहेगा हिंदी का वर्चस्व


भविष्य में हिंदी का वर्चस्व कम से कम दक्षिण एशिया के क्षेत्रों में तो अवश्य ही रहेगा और इसका कारण है बहुत बड़े वर्ग का हिंदी भाषा जानना.


बीबीसी हिंदी
हिंदी भाषा की महत्ता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विश्व की शीर्षतम सॉफ्टवेयर कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने अपने उत्पादों को हिंदी में बनाना भी शुरू किया है. एक कंपनी जो सारे विश्व में अंग्रेजी भाषा में अपने उत्पाद बेचती है, पर भारत में वह अपने सॉफ्टवेयर हिंदी में ला रही है.

इतना ही नहीं, मोबाइल कंपनियों ने अपने हैंडसेट्स में भारतीय भाषाओं को भी शामिल करना शुरू कर दिया है.

मीडिया सम्राट रूपर्ट मर्डोक जब भारत में अपना टीवी नेटवर्क शुरू करते हैं, तो वो भी हिंदी में. यह इस बात का इशारा है कि भारतीय जनमानस के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए हिंदी भाषा की सहायता बहुत ही ज़रूरी है.

वेब पत्रकारिता

जिस समय विश्व में इंटरनेट का पदार्पण हुआ उस समय जो डॉट कॉम कंपनियां उभरीं, उन्होंने अपना काम अंग्रेज़ी भाषा में शुरू किया, जबकि वेबदुनिया ने उस समय हिंदी पोर्टल शुरू किया.

अपने शैशव काल से लेकर आज तक इंटरनेट ने जो सीढ़ियां चढ़ीं हैं वो अपने आप में प्रतिमान हैं लेकिन जितनी प्रसिद्धि हिंदी भाषा की वेबसाइटों को मिलती है, उतनी किसी और को नहीं मिलती.

भारत में कोई भी वस्तु तब तक नहीं प्रचलित होती है, जब तक कि उसमें भारतीयता का पुट न सम्मिलित हो इसलिए हिंदी भाषा वो पुट है, जिसके बिना ख्याति संभव नहीं.

हमारे देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री अपना बधाई संदेश हिंदी में प्रसारित करते हैं क्योंकि हिंदी भाषा अपनत्व का बोध कराती है.

बीबीसी हिंदी और वेबदुनिया की वेबसाइटों को देखने वाले सबसे ज़्यादा लोग विदेशी हैं यानी वे भारतीय जो बाहर के देशों में बसे हैं. लगभग 80 प्रतिशत पेज इंप्रेशन तो उन्हीं से बनता है.

ऐसे में यह कहना कतई ग़लत नहीं होगा कि हिंदी भविष्य की भाषा है.

यदि समसामयिक गतिविधियों पर नज़र दौड़ाएंगे तो यह संभावना और भी ज़्यादा प्रबल होगी कि भविष्य में हिंदी का ही बोलबाला रहेगा.


सोमवार, 03 अप्रैल, 2006 को सर्वश्रेष्ठ हिंदी समाचार वेबसाइट बीबीसी हिंदी डॉट कॉम एवं बेवदुनिया डॉट कॉम में प्रकाशित मेरा लेख