किसी सभा में बाबा अपने अनुयायियों का आह्वान करते हुए |
क्या आप जानते हैं कि भारत में सबसे बड़ा और अमूमन सफल कारोबार किस चीज का है। अगर नहीं जानते हैं तो आपका ज्ञानवर्धन करते हुए हम बता रहे हैं कि भारत में धर्म सबसे बड़ा कारोबार है। धर्म के नाम पर आप एक आम भारतीय से बिना किसी लाग लपेट के पैसा निकलवा सकते हैं। जी हां, यह सच है और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी ने अपने शोध में इसे साबित भी कर दिया है।
यूनिवर्सिटी की शोध में बताया गया है कि भारत में धार्मिक संगठन न सिर्फ व्यावसायिक संगठनों की तरह काम करते हैं, बल्कि लोगों की निष्ठा बरकरार रखने के लिए अपनी गतिविधियों में विविधता भी लाते रहते हैं। इतना ही नहीं इन संगठनों के बीच कारोबारी संगठनों की तरह ही कड़ी स्पर्धा भी होती है।
यह अध्ययन भारतीय मूल की शिक्षाविद श्रेया अय्यर की अगुवाई में किया गया है। भारत के धार्मिक संगठनों से जुड़े इस अध्ययन के नतीजों का विवरण रिसर्च होराइजंस के ताजा संस्करण में प्रकाशित किया गया है। यह अध्ययन महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और गुजरात स्थित धार्मिक संगठनों पर किया गया।
अर्थशास्त्र विभाग के एक दल ने दो वर्षो तक भारत के अलग-अलग 568 धार्मिक संगठनों पर अध्ययन किया। इसमें भारतीय राज्यों के धार्मिक संगठनों की धार्मिक और गैर धार्मिक गतिविधियों पर अध्ययन किया गया। जिसमें निष्कर्ष निकला कि जिस तरह कारोबारी बाजार में अपने प्रतिस्पर्धियों से आगे निकलने की कोशिश करते हैं, उसी तरह धार्मिक संगठन भी स्पर्धा में आगे निकलने के लिए अपने आसपास के राजनीतिक, आर्थिक और अन्य तरह के माहौल को बदलते हैं।
अध्ययन के मुताबिक भारतीय धार्मिक संगठन रक्तदान, नेत्र शिविर, चिकित्सा सेवा शिविर और गरीबों के लिए सामूहिक विवाह जैसे कई कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, ताकि अपने से जुड़े लोगों की निष्ठा को बरकरार रख सकें और अन्य लोगों को अपनी ओर खींच सकें। विचारधारा के मामले पर धार्मिक संगठन उसी तरह का रुख अपनाते हैं जैसे कारोबारी संगठन अपनी बिक्री बढ़ाने की कोशिश के लिए नीतियां अपनाते हैं।
एक बात और, यह धार्मिक संगठन अपने पत्र पत्रिकाएं भी प्रकाशित करते हैं तथा विभिन्न धार्मिक आयोजनों के दौरान कलम, कॉपियां, अंगूठियां, गले की चेन एवं लॉकेट, चाबी के छल्ले जैसे वस्तुएं तक बेचते हैं, जिससे इनका प्रचार भी होता है तथा आमदनी भी बढ़ती है।
जय हो बाबाओं की।
ReplyDeleteबाबा बाबा सब करें, बाबा बनें न कोई।
जो सब अच्छे बाबा बनें, तो ये धंधा काहे को होई।।
समस्त जीवित बाबाओं को भावभीनी श्रद्धांजली...
सादर
अंकुर विजय
जय हो अंकुर जी की
ReplyDeletebaaba re baaba !!
ReplyDeleteजब तक खरीदने वाले ग्राहक रहेंगे , बेचने वाले बढ़ते जाएंगे , जब बेचने वाले बढ़ेंगे तोह उनमे ज्यादा ग्राहक लुभाने की प्रतिस्पर्धा होगी , ज्यादा प्रति स्पर्धा से ग्राहकों का ज्यादा फायदा होगा . - 'Capitalism 101'
ReplyDeleteअब भले वोह टेलिकॉम सेक्टर में हो या धार्मिक सेक्टर में .
मोह और माया से आपको 'बचने वाले ' ये लोग , मोह , माया से आपको लुभायेंगे नहीं तोह आप उनसे कैसे जुड़ेंगे ?