Sunday, August 31, 2008

गर्माता मीडिया बाजार..

* पीपुल्स ग्रुप का समाचार पत्र जल्द

पीपुल्स ग्रुप का दैनिक अखबार भोपाल में एक अक्टूबर से लांच होने जा रहा है। वरिष्ठ पत्रकार महेश श्रीवास्तव इसके प्रधान संपादक हैं। कई अखबारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ललित शास्त्री इसके स्थानीय संपादक होंगे।

* पीपुल्स न्यूज एजेंसी में भंडारी

यूएनआई में कई वर्षों तक काम कर चुके श्री एके भंडारी पीपुल्स ग्रुप द्वारा शुरु की जा रही समाचार एजेंसी पीपुल्स न्यूज एजेंसी के सर्वेसर्वा होंगे।

* सांध्य यश भारत भोपाल से

जबलपुर का प्रसिद्ध इवनिंगर अखबार यश भारत जल्द ही भोपाल संस्करण शुरु करने जा रहा है

* हरिभूमि जबलपुर से

हरिभूमि अखबार जल्द ही जबलपुर संस्करण शुरु करने जा रहा है। इसका अपकंट्री एडीशन 14 सितंबर से शुरु होने की उम्मीद है। सीनियर जर्नलिस्ट निशांत शर्मा इसके एडीटर होंगे।।

* पत्रिका भी जल्द हो सकता है शुरु

ऐसी खबरें हैं कि राजस्थान पत्रिका भोपाल के बाद अपना इंदौर संस्करण भी इसी महीने शुरु कर सकता है। सूत्रों से मिली खबरों के मुताबिक 15 सितंबर से एडीशन शुरु किया जा सकता है।

गर्माता मीडिया बाजार..

* पीपुल्स ग्रुप का समाचार पत्र जल्द

पीपुल्स ग्रुप का दैनिक अखबार भोपाल में एक अक्टूबर से लांच होने जा रहा है। वरिष्ठ पत्रकार महेश श्रीवास्तव इसके प्रधान संपादक हैं। कई अखबारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ललित शास्त्री इसके स्थानीय संपादक होंगे।

* पीपुल्स न्यूज एजेंसी में भंडारी

यूएनआई में कई वर्षों तक काम कर चुके श्री एके भंडारी पीपुल्स ग्रुप द्वारा शुरु की जा रही समाचार एजेंसी पीपुल्स न्यूज एजेंसी के सर्वेसर्वा होंगे।

* सांध्य यश भारत भोपाल से

जबलपुर का प्रसिद्ध इवनिंगर अखबार यश भारत जल्द ही भोपाल संस्करण शुरु करने जा रहा है

* हरिभूमि जबलपुर से

हरिभूमि अखबार जल्द ही जबलपुर संस्करण शुरु करने जा रहा है। इसका अपकंट्री एडीशन 14 सितंबर से शुरु होने की उम्मीद है। सीनियर जर्नलिस्ट निशांत शर्मा इसके एडीटर होंगे।।

* पत्रिका भी जल्द हो सकता है शुरु

ऐसी खबरें हैं कि राजस्थान पत्रिका भोपाल के बाद अपना इंदौर संस्करण भी इसी महीने शुरु कर सकता है। सूत्रों से मिली खबरों के मुताबिक 15 सितंबर से एडीशन शुरु किया जा सकता है।

Friday, August 29, 2008

हिंदी का बेहतर भविष्य: मार्क टली

ब्रिटिश मूल के वरिष्ठ पत्रकार मार्क टली ने कहा कि सरकारी अनुदान और सरकारी माध्यमों के दायरे से बाहर निकल कर हिंदी का बेहतर भविष्य है। टली जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी हिंदी का भविष्य भविष्य की हिंदी के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए यह कहा। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी के विरोध में आंदोलन से बेहतर होता कि हिंदी को मजबूत करने का आंदोलन किया जाता। टली ने कहा कि हिंदी को स्वत: विकसित होने देना चाहिए। इससे यह शक्तिशाली होगी। इसके अधिक से अधिक विकास के लिए हिंदी तथा अन्य भाषाओं में अधिक से अधिक अंतरभाषिक अनुवाद कार्य होने चाहिए।

हिंदी का बेहतर भविष्य: मार्क टली

ब्रिटिश मूल के वरिष्ठ पत्रकार मार्क टली ने कहा कि सरकारी अनुदान और सरकारी माध्यमों के दायरे से बाहर निकल कर हिंदी का बेहतर भविष्य है। टली जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी हिंदी का भविष्य भविष्य की हिंदी के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए यह कहा। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी के विरोध में आंदोलन से बेहतर होता कि हिंदी को मजबूत करने का आंदोलन किया जाता। टली ने कहा कि हिंदी को स्वत: विकसित होने देना चाहिए। इससे यह शक्तिशाली होगी। इसके अधिक से अधिक विकास के लिए हिंदी तथा अन्य भाषाओं में अधिक से अधिक अंतरभाषिक अनुवाद कार्य होने चाहिए।

Thursday, August 21, 2008

आजाद है भारत..

आजाद है भारत,

आजादी के पर्व की शुभकामनाएँ।

पर आजाद नहीं जन भारत के,

फिर से छेड़ें संग्रामजन की आजादी लाएँ।

देशभक्ति से ऒतप्रोत यह रचना है श्रीमान दिनेशराय द्विवेदी की।

आजाद है भारत..

आजाद है भारत,

आजादी के पर्व की शुभकामनाएँ।

पर आजाद नहीं जन भारत के,

फिर से छेड़ें संग्रामजन की आजादी लाएँ।

देशभक्ति से ऒतप्रोत यह रचना है श्रीमान दिनेशराय द्विवेदी की।

भारतीय तिरंगे का इतिहास..

"सभी राष्‍ट्रों के लिए एक ध्‍वज होना अनिवार्य है। लाखों लोगों ने इस पर अपनी जान न्‍यौछावर की है। यह एक प्रकार की पूजा है, जिसे नष्‍ट करना पाप होगा। ध्‍वज एक आदर्श का प्रतिनिधित्‍व करता है। यूनियन जैक अंग्रेजों के मन में भावनाएं जगाता है जिसकी शक्ति को मापना कठिन है। अमेरिकी नागरिकों के लिए ध्‍वज पर बने सितारे और पट्टियों का अर्थ उनकी दुनिया है। इस्‍लाम धर्म में सितारे और अर्ध चन्‍द्र का होना सर्वोत्तम वीरता का आहवान करता है। "

"हमारे लिए यह अनिवार्य होगा कि हम भारतीय मुस्लिम, ईसाई, ज्‍यूस, पारसी और अन्‍य सभी, जिनके लिए भारत एक घर है, एक ही ध्‍वज को मान्‍यता दें और इसके लिए मर मिटें।"

- महात्‍मा गांधी

प्रत्‍येक स्‍वतंत्र राष्‍ट्र का अपना एक ध्‍वज होता है। यह एक स्‍वतंत्र देश होने का संकेत है। भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज की अभिकल्‍पना पिंगली वैंकैयानन्‍द ने की थी और इसे इसके वर्तमान स्‍वरूप में 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था, जो 15 अगस्‍त 1947 को अंग्रेजों से भारत की स्‍वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व की गई थी। इसे 15 अगस्‍त 1947 और 26 जनवरी 1950 के बीच भारत के राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाया गया और इसके पश्‍चात भारतीय गणतंत्र ने इसे अपनाया। भारत में ‘’तिरंगे’’ का अर्थ भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज है।

भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज में तीन रंग की क्षैतिज पट्टियां हैं, सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद ओर नीचे गहरे हरे रंग की प‍ट्टी और ये तीनों समानुपात में हैं। ध्‍वज की चौड़ाई का अनुपात इसकी लंबाई के साथ 2 और 3 का है। सफेद पट्टी के मध्‍य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है। यह चक्र अशोक की राजधानी के सारनाथ के शेर के स्‍तंभ पर बना हुआ है। इसका व्‍यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है और इसमें 24 तीलियां है।
तिरंगे का विकास
यह जानना अत्‍यंत रोचक है कि हमारा राष्‍ट्रीय ध्‍वज अपने आरंभ से किन-किन परिवर्तनों से गुजरा। इसे हमारे स्‍वतंत्रता के राष्‍ट्रीय संग्राम के दौरान खोजा गया या मान्‍यता दी गई। भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज का विकास आज के इस रूप में पहुंचने के लिए अनेक दौरों में से गुजरा। एक रूप से यह राष्‍ट्र में राजनैतिक विकास को दर्शाता है। हमारे राष्‍ट्रीय ध्‍वज के विकास में कुछ ऐतिहासिक पड़ाव इस प्रकार हैं :-
* प्रथम राष्‍ट्रीय ध्‍वज 7 अगस्‍त 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में फहराया गया था जिसे अब कोलकाता कहते हैं। इस ध्‍वज को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था।
* द्वितीय ध्‍वज को पेरिस में मैडम कामा और 1907 में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था (कुछ के अनुसार 1905 में)। यह भी पहले ध्‍वज के समान था सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपरी की पट्टी पर केवल एक कमल था किंतु सात तारे सप्‍तऋषि को दर्शाते हैं। यह ध्‍वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्‍मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।
* तृतीय ध्‍वज 1917 में आया जब हमारे राजनैतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड लिया। डॉ. एनी बीसेंट और लोकमान्‍य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया। इस ध्‍वज में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्‍तऋषि के अभिविन्‍यास में इस पर बने सात सितारे थे। बांयी और ऊपरी किनारे पर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।
* अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान जो 1921 में बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में किया गया यहां आंध्र प्रदेश के एक युवक ने एक झंडा बनाया और गांधी जी को दिया। यह दो रंगों का बना था। लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्‍दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्‍व करता है। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्‍व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्‍ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए।
* वर्ष 1931 ध्‍वज के इतिहास में एक यादगार वर्ष है। तिरंगे ध्‍वज को हमारे राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्‍ताव पारित किया गया । यह ध्‍वज जो वर्तमान स्‍वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्‍य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था। तथापि यह स्‍पष्‍ट रूप से बताया गया इसका कोई साम्‍प्रदायिक महत्‍व नहीं था और इसकी व्‍याख्‍या इस प्रकार की जानी थी।
* 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे मुक्‍त भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाया। स्‍वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्‍व बना रहा। केवल ध्‍वज में चलते हुए चरखे के स्‍थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को दिखाया गया। इस प्रकार कांग्रेस पार्टी का तिरंगा ध्‍वज अंतत: स्‍वतंत्र भारत का तिरंगा ध्‍वज बना।
ध्‍वज के रंग: भारत के राष्‍ट्रीय ध्‍वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच में स्थित सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्‍य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है।
चक्र: इस धर्म चक्र को विधि का चक्र कहते हैं जो तीसरी शताब्‍दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया है। इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन गति‍शील है और रुकने का अर्थ मृत्‍यु है।
भारतीय राष्ट्रीय पोर्टल से साभार

भारतीय तिरंगे का इतिहास..

"सभी राष्‍ट्रों के लिए एक ध्‍वज होना अनिवार्य है। लाखों लोगों ने इस पर अपनी जान न्‍यौछावर की है। यह एक प्रकार की पूजा है, जिसे नष्‍ट करना पाप होगा। ध्‍वज एक आदर्श का प्रतिनिधित्‍व करता है। यूनियन जैक अंग्रेजों के मन में भावनाएं जगाता है जिसकी शक्ति को मापना कठिन है। अमेरिकी नागरिकों के लिए ध्‍वज पर बने सितारे और पट्टियों का अर्थ उनकी दुनिया है। इस्‍लाम धर्म में सितारे और अर्ध चन्‍द्र का होना सर्वोत्तम वीरता का आहवान करता है। "

"हमारे लिए यह अनिवार्य होगा कि हम भारतीय मुस्लिम, ईसाई, ज्‍यूस, पारसी और अन्‍य सभी, जिनके लिए भारत एक घर है, एक ही ध्‍वज को मान्‍यता दें और इसके लिए मर मिटें।"

- महात्‍मा गांधी

प्रत्‍येक स्‍वतंत्र राष्‍ट्र का अपना एक ध्‍वज होता है। यह एक स्‍वतंत्र देश होने का संकेत है। भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज की अभिकल्‍पना पिंगली वैंकैयानन्‍द ने की थी और इसे इसके वर्तमान स्‍वरूप में 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था, जो 15 अगस्‍त 1947 को अंग्रेजों से भारत की स्‍वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व की गई थी। इसे 15 अगस्‍त 1947 और 26 जनवरी 1950 के बीच भारत के राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाया गया और इसके पश्‍चात भारतीय गणतंत्र ने इसे अपनाया। भारत में ‘’तिरंगे’’ का अर्थ भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज है।

भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज में तीन रंग की क्षैतिज पट्टियां हैं, सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद ओर नीचे गहरे हरे रंग की प‍ट्टी और ये तीनों समानुपात में हैं। ध्‍वज की चौड़ाई का अनुपात इसकी लंबाई के साथ 2 और 3 का है। सफेद पट्टी के मध्‍य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है। यह चक्र अशोक की राजधानी के सारनाथ के शेर के स्‍तंभ पर बना हुआ है। इसका व्‍यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है और इसमें 24 तीलियां है।
तिरंगे का विकास
यह जानना अत्‍यंत रोचक है कि हमारा राष्‍ट्रीय ध्‍वज अपने आरंभ से किन-किन परिवर्तनों से गुजरा। इसे हमारे स्‍वतंत्रता के राष्‍ट्रीय संग्राम के दौरान खोजा गया या मान्‍यता दी गई। भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज का विकास आज के इस रूप में पहुंचने के लिए अनेक दौरों में से गुजरा। एक रूप से यह राष्‍ट्र में राजनैतिक विकास को दर्शाता है। हमारे राष्‍ट्रीय ध्‍वज के विकास में कुछ ऐतिहासिक पड़ाव इस प्रकार हैं :-
* प्रथम राष्‍ट्रीय ध्‍वज 7 अगस्‍त 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में फहराया गया था जिसे अब कोलकाता कहते हैं। इस ध्‍वज को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था।
* द्वितीय ध्‍वज को पेरिस में मैडम कामा और 1907 में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था (कुछ के अनुसार 1905 में)। यह भी पहले ध्‍वज के समान था सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपरी की पट्टी पर केवल एक कमल था किंतु सात तारे सप्‍तऋषि को दर्शाते हैं। यह ध्‍वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्‍मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।
* तृतीय ध्‍वज 1917 में आया जब हमारे राजनैतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड लिया। डॉ. एनी बीसेंट और लोकमान्‍य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया। इस ध्‍वज में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्‍तऋषि के अभिविन्‍यास में इस पर बने सात सितारे थे। बांयी और ऊपरी किनारे पर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।
* अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान जो 1921 में बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में किया गया यहां आंध्र प्रदेश के एक युवक ने एक झंडा बनाया और गांधी जी को दिया। यह दो रंगों का बना था। लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्‍दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्‍व करता है। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्‍व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्‍ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए।
* वर्ष 1931 ध्‍वज के इतिहास में एक यादगार वर्ष है। तिरंगे ध्‍वज को हमारे राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्‍ताव पारित किया गया । यह ध्‍वज जो वर्तमान स्‍वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्‍य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था। तथापि यह स्‍पष्‍ट रूप से बताया गया इसका कोई साम्‍प्रदायिक महत्‍व नहीं था और इसकी व्‍याख्‍या इस प्रकार की जानी थी।
* 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे मुक्‍त भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाया। स्‍वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्‍व बना रहा। केवल ध्‍वज में चलते हुए चरखे के स्‍थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को दिखाया गया। इस प्रकार कांग्रेस पार्टी का तिरंगा ध्‍वज अंतत: स्‍वतंत्र भारत का तिरंगा ध्‍वज बना।
ध्‍वज के रंग: भारत के राष्‍ट्रीय ध्‍वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच में स्थित सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्‍य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है।
चक्र: इस धर्म चक्र को विधि का चक्र कहते हैं जो तीसरी शताब्‍दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया है। इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन गति‍शील है और रुकने का अर्थ मृत्‍यु है।
भारतीय राष्ट्रीय पोर्टल से साभार

पंकज पाराशर भास्कर में..

एचटी मीडिया लिमिटेड की मैगजीन कादम्बिनी में वरिष्ठ उप संपादक पंकज पाराशर ने वहां से इस्तीफा देकर दैनिक भास्कर भोपाल बतौर न्यूज एडीटर ज्वाइन कर रहे हैं। वो नईदुनिया अखबार में भी नियमित रूप से लिखते रहे हैं।

Thursday, August 14, 2008

भारत दोबारा अपनी पहचान बनाएगा


रात 12 बजे जब दुनिया सो रही होगी तब भारत जीवन और स्‍वतंत्रता पाने के लिए जागेगा। एक ऐसा क्षण जो इतिहास में दुर्लभ है, जब हम पुराने युग से नए युग की ओर कदम बढ़ाएंगे. . . भारत दोबारा अपनी पहचान बनाएगा।"

पंडित जवाहरलाल नेह‍रू

(भारतीय स्‍वतंत्रता दिवस, 1947 के अवसर पर)


हमारी शानदार आजादी की 61वीं वर्षगांठ

यह एक देश भक्ति से भरा हुआ हृदय था, जिसमें आजादी के लिए प्‍यार और हमारी प्‍यारी मातृभूमि के लिए अमर समर्पण था जो 200 साल तक अंग्रेजों के राज के अधीन रहने के पर भी बना रहा और हमें अंग्रेजों से आजादी मिली।


महत्‍वपूर्ण
15 अगस्‍त 1947, वह दिन था जब भारत को ब्रिटिश राज से आजादी मिली और इस प्रकार एक नए युग की शुरूआत हुई जब भारत के मुक्‍त राष्‍ट्र के रूप में उठा। स्‍वतंत्रता दिवस के दिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र, भारत के जन्‍म का आयोजन किया जाता है और भारतीय इतिहास में इस दिन का अत्‍यंत महत्‍व है।


भारतीय स्‍वतंत्रता के संघर्ष में अनेक अध्‍याय जुड़े हैं जो 1857 की क्रांति से लेकर जलियांवाला बाग नरसंहार, असहयोग आंदोलन से लेकर नमक सत्‍याग्रह तक अनेक हैं। भारत ने एक लंबी यात्रा तय की है जिसमें अनेक राष्‍ट्रीय और क्षेत्रीय अभियान हुए और इसमें उपयोग किए गए दो प्रमुख अस्‍त्र थे सत्‍य और अहिंसा।


हमारी स्‍वतंत्रता के संघर्ष में भारत के राजनैतिक संगठनों के व्‍यापक रंग, उनकी दर्शन धारा और आंदोलन शामिल हैं जो एक महान कारण के लिए एक साथ मिलकर चले और ब्रिटिश उप निवेश साम्राज्‍य का अंत हुआ और एक स्‍वतंत्र राष्‍ट्र का जन्‍म हुआ। यह दिन हमारी आजादी का जश्‍न मनाने और उस सभी शहीदों को श्रंद्धाजलि देने का अवसर जिन्‍होंने इस महान कारण के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया। स्‍वतंत्रता दिवस पर प्रत्‍येक भारतीय के मन में राष्‍ट्रीयता, भाई चारे और निष्‍ठा की भावना भर जाती है।

भारतीय राष्‍ट्रीय पोर्टल से साभार

भारत दोबारा अपनी पहचान बनाएगा


रात 12 बजे जब दुनिया सो रही होगी तब भारत जीवन और स्‍वतंत्रता पाने के लिए जागेगा। एक ऐसा क्षण जो इतिहास में दुर्लभ है, जब हम पुराने युग से नए युग की ओर कदम बढ़ाएंगे. . . भारत दोबारा अपनी पहचान बनाएगा।"

पंडित जवाहरलाल नेह‍रू

(भारतीय स्‍वतंत्रता दिवस, 1947 के अवसर पर)


हमारी शानदार आजादी की 61वीं वर्षगांठ

यह एक देश भक्ति से भरा हुआ हृदय था, जिसमें आजादी के लिए प्‍यार और हमारी प्‍यारी मातृभूमि के लिए अमर समर्पण था जो 200 साल तक अंग्रेजों के राज के अधीन रहने के पर भी बना रहा और हमें अंग्रेजों से आजादी मिली।


महत्‍वपूर्ण
15 अगस्‍त 1947, वह दिन था जब भारत को ब्रिटिश राज से आजादी मिली और इस प्रकार एक नए युग की शुरूआत हुई जब भारत के मुक्‍त राष्‍ट्र के रूप में उठा। स्‍वतंत्रता दिवस के दिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र, भारत के जन्‍म का आयोजन किया जाता है और भारतीय इतिहास में इस दिन का अत्‍यंत महत्‍व है।


भारतीय स्‍वतंत्रता के संघर्ष में अनेक अध्‍याय जुड़े हैं जो 1857 की क्रांति से लेकर जलियांवाला बाग नरसंहार, असहयोग आंदोलन से लेकर नमक सत्‍याग्रह तक अनेक हैं। भारत ने एक लंबी यात्रा तय की है जिसमें अनेक राष्‍ट्रीय और क्षेत्रीय अभियान हुए और इसमें उपयोग किए गए दो प्रमुख अस्‍त्र थे सत्‍य और अहिंसा।


हमारी स्‍वतंत्रता के संघर्ष में भारत के राजनैतिक संगठनों के व्‍यापक रंग, उनकी दर्शन धारा और आंदोलन शामिल हैं जो एक महान कारण के लिए एक साथ मिलकर चले और ब्रिटिश उप निवेश साम्राज्‍य का अंत हुआ और एक स्‍वतंत्र राष्‍ट्र का जन्‍म हुआ। यह दिन हमारी आजादी का जश्‍न मनाने और उस सभी शहीदों को श्रंद्धाजलि देने का अवसर जिन्‍होंने इस महान कारण के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया। स्‍वतंत्रता दिवस पर प्रत्‍येक भारतीय के मन में राष्‍ट्रीयता, भाई चारे और निष्‍ठा की भावना भर जाती है।

भारतीय राष्‍ट्रीय पोर्टल से साभार

Wednesday, August 13, 2008

कोटा से अलीगढ़..

दैनिक भास्कर कोटा के सेंट्रल डेस्क इंचार्ज सुशील झा ने संस्थान से इस्तीफा देकर दैनिक जागरण अलीगढ़ ज्वाइन कर लिया है। वे पिछले नौ वर्षों से दैनिक भास्कर में कार्यरत थे। नई शुरुआत के लिए उन्हें बधाई।

Monday, August 4, 2008

पत्रिका डॉट कॉम

राजस्थान पत्रिका ने अपनी वेबसाइट को नए नाम के साथ रीलांच किया है। इसके तहत आमूल-चूल बदलाव किए गए हैं। साइट डॉट नेट तकनीक के साथ यूनीकोड स्क्रिप्ट में बनाई गई है। इसमें पत्रिका से सभी संस्करणों की खबरों के अलावा वीडियो और ऑडियो न्यूज भी उपलब्ध है। फिलहाल साइट का बीटा वर्जन लांच किया गया है। हालांकि ई-पेपर पर भी पत्रिका को ध्यान देना चाहिए था। पहले भी उनकी यह सेवा संतोषजनक नहीं थी और इस बार तो उसे साइट से हटा ही दिया गया है। इसका लिंक हैः www.patrika.com