Saturday, January 29, 2011

दिल्ली सबसे असुरक्षित महानगर


दिल्ली के खाते में एक और बदनुमा दाग जुड़ गया है और यह देश का सबसे असुरक्षित महानगर बन गया है। चाहे अपराध हो या महिलाओं और बच्चों पर अत्याचार की गिनती, राष्ट्रीय राजधानी इन सबमें अव्वल हो गई है।

सरकार के ताजातरीन आँकड़ों के मुताबिक 2009 में देश के बड़े 35 नगरों में हुए 343749 अपराधों में दिल्ली का हिस्सा सबसे ज्यादा 13.2 फीसदी रहा। इसके बाद बेंगलुरु (9.4 फीसदी) और मुंबई (9.1 फीसदी) का स्थान रहा।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में बताया गया कि इन शहरों में बलात्कार के कुल 1696 मामलों में केवल दिल्ली में 404 मामले हुए। महिलाओं के अपहरण में भी दिल्ली का हिस्सा सबसे अधिक रहा। फिरौती 3544 मामलों में राजधानी का हिस्सा 38.9 फीसदी रहा।

2009 में दिल्ली में दहेज के दानवों ने कई नववधुओं को लील लिया। देश के बड़े 35 शहरों में दहेज हत्या के 684 मामलों में अकेली दिल्ली में 104 मामले सामने आए। छेड़छाड़ के मामलों में भी दिल्ली पीछे नहीं रही। कुल 3477 मामलों में यहाँ 14.1 फीसदी यानी 491 मामले हुए।

दिल्ली सबसे असुरक्षित महानगर


दिल्ली के खाते में एक और बदनुमा दाग जुड़ गया है और यह देश का सबसे असुरक्षित महानगर बन गया है। चाहे अपराध हो या महिलाओं और बच्चों पर अत्याचार की गिनती, राष्ट्रीय राजधानी इन सबमें अव्वल हो गई है।

सरकार के ताजातरीन आँकड़ों के मुताबिक 2009 में देश के बड़े 35 नगरों में हुए 343749 अपराधों में दिल्ली का हिस्सा सबसे ज्यादा 13.2 फीसदी रहा। इसके बाद बेंगलुरु (9.4 फीसदी) और मुंबई (9.1 फीसदी) का स्थान रहा।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में बताया गया कि इन शहरों में बलात्कार के कुल 1696 मामलों में केवल दिल्ली में 404 मामले हुए। महिलाओं के अपहरण में भी दिल्ली का हिस्सा सबसे अधिक रहा। फिरौती 3544 मामलों में राजधानी का हिस्सा 38.9 फीसदी रहा।

2009 में दिल्ली में दहेज के दानवों ने कई नववधुओं को लील लिया। देश के बड़े 35 शहरों में दहेज हत्या के 684 मामलों में अकेली दिल्ली में 104 मामले सामने आए। छेड़छाड़ के मामलों में भी दिल्ली पीछे नहीं रही। कुल 3477 मामलों में यहाँ 14.1 फीसदी यानी 491 मामले हुए।

Friday, January 28, 2011

ज्वलंत विषय

ज्वलंत विषय ढूंढ़ा ताकि उस पर कुछ लिखूं
पाया हर चीज़ ज्वलनशील है

कभी देश तो कभी जनता जलती है
कभी शांति तो कभी नैतिकता धधकती है

सर पर टोपी हाथ में सीधी छड़ी वाला
वह युग बीत गया
तन पर सूट, हाथ में बंदूक लिए
शासक वह युग लूट गया

पाठकों ने कहा
यह तो घिसा पिटा विषय है
इस पर न लिखने को कुछ शेष है

लेकिन उन्हें न यह पता
यह तो अवशेष है
मूल बातें हैं लापता

भव्य समारोह की तैयारी थी
गोरी काली कन्याओं की सभा लगाई थी
आपस में गिट पिट कर
सुंदरी का खिताब किसी ने जीत लिया

सारी जनता बौखलाई सी
उमड़ी भीड़ देने बधाई
क्या पता उसे यह ताज किसलिए दिया गया
संस्कृति अपनी मर चुकी
उसी के शोक पर मनाई जा रही खुशी।

कहीं देश फैशन परस्त, तो कहीं पस्त है
कहीं नेताओं की तानाशाही
तो कहीं जनता की किस्मत अस्त है
इसी उलझन में फंसा
ज्वलंत विषय न ढूंढ़ सका।

नीहारिका जी की रचना

ज्वलंत विषय

ज्वलंत विषय ढूंढ़ा ताकि उस पर कुछ लिखूं
पाया हर चीज़ ज्वलनशील है

कभी देश तो कभी जनता जलती है
कभी शांति तो कभी नैतिकता धधकती है

सर पर टोपी हाथ में सीधी छड़ी वाला
वह युग बीत गया
तन पर सूट, हाथ में बंदूक लिए
शासक वह युग लूट गया

पाठकों ने कहा
यह तो घिसा पिटा विषय है
इस पर न लिखने को कुछ शेष है

लेकिन उन्हें न यह पता
यह तो अवशेष है
मूल बातें हैं लापता

भव्य समारोह की तैयारी थी
गोरी काली कन्याओं की सभा लगाई थी
आपस में गिट पिट कर
सुंदरी का खिताब किसी ने जीत लिया

सारी जनता बौखलाई सी
उमड़ी भीड़ देने बधाई
क्या पता उसे यह ताज किसलिए दिया गया
संस्कृति अपनी मर चुकी
उसी के शोक पर मनाई जा रही खुशी।

कहीं देश फैशन परस्त, तो कहीं पस्त है
कहीं नेताओं की तानाशाही
तो कहीं जनता की किस्मत अस्त है
इसी उलझन में फंसा
ज्वलंत विषय न ढूंढ़ सका।

नीहारिका जी की रचना

मैं मनुष्य हूं

पूछो नहीं नाम मेरा
मैं बड़ा अभागा हूं
मैं लक्ष्यहीन पंथहीन
राहों की छाया हूं

मैंने कितने अनर्थ किए
कार्य कितने व्यर्थ किए

स्वार्थ अपने पूर्ण करने को
औरों के हक छीनने को
मनुष्य जन्म लेकर मैं आया हूं
विकट संकट की प्रतिछाया हूं

निद्रा मेरी अब टूटी है
जब जीर्ण शीर्ण संस्कृति बची है

चारों ओर अशांति मची है
देश अब इन भूतों के लिए खंडहर शेष
यह देश का अब चिन्ह विशेष
कुरूप अब एक काया हूं
क्योंकि मैं मनुष्य जन्म लेकर आया हूं।

नीहारिका जी की रचना

मैं मनुष्य हूं

पूछो नहीं नाम मेरा
मैं बड़ा अभागा हूं
मैं लक्ष्यहीन पंथहीन
राहों की छाया हूं

मैंने कितने अनर्थ किए
कार्य कितने व्यर्थ किए

स्वार्थ अपने पूर्ण करने को
औरों के हक छीनने को
मनुष्य जन्म लेकर मैं आया हूं
विकट संकट की प्रतिछाया हूं

निद्रा मेरी अब टूटी है
जब जीर्ण शीर्ण संस्कृति बची है

चारों ओर अशांति मची है
देश अब इन भूतों के लिए खंडहर शेष
यह देश का अब चिन्ह विशेष
कुरूप अब एक काया हूं
क्योंकि मैं मनुष्य जन्म लेकर आया हूं।

नीहारिका जी की रचना

बदल गया है


दो मिट्टी इन हाथों में
यह मिट्टी मेरे भारत की है
होती थी जो कभी वीरों का तिलक
वो धूल अब आंखों की किरकिरी बनकर पड़ती है
सुगंध से जिसके लोग न अघाते थे
अब उस मिट्टी को ढंककर लोग पक्की सड़कें बनवाते हैं
और दौड़ लगाते हैं इस छोर से उस छोर तक
जहां न मिट्टी की झलक न हरियाली है
केवल भारत के इतिहास पर
मिट्टी पड़ी नज़र आती है।

नीहारिका जी की रचना

बदल गया है


दो मिट्टी इन हाथों में
यह मिट्टी मेरे भारत की है
होती थी जो कभी वीरों का तिलक
वो धूल अब आंखों की किरकिरी बनकर पड़ती है
सुगंध से जिसके लोग न अघाते थे
अब उस मिट्टी को ढंककर लोग पक्की सड़कें बनवाते हैं
और दौड़ लगाते हैं इस छोर से उस छोर तक
जहां न मिट्टी की झलक न हरियाली है
केवल भारत के इतिहास पर
मिट्टी पड़ी नज़र आती है।

नीहारिका जी की रचना

वृक्ष

जीवन का आधार दिया है
सुयोग्य तुम्हे विकास दिया है
हरियाली ही जीवन है यह मंत्रोच्चार दिया है

कांटों का दुख सहकर
फूल तुमपर बरसाए हैं
समान दृष्टि डाली सबपर
और समानता का नया आयाम दिया है

पर तुमने हमसे सब छीना है
चोट पर चोट करते रहे सदियों से तुम
क्रूरता की सीमा भी लांघी तुमने
दर्द की विभीषिका को मौन रहकर
स्वीकार हमनें किया है

अब वक्त हमारा आया है
जीवन का अधिकार हम भी छीनेंगे
हद की सीमाएं लांघी तुमने
तो हम भी हर सीमाएं तोड़ेंगे।

नीहारिका जी की रचना

वृक्ष

जीवन का आधार दिया है
सुयोग्य तुम्हे विकास दिया है
हरियाली ही जीवन है यह मंत्रोच्चार दिया है

कांटों का दुख सहकर
फूल तुमपर बरसाए हैं
समान दृष्टि डाली सबपर
और समानता का नया आयाम दिया है

पर तुमने हमसे सब छीना है
चोट पर चोट करते रहे सदियों से तुम
क्रूरता की सीमा भी लांघी तुमने
दर्द की विभीषिका को मौन रहकर
स्वीकार हमनें किया है

अब वक्त हमारा आया है
जीवन का अधिकार हम भी छीनेंगे
हद की सीमाएं लांघी तुमने
तो हम भी हर सीमाएं तोड़ेंगे।

नीहारिका जी की रचना

Saturday, January 15, 2011

नहीं शुरू होगा फाइनेंशियल वर्ल्ड

तहलका की प्रकाशक कंपनी अनंत मीडिया प्राइवेट लिमिटेड ने अपना बहुप्रतीक्षित बिजनेस अखबार शुरू करने से पहले ही बंद करने का ऐलान कर दिया है। कंपनी सूत्रों की मानें तो, आर्थिक कारणों के चलते कंपनी को यह फैसला लेना पड़ा।

तहलका के प्रमुख संपादक तथा अनंत मीडिया के प्रवर्तक तरुण जे. तेजपाल ने शुक्रवार (14 जनवरी 2011) को बुलाई एक बैठक में कर्मचारियों को इसकी सूचना दी। बैठक में सभी को सूचित किया गया कि फाइनेंशियल वर्ल्ड नाम से आने वाला यह अखबार अब नहीं निकाला जाएगा।

अनंत मीडिया कंपनी के प्रमुख स्टेकहोल्डर एवं फाइनेंशियल वर्ल्ड शीर्षक के मालिक केडी सिंह भी इस प्रोजेक्ट से अलग हो चुके हैं। सिंह चंडीगढ़ स्थित अलकेमिस्ट ग्रुप के अध्यक्ष भी हैं।

अखबार के साथ जुड़े वरिष्ट पत्रकारों ने पहले ही संस्थान से इस्तीफा दे दिया था।

वहीं टिकरप्लांट लिमिटेड ने भी अपने ऑपरेशंस बंद करने का ऐलान कर दिया है। बिजनेस समाचार देने वाली यह सेवा फाइनेशिंयल टेक्नोलॉजीस समूह द्वारा संचालित की जा रही थी।

नहीं शुरू होगा फाइनेंशियल वर्ल्ड

तहलका की प्रकाशक कंपनी अनंत मीडिया प्राइवेट लिमिटेड ने अपना बहुप्रतीक्षित बिजनेस अखबार शुरू करने से पहले ही बंद करने का ऐलान कर दिया है। कंपनी सूत्रों की मानें तो, आर्थिक कारणों के चलते कंपनी को यह फैसला लेना पड़ा।

तहलका के प्रमुख संपादक तथा अनंत मीडिया के प्रवर्तक तरुण जे. तेजपाल ने शुक्रवार (14 जनवरी 2011) को बुलाई एक बैठक में कर्मचारियों को इसकी सूचना दी। बैठक में सभी को सूचित किया गया कि फाइनेंशियल वर्ल्ड नाम से आने वाला यह अखबार अब नहीं निकाला जाएगा।

अनंत मीडिया कंपनी के प्रमुख स्टेकहोल्डर एवं फाइनेंशियल वर्ल्ड शीर्षक के मालिक केडी सिंह भी इस प्रोजेक्ट से अलग हो चुके हैं। सिंह चंडीगढ़ स्थित अलकेमिस्ट ग्रुप के अध्यक्ष भी हैं।

अखबार के साथ जुड़े वरिष्ट पत्रकारों ने पहले ही संस्थान से इस्तीफा दे दिया था।

वहीं टिकरप्लांट लिमिटेड ने भी अपने ऑपरेशंस बंद करने का ऐलान कर दिया है। बिजनेस समाचार देने वाली यह सेवा फाइनेशिंयल टेक्नोलॉजीस समूह द्वारा संचालित की जा रही थी।

भ्रष्टाचार का नया मीटर

2010 के भ्रष्टाचार इंडेक्स के मुताबिक भारत आज भी वहीं है, जहां वह 15 वर्ष पहले था। तो क्या इसका यह मतलब निकलता है कि वैश्विक स्तर पर भ्रष्टाचार ही हमारी पहचान है?

यह दुनियाभर में फैले भ्रष्टाचार का नक्शा है।

ऐसे देश जहां, भ्रष्टाचार नहीं है, उन्हें सुर्ख लाल रंग से दर्शाया गया है, जबकि भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए देशों को पीले रंग से दिखाया गया है। डेनमार्क को दुनिया के सबसे ज्यादा स्वच्छ छवि वाला या फिर यूं कहें कि भद्र राष्ट्र कहा गया है। सोमालिया को दुनिया का सबसे भ्रष्ट देश कहा गया है। इस अफ्रीकी देश को भ्रष्टाचार की फेहरिस्त में 178वां स्थान दिया गया है।

इस नक्शे को वर्ष 2010 के भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक के आधार पर बनाया गया है, इसका मूल आधार ट्रांसपेरेसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट है। भ्रष्टाचारी देशों की सूची को दर्जनों सर्वेक्षण के बाद बनाया गया है। इसमें कई बड़े व्यापारियों की मदद ली गई है, जिन्हें इन देशों के साथ काम करने के दौरान वहां के भ्रष्टाचार के बारे में पता चला।

चीन को भी अत्यधिक भ्रष्ट देशों की फेहरिस्त में 78वां स्थान मिला है। हमारे देश यानी भारत का हाल चीन से भी ज्यादा खराब है। भारत को 87वां स्थान मिला है। हालांकि हम यह सोचकर संतोष कर सकते हैं कि हमारे पड़ोसी मुल्कों जैसेः श्रीलंका (91), बांग्लादेश (134), पाकिस्तान (143) एवं नेपाल (146) से हमारी स्थिति कुछ हद तक बेहतर दिखाई देती है। हमारे देश के लिए एक और खुशी की बात यह भी हो सकती है कि भ्रष्टाचार की फेहरिस्त में हमारे पड़ोसी मुल्कों का स्थान शुरू से वही है, जो ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की पहली प्रकाशित रिपोर्ट में था। हालांकि ऐसा क्यों है इस बारे में आपको बाद में बताएंगे। फिलहाल नक्शे पर ही बात करते हैं।

यूरोप जैस धनी देशों को पीले रंग से दिखाया गया है, जबकि गरीब देशों को लाल रंग में। अफ्रीका तथा एशियाई देश भी इसी रंग से दिखाई गए हैं। क्या इससे मन में सवाल नहीं उठते हैं। इस नक्शे में प्रोटेस्टेंट एवं कैथोलिक देशों तथा अन्य देशों के बीच की रेखा साफ दिखाई देती है।

सारे प्रोटेस्टेंट देश इस सूची में शीर्ष पर हैं। डेनमार्क एवं न्यूजीलैंड संयुक्त रूप से नंबर एक पर हैं। फिनलैंड तथा स्वीडन भी क्रमशः चार एवं पांच नंबर पर हैं। कनाडा नंबर छह पर है, जहां की आबादी का 40% हिस्सा कैथोलिक है। नीदरलैंड्स (7), ऑस्ट्रेलिया (8), स्विट्ज़रलैंड 9वें स्थान पर है और यहां की आबादी में 40% हिस्सा कैथोलिक्स का है तथा नॉर्वे 10वें स्थान पर है।

निचले पायदान पर मौजूद प्रोटेस्टेंट देशों का क्रम भी 22 पर आकर रुक जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका इस क्रम की शोभा बढ़ा रहा है। वहीं ब्रिटेन 20वें स्थान पर तथा जर्मन 15वें स्थान पर है। गैर प्रोटेस्टेंट देशों में से केवल सिंगापुर ही है जो शीर्षक्रम यानी 10वें स्थान पर है। 11वें नंबर पर लक्ज़मबर्ग है, जो कैथोलिक देश है।
दुनियाभर के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि कैथोलिक देश, प्रोटेस्टेंट देशों के मुकाबले ज्यादा भ्रष्ट हैं। लातिन अमेरिका का चिली अपवाद स्वरूप दिखाई दे रहा है, जिसको सूची में 21वां स्थान दिया गया है। हालांकि इसके चारों तरफ लाल रंग वाले देशों की संख्या ज्यादा दिखाई दे रही है। ब्राज़ील (69), पनामा (73), कोलंबिया (78), मेक्सिको (98), अर्जेंटीना (105), बोलिविया (110), एक्वाडोर (127) एवं वेनेज़ुएला (164) नए प्रकार के कैथोलिक देशों का ज्यादा प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

लंबे चले संघर्ष एवं तीन हजार लोगों के बलिदान के बाद तानाशाही से आज़ाद होकर चिली ने संपन्नता हासिल की है। वर्तमान में यह दक्षिणी अमेरिका का सबसे कम भ्रष्ट तथा संपन्न देश है।

आज इस अर्थव्यवस्था को स्वतंत्र तथा पूर्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं यानी जापान (17), दक्षिण कोरिया (39) तथा सिंगापुर के साथ गिना जाता है।

साभारः लेख वरिष्ठ स्तंभकार एवं पत्रकार श्री आकार पटेल जी के अंग्रेजी लेख का हिंदी अनुवाद है। उनका यह लेख अंग्रेजी बिजनेस अखबार मिंट के साप्ताहिक परिशिष्ठ लाउंज में छपा है।

भ्रष्टाचार का नया मीटर

2010 के भ्रष्टाचार इंडेक्स के मुताबिक भारत आज भी वहीं है, जहां वह 15 वर्ष पहले था। तो क्या इसका यह मतलब निकलता है कि वैश्विक स्तर पर भ्रष्टाचार ही हमारी पहचान है?

यह दुनियाभर में फैले भ्रष्टाचार का नक्शा है।

ऐसे देश जहां, भ्रष्टाचार नहीं है, उन्हें सुर्ख लाल रंग से दर्शाया गया है, जबकि भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए देशों को पीले रंग से दिखाया गया है। डेनमार्क को दुनिया के सबसे ज्यादा स्वच्छ छवि वाला या फिर यूं कहें कि भद्र राष्ट्र कहा गया है। सोमालिया को दुनिया का सबसे भ्रष्ट देश कहा गया है। इस अफ्रीकी देश को भ्रष्टाचार की फेहरिस्त में 178वां स्थान दिया गया है।

इस नक्शे को वर्ष 2010 के भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक के आधार पर बनाया गया है, इसका मूल आधार ट्रांसपेरेसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट है। भ्रष्टाचारी देशों की सूची को दर्जनों सर्वेक्षण के बाद बनाया गया है। इसमें कई बड़े व्यापारियों की मदद ली गई है, जिन्हें इन देशों के साथ काम करने के दौरान वहां के भ्रष्टाचार के बारे में पता चला।

चीन को भी अत्यधिक भ्रष्ट देशों की फेहरिस्त में 78वां स्थान मिला है। हमारे देश यानी भारत का हाल चीन से भी ज्यादा खराब है। भारत को 87वां स्थान मिला है। हालांकि हम यह सोचकर संतोष कर सकते हैं कि हमारे पड़ोसी मुल्कों जैसेः श्रीलंका (91), बांग्लादेश (134), पाकिस्तान (143) एवं नेपाल (146) से हमारी स्थिति कुछ हद तक बेहतर दिखाई देती है। हमारे देश के लिए एक और खुशी की बात यह भी हो सकती है कि भ्रष्टाचार की फेहरिस्त में हमारे पड़ोसी मुल्कों का स्थान शुरू से वही है, जो ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की पहली प्रकाशित रिपोर्ट में था। हालांकि ऐसा क्यों है इस बारे में आपको बाद में बताएंगे। फिलहाल नक्शे पर ही बात करते हैं।

यूरोप जैस धनी देशों को पीले रंग से दिखाया गया है, जबकि गरीब देशों को लाल रंग में। अफ्रीका तथा एशियाई देश भी इसी रंग से दिखाई गए हैं। क्या इससे मन में सवाल नहीं उठते हैं। इस नक्शे में प्रोटेस्टेंट एवं कैथोलिक देशों तथा अन्य देशों के बीच की रेखा साफ दिखाई देती है।

सारे प्रोटेस्टेंट देश इस सूची में शीर्ष पर हैं। डेनमार्क एवं न्यूजीलैंड संयुक्त रूप से नंबर एक पर हैं। फिनलैंड तथा स्वीडन भी क्रमशः चार एवं पांच नंबर पर हैं। कनाडा नंबर छह पर है, जहां की आबादी का 40% हिस्सा कैथोलिक है। नीदरलैंड्स (7), ऑस्ट्रेलिया (8), स्विट्ज़रलैंड 9वें स्थान पर है और यहां की आबादी में 40% हिस्सा कैथोलिक्स का है तथा नॉर्वे 10वें स्थान पर है।

निचले पायदान पर मौजूद प्रोटेस्टेंट देशों का क्रम भी 22 पर आकर रुक जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका इस क्रम की शोभा बढ़ा रहा है। वहीं ब्रिटेन 20वें स्थान पर तथा जर्मन 15वें स्थान पर है। गैर प्रोटेस्टेंट देशों में से केवल सिंगापुर ही है जो शीर्षक्रम यानी 10वें स्थान पर है। 11वें नंबर पर लक्ज़मबर्ग है, जो कैथोलिक देश है।
दुनियाभर के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि कैथोलिक देश, प्रोटेस्टेंट देशों के मुकाबले ज्यादा भ्रष्ट हैं। लातिन अमेरिका का चिली अपवाद स्वरूप दिखाई दे रहा है, जिसको सूची में 21वां स्थान दिया गया है। हालांकि इसके चारों तरफ लाल रंग वाले देशों की संख्या ज्यादा दिखाई दे रही है। ब्राज़ील (69), पनामा (73), कोलंबिया (78), मेक्सिको (98), अर्जेंटीना (105), बोलिविया (110), एक्वाडोर (127) एवं वेनेज़ुएला (164) नए प्रकार के कैथोलिक देशों का ज्यादा प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

लंबे चले संघर्ष एवं तीन हजार लोगों के बलिदान के बाद तानाशाही से आज़ाद होकर चिली ने संपन्नता हासिल की है। वर्तमान में यह दक्षिणी अमेरिका का सबसे कम भ्रष्ट तथा संपन्न देश है।

आज इस अर्थव्यवस्था को स्वतंत्र तथा पूर्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं यानी जापान (17), दक्षिण कोरिया (39) तथा सिंगापुर के साथ गिना जाता है।

साभारः लेख वरिष्ठ स्तंभकार एवं पत्रकार श्री आकार पटेल जी के अंग्रेजी लेख का हिंदी अनुवाद है। उनका यह लेख अंग्रेजी बिजनेस अखबार मिंट के साप्ताहिक परिशिष्ठ लाउंज में छपा है।