Friday, November 29, 2013

पत्रकार या पैसा जुगाड़ने में माहिर व्यवसायी?

अभी तक आप तरुण तेजपाल को तहलका डॉट कॉम और तहलका पत्रिका के संस्थापक, प्रखर पत्रकार और चिंतक के रूप में ही जानते आए हैं। लेकिन आपको यह जानकारी नहीं है कि पत्रकारिता के साथ-साथ तरुण का व्यावसायिक सम्राज्य कितना फैला हुआ है या नियम विरुद्ध उन्होंने कहां-कहां जमीनें खरीद रखी हैं?

क्या आपको पता है कि तरुण तेजपाल की कम से कम आठ कंपनियों में और उनकी बहन नीना तेजपाल शर्मा की चार कंपनियों में हिस्सेदारी है? इनमें से अधिकांश कंपनियां पिछले दो सालों से नुकसान उठा रही हैं, फिर भी निवेशक इनमें पैसा लगाना क्यों व कैसे जारी रखे हुए हैं?

जिन निवेशकों ने तरुण तेजपाल की कंपनियों में हिस्सेदारी खरीदी है, उन्होंने यह खरीदी बाजार भाव से काफी ज्यादा कीमत पर की है और नुकसान होने पर भी अपनी हिस्सेदारी नहीं बेची, क्यों व कैसे? यह 'क्यों व कैसे" बड़े सवाल बनकर सामने आते हैं, जब हमें पता चलता है कि पिछले साल मारे गए उत्तर प्रदेश के कुख्यात शराब माफिया पोंटी चड्ढा की कंपनी के साथ भी तेजपाल के व्यावसायिक संबंध थे और शायद आज भी हैं।

कंपनियां और तरुण की हिस्सेदारी

थिंकवर्क्स प्रायवेट लिमिटेड : 80 प्रतिशत
तहलका डॉट कॉम : 1.99 प्रतिशत
अनंत मीडिया प्रायवेट लिमिटेड : 19.25 प्रतिशत
एओडी लॉज्स प्रायवेट लिमिटेड : 50 प्रतिशत
चेस्टनट हाइट्स रिसोर्ट्स प्रायवेट लिमिटेड : 25 प्रतिशत
अमरमान इंडिया प्रायवेट लिमिटेड : 70 प्रतिशत
थ्राइविंग आर्ट्स प्रायवेट लिमिटेड : 80 प्रतिशत
एडर आर्ट्स प्रायवेट लिमिटेड : 0.02 प्रतिशत
अनंत मीडिया प्रालि. : राज्यसभा सांसद का पैसा

साप्ताहिक समाचार पत्रिका तहलका का प्रकाशन करने वाली इस कंपनी में तरुण तेजपाल की 19.25 फीसद हिस्सेदारी है। वित्त वर्ष 2011-12 में इस कंपनी को 13 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा। इसमें 65.75 फीसद हिस्सेदारी रखने वाली कंपनी रॉयल बिल्डिंग एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर के 50 फीसद शेयर राज्यसभा सांसद केडी सिंह की कंपनी के पास हैं, जो बकौल उनके, सिर्फ व शुद्ध रूप से व्यावसायिक मकसद से खरीदे गए।

वर्ष 2011-12 के पहले अनंत मीडिया में केडी सिंह की कंपनी की हिस्सेदारी 30 फीसद थी, जिसे बाद में बढ़ाया गया और प्रीमियम पर 25.39 करोड़ रुपए में तेजपाल की कंपनी के शेयर खरीदे गए। यही नहीं, रॉयल बिल्डिंग एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर ने वर्ष 2011-12 में अनंत मीडिया को 19.6 करोड़ रुपए अनसिक्योर्ड लोन के रूप में भी दिए।

पोंटी चड्ढा का पैसा
पिछले साल अपने ही भाई के हाथों मारे गए उत्तर प्रदेश के कुख्यात शराब माफिया पोंटी चड्ढा की कंपनी वेव इंडस्ट्रीज ने भी तेजपाल की एक कंपनी थ्राइविंग आर्ट्स प्रालि. में पैसा लगाया। यह कंपनी वित्त वर्ष 2011-12 में ही खड़ी की गई थी और तेजपाल के एलीट आर्ट एंड डिनर क्लब 'प्रूफ्रॉक" की मालिक है।

चड्ढा ने कंपनी में 11,111 शेयर 1,800 रुपए प्रति शेयर की कीमत पर खरीदे यानी 1.999 करोड़ रुपए लगाए, जबकि इन शेयरों का अंकित मूल्य 10 रुपए प्रति शेयर था। सवाल उठता है कि चड्ढा ने इतनी ज्यादा कीमत पर हिस्सेदारी क्यों खरीदी, जबकि न तो तेजपाल की कंपनी के शेयरों को लेकर मारा-मारी थी और न ही उनकी कंपनियां मुनाफा कमा रही थीं।

फिर चड्ढा ने घाटे वाले समूह में पैसा क्यों लगाया? मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक हालांकि चड्ढा मारा गया, लेकिन उसके बेटे ने अपने पिता के सभी व्यावसायिक करारों को निभाने की इच्छा जताई है।

थिंकफेस्ट की कर्ताधर्ता कंपनी मुनाफे में कैसे
तरुण की ही कंपनी थिंकवर्क्स प्रालि. गोआ में होने वाले 'थिंकफेस्ट' का आयोजन करती है। सिर्फ यही कंपनी है, जो मुनाफे में है। थिंकवर्क्स को सबसे पहले बबलर बुक्स के नाम से फरवरी 2010 में खड़ी की गई थी।
इसमें तरुण तेजपाल की 80 फीसद हिस्सेदारी है, जबकि तेजपाल की बहन नीना तेजपाल शर्मा व तहलका की अभी तक मैनेजिंग एडिटर रही शोमा चौधरी के पास 10-10 फीसद हिस्सेदारी है। पहले साल यानी 2011-12 में इस कंपनी ने थिंकफेस्ट से कोई मुनाफा नहीं कमाया, जबकि पिछले साल इसे 1.99 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ।

इस साल थिंकफेस्ट 2013 का आयोजन बड़े पैमाने पर व फाइव स्टार होटल में किया गया, जिसमें रॉबर्ट डी नीरो, अमिताभ बच्चन, जावेद अख्तर समेत देश व दुनिया से बड़ी-बड़ी हस्तियां शामिल हुईं। यह भी गौर करने वाली बात है कि इस साल के इवेंट को कम से कम 34 बड़े कॉर्पोरेट दिग्गजों व सरकारी कंपनियों ने सह प्रायोजित किया।

इनमें भारती एयरटेल, एस्सार, डीएलएफ, कोका-कोला, यूनिटेक, वेव इंडस्ट्रीज, टोयोटा, भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स, इंडसइंड बैंक व गोआ टूरिज्म शामिल हैं।

उत्तराखंड में जमीन व रिसोर्ट
तरुण तेजपाल व उनकी पत्नी गीतन बत्रा के नाम से उत्तराखंड में नैनीताल शहर से कुछ दूरी पर पहाड़ी वादियों में जमीनें व प्रॉपर्टी भी है। गेथिया गांव में मौजूद इन प्रॉपर्टीज में दो चिमनियां और एक हरा-भरा व खूबसूरत रिसोर्ट शामिल है।

चर्चा यह भी है कि तेजपाल परिवार के पास उत्तराखंड में और भी प्रॉपर्टीज हैं। नैनीताल जिला प्रशासन ने इनकी खोजबीन करनी शुरू कर दी है। जिला प्रशासन के मुताबिक तरुण तेजपाल के नाम यहां 14 नली (1 नली यानी 240 स्क्वैयर यार्ड और एक स्क्वैयर यार्ड यानी 9 वर्गफुट) जमीन है।

उनकी पत्नी के नाम पर भी 5 नली जमीन है। यानी तेजपाल दंपति के नाम यहां कुल 4560 स्क्वैयर यार्ड जमीन है, जबकि उत्तराखंड सरकार के नियमों के मुताबिक किसी अन्य राज्य के निवासी यहां 250 स्क्वैयर यार्ड से ज्यादा जमीन नहीं खरीद सकते। तेजपाल ने यह कहते हुए नियमों में ढील मांगी थी कि उन्होंने वर्ष 2003 में नए नियम बनने से पहले जमीन खरीद ली थी।

Monday, November 25, 2013

विकास के खोखले दावे

बात चाहे देश की हो या प्रदेश की, विकास और तरक्‍की की बात करते नेताओं का दम नहीं फूलता है। सबका एक ही राग रहता है कि उन्‍होंने अपने इलाके, प्रदेश या देश को जन्‍नत बना दिया है। जबकि सच्‍चाई यह है कि उनके यह दावे न सिर्फ खोखले होते हैं बल्कि हकीकत से कई प्रकाश वर्ष की दूरी पर होते हैं।

इसे कहने के पीछे कोई राजनीतिक प्रभाव या दुराभाव नहीं है, बल्कि ठोस कारण हैं। चलिए एक उदाहरण के जरिए बात करते हैं। मान लीजिए कोई बड़ा नेता या फिर उसके परिवार का कोई सदस्‍य बीमार हो जाए तो क्‍या वो अपने राज्‍य या फिर जिले के सरकारी अस्‍पताल में इलाज कराने जाता है। यहां यह याद रखना जरूरी है कि स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं को बेहतर बनाने के दावे भी वही नेता करता रहा होगा। या फिर चुनावों के वक्‍त उसे अपनी उप‍लब्धियों में शामिल किया होगा।

अच्‍छी शिक्षा की माला जपने वाले नेताओं के बच्‍चे क्‍या सरकारी स्‍कूल और कॉलेज में पढ़ते हैं। नहीं। तो फिर इनके नाम पर वोट मांगने से पहले जरा भी लाज नहीं आती है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस देश में अलग-अलग प्रकार के नागरिक और लोग रहते हैं। एक शासक वर्ग और दूसरी वो आम जनता जिसे मूर्ख समझा और बनाया जाता है।

मगर, यही नेता एक-दूसरे पर कीचड़ उछालते वक्‍त शायद यह भूल जाते हैं कि उनकी कथनी और करनी पर आम नागरिकों की नजर रहती है। लैपटॉप या मोबाइल बांटकर पांच साल तक सत्‍ता सुख चाहने वालों की आत्‍माएं शायद मर चुकी हैं। चुनाव प्रचार के दौरान दर-दर हाथ फैलाने वाले नेता जीतने के बाद रसूख, पैसे और सत्‍ता के नशे में ऐसे चूर होते हैं कि उन्‍हें सबकुछ दिखना भूल जाता है। अरबों-करोड़ों रुपयों का घोटाला करने वालों को लगने लगता है कि 30 या 35 रुपए रोज बमुश्किल कमाने वाले गरीब नहीं रह गए हैं, बल्कि वो अमीर हो गए हैं। यदि नेताओं का बस चले तो वो उन्‍हें जीने के लिए हवा भी नसीब न होने दें।

कोई कहता है कि गरीब लोग दो वक्‍त खाने लगे हैं इसलिए देश में अन्‍न का संकट गहराता है तो कोई यह कहता है कि दो सब्जियां खाने वाले लोगों की वजह से महंगाई बढ़ रही है। शायद सफेद कुरते पहनने वाले काले चरित्र वाले नेता चाहते हैं कि लोग भूखे ही मरें, तभी देश की अर्थव्‍यवस्‍था सही चल सकेगी।

बड़बोले नेताओं की अक्‍ल तो देखिए, उनका कहना है कि गरीबी और गरीब तो मन का विकार होता है। यह इस देश की दुर्दशा ही है कि यहां ऐसे लोग राज कर रहे हैं, जिन्‍हें आम लोगों से कोई लेना देना नहीं है। जिसने कभी घंटों लाइन में लगकर ट्रेन का टिकट हासिल न किया हो और धक्‍के खाकर बस का सफर न किया हो, वो क्‍या जाने कि आम नागरिक अपनी जिंदगी कैसे जीते हैं।

उम्‍मीद है लोकतंत्र के महापर्व में लोग जागरूक होंगे और धूर्तों को कुर्सी से दूर करेंगे।