Monday, February 25, 2013

अंदर नक्सली और आतंकवादी, बाहर दुश्मन देश


आपमें से अधिकांश ने आतंकवादियों और लिट्टे के 'ह्यूमन बॉम्ब' के बारे में सुना होगा। लेकिन नक्सलियों ने पेट के अंदर बॉम्ब प्लांट कर सिक्योरिटी एजेंसीज से लेकर आम आदमी तक के होश उड़ा दिए हैं। अभी तक बारूदी सुरंगों के जरिए जवानों पर हमला करने वाले माओवादियों ने दहशत फैलाने की यह नया तरीका अपनाना शुरू किया है। ये वाकया झारखंड के लातेहार जिले में जारी माओवादी और सुरक्षा बलों के बीच एनकाउंटर के बाद सामने आया है। गौरतलब है कि अभी तक दुनिया में सिर्फ मानव बम जैसी घटनाएं भी सामने आईं थीं, जिसमें आतंकवादी अपने शरीर पर विस्फोटक बांधकर खुद को धमाके से उड़ा देता था।

सर्जरी से प्लांट किया था आईईडी
लातेहार के नक्सली हमले में शहीद सीआरपीएफ के जवान बाबूलाल पटेल के पेट में नक्सलियों ने 1.5 किलोग्राम की एक आईईडी सर्जरी करके प्लांट कर दी थी। रिम्स (रांची इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस) के पोस्टमार्टम हाऊस में जब डॉक्टर्स और स्टाफ ने उनकी बॉडी को पोस्टमार्टम के लिए आपॅरेट किया तो सभी डर के साथ-साथ हैरान भी रह गए। डॉक्टर्स ने इसकी जानकारी सीआरपीएफ  ऑफिसर्स को दी, तब जाकर मामला खुला। गुरुवार की सुबह हजारीबाग से आई बम डिटेक्शन एंड डिस्पोजल स्क्वॉयड (बीडीडीएस) ने दोपहर दो बजे के करीब आईईडी को डिफ्यूज कर दिया। लातेहार जिले के बरवाडीह के कटिया जंगल में सात जनवरी से 'ऑपरेशन एनाकोंडा' के तहत नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन चल रहा है।

ऐसे हुआ खुलासा
लातेहार में तीन दिनों से 'ऑपरेशन एनाकोंडा' के तहत शहीद पांच जवानों के शवों का पोस्टमार्टम नौ जनवरी की रात में डीसी विनय कुमार चौबे के निर्देश पर किया जा रहा था। टीम में शामिल डॉ. अजीत कुमार चौधरी, डॉ.विनय कुमार, पोस्टमार्टम हाऊस का कर्मचारी मोहन मलिक, राजू मलिक, टिंकू जवानों के शव का पोस्टमार्टम कर रहे थे। टीम ने दो जवान सुदेश कुमार और चम्पालाल मालवीय का शव का पोस्टमार्टम किया। उस समय बाबूलाल पटेल का शव भी मॉर्चरी में गया। जैसे ही टीम शव का पोस्टमार्टम करने की तैयारी करने लगी, उसी समय राजू चिल्लाया, सर इसका तो पहले ही पोस्टमार्टम हो चुका है। सभी ने जाकर देखा तो बाबूलाल पटेल का पेट 15 फीट लंबा चीरा हुआ था और उसे बोरा सिलने के स्टाइल में सील दिया था। जब डॉक्टर्स ने उसे छूकर देखा तो पेट के अंदर कड़ी चीज होने का अहसास हुआ। डॉक्टर्स ने तुरंत पोस्टमार्टम रोक दिया। बाहर आकर उन्होंने इसकी जानकारी रिम्स के डायरेक्टर डॉ तुलसी महतो और सीआरपीएफ के अधिकारियों को दी गई। फिर, बताया गया कि जवान के शरीर से पहले ही छेड़छाड़ की गई है। डॉक्टर्स को यह बताया गया कि घटनास्थल से ही जवान के शव को रिम्स भेजा गया है। इसके बाद सीआरपीएफ ऑफिसर्स ने जवान के शव को बाहर रखने के लिए कहा और बम निरोधक दस्ता को बुलाया गया। बम निरोधक दस्ता ने पेट के अंदर बम होने की पुष्टि की।

एक और जवान की  सिलाई
रिम्स में आए एक जवान के शव का जब पोस्टमार्टम किया जा रहा था तो उस समय भी डॉक्टर्स ने पाया कि उसके शरीर का निचला हिस्सा पूरी तरह डैमेज हो गया था। उसके पेट पर भी सिलाई के निशान मिले थे।

पहला केस आया सामने
भारत में इस तरह से बम लगाने का यह पहला मामला है। विशेषज्ञों के मुताबिक, इस तरह के मामले को उन्होंने कभी हैंडल नहीं किया था और यह उनका पहला अनुभव था। हालांकि, नक्सलियों द्वारा शरीर के अंग में सीरिज में बम लगाए गए थे, ताकि प्रेशर पडऩे पर बम में धमाका हो जाए और ज्यादा से ज्यादा कैजुअलटी हो। विशेषज्ञों ने बताया कि इस तरह की तकनीक को श्रीलंका में लिट्टे द्वारा उपयोग किया जाता रहा है।

लगाया था शव के नीचे बम
पुलिस को धोखा देने के लिए और ज्यादा से ज्यादा क्षति पहुंचाने की नीयत से शहीदों के शव के नीचे बम लगा रखा था। सभी शवों के नीचे लगाए गए बम को बॉम्ब स्क्वॉयड ने डिफ्यूज किया था। पर, इनमें से कुछ जवानों के शवों का पेट ऑपरेट कर उसमें बम फिट कर दिया गया था।

घटना का बैकग्राउंड
अभियान के पहले दिन नक्सलियों ने सीआरपीएफ, एसटीएफ के जवानों पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसानीं शुरू कर दी। ताबड़तोड़ हमले में दस जवान शहीद हो गए और 20 जवान जख्मी हो गए थे।

डॉक्टर्स कमेंट
रिम्स के डॉ. अजीत कुमार चौधरी और लैब टेक्निशियन दयामय मुखर्जी ने बताया कि उन लोगों को पहले यह आशंका हुई कि आखिर इसका पोस्टमार्टम किसने किया है। चूंकि जिस ढंग से सिलाई की गई थी वह डॉक्टर की सिलाई नहीं लग रही थी। वह किसी पैरा मेडिकल के द्वारा सिलाई लग रही थी। फिर, शव को 15 इंच तक सिला गया था। अमूमन पेशेवर डॉक्टर किसी बॉडी को उतनी लंबाई तक नहीं सिलता। उसे बोरे की तरह सिल दिया गया था। फिर, इसकी जांच की गई कि यदि जवान का ऑपरेशन पहले ही हुआ होगा तो घाव लेकर वह 'ऑपरेशन एनाकोंडा' में भाग क्यों लेगा। इसलिए उन लोगों को शक हुआ और पोस्टमार्टम रोक दिया गया।

...तो उड़ जाता रिम्स
बीडीडीएस के अधिकारी का कहना था कि यदि सिलाई को तोड़ा जाता तो एक बड़ा ब्लास्ट भी हो सकता था। इस ब्लास्ट की चपेट में आकर रिम्स की मॉर्चरी बिल्डिंग को काफी नुकसान पहुंचता और कई लोग मारे जाते। इस तरह के बम को प्रेशर रिलीज डिवाइस बम कहा जाता है। इसमें चार-पांच लोगों के उडऩे की संभावना बनती है।

Wednesday, February 13, 2013

चार राज्यों के 42 विधायकों पर दर्ज हैं बलात्कार के मामले

असम में कांग्रेसी विधायक बिक्रम सिंह ब्रह्म को
महिलाओं ने सार्वजनिक रूप से पीटा

दिल्ली गैंगरेप की घटना के बाद पूरे देश में आक्रोश है। लोग दोषियों को फांसी और महिलाओं के खिलाफ अपराध को लेकर कड़े कानून की मांग कर रहे हैं। लेकिन यदि सरकार में ही बैठे कई नेता बलात्कार के आरोपी हों तो फिर क्या उम्मीद की जा सकती है। उधर, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि वह बलात्कार के मामले में चार्जशीटेड विधायक व सांसदों को निलंबित करने का निर्देश नहीं दे सकता है। यह मामला विधायिका का है और वह उसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा।

केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा बलात्कारियों के नाम, फोटो और पता वेबसाइट पर सार्वजनिक करने की तैयारी बीच यह बात सामने आई है कि देशभर में 42 ऐसे विधायक हैं जिन पर महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दर्ज हैं, जिनमें छह ऐसे हैं जिन पर सीधे बलात्कार का आरोप है।

नेशनल इलेक्शन वॉच (एनईडब्ल्यू) और एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स (एडीआर) द्वारा हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है। यह रिपोर्ट जनप्रतिनिधियों द्वारा चुनाव में नामांकन के दौरान दायर शपथ पत्र के आधार पर तैयार की गई है। इन संस्थानों ने माना है कि कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी ऐसे नेताओं को टिकट देती है जिन पर रेप के आरोप लगे हुए हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, जिन छह विधायकों पर बलात्कार के आरोप हैं उनमें से तीन उत्तर प्रदेश के हैं। ये विधायक सपा से हैं और इनके नाम श्रीभगवान शर्मा, अनूप संदा और मनोज कुमार पारस हैं। वहीं बाकी के तीन का नाम मो. अलीम खान (उप्र, भाजपा), जेठाभाई जी अहिर (गुजरात, भाजपा), कंडीकुंता वेकांता प्रसाद (तेलगू देशम पार्टी, आंध्र प्रदेश) है।

दूसरी ओर, जिन 36 विधायकों का नाम महिलाओं के शोषण के मामले में सामने आए आए हैं उनमें से छह कांग्रेस, पांच भाजपा और तीन सपा के हैं।

राज्यवार बात करें तो महिलाओं का शोषण करने वाले सबसे ज्यादा विधायक उत्तर प्रदेश से हैं। इनकी संख्या सर्वाधिक आठ हैं। इसके बाद उड़ीसा और पश्चिम बंगाल का नाम आता है, जहां के सात-सात विधायक हैं। वहीं बलात्कार के आरोपी 27 उम्मीदवारों ने पिछले साल में अलग-अलग जगह से चुनाव लड़े हैं।

एनईडब्ल्यू और एडीआर के मुताबिक अन्नाद्रमुक के सांसद एस सेममाल और तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुवेंदु अधिकारी ने यह माना है कि उन पर महिला का अपमान और उसके साथ क्रूरता का व्यवहार करने का आरोप लगाया गया है। ऐसे जनप्रतिनिधियों से भला और क्या उम्मीद की जा सकती है।

विभिन्न राज्यों में महिला के खिलाफ अपराध करने वाले आरोपी विधायकों की सूची इस प्रकार है:

उत्तर प्रदेश : श्रीभगवान शर्मा, मोहम्मद अलीम खान, अनूप संदा, मनोज कुमार पारस, डॉ. रीता जोशी, रामवीर सिंह, उदय राज राजाराम
ओडिशा : डॉ. एनरुसिंहा साहू, माहेश्वरी मोहंती, शिबाजी माझी, प्रदीप महारथा, भीमसेन चौधरी, समीर रंजन दास, प्रताप चंद्र
पश्चिम बंगाल : बेचराम मन्ना, विल्सन चंप्रामरी, दीपक कुमार हल्दर, भूपेंद्रनाथ हल्दर, विश्वजीत दास, डॉ. हरका बहादुर छत्री, अशोक मल
महाराष्ट्र : अतुल देशकर, भूसे दादाजी दागादू, हर्षवर्धन जाधव, प्रकाश सावंत
झारखंड : चमरा लिंडा, बंधु तिर्की, बन्ना गुप्ता
दिल्ली : मोहन सिंह विष्ट, शोएब इकबाल
राजस्थान : नवल किशोर, भरोसी लाल
आंध्र प्रदेश : कांडीकुंता वी प्रसाद, प्रभाकर चिंतामनेनी
पंजाब : रंजीत सिंह ढिल्लन
बिहार : राम बालक सिंह
तमिलनाडु : सेंथी बालाजी
असम : अबुल कलाम आजाद
गुजरात : जेठाभाई जी अहिर
मध्य प्रदेश : मोती कश्यप
कर्नाटक : मंजू ए

Tuesday, February 12, 2013

शहरी विकास का खेल


कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया (सीएजी) की पिछले साल जारी की आखिरी रिपोर्ट में देश में शहरी विकास के नाम पर हो रहे घपले की पोल खोली गई थी। सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार ने देश के कई शहरों में विकास के लिए जवाहरलाल नेहरू नेशनल अर्बन रिनुवल मिशन (जेएनएनयूआरएम) नाम की योजना चला रखी है। आम बजट में इसके लिए फंड का प्रावधान भी किया गया है। लेकिन असली खेल फंड की राशि को लेकर ही खेला जा रहा है। सीएजी का कहना है कि इस मिशन के तहत जारी फंड को दूसरी योजनाओं में उपयोग किया जा रहा है और कुछ राज्यों में इसे इस्तेमाल ही नहीं किया गया है। जिस वजह से राशि लैप्स हो गई है।

सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक शहरी विकास के लिए शुरू किया गया यह मिशन अपने उद्देश्य से भटककर फ्लॉप हो चुका है। साथ ही इससे जुड़े नोडल मंत्रालयों की कार्यशैली पर भी सवाल उठाए गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी विकास, शहरी गरीबी उन्मूलन और आवास मंत्रालय के बीच आपसी समन्वय की कमी के साथ ही विशेषज्ञता की कमी के चलते यह मिशन विफल हुआ है।

सक्षम नहीं थे मंत्रालय
सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस स्तर की वृहद योजना को लागू करने और उसकी मॉनिटरिंग करने की विशेषज्ञता मंत्रालयों के पास न होने की वजह से योजना सफल नहीं हो पाई। इन्हीं कमियों के चलते जेएनएनयूआरएम के लिए जारी फंड को डाइवर्ट करके अन्य योजनाओं में लगा दिया गया।

एक लाख करोड़ का मिशन
गौरतलब है कि इस मिशन को शहरी गरीबों के उत्थान के लिए शुरू किया गया था। योजना आयोग की पहल पर शुरू की गई इस योजना के तहत पूरे देश में एक लाख करोड़ रुपए खर्च करके विकास किया जाना था। जिसमें केंद्र सरकार ने 66084.65 करोड़ रुपए अपनी ओर से दिए थे। लेकिन अब तक इसके लिए 45066.23 करोड़ रुपए ही बजट द्वारा आवंटित किए गए हैं और इसमें से भी 40584.21 रिलीज किए गए हैं।

अधूरे हैं काम
दिल्ली, भोपाल, इंदौर, रायपुर और बिलासपुर जैसे कई शहर इस योजना की जद में हैं। लेकिन कहीं भी यह पूरी नहीं हो सकी है। यहां तक कि राष्ट्रीय राजधानी में भी जेएनएनयूआरएम के कई कार्य अधूरे पड़े हैं। जबकि मिशन का पहला चरण मार्च 2012 में ही खत्म हो जाना तय किया गया था।

आवासीय योजनाएं भी विफल
सीएजी के मुताबिक जेएनएनयूआरएम के तहत देश के कई शहरों को झुग्गी मुक्त बनाने की योजना थी। रिपोर्ट में बताया गया है कि 82 आवासीय परियोजनाओं में से 73 अब तक अधूरी हैं। और तो और सात शहरों में तो इसे शुरू भी नहीं किया जा सका है।

मनचाहा इस्तेमाल
सबसे ज्यादा अनियमितता जेएनएनयूआरएम के फंड प्रबंधन में बताई गई है। सीएजी की रिपोर्ट में बताया गया है कि 114.68 करोड़ रुपए का फंड अन्य योजनाओं में खर्च कर दिया गया है। इसी तरह से मई 2010 में आंध्रप्रदेश हाउसिंग बोर्ड को 72.72 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे, जिसे बोर्ड ने राज्य सरकार की राजीव गृहकल्प योजना में उपयोग कर लिया है।

क्या है जेएनएनयूआरएम
दिसंबर 2005 में जवाहरलाल नेहरू नेशनल अर्बन रिनुवल मिशन की शुरुआत की गई थी। इसका उद्देश्य देश के शहरों में अधोसंरचना विकास और गरीबी उन्मूलन करना था। इस योजना के तहत स्थानीय प्रशासन को विकास कार्य योजनाएं तय समय में पूरी करना था।

  • 2005 से 2012 के बीच इस योजना में एक लाख करोड़ रुपए खर्च किया जाना था। इसके लिए केंद्र सरकार ने 66.09 हजार करोड़ रुपए दिए।
  • शुरुआत में इस मिशन को देश के 65 शहरों में लागू किया गया था।
  • जेएनएनयूआरएम के अंतर्गत दो उप-मिशन भी बनाए गए थे, जिसमें शहरी अधोसंरचना और शहरी गरीबों के लिए आधारभूत सुविधाएं मुहैया कराना था।
  • शहरी विकास, शहरी गरीबी उन्मूलन और आवास मंत्रालय को इसके लिए बतौर नोडल एजेंसी काम करना था।

हार्ड फैक्ट्स

  • 16.07 लाख रुपए ड्वेलिंग यूनिट्स के लिए जारी किए गए, जिसमें से 4.18 लाख के काम मार्च 2011 तक पूरा होना था। जबकि खर्च हुए केवल 2.21 लाख।
  • 56 सीवरेज और पाइपलाइन प्रोजेक्ट अप्रूव किए गए थे, जिसमें से केवल चार ही पूरे हुए हैं।
  • 19 सड़कें और फ्लाइओवर बनाए जाने थे, लेकिन चार ही बन सके।
  • 37 वाटर सप्लाई प्रोजेक्ट्स में से तीन ही पूरे हुए हैं।

फेल हुए रिफॉर्म्स

  • शहरी विकास मंत्रालय ने जेएनएनयूआरएम की मॉनिटरिंग के लिए वेब आधारित ऑनलाइन सिस्टम विकसित किया था। हालांकि उसने भी दम तोड़ दिया।
  • केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी रही।
  • अधिकतर डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोट्र्स में पर्यावरण एवं सामाजिक प्रभावों का कोई उल्लेख नहीं किया गया था।

राष्ट्रीय शर्म के विषय



एक देश जो उपग्रह प्रक्षेपित करने और बनाने में सक्षम हो, परमाणु विखंडन में अपनी पकड़ बना रहा हो। उसके लिए बलात्कार के अलावा और भी कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां उसे राष्ट्रीय शर्म का सामना करना पड़ रहा है। ब्रिटेन ने अपनी राजधानी लंदन के बीचो-बीच के गुजरने वाले थेम्स नदी की सफाई की योजना बनाई और उसे सफलतापूर्वक पूरा किया। वहीं भारत की राजधानी दिल्ली से होकर बहने वाली यमुना के हालात ऐसे हैं कि उसके आसपास से गुजरने वाले को भी नाक ढंककर निकलना पड़ता है।

आइए कुछ ऐसे ही विषयों की पड़ताल करें, जिनमें सुधार के बिना देश की छवि को बदलना नामुमकिन है:

तोंदु पुलिस बल
पिछले तीन दशकों में आतंकवाद और हमलों ने अपना रूप काफी बदल लिया है। ऐसे में जरूरत ऐसे पुलिसवालों की है, जो कमांडो की तर्ज पर एक्शन ले सकें और कानून तोडऩे वालों में जिनका खौफ हो। लेकिन ऐसा नहीं है। देश के हर राज्य में पुलिस बल तोंदु होता जा रहा है। इसका असर इनकी सक्रियता और डयूटी पर भी दिखाई देता है। अपराध रोकने के लिए इनका फिट रहना भी जरूरी है।

यमुना
यमुना नदी का उल्लेख 1700-1100 ईसवी पूर्व लिखे गए ऋग्वेद में भी मिलता है। वेदों में पूजनीय बताई गई इस नदी की हालत इतनी बदतर हो चुकी है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रदूषण पर जारी अपनी रिपोर्ट में यमुना को गंदे नाले से भी गया-गुजरा बताया है। वहीं लंदन की थेम्स और पेरिस की सीन नदी को देखकर पता चलता है कि कौन सा देश नदियों को कितना महत्व दे रहा है।

मृत्युदंड
किसी भी सभ्य समाज में मृत्युदंड को सही नहीं माना जाता है। हालांकि 26/11 की घटना के मुख्य आरोपी अजमल कसाब को फांसी दिए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि मृत्युदंड देने के कानूनी पहलुओं पर विचार किया जाना आवश्यक है।

रेलवे टॉयलेट्स
देश के एक रेलमंत्री में एक बयान में कहा था कि भारतीय रेलवे ट्रैक दुनिया के सबसे बड़े ओपन टॉयलेट हैं। भारतीय रेलों में आज भी ऐसे टॉयलेट नहीं लगाए जा सके हैं, जो पर्यावरण को दूषित न करें।

सीवेज की सफाई
हमारे देश में आज भी सीवेज की सफाई के लिए कामगारों को नियुक्त किया जाता है। महाशक्ति बनते देश की राजधानी में हर साल कई सफाईकर्मियों की मौत सीवेज में उतरने और वहां की जहरीली गैस की वजह से हो जाती है। यह हालात तब हैं, जबकि देश में मैला ढोना गैरकानूनी है।

यूनिवर्सल ब्रॉडबैंड
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के तकनीकी सलाहकार राज रेड्डी ने कहा था कि किसी भी देश के विकास के लिए सूचनाओं का आम लोगों तक पहुंचना बहुत जरूरी है। उनका तर्क था कि असाक्षर व्यक्ति भी चित्रों और चिन्हों के जरिए संदेश समझ सकता है। इसलिए ब्रॉडबैंड के जरिए इंटरनेट से दी जाने वाली सरल सूचनाएं हर आम-ओ-खास के लिए लाभकारी होती हैं।

बुलेट ट्रेन
चीन ने हाल ही में दुनिया की सबसे तेज चलने वाली बुलेट ट्रेन की सबसे लंबे रूट की सेवा शुरू की है। बीजिंग के गुआंग्जू के बीच की 2298 किलोमीटर की दूरी को यह ट्रेन 300 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से पूरा करती है। वहीं इसके मुकाबले भारत में ट्रेनों की औसत गति मात्र 85 किलोमीटर प्रति घंटा है। युवा भारतीय चाहते हैं कि उन्हें काम के लिए ज्यादा से ज्यादा वक्त मिले। इसके लिए तेज ट्रांसपोर्टेशन होना बहुत जरूरी है।

Monday, February 11, 2013

2014 की राह पर राजनाथ-मोदी



राजनाथ सिंह और नरेंद्र मोदी
दिल्ली में भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह और गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी के बीच रविवार को मुलाकात हुई। कहने के लिए मोदी राजनाथ सिंह को बधाई देने आए थे, लेकिन मुलाकात के बाद दोनों ने साफ कर दिया कि उनके बीच लोकसभा चुनाव को लेकर लंबी चर्चा भी हुई। हालांकि, बड़ा सवाल यह है कि क्या राजनाथ सिंह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी भाजपा को लोकसभा चुनाव जीता पाएगी?

इस सवाल का सटीक जवाब लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद ही पता चलेगा। सूत्रों के मुताबिक भाजपा में अंदरखाने नरेंद्र मोदी को चुनाव प्रचार की कमान सौंपने की तैयारी चल रही है। यह सारी कवायदराहुल गांधी को टक्कर देने के लिए की जा रही है। खास बात यह है कि इस जोड़ी की नजर यूपी पर भी है।

दरअसल 80 लोकसभा सीट वाला उत्तरप्रदेश केंद्र में सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। फिलहाल वहां पर भाजपा के खाते में केवल 10 सीटे हैं। लिहाजा पार्टी का एक वर्ग चाहता है कि नरेंद्र मोदी, अटल बिहारी वाजपेयी की सीट लखनऊ से चुनाव लड़ें ताकि यूपी में भाजपा का कुम्हलाया कमल फिर से खिल सके। मतलब पहली नजर में राजनाथ सिंह और नरेंद्र मोदी के बीच ऑल इज वेल नजर आ रहा है, लेकिन क्या वाकई जिस तरह दोनों गले मिले उसी तरह दोनों के दिल मिल चुके हैं।

इस सवाल की शुरुआत तब हुई जब राजनाथ सिंह पहली बार भाजपा के अध्यक्ष बने थे। तब राजनाथ सिंह ने मोदी को केंद्रीय संसदीय बोर्ड से हटा दिया था। इसके अलावा मोदी के करीबी अरुण जेटली को प्रवक्ता पद से हटा दिया था, जिसके बाद दोनों के रिश्तों में जबरदस्त खटास आ गई थी।

हालांकि, हाल के दिनों में मोदी और राजनाथ सिंह के रिश्तों में सुधार आया है। मोदी ने चुनाव से पहले स्वामी विवेकानंद विकास यात्रा निकाली थी और उसके उद्घाटन में उन्होंने राजनाथ सिंह को ही मुख्य अतिथि बनाया था। बाद में चुनाव प्रचार में भी राजनाथ सिंह ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।

इसके बदले मोदी ने भाजपा अध्यक्ष के चयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। खबर है कि जब गडकरी के नाम पर विवाद हो गया था तब मोदी ने अपनी पहली पसंद राजनाथ सिंह को बताया और उनकी सहमति मिलने के बाद राजनाथ सिंह का अध्यक्ष बनना तय हो गया। इससे यह तो जाहिर है मौजूदा समय में राजनाथ सिंह और नरेंद्र मोदी की दूरियां काफी हद तक मिट चुकी हैं।

मोदी के नाम पर विरोध
नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के मुद्दे पर भाजपा के नेता सार्वजनिक तौर पर साफ-साफ कहने से बचते रहे हैं। लेकिन यशवंत सिन्हा उनके समर्थन में पूरी तरह से सामने आ गए हैं। उनका कहना है कि मोदी की प्रधानमंत्री उम्मीदवारी का समर्थन कर वह देश और पार्टी के कार्यकर्ताओं की भावनाओं को व्यक्त कर रहे हैं। सिन्हा ने अपनी राय ऐसे वक्त जाहिर की, जबकि पार्टी के नए अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी इस मुद्दे पर खुल कर बोलने से बचते रहे हैं।

मोदी का मिशन 2014
उधर, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय राजनीति में आने के संकेत दे दिए हैं। भाजपा के नए अध्यक्ष राजनाथ सिंह को बधाई देने के लिए मोदी दिल्ली गए थे। गौरतलब है कि हाल ही में एक सर्वे में इस बात का खुलासा किया गया है कि नरेंद्र मोदी देश के अगले प्रधानमंत्री के रूप में सबसे चहेते राजनेता हैं और उन्हें देश के करीब 57 प्रतिशत लोग प्रधानमंत्री की कुर्सी पर देखना चाहते हैं। इस सर्वे के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं में भारी उत्साह है और इसको लेकर पार्टी के आला नेताओं में भी सुगबुगाहट है कि अगर मिशन-2014 को कामयाबी की मंजिल तक पहुंचाना है तो नरेंद्र मोदी को आगे लाना होगा।

लोकसभा चुनावों की तैयारी
घमासान से उबरने की कोशिश कर भाजपा अब अगले लोकसभा चुनाव की रणनीति बनाने में जुट गई है।
वहीं संघ की मंशा है कि राजनाथ-मोदी-गडकरी तीनों ही अहम भूमिका में रहकर पार्टी के अन्य बड़े नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, वेंकैया नायडू और सभी राज्यों के मुख्यमंत्री या उस पद के दावेदारों को भी साथ लेकर चलें।

इनकी बदौलत राज'नाथ
मोहन भागवत : नितिन गडकरी की कंपनी पूर्ति समूह पर दोबारा छापे की कार्रवाई के बाद भाजपा के अंदर ही उनके नाम पर विरोध शुरू हो गया। राजनाथ का नाम आगे किया गया, जिस पर अंतिम समय में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी हामी भर दी।

लालकृष्ण आडवाणी : गडकरी को दूसरा कार्यकाल दिए जाने के पक्ष में नही थे। राजनाथ के नाम पर उनकी सहमति भी भारी साबित हुई।

सुषमा स्वराज : सुषमा को राजनाथ के काफी करीब माना जाता है। इसलिए सिंह के नाम पर उनकी सहमति तो पहले से ही थी। आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर भी वो संगठन की जिम्मेदारी नहीं चाह रही थीं।

अरुण जेटली : राजनाथ और जेटली के बीच संबंधों को इतिहास खटास भरा रहा है। लेकिन मोदी से नजदीकी के चलते जेटली को राजनाथ का समर्थन करना पड़ा।

नितिन गडकरी : भाजपा अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद गडकरी चाहते थे कि कुर्सी राजनाथ को ही मिले। संघ की वजह से दोनों के बीच समीकच्रण अच्छे रहे हैं।

लव-हेट रिलेशनशिप
जनवरी 2007: तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने नरेंद्र मोदी को पार्टी के संसदीय बोर्ड से हटा दिया था। मोदी समर्थक अरुण जेटली को भी उन्होंने राष्ट्रीय प्रवक्ता पद से हटा दिया था।

दिसंबर 2007: गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान राजनाथ ने मोदी के पक्ष में कुछ नहीं किया। नतीजतन रिश्तों में खाई बढ़ती चली गई।

2009 लोकसभा चुनाव: इन चुनावों में राजनाथ सिंह और नरेंद्र मोदी ने एक साथ चुनाव प्रचार किया था, लेकिन दोनों के बीच लगभग संवादहीनता बनी हुई थी।

दिसंबर 2012 : गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान राजनाथ सिंह ने भी प्रचार में हिस्सा लिया था। यहां उन्होंने मोदी की खूब तारीफ की थी।

23 जनवरी 2013: राजनाथ सिंह को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया और मोदी सबसे पहले उन्हें बधाई देने पहुंचे थे।

27 जनवरी : मोदी, राजनाथ से मिलने उनके दिल्ली स्थित निवास पर गए थे। इसके बाद सिंह ने कहा था कि वो मोदी को संगठन में और अधिक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपना चाहते हैं।

पिघलते ग्लेशियर्स : आशंका से अधिक विकराल होंगे महासागर



भविष्य में ग्रीनलैंड और अंटाकर्टिक की बर्फ पिघलने से आईपीसीसी की अनुमानित आशंका से कहीं अधिक विकराल हो जाएंगे महासागर। आने वाले वर्षों में समुद्र का जलस्तर अपेक्षा से कहीं अधिक बढ़ जाएगा। मंगलवार को खबर आई कि आर्कटिक क्षेत्र का मैजेस्टिक ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहा है। वहां गए वैज्ञानिकों ने दल जो तस्वीरें जारी की हैं, उसमें ग्लेशियर्स कम और पानी ज्यादा दिखाई दे रहा है। पर्यावरणविद इसके लिए इंसानों को जिम्मेदार मान रहे हैं। दरअसल ग्लेशियर्स का मामूली रूप से पिघलना और उनका आकार बदलना कुदरती प्रक्रिया का हिस्सा है। लेकिन जिस तेजी से पिछले एक दशक में यह पिघल रहे हैं, वो पूरी दुनिया के लिए खतरे की घंटी के समान है। साल-दर-साल यह पिघलते जा रहे हैं, लेकिन उनके स्थान पर नए ग्लेशियर्स का निर्माण नहीं हो पा रहा है।

यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल के अनुसंधानकर्ताओं ने अपने शोध में पाया है कि इंटर-गवर्नमेंट पैनल ऑन क्लाइमेटचेंज (आइपीसीसी) की चौथी मूल्यांकन रिपोर्ट में जो आंकड़े बताए गए हैं। समुद्री जलस्तर उससे कहीं ज्यादा बढऩे की उम्मीद है। यह शोध अपने आप में अनूठा है क्योंकि बर्फ पिघलने पर संगठित विशेषज्ञों के आंकड़ों को एकसाथ लेकर उसका विश्लेषण किया गया है। इसे गणितीय आधार पर बर्फ को पानी में तब्दील होने के फैलाव के आधार पर आंका गया है। अंर्टाकटिक और ग्रीनलैंड पर बिछी बर्फ की चादर पृथ्वी पर मौजूद ग्लेशियरों का 99.5 फीसदी है। इसके पूरा पिघलने से वैश्विक समुद्र का स्तर कमोबेश 63 मीटर तक ऊंचा हो जाएगा। चूंकि बर्फ की यह चादर ही समुद्र के जलस्तर को बढ़ाने में सबसे बड़ा योगदान देती है। इसी कारण भविष्य अनिश्चितता से भरा हुआ माना जा रहा है। ऐसे ही एक शोध में प्रोफेसर जानेथन बामबर और प्रोफेसर विली एस्पिनल ने बताया कि बर्फ पिघलने की स्थिति पर खासी अनिश्चितता है। उन्होंने बताया कि निकाले गए मीडियन के अनुसार वर्ष 2100 तक बर्फ की चादर पिघलकर समुद्र स्तर बढ़ाने में 29 सेंमंी बढ़ाने का काम कर सकती है। इसमें 5 फीसदी की संभावना यह भी है कि समुद्र स्तर अधिकतम 84 सेंटीमीटर तक बढ़ सकता है। कुछ अन्य सूत्रों से मिले आकड़ों के अनुसार सन् 2100 तक समुद्रस्तर एक मीटर तक बढऩा संभव है। महासागर का इतना विकराल रूप निश्चित रूप से मानव जाति के अस्तित्व के लिए खतरा साबित हो सकता है।

उल्लेखनीय है कि आइपीसीसी की रिपोर्ट में समुद्र स्तर में छह संभावित स्थितियों में 18 सेंटीमीटर से 59 सेंटीमीटर तक की ही बढ़ोतरी हो सकती है। शोध में यह बात भी सामने आई है कि दुनिया भर के वैज्ञानिक समूह इस बात को भी किसी एक कारण से स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं कि हाल के वर्षों में सैटेलाइट से मिले चित्रों और अन्य आंकड़ों के मुताबिक बर्फ की चादर में  कमी क्यों आई है। हालांकि, यह भी स्पष्ट नहीं है कि एक लंबे समय के परिवर्तन का नतीजा है या मौसम प्रणाली में अचानक आए परिवर्तनों का असर है। यह शोध विज्ञान पत्रिका नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित किया गया है।

बर्फ में दबे बदलाव के राज
हमारी धरती का दस फीसदी हिस्सा बर्फ से ढंका हुआ है। लेकिन अब यह बर्फ तेजी से पिघल रही है। फिनलैंड के ग्लेशियर की 2,000 साल पुरानी परतें भी बढ़ते तापमान की गवाही दे रही हैं। हिमालय के ग्लेशियर भी पिछले तीस सालों में काफी प्रभावित हुए हैं। गंगोत्री जैसी जगहों पर हिमनदों का पीछे खिसकना साफ देखा जा रहा है। यूरोप का सबसे बड़ा ग्लेशियर फिनलैंड में है, इसकी बर्फ की कुछ परतें तो दो हजार साल पुरानी है। लेकिन बढ़ता तापमान इस पूरे हिस्से को तहस-नहस कर सकता है। पर्यावरण विज्ञानी इस खतरे को रोकने के लिए ग्लेशियर की गहराई में झांक रहे हैं। बर्फ की परतें बता रही हैं कि बीती दो शताब्दियों में समय के साथ धरती ने तापमान में कैसे उतार चढ़ाव देखे।

बढ़ते तापमान और ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने की वजह से पूरा पर्यावरण चक्र गड़बड़ा रहा है। नदियां लबालब हो रही है, हल्की सी बारिश होने पर भी बाढ़ की नौबत आ रही है। कई इलाके सूखे का सामना कर रहे हैं। समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। इससे बांग्लादेश, मालदीव और पापुआ न्यू गिनी जैसे कई देशों के डूबने का खतरा खड़ा हो रहा है। हालात बड़े खतरे की तरफ इशारा कर रहे हैं।

बीते एक दशक में यह चेतावनी लगातार दी जा रही है कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए हो सकता है। भारत में हर व्यक्ति प्रति दिन औसतन 125 लीटर पानी इस्तेमाल करता है। अमेरिका में यह मात्रा करीब 550 लीटर है जो कि दुनिया में सबसे ज्यादा है। भारत दुनिया का वह देश है जो सबसे ज्यादा पानी जमीन से निकालता है। देश में करीब दो करोड़ कुएं हैं।

तापमान बढऩा है हिमपात की वजह!
इराक के लोगों ने पिछले एक सौ वर्षों में पहली बार बर्फगोलों का खेल खेलकर आनंद लिया है। लेकिन जापान में एक डाकिया बर्फ पर ऐसा फिसला कि उसकी जान ही चली गई। उत्तरी कोरिया में बर्फ इतनी ज्यादा गिरने लगी है कि जलाशयों में जल की सतह पर बर्फ की इतनी मोटी परत जमने लगी है। अब इस देश में बर्फ के नीचे मछली पकडऩे के तरीकों के बारे में सोचा जा रहा है।

सवाल यह है कि इतनी ज्यादा बर्फ का गिरना अच्छे लक्षण हैं या बुरे। यह बड़ी अजीब बात है कि वायुमंडल का तापमान बढऩे की वजह से दुनिया में पहले की तुलना में आजकल अधिक हिमपात हो रहा है। यह बात हाल ही में रूसी शहर नोवोसिबिस्र्क में आयोजित एक सेमिनार में रूस के भूगोल संस्थान के निदेशक व्लादिमीर कॉत्लियकोव ने कही थी। वैज्ञानिक ने समझाया कि आजकल पृथ्वी पर तापमान बढऩे के कारण हवामंडल में नमी की मात्रा भी बढ़ गई है जिसके परिणामस्वरूप दुनिया के ठंडे जलवायु वाले क्षेत्रों में पहले से अधिक बर्फबारी हो रही है।

तापमान का असर
तापमान बढऩे से पृथ्वी के ध्रुवों पर और ऊंचे पर्वतों की चोटियों पर सदियों से जमे हुए ग्लेशियर बड़ी तेजी से पिघलने लगे हैं। लेकिन इसके साथ ही सर्दियों में पहले की तुलना में अधिक मात्रा में बर्फ गिरने लगी है। नए वर्ष, 2013 में यूरेशिया का अधिकांश भाग बर्फ से ढका हुआ था।

हमारी पृथ्वी पर इस 'सफेद चादर' की भूमिका बड़ी अहम है। यदि पृथ्वी पर बर्फ नहीं होती तो यहां अत्यधिक गर्मी पड़ती। दरअसल, यही बर्फ सूर्य की किरणों को परावर्तित करती है। इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि अंटार्कटिका की बर्फ हमारी पृथ्वी तक पहुंचने वाली सौर ऊर्जा का 90 प्रतिशत तक हिस्सा परावर्तित कर देती है।

रंजिश का शिकार तो नहीं हो गई विश्वरूपम



विश्वरूपम के एक दृश्य में कमल हासन
कमल हासन की फिल्म विश्वरूपम पर लगे प्रतिबंध के कारणों पर पूरे देश में बहस तेज हो गई है। विश्लेषकों का मानना है कि इसके पीछे संप्रदाय विशेष के आहत होने से ज्यादा बड़ा कारण व्यावसायिक और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता है। कहा जा रहा है कि विश्वरूपम पर लगा प्रतिबंध तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता, डीएमके अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि और केंद्रीय वित्तमंत्री पी. चिंदंबरम की आपसी राजनीतिक उठापटक का नतीजा है।

तमिल राजनीति के इन तीनों महारथियों के बीच संतुलन न रख पाने का नुकसान कमल हासन को उठाना पड़ रहा है। जिस राजनीतिक खेल की ओर कमल हासन ने इशारा किया था वह यही है। विश्वरूपम पर लगे प्रतिबंधों के पीछे तमिलनाडु की थिएटर लॉबी और फिल्म के सैटेलाइट राइट्स भी एक वजह बताए जा रहे हैं।

'धोती वाला' प्रधानमंत्री बना पहली मुसीबत
कमल ने दरअसल दिसंबर के अंत में एक कार्यक्रम में किसी 'धोती वाले' के प्रधानमंत्री बनने की हिमायत की थी। धोती वाला ये तमिल राजनीतिज्ञ कोई और नहीं बल्कि पी. चिदंबरम हैं। इस कार्यक्रम में उन्होंने करुणानिधि की भी तारीफ की। चिदंबरम और करुणानिधि तमिलनाडु की राजनीति में जयललिता के लिए दु:स्वप्न जैसे हैं। वे न जया के प्रतिद्वंद्वी हैं बल्कि विश्लेषकों के अनुसार वे उनके दुश्मन जैसे हैं।
जाहिर है कि एक साथ दो दुश्मनों की तारीफ कोई भी राजनीतिज्ञ पसंद नहीं करेगा। करुणानिधि और चिदंबरम से कमल हासन की नजदीकी जयललिता को नागवार गुजर रही है और ऐसे में बेबाक बयानी ने रहा-सहा खेल बिगाड़ दिया।

जया टीवी को नहीं मिले सैटेलाइट राइट्स
विश्वरूपम पर लगे प्रतिबंध के पीछे व्यावसयिक वजहें भी बताई जा रही हैं। दरअसल फिल्म की मुसीबतें उसी दिन शुरु हो गई थीं, जिस दिन कमल हासन ने इसे डीटीएच पर रिलीज करने का ऐलान किया था। इस ऐलान से पहले कमल की फिल्म के सैटेलाइट राइट्स का समझौता जया टीवी से कर चुके थे। जया टीवी का संबंध जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके से है। जया टीवी ने फिल्म का ऑडियो भी रिलीज किया था। लेकिन जैसे ही कमल हासन ने फिल्म के डीटीएच पर रिलीज की घोषणा की, जया टीवी ने सैटेलाइट टीवी के अधिकार खरीदने से मना कर दिया। नतीजतन कमल ने सैटेलाइट टीवी के राइट्स स्टार विजय को बेच दिए।
हालांकि डीएमके अध्यक्ष करुणानिधि का कहना है कि जया टीवी, विश्वरूपम के सैटेलाइट अधिकार औने-पौने दामों में खरीदना चाहता था, जो कमल के व्यावसायिक हित में नहीं था।

डीटीएच राइट्स से थिएटर लॉबी खफा
विश्वरूपम के डीटीएच पर रिलीज के मसले पर तमिलनाडु की थिएटर मालिकों की लॉबी भी कमल हासन के खिलाफ हो गई थी। उन्हें डर है कि कमल एक ऐसी परंपरा न शुरू कर दें जिससे भविष्य में उनका धंधा ही चौपट हो जाए। थिएटर लॉबी का दबाव भी इस फिल्म पर प्रतिबंध के पीछे एक वजह बताया जा रहा है।

क्रिएटिव अबॉर्शन
विश्वरूपम को लेकर विवाद और उस पर तमिलनाडु सरकार के बैन से दुखी दक्षिण के सुपर स्टार कमल हासन ने इस पूरे प्रकरण को 'क्रिएटिव अबॉर्शन' करार देते हुए कहा कि 'लग रहा है वे मेरे बच्चे को जन्म लेने से पहले ही मार देना चाहते हैं।' उन्होंने कहा है कि वे (तमिलनाडु सरकार) तब तक आराम से नहीं बैठेंगे जब तक फिल्म को खत्म न कर दें और मुझे वित्तीय रूप से बर्बाद न कर दें। मैं वित्तीय बर्बादी का सामना करने के लिए तैयार हूं, लेकिन दबाव में झुकूंगा नहीं। हासन ने कहा कि वे मुझे आर्थिक रूप से तोड़ सकते हैं लेकिन मेरी आत्मा को नहीं तोड़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि वह फिल्म के तमिल वर्जन के प्रिंट को मुख्यमंत्री जयललिता के कार्यालय के सामने जलाएंगे।

इनटोलरेंट इंडिया
कमल हासन की फिल्म विश्वरूपम पर संकट के बादल छाए हुए हैं। तमिलनाडु सरकार ने फिल्म पर प्रतिबंध लगा दिया है। फिल्म रिलीज कराने के लिए कमल हासन न्यायालय का दरवाजा खटखटा रहे हैं। बॉलीवुड में फिल्मों के साथ विवाद का एक गहरा नाता है। आजकल तो फिल्म हिट कराने में विवाद अहम भूमिका निभा रहे हैं। आपको बॉलीवुड की कुछ ऐसी फिल्मों के बारे में बताते हैं, जिनके साथ विवाद साए की तरह जुड़े हैं:

चक्रव्यूह: नक्सली विषय पर बनी इस फिल्म का एक गाना काफी विवादित रहा। सलीम-सुलेमान ने बताया कि जिस गाने पर विवाद खड़ा हुआ है उसमें समाज की असमानता को गीत के जरिए बताया गया है। यह मामला भी अदालत तक पहुंचा था, लेकिन सुप्रीमकोर्ट ने वैधानिक स्पष्टीकरण के साथ गाना दिखाने की अनुमति दे दी थी।

रॉकस्टार: फिल्म के एक गाने 'साडा हक' के दौरान फ्री तिब्बत लिखे झंडे फहराते हुए दिख रहे थे। सेंसर बोर्ड को इस पर आपत्ति हुई और उसने निर्देशक इम्तियाज अली को वह दृश्य हटाने के लिए कहा। आखिरकार फिल्म के गाने के दौरान उन झंडों को ब्लर करके दिखाया गया।

आरक्षण: साल 2011 में आरक्षण फिल्म को उत्तर प्रदेश और पंजाब में प्रतिबंधित किया गया था। फिल्म के संवाद को लेकर वर्ग विशेष में नाराजगी थी। फिल्म रिलीज होने से पहले तक अधिकतर लोगों को लगता था कि फिल्म आरक्षण में रिजर्वेशन के समर्थन और विरोध की कहानी होगी। फिल्म रिलीज होने के बाद कई लोगों की शंकाएं खत्म हुईं। लेकिन इस फिल्म के कुछ डायलॉग की वजह से यूपी और पंजाब में इस पर बैन लगा दिया गया।

माय नेम इज खान: माय नेम इज खान की रिलीज के दौरान भी ऐसी ही कुछ बातें कही गई थीं कि इस फिल्म में कुछ ऐसे नाम और दृश्य हैं जो एक समुदाय के विरोध में हैं। इतना ही नहीं शिवसेना ने मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र में इस फिल्म के विरोध में काफी हंगामा किया। कई सिनेमा घरों में तोडफ़ोड़ की।

बिल्लू: फिल्म बिल्लू पर भी जातिसूचक शब्द का उपयोग करने की वजह से काफी हंगामा हुआ। अंत में सैलून और पार्लर एसोसिएशन के विरोध के बाद फिल्म के नाम से बार्बर शब्द हटाया गया।

वाटर: 2005 में आई फिल्म वाटर, विधवाओं की जिंदगी पर बनी थी। कुछ साल पहले वाराणसी में इसकी शूटिंग की कोशिश की गई थी। लेकिन वहां के पुजारियों ने इसका इतना विरोध किया कि प्रशासन भी यूनिट को सुरक्षा देने में असफल हो गई थी। बाद में इसकी स्टारकास्ट बदलकर श्रीलंका में इसकी शूटिंग की गई थी।

परजानिया: 2007 में राहुल ढोलकिया ने गुजरात दंगों पर परजानिया नाम की फिल्म बनाई थी। कई कट्टर हिंदू संगठनों ने इसका जमकर विरोध किया था। इसके बाद गुजरात में इस फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगी।

कितना मोटा हाथी


पहले प्रियंका वाड्रा के पति रॉबर्ट वाड्रा, फिर नितिन गडकरी और अब मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार। इन सभी का संबंध कंपनियों और उनमें किए गए निवेश से जुड़ा हुआ है। इधर मायावती तीसरी बार उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं और उधर, उनके छोटे भाई आनंद कुमार का रियल एस्टेट बिजनेस अभूतपूर्व तरक्की करने लगा। 2007 से 2012 तक मायावती राज्य की मुख्यमंत्री रहीं और इसी दौरान आनंद की कंपनी लगातार मुनाफे पर मुनाफ कमाती रही। गुरुवार को एक अंग्रेजी अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक आनंद कुमार की कंपनी का नोएडा में काम कर रही कई कंपनियों के साथ संबंध है। मायावती के खास सहयोगी और राज्यसभा सदस्य सतीश चंद्र मिश्र के बेटे की कंपनी भी इसमें शामिल है। रिपोर्ट के मुताबिक नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बिजनेस कर रही जेपी, यूनीटेक और डीएलएफ के साथ आनंद की कंपनी के व्यावसायिक हित जुड़े हुए हैं। खास बात यह है उत्तरप्रदेश में चल रहे अधिकांश रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में यह तीनों कंपनियां शामिल हैं।

750 करोड़ की कंपनी
2007 में मायावती के सीएम बनने के बाद आनंद कुमार ने 49 नई कंपनियां बनाईं जिनके कारोबार के बारे में बहुत कम लोगों को ही पता है। लेकिन पांच साल बाद मार्च 2012 में उनके पास 750 करोड़ रुपए थे। अखबार के मुताबिक कारनॉस्टी नाम की कंपनी के जरिए आनंद कुमार की कंपनी और बाकी रियल एस्टेट कंपनियां आपस में जुड़ी हुई हैं। आनंद कुमार के साथ कारोबारी सहयोगी या उनकी कंपनियों के निदेशक 2006 में बनी कारनॉस्टी मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी से जुड़े हुए हैं। कारनॉस्टी कंपनी रियल एस्टेट, स्पोट्र्स मैनेजमेंट, सिक्योरिटी, हॉस्पिटलिटी के कारोबार में हैं और उसकी कुल 14 सब्सिडियरी कंपनियां हैं। मार्च 2012 में कंपनी की वैल्यू 620 करोड़ रुपए की थी।

कारनॉस्टी का किस कंपनी में कितना निवेश?
आनंद के सहयोगियों के जरिए बड़ी रियल एस्टेट कंपनियों ने कारनॉस्टी में 376 करोड़ का भारी-भरकम निवेश 2010 से 2012 के बीच किया है। कारनॉस्टी मैनेजमेंट में 2010 से 2012 के बीच डीएलएफ ने 6 करोड़ और यूनिटेक ने 335 करोड़ का निवेश किया था।

लेन-देन पर सवाल!
आनंद कुमार की सात और कंपनियां सवालों के घेरे में आ गई है। अंग्रेजी के ही एक अन्य अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक इन कंपनियों को 757 करोड़ रुपए नकद मिले हैं। इसके बाद ईडी की नजर इस बात पर है कि इन कंपनियों के पास इतना पैसा कहां से आया। आनंद कुमार की सबसे पुरानी 1987 में बनी कंपनी होटल लाइब्रेरी क्लब प्राइवेट लिमिटेड को ही पिछले पांच वर्षों के दौरान 346 करोड़ रुपए मिले हैं। ये पैसा कंपनी को निवेश की बिक्री से मिला है लेकिन न तो ये साफ है कि ये निवेश क्या था और किसे बेचा गया। इन सातों कंपनियों के डायरेक्टर आनंद कुमार हैं।

अखबार के मुताबिक रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के पास आनंद कुमार की कंपनियों ने जो दस्तावेज दिए हैं उनकी जांच से पता चलता है कि 7 में से 6 कंपनियां 2007 के बाद स्थापित की गई। कंपनियों के दस्तावेज से पता चलता है कि सिर्फ एक कंपनी का कारोबार बड़ा है और बाकी छह कंपनियों का कारोबार बहुत ही कम है। अखबार के मुताबिक मायावती के नजदीकी नेता और राज्यसभा सदस्य सतीश चंद्र मिश्रा के बेटे कपिल मिश्रा भी आनंद कुमार की एक कंपनी के निदेशक हैं।

क्लर्क से कंपनी के मालिक
आनंद कुमार की इन कंपनियों को ज्यादातर पैसा या तो बहुत ज्यादा प्रीमियम पर शेयर बेचने से मिला या इन कंपनियों ने थर्ड पार्टी से मिले एडवांस को जब्त किया या फिर ऐसे निवेश को बेचा जिसके बारे में कोई जानकारी ही नहीं है। गौरतलब है कि सात कंपनियों के मालिक आनंद कुमार ने अपना करियर नोएडा अथॉरिटी में बतौर क्लर्क शुरू किया था। मायावती के छोटे भाई 37 साल के आनंद कुमार के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। वो बीएसपी कार्यकर्ताओं से बहुत कम ही मेलजोल रखते हैं। मायावती ने साल 2011 में एक चुनावी रैली में कहा था कि उनके भाई हमेशा उनके साथ खड़े रहे हैं।

ताज कॉरिडोर मामला
मायावती की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उनको बड़ा झटका देते हुए ताज कॉरिडोर मामले में केस चलाने की अनुमति नहीं देने के राज्यपाल के फैसले को चुनौती देने वाली अर्जी पर नोटिस जारी किया है। अदालत ने मायावती के साथ उनकी सरकार में पर्यावरण मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दकी, सीबीआई और केंद्र सरकार को नोटिस दिया है। कोर्ट ने इनसे 4 हफ्ते में जवाब भी मांगा है। इसके ठीक पहले उनके छोटे भाई के नियंत्रण वाली कुछ कंपनियों से हुए अरबों रुपए के लेन-देन को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।

बे-हिसाब लेनदेन
अंग्रेजी अखबार के मुताबिक आनंद कुमार की कंपनियों में करोड़ों रुपए का लेन-देन हुआ है और कंपनी के पास इसका कोई हिसाब नहीं है। होटल लाइब्रेरी क्लब प्राइवेट लिमिटेड में हुए निवेश के मामले में रियल एस्टेट की अन्य बड़ी कंपनियों जेपी, यूनिटेक और डीएलएफ का नाम भी सामने आ रहा है। हालांकि डीएलएफ ने इसे सामान्य बिजनेस करार दिया है। डीएलएफ ने कहा है यह बिजनेस पूरी तरह से पारदर्शी है और इसके लिए कोई राजनीतिक फायदा नहीं लिया गया। आनंद पर आरोप है कि उन्होंने मायावती के मुख्यमंत्री बनने के बाद रसूख का इस्तेमाल किया।

पत्नी के नाम बेनामी कंपनियां
भाजपा नेता किरीट सौमेया ने दावा किया था  कि मायावती के भाई आनंद कुमार और उनकी पत्नी के नाम 26 बेनामी कंपनियां बनाई गई हैं और इसमें हजारों करोड़ रुपए का लेन-देन हुआ है। बकौल किरीट सोमाया उनके पास मायावती की सारी काली कमाई के सबूत मौजूद हैं और आने वाले दिनों में वो इस बारे में और भी बड़े खुलासे करेंगे।

5 साल में 10 हजार करोड़ रुपए किरीट सोमैया ने कहा कि मायावती के भाई ने पांच साल के भीतर 10,000 करोड़ रुपए की संपत्ति कैसे बनाई, इसकी जांच सीबीआई से कराई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि मायावती का कार्यकाल शुरू होने से पहले जिस आनंद कुमार के पास एक जनवरी 2007 तक केवल पांच कंपनियां थीं, पांच साल बाद एक जनवरी 2012 को उनके पास 300 से अधिक कंपनियां हो गईं।