Monday, February 11, 2013

कितना मोटा हाथी


पहले प्रियंका वाड्रा के पति रॉबर्ट वाड्रा, फिर नितिन गडकरी और अब मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार। इन सभी का संबंध कंपनियों और उनमें किए गए निवेश से जुड़ा हुआ है। इधर मायावती तीसरी बार उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं और उधर, उनके छोटे भाई आनंद कुमार का रियल एस्टेट बिजनेस अभूतपूर्व तरक्की करने लगा। 2007 से 2012 तक मायावती राज्य की मुख्यमंत्री रहीं और इसी दौरान आनंद की कंपनी लगातार मुनाफे पर मुनाफ कमाती रही। गुरुवार को एक अंग्रेजी अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक आनंद कुमार की कंपनी का नोएडा में काम कर रही कई कंपनियों के साथ संबंध है। मायावती के खास सहयोगी और राज्यसभा सदस्य सतीश चंद्र मिश्र के बेटे की कंपनी भी इसमें शामिल है। रिपोर्ट के मुताबिक नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बिजनेस कर रही जेपी, यूनीटेक और डीएलएफ के साथ आनंद की कंपनी के व्यावसायिक हित जुड़े हुए हैं। खास बात यह है उत्तरप्रदेश में चल रहे अधिकांश रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में यह तीनों कंपनियां शामिल हैं।

750 करोड़ की कंपनी
2007 में मायावती के सीएम बनने के बाद आनंद कुमार ने 49 नई कंपनियां बनाईं जिनके कारोबार के बारे में बहुत कम लोगों को ही पता है। लेकिन पांच साल बाद मार्च 2012 में उनके पास 750 करोड़ रुपए थे। अखबार के मुताबिक कारनॉस्टी नाम की कंपनी के जरिए आनंद कुमार की कंपनी और बाकी रियल एस्टेट कंपनियां आपस में जुड़ी हुई हैं। आनंद कुमार के साथ कारोबारी सहयोगी या उनकी कंपनियों के निदेशक 2006 में बनी कारनॉस्टी मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी से जुड़े हुए हैं। कारनॉस्टी कंपनी रियल एस्टेट, स्पोट्र्स मैनेजमेंट, सिक्योरिटी, हॉस्पिटलिटी के कारोबार में हैं और उसकी कुल 14 सब्सिडियरी कंपनियां हैं। मार्च 2012 में कंपनी की वैल्यू 620 करोड़ रुपए की थी।

कारनॉस्टी का किस कंपनी में कितना निवेश?
आनंद के सहयोगियों के जरिए बड़ी रियल एस्टेट कंपनियों ने कारनॉस्टी में 376 करोड़ का भारी-भरकम निवेश 2010 से 2012 के बीच किया है। कारनॉस्टी मैनेजमेंट में 2010 से 2012 के बीच डीएलएफ ने 6 करोड़ और यूनिटेक ने 335 करोड़ का निवेश किया था।

लेन-देन पर सवाल!
आनंद कुमार की सात और कंपनियां सवालों के घेरे में आ गई है। अंग्रेजी के ही एक अन्य अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक इन कंपनियों को 757 करोड़ रुपए नकद मिले हैं। इसके बाद ईडी की नजर इस बात पर है कि इन कंपनियों के पास इतना पैसा कहां से आया। आनंद कुमार की सबसे पुरानी 1987 में बनी कंपनी होटल लाइब्रेरी क्लब प्राइवेट लिमिटेड को ही पिछले पांच वर्षों के दौरान 346 करोड़ रुपए मिले हैं। ये पैसा कंपनी को निवेश की बिक्री से मिला है लेकिन न तो ये साफ है कि ये निवेश क्या था और किसे बेचा गया। इन सातों कंपनियों के डायरेक्टर आनंद कुमार हैं।

अखबार के मुताबिक रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के पास आनंद कुमार की कंपनियों ने जो दस्तावेज दिए हैं उनकी जांच से पता चलता है कि 7 में से 6 कंपनियां 2007 के बाद स्थापित की गई। कंपनियों के दस्तावेज से पता चलता है कि सिर्फ एक कंपनी का कारोबार बड़ा है और बाकी छह कंपनियों का कारोबार बहुत ही कम है। अखबार के मुताबिक मायावती के नजदीकी नेता और राज्यसभा सदस्य सतीश चंद्र मिश्रा के बेटे कपिल मिश्रा भी आनंद कुमार की एक कंपनी के निदेशक हैं।

क्लर्क से कंपनी के मालिक
आनंद कुमार की इन कंपनियों को ज्यादातर पैसा या तो बहुत ज्यादा प्रीमियम पर शेयर बेचने से मिला या इन कंपनियों ने थर्ड पार्टी से मिले एडवांस को जब्त किया या फिर ऐसे निवेश को बेचा जिसके बारे में कोई जानकारी ही नहीं है। गौरतलब है कि सात कंपनियों के मालिक आनंद कुमार ने अपना करियर नोएडा अथॉरिटी में बतौर क्लर्क शुरू किया था। मायावती के छोटे भाई 37 साल के आनंद कुमार के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। वो बीएसपी कार्यकर्ताओं से बहुत कम ही मेलजोल रखते हैं। मायावती ने साल 2011 में एक चुनावी रैली में कहा था कि उनके भाई हमेशा उनके साथ खड़े रहे हैं।

ताज कॉरिडोर मामला
मायावती की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उनको बड़ा झटका देते हुए ताज कॉरिडोर मामले में केस चलाने की अनुमति नहीं देने के राज्यपाल के फैसले को चुनौती देने वाली अर्जी पर नोटिस जारी किया है। अदालत ने मायावती के साथ उनकी सरकार में पर्यावरण मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दकी, सीबीआई और केंद्र सरकार को नोटिस दिया है। कोर्ट ने इनसे 4 हफ्ते में जवाब भी मांगा है। इसके ठीक पहले उनके छोटे भाई के नियंत्रण वाली कुछ कंपनियों से हुए अरबों रुपए के लेन-देन को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।

बे-हिसाब लेनदेन
अंग्रेजी अखबार के मुताबिक आनंद कुमार की कंपनियों में करोड़ों रुपए का लेन-देन हुआ है और कंपनी के पास इसका कोई हिसाब नहीं है। होटल लाइब्रेरी क्लब प्राइवेट लिमिटेड में हुए निवेश के मामले में रियल एस्टेट की अन्य बड़ी कंपनियों जेपी, यूनिटेक और डीएलएफ का नाम भी सामने आ रहा है। हालांकि डीएलएफ ने इसे सामान्य बिजनेस करार दिया है। डीएलएफ ने कहा है यह बिजनेस पूरी तरह से पारदर्शी है और इसके लिए कोई राजनीतिक फायदा नहीं लिया गया। आनंद पर आरोप है कि उन्होंने मायावती के मुख्यमंत्री बनने के बाद रसूख का इस्तेमाल किया।

पत्नी के नाम बेनामी कंपनियां
भाजपा नेता किरीट सौमेया ने दावा किया था  कि मायावती के भाई आनंद कुमार और उनकी पत्नी के नाम 26 बेनामी कंपनियां बनाई गई हैं और इसमें हजारों करोड़ रुपए का लेन-देन हुआ है। बकौल किरीट सोमाया उनके पास मायावती की सारी काली कमाई के सबूत मौजूद हैं और आने वाले दिनों में वो इस बारे में और भी बड़े खुलासे करेंगे।

5 साल में 10 हजार करोड़ रुपए किरीट सोमैया ने कहा कि मायावती के भाई ने पांच साल के भीतर 10,000 करोड़ रुपए की संपत्ति कैसे बनाई, इसकी जांच सीबीआई से कराई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि मायावती का कार्यकाल शुरू होने से पहले जिस आनंद कुमार के पास एक जनवरी 2007 तक केवल पांच कंपनियां थीं, पांच साल बाद एक जनवरी 2012 को उनके पास 300 से अधिक कंपनियां हो गईं।

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