Friday, January 28, 2011

बदल गया है


दो मिट्टी इन हाथों में
यह मिट्टी मेरे भारत की है
होती थी जो कभी वीरों का तिलक
वो धूल अब आंखों की किरकिरी बनकर पड़ती है
सुगंध से जिसके लोग न अघाते थे
अब उस मिट्टी को ढंककर लोग पक्की सड़कें बनवाते हैं
और दौड़ लगाते हैं इस छोर से उस छोर तक
जहां न मिट्टी की झलक न हरियाली है
केवल भारत के इतिहास पर
मिट्टी पड़ी नज़र आती है।

नीहारिका जी की रचना

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