Saturday, January 15, 2011

भ्रष्टाचार का नया मीटर

2010 के भ्रष्टाचार इंडेक्स के मुताबिक भारत आज भी वहीं है, जहां वह 15 वर्ष पहले था। तो क्या इसका यह मतलब निकलता है कि वैश्विक स्तर पर भ्रष्टाचार ही हमारी पहचान है?

यह दुनियाभर में फैले भ्रष्टाचार का नक्शा है।

ऐसे देश जहां, भ्रष्टाचार नहीं है, उन्हें सुर्ख लाल रंग से दर्शाया गया है, जबकि भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए देशों को पीले रंग से दिखाया गया है। डेनमार्क को दुनिया के सबसे ज्यादा स्वच्छ छवि वाला या फिर यूं कहें कि भद्र राष्ट्र कहा गया है। सोमालिया को दुनिया का सबसे भ्रष्ट देश कहा गया है। इस अफ्रीकी देश को भ्रष्टाचार की फेहरिस्त में 178वां स्थान दिया गया है।

इस नक्शे को वर्ष 2010 के भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक के आधार पर बनाया गया है, इसका मूल आधार ट्रांसपेरेसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट है। भ्रष्टाचारी देशों की सूची को दर्जनों सर्वेक्षण के बाद बनाया गया है। इसमें कई बड़े व्यापारियों की मदद ली गई है, जिन्हें इन देशों के साथ काम करने के दौरान वहां के भ्रष्टाचार के बारे में पता चला।

चीन को भी अत्यधिक भ्रष्ट देशों की फेहरिस्त में 78वां स्थान मिला है। हमारे देश यानी भारत का हाल चीन से भी ज्यादा खराब है। भारत को 87वां स्थान मिला है। हालांकि हम यह सोचकर संतोष कर सकते हैं कि हमारे पड़ोसी मुल्कों जैसेः श्रीलंका (91), बांग्लादेश (134), पाकिस्तान (143) एवं नेपाल (146) से हमारी स्थिति कुछ हद तक बेहतर दिखाई देती है। हमारे देश के लिए एक और खुशी की बात यह भी हो सकती है कि भ्रष्टाचार की फेहरिस्त में हमारे पड़ोसी मुल्कों का स्थान शुरू से वही है, जो ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की पहली प्रकाशित रिपोर्ट में था। हालांकि ऐसा क्यों है इस बारे में आपको बाद में बताएंगे। फिलहाल नक्शे पर ही बात करते हैं।

यूरोप जैस धनी देशों को पीले रंग से दिखाया गया है, जबकि गरीब देशों को लाल रंग में। अफ्रीका तथा एशियाई देश भी इसी रंग से दिखाई गए हैं। क्या इससे मन में सवाल नहीं उठते हैं। इस नक्शे में प्रोटेस्टेंट एवं कैथोलिक देशों तथा अन्य देशों के बीच की रेखा साफ दिखाई देती है।

सारे प्रोटेस्टेंट देश इस सूची में शीर्ष पर हैं। डेनमार्क एवं न्यूजीलैंड संयुक्त रूप से नंबर एक पर हैं। फिनलैंड तथा स्वीडन भी क्रमशः चार एवं पांच नंबर पर हैं। कनाडा नंबर छह पर है, जहां की आबादी का 40% हिस्सा कैथोलिक है। नीदरलैंड्स (7), ऑस्ट्रेलिया (8), स्विट्ज़रलैंड 9वें स्थान पर है और यहां की आबादी में 40% हिस्सा कैथोलिक्स का है तथा नॉर्वे 10वें स्थान पर है।

निचले पायदान पर मौजूद प्रोटेस्टेंट देशों का क्रम भी 22 पर आकर रुक जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका इस क्रम की शोभा बढ़ा रहा है। वहीं ब्रिटेन 20वें स्थान पर तथा जर्मन 15वें स्थान पर है। गैर प्रोटेस्टेंट देशों में से केवल सिंगापुर ही है जो शीर्षक्रम यानी 10वें स्थान पर है। 11वें नंबर पर लक्ज़मबर्ग है, जो कैथोलिक देश है।
दुनियाभर के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि कैथोलिक देश, प्रोटेस्टेंट देशों के मुकाबले ज्यादा भ्रष्ट हैं। लातिन अमेरिका का चिली अपवाद स्वरूप दिखाई दे रहा है, जिसको सूची में 21वां स्थान दिया गया है। हालांकि इसके चारों तरफ लाल रंग वाले देशों की संख्या ज्यादा दिखाई दे रही है। ब्राज़ील (69), पनामा (73), कोलंबिया (78), मेक्सिको (98), अर्जेंटीना (105), बोलिविया (110), एक्वाडोर (127) एवं वेनेज़ुएला (164) नए प्रकार के कैथोलिक देशों का ज्यादा प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

लंबे चले संघर्ष एवं तीन हजार लोगों के बलिदान के बाद तानाशाही से आज़ाद होकर चिली ने संपन्नता हासिल की है। वर्तमान में यह दक्षिणी अमेरिका का सबसे कम भ्रष्ट तथा संपन्न देश है।

आज इस अर्थव्यवस्था को स्वतंत्र तथा पूर्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं यानी जापान (17), दक्षिण कोरिया (39) तथा सिंगापुर के साथ गिना जाता है।

साभारः लेख वरिष्ठ स्तंभकार एवं पत्रकार श्री आकार पटेल जी के अंग्रेजी लेख का हिंदी अनुवाद है। उनका यह लेख अंग्रेजी बिजनेस अखबार मिंट के साप्ताहिक परिशिष्ठ लाउंज में छपा है।

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