मांगने वाला भिखारी और
देने वाला दानवीर है,
तो आजादी, खुशी और
जीने की एक अदद वजह मांगती हूं।
मां कहलाने के लिए भी तो मांगना होता है
अपनी पहचान, जो तुमसे शुरू होकर तुमपर खत्म होती है
क्योंकि बिना पहचान के कुल्टा हूं और पहचान के साथ भी बेनाम,
ऐसी जिंदगी के संग जीने की अदद वजह मांगती हूं।
- नीहारिका
सुन्दर गहरे भाव लिये रचना पसंद आई, बधाई.
ReplyDeleteBahut Sunder achute bhav se bhari yeh kavita yaad rahegi
ReplyDeleteमां कहलाने के लिए भी तो मांगना होता है
अपनी पहचान, जो तुमसे शुरू होकर तुमपर खत्म होती है
Vaah
Devi Nangrani
सुंदर कविताएं. www.raviwar.com पर भी ऐसी ही कुछ कविताएं कल मैंने पढ़ीं और तब से मन बेहद अस्थिर है.
ReplyDeletekachra kahta hai-ham dharti ke shringar.jharu kahta hai-lekin sab hamse behtar.kahta hai mehtar chupke se-bhadra lok ki bhad janoge..?duniya sundar hai..!!
ReplyDeletepushpraj
wah ji wah!!!!!!!!!!!!
ReplyDeletekavita yahut achchi lagee.
ReplyDeleteNiharika,
ReplyDeleteapne kavita main wahi kaha hai jo main apni bitiya ko kahta hoon.
ashok