Monday, September 17, 2007

उधार का ज्ञान, अपनों का अपमान ----नरेंद्र कोहली

मैं एएसआई वालों से पूछना चाहूंगा कि क्या वे दस-पंद्रह पीढ़ी पहले के अपने पूर्वजों का प्रमाण दे सकते हैं? रामसेतु के बहाने रामायण के पात्रों को काल्पनिक बताकर केंद्र सरकार ने फिर हिंदुओं को क्लेश दिया है। मैं सोनिया गांधी की बात नहीं करता, किंतु प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तो इसी देश के हैं। वह क्यों नहीं बोलते? इस देश में तो जैसे माफिया राज चल रहा है। हिंदू की छाती पर बैठकर उसका उपहास उड़ाया जा रहा है। अर्जुन सिंह जैसे लोग हैं जो कुछ संगठनों को पैसे देकर रामकथा के खिलाफ प्रदर्शनी लगवाते हैं। क्या किसी और देश में वहां के धर्मग्रंथों के बारे में ऐसी बातें कही जा सकती हैं? पश्चिम के लोगों ने कहा कि मूसा ने तूर पर्वत पर प्रकाश देखा तो हमने भी मान लिया, कोई सवाल तो नहीं उठाया। भारत में सरकार हिंदुओं से द्वेष रखती है, हिंदूद्रोही है। हिंदुओं का जितना उत्पीड़न अब हो रहा है उतना तो औरंगजेब के जमाने में भी नहीं हुआ। एएसआई के अधिकारी अंग्रेजों का लिखा इतिहास पढ़ते हैं। उनकी जानकारी भी उतनी ही है। इसी आधार पर वे कहते हैं कि न महाभारत की लड़ाई हुई और न राम-रावण युद्ध। मैं जानना चाहता हूं कि क्या एएसआई ने कुरुक्षेत्र के नीचे खुदाई की, क्या उसने मथुरा, हस्तिनापुर और द्वारिका को तलाशने की कोशिश की। अगर नहीं की तो वे निष्कर्ष कैसे निकाल सकते हैं। इन लोगों की जानकारी की सीमा केवल पिछले दो हजार साल की है। वहीं तक उनका ज्ञान है। जो उन्होंने पढ़ा नहीं, भारत में उससे पहले घटी घटनाओं को वे तत्काल अपने सीमित ज्ञान के बल पर अमान्य कर देते हैं। जिनके हाथ में पुरातत्व और इतिहास है वे विदेशियों द्वारा दी गई जानकारी के आसरे हैं। बिल्कुल ऐसा ही मिस्त्र में हुआ जहां के पिरामिडों के निर्माण की तकनीकी कुशलता स्वीकार करने में पश्चिमी विद्वानों को दिक्कतें आ रही थीं। वे हमेशा यही कहते रहे कि गुलामों की पीठ पर कोड़े मार कर इतनी ऊंचाई तक पत्थर पहुंचाए गए। यही अब हमारे साथ हो रहा है। हां, यहां अज्ञानता में नहीं, दुष्टता में हमारे प्रतीकों का मजाक उड़ाया जा रहा है। मैं अभी आस्था की नहीं, केवल भौतिक प्रमाणों की बात कर रहा हूं। जहां राम ने शिव की आराधना की वह रामेश्वरम तो आज भी है। वहां पहले जो रियासत थी उसका नाम ही रामनाड यानी राम की भूमि था। वह जिला आज भी इसी नाम का है। वहीं से आगे समुद्र में धनुषकोटि नामक रेलवे स्टेशन था

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