Monday, September 3, 2007

कब खुलेगी सरकार की नींद

बिहार में इस बार भी बाढ़ ने जहां छह लाख परिवारों के घर उजाड़े वहीं, 545 लोग डूब गये तथा उफनाती नदियों की वेगवती धारा में 65 की जान नाव पलटने से चली गयी। उक्त आंकड़ा बरामद शवों के आधार पर है। जबकि अभी सैकड़ों लोगों के शव नहीं मिले है। सरकारी रिकार्ड में सात साल के बाद बाढ़ में लापता हुए लोगों को मृत मानता है। बाढ़ के पानी ने खेतों को भी बर्बाद किया तथा सार्वजनिक संपत्तिको लीला। 17 लाख हेक्टेयर में खड़ी फसल नष्ट हो गयी है, यानी राज्य के एक तिहाई भू-भाग की किसानी कमर टूट चुकी है। कृषि इनपुट सब्सिडी के जरिये सरकार ने इसे दुरुस्त करने की ठानी है। इस मद में ही करीब चार-पांच सौ करोड़ खर्च होंगे। सार्वजनिक संपत्तियानी सड़क, पुल, पुलिया, स्कूल, अस्पताल, पेयजल स्रोत आदि की क्षति तो बेइंतहां हुई है। करीब 642 करोड़। इसमें बाढ़ से सर्वाधिक तबाह मुजफ्फरपुर, पूर्वी चम्पारण, समस्तीपुर सरीखे जिलों का ब्योरा शामिल नहीं हैं। इन्हें शामिल करने पर जोड़ हजार करोड़ के पार जाएगा। यह सब उस सवाल का इकट्ठा जवाब है कि बिहार क्यों पिछड़ा है, यहां की आधारभूत संरचना क्यों छिन्न-भिन्न हो जाती है! हालात को पटरी पर लाने की सरकारी कोशिशों पर 'पानी', कैसे सालाना पानी फेर देता है। प्रभावित इलाकों में जनजीवन को बचाने, पटरी पर लाने में ही सरकारी खजाने पर करीब हजार करोड़ से अधिक का भार पड़ने वाला है। करोड़ों की इमदाद तो बंट चुकी है।

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