Monday, September 24, 2007

पास थे कभी

पास थे कभी, दूर न होने के लिए,
एक घर हमने भी बनाया था अपने लिए,
चुनकर लाए थे खुशियों के एक-एक फूल,
रंग भरे थे सपनों की रंगीन कूची से,
आज भी देखती हूँ उस ख्‍वाब की दुनिया के अवशेष
जिसकी रंगहीन दीवारें आज भी कुछ यादों को
सहेजे हुए है किसी बदरंग तस्‍वीर की तरह।
- Niharika

4 comments:

  1. इस प्रस्तुति के भाव अच्छे हैं.

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  2. आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा.
    ऎसेही लिखेते रहिये.
    क्यों न आप अपना ब्लोग ब्लोगअड्डा में शामिल कर के अपने विचार ऒंर लोगों तक पहुंचाते.
    जो हमे अच्छा लगे.
    वो सबको पता चले.
    ऎसा छोटासा प्रयास है.
    हमारे इस प्रयास में.
    आप भी शामिल हो जाइयॆ.
    एक बार ब्लोग अड्डा में आके देखिये.

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  3. nihu vakai bahut pyari kavita hain....

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  4. क्या बात है दोस्त। लिखते रहिए। राजस्थान की कई बातें अब पता चल रही हैं।

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