Tuesday, September 4, 2007

चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम

चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम
ना मैं तुमसे कोई उम्‍मीद रखूं दिल नवाजी की
न तुम मेरी तरफ देखो गलत अंदाज नजरो
दिल की धड़कन लड़खड़ाएं तेरी बातों पर
न जा‍हिर हो तुम्‍हारी कशमकश का राज नजरों से
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम
तुम्‍हें भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से
मुझे भी लोग ये कहते हैं कि जलवे पराए
मेरे हमराह की रुसवाइयां है मेरे माजी की
तुम्‍हारे साथ भी गुजरी हुई यादों के साएं
इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम
ताल्‍लुफ रोग हो जाए तो उसे भूलना बेहतर
ताल्‍लुक बोझ बन जाए उसे तोड़ना अच्‍छा
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो
एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्‍छा
चलो इक बार फिर से अजनबी बन
(साहिर लुधियानवी)

1 comment:

  1. ये पंक्तियँ मुझे भी बह्त भाती हैं।

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