Monday, September 24, 2007

पास थे कभी

पास थे कभी, दूर न होने के लिए,
एक घर हमने भी बनाया था अपने लिए,
चुनकर लाए थे खुशियों के एक-एक फूल,
रंग भरे थे सपनों की रंगीन कूची से,
आज भी देखती हूँ उस ख्‍वाब की दुनिया के अवशेष
जिसकी रंगहीन दीवारें आज भी कुछ यादों को
सहेजे हुए है किसी बदरंग तस्‍वीर की तरह।
- Niharika

3 comments:

  1. इस प्रस्तुति के भाव अच्छे हैं.

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  2. nihu vakai bahut pyari kavita hain....

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  3. क्या बात है दोस्त। लिखते रहिए। राजस्थान की कई बातें अब पता चल रही हैं।

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