Saturday, September 29, 2007
दैनिक हिंदुस्तान का भोपाल संस्करण
Friday, September 28, 2007
पत्रकारों की सज़ा पर रोकी सुप्रीम कोर्ट ने
खबर के अनुसार अदालत की अवमानना के एक मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने 'मिड डे' अख़बार के चार पत्रकारों को चार-चार महीने की जेल की सज़ा सुनाई थी। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अरिजीत पसायत और पी सदाशिवम ने चारों पत्रकारों की याचिका स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट से उन्हें मिली सज़ा पर रोक लगा दी।
हाईकोर्ट ने जिन्हें सज़ा सुनाई थी उनमें 'मिड डे' के स्थानीय संपादक और प्रकाशक के साथ-साथ एक कार्टूनिस्ट भी हैं. 'मिड डे' में छपे लेख में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायधीश वाईके सभरवाल पर दिल्ली में अवैध तरीक़े से रिहायशी इलाक़ों में चल रही दुकानों को सील करने के आदेश से संबंधित कुछ टिप्पणियाँ की थीं। अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि 'लेख से सुप्रीम कोर्ट की छवि धूमिल होती है। इससे इस संस्था में आम लोगों के विश्वास में कमी आ सकती है।'
पत्रकार इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गए थे और सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि दोषी ठहराए गए लोगों को उच्च न्यायालय तत्काल ज़मानत दे दे जिसके बाद चारों को ज़मानत दे दी गई।
पत्रकारों की सज़ा पर रोकी सुप्रीम कोर्ट ने
खबर के अनुसार अदालत की अवमानना के एक मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने 'मिड डे' अख़बार के चार पत्रकारों को चार-चार महीने की जेल की सज़ा सुनाई थी। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अरिजीत पसायत और पी सदाशिवम ने चारों पत्रकारों की याचिका स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट से उन्हें मिली सज़ा पर रोक लगा दी।
हाईकोर्ट ने जिन्हें सज़ा सुनाई थी उनमें 'मिड डे' के स्थानीय संपादक और प्रकाशक के साथ-साथ एक कार्टूनिस्ट भी हैं. 'मिड डे' में छपे लेख में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायधीश वाईके सभरवाल पर दिल्ली में अवैध तरीक़े से रिहायशी इलाक़ों में चल रही दुकानों को सील करने के आदेश से संबंधित कुछ टिप्पणियाँ की थीं। अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि 'लेख से सुप्रीम कोर्ट की छवि धूमिल होती है। इससे इस संस्था में आम लोगों के विश्वास में कमी आ सकती है।'
पत्रकार इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गए थे और सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि दोषी ठहराए गए लोगों को उच्च न्यायालय तत्काल ज़मानत दे दे जिसके बाद चारों को ज़मानत दे दी गई।
Tuesday, September 25, 2007
लेकिन अब गंगा तेरे शहर से मेरे शहर में नहीं आती
जब मेरे शहर को आती थी
लेकिन अब गंगा तेरे शहर से
लेकिन अब गंगा तेरे शहर से मेरे शहर में नहीं आती
जब मेरे शहर को आती थी
लेकिन अब गंगा तेरे शहर से
Monday, September 24, 2007
पास थे कभी
एक घर हमने भी बनाया था अपने लिए,
चुनकर लाए थे खुशियों के एक-एक फूल,
रंग भरे थे सपनों की रंगीन कूची से,
आज भी देखती हूँ उस ख्वाब की दुनिया के अवशेष
जिसकी रंगहीन दीवारें आज भी कुछ यादों को
सहेजे हुए है किसी बदरंग तस्वीर की तरह।
- Niharika
पास थे कभी
एक घर हमने भी बनाया था अपने लिए,
चुनकर लाए थे खुशियों के एक-एक फूल,
रंग भरे थे सपनों की रंगीन कूची से,
आज भी देखती हूँ उस ख्वाब की दुनिया के अवशेष
जिसकी रंगहीन दीवारें आज भी कुछ यादों को
सहेजे हुए है किसी बदरंग तस्वीर की तरह।
- Niharika
Friday, September 21, 2007
प्रेयसी को पत्र
प्रिये, तुम्हें खत लिखने की सोचते सोचते पूरी ऋतु गुजर गई। ग्रीष्म ऋतु में बिजली की कमी के कारण तुम भी किसी कोने में पसीना बहा रही होगी यही सोचकर तुम्हें छेड़ने का मेरा मन नहीं हुआ। बिजलीघर तो जैसा तुम्हारा वैसा हमारा। अब मौसम बदला है तो कलम अपने आप ही बहने लगी है। लेखनी फेंकने की अपेक्षा तुम्हें एक खत लिख दूं, यही ठीक रहेगा सो लिखता हूं। सुमुखि, तुम्हारा चंद्रमुख देखने के लिए दिन रात तरसता हूँ। फोटो में जैसा है वैसा दिखता है, इससे तो कल्पना में देखना ठीक है। मनरूपी कंप्यूटर में कल्पना के टूल्स बार से रंग और डिजाइन उठाकर फिट करता हूं, ठीक लगने लगता है तो देख लेता हूं। इतनी मेहनत मैं करता हूं सो तुम्हारे लिए। एक बार दिख जाओ तो रोज की यह कसरत बंद हो जाये। मनोहरे, बाहर बरसात हो रही है। कोई कवि होता तो ऐसे में मिलने की बात जरूर कहता। जानता है ऐसे में आ जाओगी तो जाओगी बारिश बंद होने पर ही। देर तक सानिध्य रहेगा। लेकिन मैं डरता हूँ। तुम कवि की प्रेयसी नहीं, आधुनिक प्रेमी की चाहत हो। अधिक देर तुम्हारे रुकने पर बोरियत का शिकार होने का डर है। वैसे भी जेब में पैसे न हों तो आदमी जल्दी बोर होने लगता है। ऐसे में प्रेमिका पास हो तो हासिल में बेइज्जती के अलावा कुछ बचता नहीं है। इसीलिए सूखे में आना और सूखे में जाना। कपड़े भी ज्यादा चलेंगे। धन्ये, तुम सचमुच धन्य हो। कानून की तरह किताबों में कैद रहने में तुम्हें कितना मजा आता है! कब से बुला रहा हूँ लेकिन आने का नाम नहीं लेतीं। क्या तुम्हें भी किसी पुलिसवाले ने कब्जिया लिया है? अगर ऐसा है तो उस पुलिसवाले के आका का उल्लेख खत में जरूर करना। आज के समय में पुलिस इशारे के बिना काम नहीं करती। यह कोई अमेरिका की पुलिस नहीं है जो साक्ष्यों के अनुसार चले। इशारा करने वाला अगर सचमुच ताकतवर है तो मैं कहीं और देखूंगा। तुम्हे नाहक परेशान होने की जरूरत नहीं है। तुम अगर पुलिस के पास हो तो सारा हिंदुस्तान तुम्हारे पास है। ललिते, वैसे तो मैं खत में मोबाइल नंबर लिख देता, तुम्हें बात करने में आसानी रहती। लेकिन सुरक्षा के लिहाज से ठीक नहीं है। आती बारी में अपना लिख भेजना। तुम्हें अधिक सोचने की जरूरत नहीं है। यह बंदा अपना नंबर चाहे जितना बांट दे लेकिन तुम्हारा तो अपने पास गोपन ही रखना अधिक पसंद करेगा। चंद्रमुखी, तुम क्यों चिंता करती हो। आ भी जाओ। अगर कोई काम नहीं मिलेगा तो दलाली करने लगूंगा। हमारी सभ्यता ने इस काम को भी सम्मान दिला दिया है। दो लोगों को धोखे में रखकर कितना भी पैसा कमाया जा सकता है। हां, यह धन होता दो नंबर का है इसीलिए खर्च भी जल्दी करना पड़ता है। हांलाकि तुम्हारे लिए तो यह खुशी की बात है। सुभगे, कल तुम्हें बाजार में देखा। जान पड़ा कि तुम्हीं हो। हांलाकि कल्पना से मैच नहीं करतीं लेकिन पहनावे से अच्छे घर की जान पड़ती हो। मैंने सोचा तुम्हीं ठीक हो। शाम तक मेरी बेपनाह मुहव्वत मुझ पर हावी हो गई। अब नये ढंग से मैं तुमसे नया प्रेम करने लगा हूँ। कल्पनावाली की मैंने छुट्टी कर दी है। प्राणवल्लभे, अब तो मैं तुम्हारे अलावा कुछ भी नहीं सोचता हूँ। बात यह है कि फिल्में सब एकसी आती हैं। किताबें मैं पढ़ता नहीं। दोस्त सब इधर उधर हो गये हैं। इसलिए सोचने के लिए मेरे पास और कुछ है भी नहीं। यह मैं इसलिए बता रहा हूँ कि तुम विश्वास कर सको कि मैं आजकल तुम्हारे बारे में ही अधिक सोचता हूँ। शकुंतले, दुष्यंत की तरह मैं तुम्हें नहीं भूलूंगा। मेरे पास एक ही अंगूठी है, उसे मैं तुम्हें दे दूंगा। उसकी चिंता रहेगी तो तुम्हारी भी याद रहेगी। पुरुष स्त्री को जो दे देता है उसके लिए भी उसे याद रखता है। मनोविज्ञान का यह नियम अखबारों से तुम तक भी आ गया होगा। इसलिए उल्लेख कर रहा हूँ। सखि, अब कितना लिखूं? इतना तो मैंने पूरे परीक्षा काल में भी नहीं लिखा। संक्षेप में मेरी स्थिति जो है सो लिखता हूँ। इसी से समझ लेना। मुझे गरज किसी से क्या वास्ता मुझे काम अपने काम से।तेरे जिक्र से तेरी फिक्र से तेरी याद से तेरे नाम से। मानिनी, पता नहीं तुम लड़कियों को इतना घमंड किस बात का होता है। तुमने एक भी खत का जबाब नहीं दिया। कोई लड़का भी तुम्हारे आसपास नहीं दिखता। पता नहीं किन सपनों में खोई रहती हो। उस दिन भीड़ में धक्का दिया, तुमने ध्यान नहीं दिया। सीटी बजाने पर मुड़ कर भी नहीं देखा। क्या तुम्हारा स्वभाव भी पांच साल में एक बार मुड़कर देखने वाला है? तो अपने चुनाव की साल बता रखना। मैं प्रचार का बजट बना रखूँगा। रूपा, मेरा अब यह आखिरी खत है। अब और नहीं। पाकिस्तानी जनता की तरह डेमोक्रेसी का इंतजार अनंतकाल तक मैं नहीं कर सकता। उधर नेपाल में भी जनता को सरकार मिल गई है। सोचता हूं अब मुझे भी अपने लिए कोई ठीक करनी ही पड़ेगी। साफ बता देता हूँ, तू नहीं और सही, और नहीं और सही। सजनि, तुम्हारा जबाब पाकर खुश हुआ। हिंदी जरूर तुम्हारी खराब है लेकिन उसकी चिंता तो किसी को भी नहीं है। हमीं क्यों नाहक परेशान हों? तुमने तो जबाब में फिल्मी गीत तक लिखे हैं। मैं इतने की उम्मीद नहीं करता था। तो कल बाजार में मिलना। चोरी की कुछ सीडीं मेरे पास भी हैं। सब तुम्हें दे दूंगा। काम्या, तुमसे मिलकर आया तो दिनभर खुश रहा। पर देखना हमारे मिलन का हाल मुशर्रफ-बेनजीर सा न हो। मुलाकात के समय कुछ और अपनी जगह पर कुछ और। हमारे तुम्हारे बीच मौकापरस्त नवाज शरीफ हो सकते हैं। तुम्हारे पितारूपी सुप्रीम कोर्ट का सहारा लेकर वे लौट सकते हैं, सावधान रहना। मेरी सरकार, मुझे तुम्हारा प्रधानमंत्री होने में कोई बुराई नजर नहीं आती। पद तो मेरा है। भाषण और प्रोग्राम तुम्हारे चलेंगे। बस लेफ्ट फ्रंट की तरह लेफ्ट मत हो जाना। वैसे वे भी जल्दी मान जाते हैं। मनमोहिनी, कल मां के बारे में तुम्हारे विचार जानने को मिले। जानकर खुशी हुई कि वे मेरी मां के बारे में थे, तुम्हारी मां के बारे में नहीं। हिंदी की तरह मेरी मां खराब हो सकती हैं लेकिन अंग्रेजी की तरह तुम्हारी मां की अहमियत से मैं क्या कोई भी इंकार नहीं कर सकता। निर्मोहिणी, तुम क्यों रूठ गईं? मैंने तुम्हारे पिता को कब बुरा भला कहा था? मैं तो अपने प्रिंसीपल की शिकायत कर रहा था। कसम से एक बार भी जो पढ़ाई छोड़ने के बाद उसने किताब उठाई है। खुद अब तक जैसे का तैसा है और हमें जाने क्या समझता है! निर्दयी, हाय! तुम्हें मनाना कितना कठिन काम है। मुझे दोस्तों से उधार लेना पड़ा। अब मुझे उनको भी तुमसे दोस्ती करने की अनुमति देनी पड़ेगी। तुम्हारे चयन के अधिकार के बढ़ जाने से चिंतित रहने लगा हूँ। चुनाव आयोग की तरह तुम्हारे सख्त व्यवहार का नतीजा किसके पक्ष में जायेगा इसका पता मैं चुनाव पूर्व के शराब वितरण जैसी मशक्कत के बावजूद नहीं जान सकता। चपले, तुम चली गईं। सत्ता की तरह चली जाओगी, नेता की तरह मुझे अंदाज था। जनता जैसा मन है तुम्हारा। मैं अब हिंदी के लेखक की तरह अस्त व्यस्त रहने लगा हूँ। देश के अधकचरे पढ़े लिखे लोगों जैसा मेरा घमंड न जाने कहां चला गया है। अब तो उन्हीं के अंदाज में नये प्रेमियों को समझाने में लगा रहता हूँ। प्रेयसि, फिल्मी लेखक की तरह चोरी की कहानी को अपना कहने लगा हूँ। निर्देशक की तरह उसे आजमाने में लगा हूँ। एक दोस्त की प्रेमिका से मिलने लगा हूँ। वह भी बोर है। जान पड़ता है प्रेम हो ही जायेगा। लेखक प्रेम कहानियां लिख लिख कर बोर नहीं होते। हम लोग प्रेम कर करके। सोचा तुम्हें बता दूँ। कहीं एकदम लौट पड़ीं तो जगह की तंगी का शिकार हो सकते हैं हम लोग। तबादला खा चुके अधिकारी को कोर्ट से स्टे मिल जाने के बाद जैसे दो अधिकारी एक ही कुर्सी पर फंस जाते हैं और ठीक से खा पी नहीं पाने के कारण दुखी रहते हैं वैसे मैं तुम्हें दुखी नहीं देखना चाहता। सांवरी, फेयर क्रीम लगा कर साफ रहना। अपने नये प्रेमी का वजन कम करती रहना। उसे अपने अनुभवों को बताना। साफ साफ बताना, सरकारी बाबुओं जैसी गोलमोल भाषा का इस्तेमाल मत करना। अखबारी संवाददाता की तरह अपने कम ज्ञान पर भी पूरा भरोसा रखना। स्वास्थ्य का ध्यान रखना, साथ वाले का भी। जितना सहन कर सके उसे उतना ही दुख देना।
- संजीव
(यह गुस्ताखी माफ़ से लिया गया हैं।)
प्रेयसी को पत्र
प्रिये, तुम्हें खत लिखने की सोचते सोचते पूरी ऋतु गुजर गई। ग्रीष्म ऋतु में बिजली की कमी के कारण तुम भी किसी कोने में पसीना बहा रही होगी यही सोचकर तुम्हें छेड़ने का मेरा मन नहीं हुआ। बिजलीघर तो जैसा तुम्हारा वैसा हमारा। अब मौसम बदला है तो कलम अपने आप ही बहने लगी है। लेखनी फेंकने की अपेक्षा तुम्हें एक खत लिख दूं, यही ठीक रहेगा सो लिखता हूं। सुमुखि, तुम्हारा चंद्रमुख देखने के लिए दिन रात तरसता हूँ। फोटो में जैसा है वैसा दिखता है, इससे तो कल्पना में देखना ठीक है। मनरूपी कंप्यूटर में कल्पना के टूल्स बार से रंग और डिजाइन उठाकर फिट करता हूं, ठीक लगने लगता है तो देख लेता हूं। इतनी मेहनत मैं करता हूं सो तुम्हारे लिए। एक बार दिख जाओ तो रोज की यह कसरत बंद हो जाये। मनोहरे, बाहर बरसात हो रही है। कोई कवि होता तो ऐसे में मिलने की बात जरूर कहता। जानता है ऐसे में आ जाओगी तो जाओगी बारिश बंद होने पर ही। देर तक सानिध्य रहेगा। लेकिन मैं डरता हूँ। तुम कवि की प्रेयसी नहीं, आधुनिक प्रेमी की चाहत हो। अधिक देर तुम्हारे रुकने पर बोरियत का शिकार होने का डर है। वैसे भी जेब में पैसे न हों तो आदमी जल्दी बोर होने लगता है। ऐसे में प्रेमिका पास हो तो हासिल में बेइज्जती के अलावा कुछ बचता नहीं है। इसीलिए सूखे में आना और सूखे में जाना। कपड़े भी ज्यादा चलेंगे। धन्ये, तुम सचमुच धन्य हो। कानून की तरह किताबों में कैद रहने में तुम्हें कितना मजा आता है! कब से बुला रहा हूँ लेकिन आने का नाम नहीं लेतीं। क्या तुम्हें भी किसी पुलिसवाले ने कब्जिया लिया है? अगर ऐसा है तो उस पुलिसवाले के आका का उल्लेख खत में जरूर करना। आज के समय में पुलिस इशारे के बिना काम नहीं करती। यह कोई अमेरिका की पुलिस नहीं है जो साक्ष्यों के अनुसार चले। इशारा करने वाला अगर सचमुच ताकतवर है तो मैं कहीं और देखूंगा। तुम्हे नाहक परेशान होने की जरूरत नहीं है। तुम अगर पुलिस के पास हो तो सारा हिंदुस्तान तुम्हारे पास है। ललिते, वैसे तो मैं खत में मोबाइल नंबर लिख देता, तुम्हें बात करने में आसानी रहती। लेकिन सुरक्षा के लिहाज से ठीक नहीं है। आती बारी में अपना लिख भेजना। तुम्हें अधिक सोचने की जरूरत नहीं है। यह बंदा अपना नंबर चाहे जितना बांट दे लेकिन तुम्हारा तो अपने पास गोपन ही रखना अधिक पसंद करेगा। चंद्रमुखी, तुम क्यों चिंता करती हो। आ भी जाओ। अगर कोई काम नहीं मिलेगा तो दलाली करने लगूंगा। हमारी सभ्यता ने इस काम को भी सम्मान दिला दिया है। दो लोगों को धोखे में रखकर कितना भी पैसा कमाया जा सकता है। हां, यह धन होता दो नंबर का है इसीलिए खर्च भी जल्दी करना पड़ता है। हांलाकि तुम्हारे लिए तो यह खुशी की बात है। सुभगे, कल तुम्हें बाजार में देखा। जान पड़ा कि तुम्हीं हो। हांलाकि कल्पना से मैच नहीं करतीं लेकिन पहनावे से अच्छे घर की जान पड़ती हो। मैंने सोचा तुम्हीं ठीक हो। शाम तक मेरी बेपनाह मुहव्वत मुझ पर हावी हो गई। अब नये ढंग से मैं तुमसे नया प्रेम करने लगा हूँ। कल्पनावाली की मैंने छुट्टी कर दी है। प्राणवल्लभे, अब तो मैं तुम्हारे अलावा कुछ भी नहीं सोचता हूँ। बात यह है कि फिल्में सब एकसी आती हैं। किताबें मैं पढ़ता नहीं। दोस्त सब इधर उधर हो गये हैं। इसलिए सोचने के लिए मेरे पास और कुछ है भी नहीं। यह मैं इसलिए बता रहा हूँ कि तुम विश्वास कर सको कि मैं आजकल तुम्हारे बारे में ही अधिक सोचता हूँ। शकुंतले, दुष्यंत की तरह मैं तुम्हें नहीं भूलूंगा। मेरे पास एक ही अंगूठी है, उसे मैं तुम्हें दे दूंगा। उसकी चिंता रहेगी तो तुम्हारी भी याद रहेगी। पुरुष स्त्री को जो दे देता है उसके लिए भी उसे याद रखता है। मनोविज्ञान का यह नियम अखबारों से तुम तक भी आ गया होगा। इसलिए उल्लेख कर रहा हूँ। सखि, अब कितना लिखूं? इतना तो मैंने पूरे परीक्षा काल में भी नहीं लिखा। संक्षेप में मेरी स्थिति जो है सो लिखता हूँ। इसी से समझ लेना। मुझे गरज किसी से क्या वास्ता मुझे काम अपने काम से।तेरे जिक्र से तेरी फिक्र से तेरी याद से तेरे नाम से। मानिनी, पता नहीं तुम लड़कियों को इतना घमंड किस बात का होता है। तुमने एक भी खत का जबाब नहीं दिया। कोई लड़का भी तुम्हारे आसपास नहीं दिखता। पता नहीं किन सपनों में खोई रहती हो। उस दिन भीड़ में धक्का दिया, तुमने ध्यान नहीं दिया। सीटी बजाने पर मुड़ कर भी नहीं देखा। क्या तुम्हारा स्वभाव भी पांच साल में एक बार मुड़कर देखने वाला है? तो अपने चुनाव की साल बता रखना। मैं प्रचार का बजट बना रखूँगा। रूपा, मेरा अब यह आखिरी खत है। अब और नहीं। पाकिस्तानी जनता की तरह डेमोक्रेसी का इंतजार अनंतकाल तक मैं नहीं कर सकता। उधर नेपाल में भी जनता को सरकार मिल गई है। सोचता हूं अब मुझे भी अपने लिए कोई ठीक करनी ही पड़ेगी। साफ बता देता हूँ, तू नहीं और सही, और नहीं और सही। सजनि, तुम्हारा जबाब पाकर खुश हुआ। हिंदी जरूर तुम्हारी खराब है लेकिन उसकी चिंता तो किसी को भी नहीं है। हमीं क्यों नाहक परेशान हों? तुमने तो जबाब में फिल्मी गीत तक लिखे हैं। मैं इतने की उम्मीद नहीं करता था। तो कल बाजार में मिलना। चोरी की कुछ सीडीं मेरे पास भी हैं। सब तुम्हें दे दूंगा। काम्या, तुमसे मिलकर आया तो दिनभर खुश रहा। पर देखना हमारे मिलन का हाल मुशर्रफ-बेनजीर सा न हो। मुलाकात के समय कुछ और अपनी जगह पर कुछ और। हमारे तुम्हारे बीच मौकापरस्त नवाज शरीफ हो सकते हैं। तुम्हारे पितारूपी सुप्रीम कोर्ट का सहारा लेकर वे लौट सकते हैं, सावधान रहना। मेरी सरकार, मुझे तुम्हारा प्रधानमंत्री होने में कोई बुराई नजर नहीं आती। पद तो मेरा है। भाषण और प्रोग्राम तुम्हारे चलेंगे। बस लेफ्ट फ्रंट की तरह लेफ्ट मत हो जाना। वैसे वे भी जल्दी मान जाते हैं। मनमोहिनी, कल मां के बारे में तुम्हारे विचार जानने को मिले। जानकर खुशी हुई कि वे मेरी मां के बारे में थे, तुम्हारी मां के बारे में नहीं। हिंदी की तरह मेरी मां खराब हो सकती हैं लेकिन अंग्रेजी की तरह तुम्हारी मां की अहमियत से मैं क्या कोई भी इंकार नहीं कर सकता। निर्मोहिणी, तुम क्यों रूठ गईं? मैंने तुम्हारे पिता को कब बुरा भला कहा था? मैं तो अपने प्रिंसीपल की शिकायत कर रहा था। कसम से एक बार भी जो पढ़ाई छोड़ने के बाद उसने किताब उठाई है। खुद अब तक जैसे का तैसा है और हमें जाने क्या समझता है! निर्दयी, हाय! तुम्हें मनाना कितना कठिन काम है। मुझे दोस्तों से उधार लेना पड़ा। अब मुझे उनको भी तुमसे दोस्ती करने की अनुमति देनी पड़ेगी। तुम्हारे चयन के अधिकार के बढ़ जाने से चिंतित रहने लगा हूँ। चुनाव आयोग की तरह तुम्हारे सख्त व्यवहार का नतीजा किसके पक्ष में जायेगा इसका पता मैं चुनाव पूर्व के शराब वितरण जैसी मशक्कत के बावजूद नहीं जान सकता। चपले, तुम चली गईं। सत्ता की तरह चली जाओगी, नेता की तरह मुझे अंदाज था। जनता जैसा मन है तुम्हारा। मैं अब हिंदी के लेखक की तरह अस्त व्यस्त रहने लगा हूँ। देश के अधकचरे पढ़े लिखे लोगों जैसा मेरा घमंड न जाने कहां चला गया है। अब तो उन्हीं के अंदाज में नये प्रेमियों को समझाने में लगा रहता हूँ। प्रेयसि, फिल्मी लेखक की तरह चोरी की कहानी को अपना कहने लगा हूँ। निर्देशक की तरह उसे आजमाने में लगा हूँ। एक दोस्त की प्रेमिका से मिलने लगा हूँ। वह भी बोर है। जान पड़ता है प्रेम हो ही जायेगा। लेखक प्रेम कहानियां लिख लिख कर बोर नहीं होते। हम लोग प्रेम कर करके। सोचा तुम्हें बता दूँ। कहीं एकदम लौट पड़ीं तो जगह की तंगी का शिकार हो सकते हैं हम लोग। तबादला खा चुके अधिकारी को कोर्ट से स्टे मिल जाने के बाद जैसे दो अधिकारी एक ही कुर्सी पर फंस जाते हैं और ठीक से खा पी नहीं पाने के कारण दुखी रहते हैं वैसे मैं तुम्हें दुखी नहीं देखना चाहता। सांवरी, फेयर क्रीम लगा कर साफ रहना। अपने नये प्रेमी का वजन कम करती रहना। उसे अपने अनुभवों को बताना। साफ साफ बताना, सरकारी बाबुओं जैसी गोलमोल भाषा का इस्तेमाल मत करना। अखबारी संवाददाता की तरह अपने कम ज्ञान पर भी पूरा भरोसा रखना। स्वास्थ्य का ध्यान रखना, साथ वाले का भी। जितना सहन कर सके उसे उतना ही दुख देना।
- संजीव
(यह गुस्ताखी माफ़ से लिया गया हैं।)
Tuesday, September 18, 2007
सरकारी धन से स्तन वृद्धि और फिर बवाल
अभी अभी मेरे एक दोस्त ने एक न्यूज़ का लिंक भेजा हैं। जरा आप भी गौर फरमाइये. न्यूज़ वेब दुनिया से ली गई है। यहाँ भी न्यूज़ पर नज़र डाली जा सकती हैं।
ऑस्ट्रेलिया में महिला नौसैनिकों को स्तनों का आकार बढ़ाने वाली सर्जरी के लिए सरकारी कोष से पैसे देने पर विवाद खड़ा हो गया है। विपक्षी लेबर पार्टी ने कहा है कि जनता से वसूले गए पैसों का इस्तेमाल इस तरह के कार्यों में करना ठीक नहीं है।हालाँकि सेना के प्रवक्ता ने इस तरह की सर्जरी को सही ठहराया है। उनका कहना है कि इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण हैं न कि महिला नौसैनिकों को 'सेक्सी' दिखाना।ब्रिगेडियर एंड्र्यू निकोलिक ने कहा कि रक्षा नीति के तहत कर्मचारियों की 'व्यापक जरूरतों' का ध्यान रखा जाता है। उन्होंने कहा कि स्तन वृद्धि की सर्जरी के लिए धन मुहैया कराना सेना की कोई सामान्य नीति नहीं है।ब्रिगेडियर निकोलिक ने कहा कि हम अपने लोगों की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक जरूरतों का ध्यान रखते हैं। वो कहते हैं कि लेकिन ये कहना ठीक नहीं होगा कि अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि वह अच्छा नहीं दिख रहा है तो सेना रुटिन के तहत स्तन वृद्धि जैसे कामों के लिए पैसे दे।सेना का बयान ऐसे समय में आया है जब एक प्लास्टिक सर्जन ने कहा कि उसने स्तन का आकार बढ़ाने के लिए दो महिला सैनिकों की सर्जरी की है और इस पर चार हजार 200 पाउंड खर्च हुए। ब्रिगेडियर नोकिलक ने कहा कि इस तरह की सर्जरी का फैसला प्राथमिक चिकित्सा जाँच के बाद ही होता है।लेकिन विपक्षी लिबरल पार्टी ने पूरे मामले पर स्पष्टीकरण माँगा है। उसका कहना है कि जनता के टैक्स के पैसों से इस तरह की सर्जरी कराना कई सवाल खड़े करता है।
सरकारी धन से स्तन वृद्धि और फिर बवाल
अभी अभी मेरे एक दोस्त ने एक न्यूज़ का लिंक भेजा हैं। जरा आप भी गौर फरमाइये. न्यूज़ वेब दुनिया से ली गई है। यहाँ भी न्यूज़ पर नज़र डाली जा सकती हैं।
ऑस्ट्रेलिया में महिला नौसैनिकों को स्तनों का आकार बढ़ाने वाली सर्जरी के लिए सरकारी कोष से पैसे देने पर विवाद खड़ा हो गया है। विपक्षी लेबर पार्टी ने कहा है कि जनता से वसूले गए पैसों का इस्तेमाल इस तरह के कार्यों में करना ठीक नहीं है।हालाँकि सेना के प्रवक्ता ने इस तरह की सर्जरी को सही ठहराया है। उनका कहना है कि इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण हैं न कि महिला नौसैनिकों को 'सेक्सी' दिखाना।ब्रिगेडियर एंड्र्यू निकोलिक ने कहा कि रक्षा नीति के तहत कर्मचारियों की 'व्यापक जरूरतों' का ध्यान रखा जाता है। उन्होंने कहा कि स्तन वृद्धि की सर्जरी के लिए धन मुहैया कराना सेना की कोई सामान्य नीति नहीं है।ब्रिगेडियर निकोलिक ने कहा कि हम अपने लोगों की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक जरूरतों का ध्यान रखते हैं। वो कहते हैं कि लेकिन ये कहना ठीक नहीं होगा कि अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि वह अच्छा नहीं दिख रहा है तो सेना रुटिन के तहत स्तन वृद्धि जैसे कामों के लिए पैसे दे।सेना का बयान ऐसे समय में आया है जब एक प्लास्टिक सर्जन ने कहा कि उसने स्तन का आकार बढ़ाने के लिए दो महिला सैनिकों की सर्जरी की है और इस पर चार हजार 200 पाउंड खर्च हुए। ब्रिगेडियर नोकिलक ने कहा कि इस तरह की सर्जरी का फैसला प्राथमिक चिकित्सा जाँच के बाद ही होता है।लेकिन विपक्षी लिबरल पार्टी ने पूरे मामले पर स्पष्टीकरण माँगा है। उसका कहना है कि जनता के टैक्स के पैसों से इस तरह की सर्जरी कराना कई सवाल खड़े करता है।
Monday, September 17, 2007
उधार का ज्ञान, अपनों का अपमान ----नरेंद्र कोहली
उधार का ज्ञान, अपनों का अपमान ----नरेंद्र कोहली
दो नव पत्रकारों की जरुरत है
Sunday, September 16, 2007
नासा की तस्वीरें राम सेतु का सबूत नहीं
एक बार मंदिर के मुद्दे को भुनाने की कोशिश की गइ अब सेतु को। न जाने देश को किस आग में झोंकने की कोशिश की जा रही है।
Thursday, September 13, 2007
ना जाने वो मुझसे क्यों खफा हो गए
ना जाने वो मुझसे क्यों खफा हो गए
जाते जाते मैं उन्हें मना नही सका
और वो मुझे माफ़ कर ना सके
ना जाने वो मुझसे क्यों खफा हो गए
ना जाने वो मुझसे क्यों खफा हो गए
जाते जाते मैं उन्हें मना नही सका
और वो मुझे माफ़ कर ना सके
Friday, September 7, 2007
सपनों के टूटे कांच चुभते हैं दिल में
सपनों के टूटे कांच चुभते हैं दिल में
लेकिन हर बार की तरह हम सपने देखते हैं
और महसूस करते हैं उस चुभन को
मैने भी हर बार यही किया
और जगा दिया गया हर बार सपनों के टूटने से पहले
लेकिन क्या मुझे कोई हक नहीं है अपने सपनों को एक नाम देने का
नहीं मुझे कोई हक नहीं है
मेरे सपनों की नींव किसी की सच्चाई पर नहीं हो सकती है
हर बार मैं गलती करता हूं सपने देखना का
लेकिन अब नही
हां मुझे कोई हक नहीं है सपने देखने को
सपनों के टूटे कांच चुभते हैं दिल में
सपनों के टूटे कांच चुभते हैं दिल में
लेकिन हर बार की तरह हम सपने देखते हैं
और महसूस करते हैं उस चुभन को
मैने भी हर बार यही किया
और जगा दिया गया हर बार सपनों के टूटने से पहले
लेकिन क्या मुझे कोई हक नहीं है अपने सपनों को एक नाम देने का
नहीं मुझे कोई हक नहीं है
मेरे सपनों की नींव किसी की सच्चाई पर नहीं हो सकती है
हर बार मैं गलती करता हूं सपने देखना का
लेकिन अब नही
हां मुझे कोई हक नहीं है सपने देखने को
Thursday, September 6, 2007
बैग के दो नए चैनल
Wednesday, September 5, 2007
सभ्य समाज
सभ्य समाज
पुण्य प्रसून वाजपेयी ने आज तक छोड़ा
Tuesday, September 4, 2007
अजित भट्टाचार्य को छह महीने की जेल की सज़ा
ग्लैमर की दुनिया की सच्चाई
(नवभारत टाइम्स से साभार) (पूरी खबर पढ़ें : http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/2336436.cms)
ग्लैमर की दुनिया की सच्चाई
(नवभारत टाइम्स से साभार) (पूरी खबर पढ़ें : http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/2336436.cms)
लुधियाना में भास्कर समूह का अखबार
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चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम
ना मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूं दिल नवाजी की
न तुम मेरी तरफ देखो गलत अंदाज नजरो
दिल की धड़कन लड़खड़ाएं तेरी बातों पर
न जाहिर हो तुम्हारी कशमकश का राज नजरों से
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से
मुझे भी लोग ये कहते हैं कि जलवे पराए
मेरे हमराह की रुसवाइयां है मेरे माजी की
तुम्हारे साथ भी गुजरी हुई यादों के साएं
इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम
ताल्लुफ रोग हो जाए तो उसे भूलना बेहतर
ताल्लुक बोझ बन जाए उसे तोड़ना अच्छा
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो
एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा
चलो इक बार फिर से अजनबी बन
(साहिर लुधियानवी)
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम
ना मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूं दिल नवाजी की
न तुम मेरी तरफ देखो गलत अंदाज नजरो
दिल की धड़कन लड़खड़ाएं तेरी बातों पर
न जाहिर हो तुम्हारी कशमकश का राज नजरों से
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से
मुझे भी लोग ये कहते हैं कि जलवे पराए
मेरे हमराह की रुसवाइयां है मेरे माजी की
तुम्हारे साथ भी गुजरी हुई यादों के साएं
इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम
ताल्लुफ रोग हो जाए तो उसे भूलना बेहतर
ताल्लुक बोझ बन जाए उसे तोड़ना अच्छा
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो
एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा
चलो इक बार फिर से अजनबी बन
(साहिर लुधियानवी)
Monday, September 3, 2007
कब खुलेगी सरकार की नींद
कब खुलेगी सरकार की नींद
अपनी लगाइ आग में जल रहा है पाकिस्तान
अपनी लगाइ आग में जल रहा है पाकिस्तान
चीन में भी लड़कियों की कमी
चीन में भी लड़कियों की कमी
Sunday, September 2, 2007
तेरी खामोशी को मैं एक शब्द देना चाहता हूँ
तुझे हसंता और चहकता देखना चाहता हूँ
ज़ालिम जमाने से तुझे महफूज रखना चाहता हूँ
तेरी खामोशी से मुझे आज भी डर लगता
बस तू अपनी खामोशी को एक शब्द देगे
तेरी खामोशी को मैं एक शब्द देना चाहता हूँ
तुझे हसंता और चहकता देखना चाहता हूँ
ज़ालिम जमाने से तुझे महफूज रखना चाहता हूँ
तेरी खामोशी से मुझे आज भी डर लगता
बस तू अपनी खामोशी को एक शब्द देगे
तान्या
है अधिकार मुझको भी जन्म लेने का,
अपनी कोंख में मुझको पनाह दे दो मां।
सृष्टि के रचयिता की इस अनुपम कृति की,
मैं भी बन सकूं साक्षी वो राह दे दो मां।।
पिता की थाम कर ऊंगला मैं चलना सीखूंगी,
बैठ बाबा के कांधे पर देखूंगी जहां सारा।
सजा कर भाई की सूनी कलाई रेशम के धागे से,
दादी मां की आंखों का बन जाऊं मैं तारा।।
रिश्तों के माधुर्य़ से पुलकित हो जो बगिया,
अपने मातृत्व की वही ठंडी छांव दे दो मा।।
हैं अरमान कुछ मेरे,सजाए स्वप्न नयनों ने,
मगर डर है कहीं ये ख्वाब न रह जाएं अधूरे।
जो लोग कहते हैं नहीं मैं वंश तेरी मां,
टिकी है मुझ पर अब उनकी विषभरी नजरें।।
बना लो अंश मुझको अपने कोंमल ह्दय का
अपनी तान्या को बस इतना अधिकार दे दो मां।।
तान्या
है अधिकार मुझको भी जन्म लेने का,
अपनी कोंख में मुझको पनाह दे दो मां।
सृष्टि के रचयिता की इस अनुपम कृति की,
मैं भी बन सकूं साक्षी वो राह दे दो मां।।
पिता की थाम कर ऊंगला मैं चलना सीखूंगी,
बैठ बाबा के कांधे पर देखूंगी जहां सारा।
सजा कर भाई की सूनी कलाई रेशम के धागे से,
दादी मां की आंखों का बन जाऊं मैं तारा।।
रिश्तों के माधुर्य़ से पुलकित हो जो बगिया,
अपने मातृत्व की वही ठंडी छांव दे दो मा।।
हैं अरमान कुछ मेरे,सजाए स्वप्न नयनों ने,
मगर डर है कहीं ये ख्वाब न रह जाएं अधूरे।
जो लोग कहते हैं नहीं मैं वंश तेरी मां,
टिकी है मुझ पर अब उनकी विषभरी नजरें।।
बना लो अंश मुझको अपने कोंमल ह्दय का
अपनी तान्या को बस इतना अधिकार दे दो मां।।