Friday, November 29, 2013

पत्रकार या पैसा जुगाड़ने में माहिर व्यवसायी?

अभी तक आप तरुण तेजपाल को तहलका डॉट कॉम और तहलका पत्रिका के संस्थापक, प्रखर पत्रकार और चिंतक के रूप में ही जानते आए हैं। लेकिन आपको यह जानकारी नहीं है कि पत्रकारिता के साथ-साथ तरुण का व्यावसायिक सम्राज्य कितना फैला हुआ है या नियम विरुद्ध उन्होंने कहां-कहां जमीनें खरीद रखी हैं?

क्या आपको पता है कि तरुण तेजपाल की कम से कम आठ कंपनियों में और उनकी बहन नीना तेजपाल शर्मा की चार कंपनियों में हिस्सेदारी है? इनमें से अधिकांश कंपनियां पिछले दो सालों से नुकसान उठा रही हैं, फिर भी निवेशक इनमें पैसा लगाना क्यों व कैसे जारी रखे हुए हैं?

जिन निवेशकों ने तरुण तेजपाल की कंपनियों में हिस्सेदारी खरीदी है, उन्होंने यह खरीदी बाजार भाव से काफी ज्यादा कीमत पर की है और नुकसान होने पर भी अपनी हिस्सेदारी नहीं बेची, क्यों व कैसे? यह 'क्यों व कैसे" बड़े सवाल बनकर सामने आते हैं, जब हमें पता चलता है कि पिछले साल मारे गए उत्तर प्रदेश के कुख्यात शराब माफिया पोंटी चड्ढा की कंपनी के साथ भी तेजपाल के व्यावसायिक संबंध थे और शायद आज भी हैं।

कंपनियां और तरुण की हिस्सेदारी

थिंकवर्क्स प्रायवेट लिमिटेड : 80 प्रतिशत
तहलका डॉट कॉम : 1.99 प्रतिशत
अनंत मीडिया प्रायवेट लिमिटेड : 19.25 प्रतिशत
एओडी लॉज्स प्रायवेट लिमिटेड : 50 प्रतिशत
चेस्टनट हाइट्स रिसोर्ट्स प्रायवेट लिमिटेड : 25 प्रतिशत
अमरमान इंडिया प्रायवेट लिमिटेड : 70 प्रतिशत
थ्राइविंग आर्ट्स प्रायवेट लिमिटेड : 80 प्रतिशत
एडर आर्ट्स प्रायवेट लिमिटेड : 0.02 प्रतिशत
अनंत मीडिया प्रालि. : राज्यसभा सांसद का पैसा

साप्ताहिक समाचार पत्रिका तहलका का प्रकाशन करने वाली इस कंपनी में तरुण तेजपाल की 19.25 फीसद हिस्सेदारी है। वित्त वर्ष 2011-12 में इस कंपनी को 13 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा। इसमें 65.75 फीसद हिस्सेदारी रखने वाली कंपनी रॉयल बिल्डिंग एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर के 50 फीसद शेयर राज्यसभा सांसद केडी सिंह की कंपनी के पास हैं, जो बकौल उनके, सिर्फ व शुद्ध रूप से व्यावसायिक मकसद से खरीदे गए।

वर्ष 2011-12 के पहले अनंत मीडिया में केडी सिंह की कंपनी की हिस्सेदारी 30 फीसद थी, जिसे बाद में बढ़ाया गया और प्रीमियम पर 25.39 करोड़ रुपए में तेजपाल की कंपनी के शेयर खरीदे गए। यही नहीं, रॉयल बिल्डिंग एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर ने वर्ष 2011-12 में अनंत मीडिया को 19.6 करोड़ रुपए अनसिक्योर्ड लोन के रूप में भी दिए।

पोंटी चड्ढा का पैसा
पिछले साल अपने ही भाई के हाथों मारे गए उत्तर प्रदेश के कुख्यात शराब माफिया पोंटी चड्ढा की कंपनी वेव इंडस्ट्रीज ने भी तेजपाल की एक कंपनी थ्राइविंग आर्ट्स प्रालि. में पैसा लगाया। यह कंपनी वित्त वर्ष 2011-12 में ही खड़ी की गई थी और तेजपाल के एलीट आर्ट एंड डिनर क्लब 'प्रूफ्रॉक" की मालिक है।

चड्ढा ने कंपनी में 11,111 शेयर 1,800 रुपए प्रति शेयर की कीमत पर खरीदे यानी 1.999 करोड़ रुपए लगाए, जबकि इन शेयरों का अंकित मूल्य 10 रुपए प्रति शेयर था। सवाल उठता है कि चड्ढा ने इतनी ज्यादा कीमत पर हिस्सेदारी क्यों खरीदी, जबकि न तो तेजपाल की कंपनी के शेयरों को लेकर मारा-मारी थी और न ही उनकी कंपनियां मुनाफा कमा रही थीं।

फिर चड्ढा ने घाटे वाले समूह में पैसा क्यों लगाया? मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक हालांकि चड्ढा मारा गया, लेकिन उसके बेटे ने अपने पिता के सभी व्यावसायिक करारों को निभाने की इच्छा जताई है।

थिंकफेस्ट की कर्ताधर्ता कंपनी मुनाफे में कैसे
तरुण की ही कंपनी थिंकवर्क्स प्रालि. गोआ में होने वाले 'थिंकफेस्ट' का आयोजन करती है। सिर्फ यही कंपनी है, जो मुनाफे में है। थिंकवर्क्स को सबसे पहले बबलर बुक्स के नाम से फरवरी 2010 में खड़ी की गई थी।
इसमें तरुण तेजपाल की 80 फीसद हिस्सेदारी है, जबकि तेजपाल की बहन नीना तेजपाल शर्मा व तहलका की अभी तक मैनेजिंग एडिटर रही शोमा चौधरी के पास 10-10 फीसद हिस्सेदारी है। पहले साल यानी 2011-12 में इस कंपनी ने थिंकफेस्ट से कोई मुनाफा नहीं कमाया, जबकि पिछले साल इसे 1.99 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ।

इस साल थिंकफेस्ट 2013 का आयोजन बड़े पैमाने पर व फाइव स्टार होटल में किया गया, जिसमें रॉबर्ट डी नीरो, अमिताभ बच्चन, जावेद अख्तर समेत देश व दुनिया से बड़ी-बड़ी हस्तियां शामिल हुईं। यह भी गौर करने वाली बात है कि इस साल के इवेंट को कम से कम 34 बड़े कॉर्पोरेट दिग्गजों व सरकारी कंपनियों ने सह प्रायोजित किया।

इनमें भारती एयरटेल, एस्सार, डीएलएफ, कोका-कोला, यूनिटेक, वेव इंडस्ट्रीज, टोयोटा, भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स, इंडसइंड बैंक व गोआ टूरिज्म शामिल हैं।

उत्तराखंड में जमीन व रिसोर्ट
तरुण तेजपाल व उनकी पत्नी गीतन बत्रा के नाम से उत्तराखंड में नैनीताल शहर से कुछ दूरी पर पहाड़ी वादियों में जमीनें व प्रॉपर्टी भी है। गेथिया गांव में मौजूद इन प्रॉपर्टीज में दो चिमनियां और एक हरा-भरा व खूबसूरत रिसोर्ट शामिल है।

चर्चा यह भी है कि तेजपाल परिवार के पास उत्तराखंड में और भी प्रॉपर्टीज हैं। नैनीताल जिला प्रशासन ने इनकी खोजबीन करनी शुरू कर दी है। जिला प्रशासन के मुताबिक तरुण तेजपाल के नाम यहां 14 नली (1 नली यानी 240 स्क्वैयर यार्ड और एक स्क्वैयर यार्ड यानी 9 वर्गफुट) जमीन है।

उनकी पत्नी के नाम पर भी 5 नली जमीन है। यानी तेजपाल दंपति के नाम यहां कुल 4560 स्क्वैयर यार्ड जमीन है, जबकि उत्तराखंड सरकार के नियमों के मुताबिक किसी अन्य राज्य के निवासी यहां 250 स्क्वैयर यार्ड से ज्यादा जमीन नहीं खरीद सकते। तेजपाल ने यह कहते हुए नियमों में ढील मांगी थी कि उन्होंने वर्ष 2003 में नए नियम बनने से पहले जमीन खरीद ली थी।

Monday, November 25, 2013

विकास के खोखले दावे

बात चाहे देश की हो या प्रदेश की, विकास और तरक्‍की की बात करते नेताओं का दम नहीं फूलता है। सबका एक ही राग रहता है कि उन्‍होंने अपने इलाके, प्रदेश या देश को जन्‍नत बना दिया है। जबकि सच्‍चाई यह है कि उनके यह दावे न सिर्फ खोखले होते हैं बल्कि हकीकत से कई प्रकाश वर्ष की दूरी पर होते हैं।

इसे कहने के पीछे कोई राजनीतिक प्रभाव या दुराभाव नहीं है, बल्कि ठोस कारण हैं। चलिए एक उदाहरण के जरिए बात करते हैं। मान लीजिए कोई बड़ा नेता या फिर उसके परिवार का कोई सदस्‍य बीमार हो जाए तो क्‍या वो अपने राज्‍य या फिर जिले के सरकारी अस्‍पताल में इलाज कराने जाता है। यहां यह याद रखना जरूरी है कि स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं को बेहतर बनाने के दावे भी वही नेता करता रहा होगा। या फिर चुनावों के वक्‍त उसे अपनी उप‍लब्धियों में शामिल किया होगा।

अच्‍छी शिक्षा की माला जपने वाले नेताओं के बच्‍चे क्‍या सरकारी स्‍कूल और कॉलेज में पढ़ते हैं। नहीं। तो फिर इनके नाम पर वोट मांगने से पहले जरा भी लाज नहीं आती है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस देश में अलग-अलग प्रकार के नागरिक और लोग रहते हैं। एक शासक वर्ग और दूसरी वो आम जनता जिसे मूर्ख समझा और बनाया जाता है।

मगर, यही नेता एक-दूसरे पर कीचड़ उछालते वक्‍त शायद यह भूल जाते हैं कि उनकी कथनी और करनी पर आम नागरिकों की नजर रहती है। लैपटॉप या मोबाइल बांटकर पांच साल तक सत्‍ता सुख चाहने वालों की आत्‍माएं शायद मर चुकी हैं। चुनाव प्रचार के दौरान दर-दर हाथ फैलाने वाले नेता जीतने के बाद रसूख, पैसे और सत्‍ता के नशे में ऐसे चूर होते हैं कि उन्‍हें सबकुछ दिखना भूल जाता है। अरबों-करोड़ों रुपयों का घोटाला करने वालों को लगने लगता है कि 30 या 35 रुपए रोज बमुश्किल कमाने वाले गरीब नहीं रह गए हैं, बल्कि वो अमीर हो गए हैं। यदि नेताओं का बस चले तो वो उन्‍हें जीने के लिए हवा भी नसीब न होने दें।

कोई कहता है कि गरीब लोग दो वक्‍त खाने लगे हैं इसलिए देश में अन्‍न का संकट गहराता है तो कोई यह कहता है कि दो सब्जियां खाने वाले लोगों की वजह से महंगाई बढ़ रही है। शायद सफेद कुरते पहनने वाले काले चरित्र वाले नेता चाहते हैं कि लोग भूखे ही मरें, तभी देश की अर्थव्‍यवस्‍था सही चल सकेगी।

बड़बोले नेताओं की अक्‍ल तो देखिए, उनका कहना है कि गरीबी और गरीब तो मन का विकार होता है। यह इस देश की दुर्दशा ही है कि यहां ऐसे लोग राज कर रहे हैं, जिन्‍हें आम लोगों से कोई लेना देना नहीं है। जिसने कभी घंटों लाइन में लगकर ट्रेन का टिकट हासिल न किया हो और धक्‍के खाकर बस का सफर न किया हो, वो क्‍या जाने कि आम नागरिक अपनी जिंदगी कैसे जीते हैं।

उम्‍मीद है लोकतंत्र के महापर्व में लोग जागरूक होंगे और धूर्तों को कुर्सी से दूर करेंगे।

Sunday, September 29, 2013

जैसी जनता वैसी व्यवस्था और सरकार

देश के किसी भी कोने में चले जाइए, किसी भी पान की दुकान पर या शाम को बाजार या मोहल्लों में होने वाली पटियेबाजी पर। आपको देश की राजनीति और देश की दुर्दशा पर टिप्पणी करते विशेषज्ञ जरूर मिल जाएंगे। घोटालों से लेकर सियासी दांवपेच के बारे में उनका विश्लेषण सुनने लायक होता है। सभी यह मानते हैं कि हमारा देश भ्रष्टाचार और गंदी राजनीति का शिकार है। लेकिन क्या सारा दोष नेताओं पर मढना जायज है। जरा सोचिए।

नेता मंगल ग्रह से तो आए नहीं हैं जो हम पर राज कर रहे हैं। हमारे और आपके बीच में से ही चुनकर भेजे गए है। हम ही उनको भेजते हैं और फिर कोसते हैं। व्यवस्था पर दोष भी मढते हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में चुनाव में नकारने का अधिकार देने की बात कही है। इससे पहले दोषियों को संसद और विधानसभाओं से दूर रखने का आदेश भी दिया था, जिसके खिलाफ केंद्र सरकार ने अध्यादेश पारित कर दिया था।

हम यानि आम जनता का मानस यह है कि तंत्र की बेकार है, उसे सुधारना होगा। इस तरह जिम्मेदारी टालने से बात नहीं बनने वाली है। व्यवस्था को सुधारना हमारे हाथों में ही है। इसके लिए सरकार या सुप्रीम कोर्ट का मुंह ताकने की कतई जरूरत नहीं पडे अगर थोडी समझदारी से काम लिया जाए। मसलन, आपको चुनावों में कोई पसंद नहीं है तो राइट टू रिजेक्ट के अलावा वोट न डालने का निर्णय भी तो कानून में दिया गया है। बस आपको पोल बूथ जाकर यह बताना होगा कि आपको किसी को भी वोट नहीं देना है।

इसी तरह से अगर आप अपने जनप्रतिनिधि से संतुष्ट नहीं हैं तो उसका सामाजिक बहिष्कार शुरू करिए, क्योंकि जनता ही उनकी ताकत है और जनता ही उनकी कमजोरी भी है।

लेकिन इससे भी जरूरी है खुद को बदलना। खुद सोचिए कि ईमानदार व्यवस्था की चाह रखने वाले आप और हम खुद कितने ईमानदार हैं। रोजमर्रा की जिंदगी में कई ऐसे काम होते हैं जहां आप भ्रष्टाचार को बढावा देते हैं। चाहे वो सामान की खरीदारी हो या फिर​ किसी सरकारी दफ्तर से काम करवाना।

अगर लाइसेंस बनवाना हो तो एजेंट खोजते हैं। कोई सर्टिफिकेट बनवाना हो तो जुगाड निकालते हैं। जान पहचान के दम पर काम करवाना मानो शान की बात समझा जाता है। कोई नेता से पहचान का रौब दिखाता है तो कोई सरकारी अधिकारी का। पुलिस वालों से दोस्ती का भी इस्तेमाल किया जाता है। ट्रैफिक पुलिस पकड ले तो तुरंत जेब से फोन निकालकर किसी से बात करवाने लगते है। सडक पर रेड लाइट हो तब भी उसे क्रॉस करना मानो शान की बात है।

अगर हम अपना सिविक सेंस सुधारेंगे तो व्यवस्था भी सुधरने लगेगी और नेता भी लाइन पर आ जाएंगे। आखिर व्यवस्था हमारे लिए हैं, तो उसे बनाए रखना भी हमारी जिम्मेदारी ही तो है।

जैसी जनता वैसी व्यवस्था और सरकार

देश के किसी भी कोने में चले जाइए, किसी भी पान की दुकान पर या शाम को बाजार या मोहल्लों में होने वाली पटियेबाजी पर। आपको देश की राजनीति और देश की दुर्दशा पर टिप्पणी करते विशेषज्ञ जरूर मिल जाएंगे। घोटालों से लेकर सियासी दांवपेच के बारे में उनका विश्लेषण सुनने लायक होता है। सभी यह मानते हैं कि हमारा देश भ्रष्टाचार और गंदी राजनीति का शिकार है। लेकिन क्या सारा दोष नेताओं पर मढना जायज है। जरा सोचिए।

नेता मंगल ग्रह से तो आए नहीं हैं जो हम पर राज कर रहे हैं। हमारे और आपके बीच में से ही चुनकर भेजे गए है। हम ही उनको भेजते हैं और फिर कोसते हैं। व्यवस्था पर दोष भी मढते हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में चुनाव में नकारने का अधिकार देने की बात कही है। इससे पहले दोषियों को संसद और विधानसभाओं से दूर रखने का आदेश भी दिया था, जिसके खिलाफ केंद्र सरकार ने अध्यादेश पारित कर दिया था।

हम यानि आम जनता का मानस यह है कि तंत्र की बेकार है, उसे सुधारना होगा। इस तरह जिम्मेदारी टालने से बात नहीं बनने वाली है। व्यवस्था को सुधारना हमारे हाथों में ही है। इसके लिए सरकार या सुप्रीम कोर्ट का मुंह ताकने की कतई जरूरत नहीं पडे अगर थोडी समझदारी से काम लिया जाए। मसलन, आपको चुनावों में कोई पसंद नहीं है तो राइट टू रिजेक्ट के अलावा वोट न डालने का निर्णय भी तो कानून में दिया गया है। बस आपको पोल बूथ जाकर यह बताना होगा कि आपको किसी को भी वोट नहीं देना है।

इसी तरह से अगर आप अपने जनप्रतिनिधि से संतुष्ट नहीं हैं तो उसका सामाजिक बहिष्कार शुरू करिए, क्योंकि जनता ही उनकी ताकत है और जनता ही उनकी कमजोरी भी है।

लेकिन इससे भी जरूरी है खुद को बदलना। खुद सोचिए कि ईमानदार व्यवस्था की चाह रखने वाले आप और हम खुद कितने ईमानदार हैं। रोजमर्रा की जिंदगी में कई ऐसे काम होते हैं जहां आप भ्रष्टाचार को बढावा देते हैं। चाहे वो सामान की खरीदारी हो या फिर​ किसी सरकारी दफ्तर से काम करवाना।

अगर लाइसेंस बनवाना हो तो एजेंट खोजते हैं। कोई सर्टिफिकेट बनवाना हो तो जुगाड निकालते हैं। जान पहचान के दम पर काम करवाना मानो शान की बात समझा जाता है। कोई नेता से पहचान का रौब दिखाता है तो कोई सरकारी अधिकारी का। पुलिस वालों से दोस्ती का भी इस्तेमाल किया जाता है। ट्रैफिक पुलिस पकड ले तो तुरंत जेब से फोन निकालकर किसी से बात करवाने लगते है। सडक पर रेड लाइट हो तब भी उसे क्रॉस करना मानो शान की बात है।

अगर हम अपना सिविक सेंस सुधारेंगे तो व्यवस्था भी सुधरने लगेगी और नेता भी लाइन पर आ जाएंगे। आखिर व्यवस्था हमारे लिए हैं, तो उसे बनाए रखना भी हमारी जिम्मेदारी ही तो है।

Wednesday, July 17, 2013

एक कलम और किताब दुनिया को बदल सकते हैं

संयुक्त राष्ट्र महासभा में मलाला युसुफजई द्वारा दिए गए भाषण का ​अनुवाद

मैं सबसे पहले उस सर्वशक्तिमान, दयालु और परोपकारी खुदा का नाम लेती हूं।

सम्माननीय संयुक्त राष्ट्र महासचिव श्रीमान बान की मून,
महासभा के आदरणीय अध्यक्ष वुक जेरेमिक,
संयुक्त राष्ट्र वैश्विक शिक्षा के एनवॉय सम्मानीय गॉर्डन ब्राउन,
सभी वरिष्ठ सम्मानीय एवं मेरे प्यारे भाइयो और बहनो

आज, काफी लंबे अंतराल के बाद मुझे कुछ बोलने का मौका मिला है। इतने सम्माननीय लोगों के बीच आना मेरे लिए गौरव की बात है और यह क्षण मेरे जीवन के यादगार पलों में हमेशा रहेगा।

मैं नहीं समझ पा रही हूं कि अपनी बात को कहां से शुरू करूं। मैं यह भी नहीं जानती हूं कि लोग मुझसे क्या सुनने की उम्मीद कर रहे हैं। लेकिन मैं सबसे पहले उस सर्वशक्तिमान ईश्वर का धन्यवाद देना चाहती हूं, जिसके लिए हम सभी एक समान हैं और फिर उन सभी का आत्मीय आभार, जिन्होंने मेरे जीवन के लिए प्रार्थनाएं की हैं। मेरे प्रति लोगों का जो स्नेह है मैं उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकती हूं। मुझे दुनियाभर से शुभकामना संदेशों से भरे काड्र्स और तोहफे मिले हैं। इसके लिए मैं एक बार फिर सभी का शुक्रिया करती हूं। मैं उन बच्चों की भी आभारी हूं, जिनके अबोध शब्दों ने मुझे हमेशा प्रेरित किया है। मैं उन सभी वरिष्ठों को भी धन्यवाद देना चाहती हूं, जिनकी दुआओं ने मुझे शक्ति दी।

मैं उन सभी नर्स, डॉक्टर्स ,पाकिस्तान और ब्रिटेन के अस्पताल तथा यूएई की सरकार का भी शुक्रिया करती हूं, जिनकी मदद और इलाज की बदौलत मैं ठीक हो सकी हूं। मैं संयुक्त राष्ट्र संघ के ग्लोबल एजुकेशन फस्र्ट इनिशिएटिव कार्यक्रम को चलाने के फैसले पर महासचिव बान की मून और एनवॉय गॉर्डन ब्राउन का पूरी तरह समर्थन करती हूं। साथ ही मैं उनके नेतृत्व के लिए उन्हें धन्यवाद देती हूं। मुझे उम्मीद है कि वे हमेशा हम सभी को इसी तरह से काम करने के लिए प्रेरित करते रहेंगे।

प्यारे भाइयो और बहनो, हमेशा एक बात याद रखिएगा कि मलाला-डे मेरा दिन नहीं है। यह उन सभी महिलाओं और बच्चों का दिन है, जिन्होंने अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाई है। आज दुनियाभर में न जाने कितने मानवाधिकार संगठन हैं, जो शांति, समानता और शिक्षा के अधिकार के लिए काम कर रहे हैं। दुनिया में हजारों लोग हर साल आतंकी घटनाओं में मारे जाते हैं और लाखों घायल होते हैं। मैं भी उन्हीं में से एक हूं।

इसलिए मैं यहां खड़ी हूं...उन कई लड़कियों में से एक।

मैं अपने लिए नहीं, सभी लड़के और लड़कियों के बोल रही हूं।

मैंने अपनी आवाज शोर मचाने के लिए नहीं उठाई है, बल्कि मैं उन लोगों की आवाज बनना चाहती हूं, जिनकी बातें अनसुनी रह जाती हैं।

जो अपने अधिकारों के लिए लड़ते हैं :
उन्हें शांति से जीने का अधिकार मिले
समाज में समानता और सम्मान मिले
बराबरी का हक और दर्जा मिले
और शिक्षा का अधिकार मिले।

प्यारे दोस्तो, नौ अक्टूबर 2012 को तालिबान ने मेरे माथे के बाईं ओर गोली मारी थी। उसने मेरी दोस्त पर भी गोली चलाई थी। उसे लगा था कि उसकी गोलियों से हमारी आवाजें खामोश हो जाएंगी। लेकिन वो नाकाम रहे। इसके बाद उस खामोशी के बीच से हजारों आवाजें सामने आईं। आतंकवादी सोचते थे कि उनकी इस हरकत से मैं अपने लक्ष्य से भटक जाऊंगी, लेकिन मेरे जीवन से वे केवल कमजोरी, डर और निराशा को ही मार सके। उनकी इस कायराना हरकत के बाद मेरे अंदर दृढ़ता और ऊर्जा का जन्म हुआ। मैं आज भी वही मलाला हूं, आज भी मेरा वही लक्ष्य है, जो हमले के पहले था और आज भी मैं उतनी ही आशावान हूं। अब भी मैं अपने सपने को पूरा करने के लिए उतनी ही हिम्मत के साथ काम कर रही हूं।

प्यारे भाइयो और बहनो, मैं किसी के खिलाफ नहीं हूं। न ही मैं, यहां तालिबान या किसी अन्य आतंकी गुट से अपनी निजी दुश्मनी या बदले का जिक्र करने आई हूं। मैं यहां हर बच्चे के लिए शिक्षा के अधिकार पर बात करने आई हूं। मैं चाहती हूं कि शिक्षा का अधिकार दुनिया में सभी के लिए हो। तालिबान और चरमपंथियों के बच्चों को तो खासतौर पर शिक्षा दी जानी चाहिए।

मुझे उस तालिबान से कोई घृणा नहीं है, जिसने मुझे गोली मारी थी। अगर वह मेरे सामने हो और मेरे हाथों में बंदूक हो, तब भी मैं उसे गोली नहीं मारूंगी। मैंने पैगम्बर मोहम्मद सा. से दयाभाव सीखा है और यही ज्ञान मुझे ईसा मसीह और भगवान बुद्ध को पढ़कर भी मिला है।

मार्टिन लूथर किंग, नेलसन मंडेला और मुहम्मद अली जिन्ना से भी मुझे इसी परंपरा की सीख मिली है। महात्मा गांधी, बचा खान और मदर टेरेसा के भी यही सिद्धांत थे। मैंने अपने माता-पिता से भी क्षमा करना ही सीखा है। मेरी आत्मा भी मुझसे यही कहती है कि सभी के लिए दिल में स्नेह रखो और अमन पसंद रहो।

प्यारी बहनो और भाइयो, जब हम अंधेरे में होते हैं तभी हमें प्रकाश का महत्व समझ में आता है। जब चारों ओर खामोशी और सन्नाटा हो, तभी आवाज की अहमियत समझ आती है। इसी तरह जब हम पाकिस्तान के उत्तरी क्षेत्र स्वात में थे और हर रोज बंदूक और धमाके सुनते थे, तभी हमें यह अहसास हुआ कि किताब और कलम कितनी जरूरी हैं।

एक कहावत है कि 'कलम के आगे तलवार भी नहीं टिक सकती है', यह वाकई सच है। आतंकी मेरी कलम और किताबों से खौफजदा थे। तालीम की ताकत से वो खौफ में थे। यहां तक कि वे एक औरत से डर गए थे। एक औरत की आवाज उन्हें डरा रही थी। यही वजह है कि हाल ही में क्वेटा में आतंकियों ने 14 निर्दोष मेडिकल स्टूडेंट्स को मौत के घाट उतार दिया। इसी कारण उन्होंने मेरी कई महिला टीचर्स और खैबर पख्तूनवा व फाटा में काम करने वाले पोलियो कार्यकर्ताओं की भी हत्या की है। वे रोज किसी न किसी स्कूल को धमाके से उड़ा रहे हैं। इसकी वजह समाज में आ रहे बदलाव और समानता है।

सम्मानीय महासचिव महोदय, शिक्षा के लिए अमन का होना बहुत जरूरी है। दुनिया के कई हिस्सों, खासकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान में आतंकवाद के चलते बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं। हम इस तरह की लड़ाई से ऊब चुके हैं। दुनिया के कई हिस्सों में महिलाएं और बच्चे परेशान और साधनहीन हैं। भारत में बच्चों को बालश्रम में लगाया जाता है। नाइजीरिया में कई स्कूल तबाह हो चुके हैं। अफगानिस्तान में दशकों से लोग चरमपंथ का शिकार हैं। छोटी बच्चियों को बालश्रम और घरेलू कामकाज में जोत दिया जाता है और कम उम्र में भी उनकी शादी भी कर दी जाती है। ऐसे देशों में महिला और पुरुष दोनों को ही गरीबी, अज्ञानता, अन्याय, नस्लीय भेदभाव, मूलभूत अधिकारों से वंचित रखा जाता है।

प्यारे साथियो, मेरा ध्यान महिलाओं के अधिकार और लड़कियों की शिक्षा पर है, क्योंकि वे ही सर्वाधिक पीडि़त होती हैं। एक समय था जब महिला सामाजिक कार्यकर्ता अपने अधिकारों के लिए पुरुषों का साथ चाहती थीं, लेकिन अब हम यही काम अपने बूते पर कर रही हैं। मेरा कहने का यह कतई मतलब नहीं है कि पुरुषों को महिलाओं के अधिकारों के लिए बात नहीं करना चाहिए। बल्कि मेरा आशय यह है कि महिलाओं को अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए आत्मनिर्भर होने की जरूरत है।

प्यारे भाइयो और बहनो, अब वक्त आ गया है कि हम अपनी आवाज बुलंद करें। आज हम, दुनिया के सभी नेतृत्वों का आह्वान करते हैं कि वे अपनी नीतियों को शांति और समृद्धि के अनुकूल बनाएं। हमारी दुनिया के सभी नेताओं से अपील है कि वे महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को मूल अधिकारों में शामिल करें। जो कदम महिलाओं की गरिमा के विरुद्ध हो उसे अस्वीकार किया जाना चाहिए। दुनिया की सभी सरकारों से हमारी अपील है कि वे हर बच्चे के लिए शिक्षा को अनिवार्य करें। उनसे हमारी यह भी अपील है कि आतंकवाद और हिंसा के खिलाफ लड़ें और बच्चों के साथ क्रूरता को बंद किया जाए। सभी विकसित देशों से उम्मीद है कि वे लड़कियों के लिए शैक्षणिक अवसरों का विस्तार करेंगे।

सभी समुदायों से हम कहना चाहते हैं कि वे जाति, धर्म, क्षेत्र और लिंगभेद के आधार पर अलगाव और असमानता को समाप्त करने के लिए कदम उठाएं। अगर हम में से आधे लोग पीछे रह जाएंगे तो हम कभी आगे नहीं बढ़ सकेंगे। मैं दुनिया में अपनी सभी बहनों से कहना चाहूंगी कि वे बहादुर बनें और क्षमताओं को पहचानें।

प्यारे भाइयो और बहनो, हमें दुनिया के हर बच्चे के उज्ज्वल भविष्य के लिए शिक्षा और स्कूल की जरूरत है। जब तक कि सभी के लिए शिक्षा की व्यवस्था नहीं हो जाती, तब तक हमारा यह सफर पूरा नहीं हो सकता है। हमें कोई नहीं रोक सकता है। हम अपने अधिकार के लिए आवाज उठाते रहेंगे और इसके बूते बदलाव लाकर भी रहेंगे। इसके लिए हमें अपने शब्दों की ताकत पर विश्वास रखना होगा। इसी से दुनिया बदलेगी। शिक्षा के लिए हम सभी एक हैं और एक साथ हैं। अगर हम लक्ष्य तक पहुंचना चाहते हैं तो हमें अपने आप को ज्ञान के हथियार और एकता की ढाल से लैस करना होगा।

प्यारे भाइयो और बहनो, हमें यह भी याद रखना होगा कि दुनिया में लाखों लोग गरीबी, अन्याय और अनभिज्ञता के शिकार हैं। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि लाखों बच्चे आज भी स्कूल से बाहर हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे भाई और बहन आज भी उज्ज्वल और शांतिपूर्ण भविष्य का इंतजार कर रहे हैं।

आइए, हम सभी अशिक्षा, गरीबी और आतंकवाद के खिलाफ कलम और किताब उठाएं, क्योंकि यही वो हथियार हैं, जिनके जरिए हम इन तीनों से लड़ सकते हैं।

एक बच्चा, एक शिक्षक, एक कलम और किताब दुनिया को बदल सकते हैं।

शिक्षा ही एकमात्र हल है। एजुकेशन फर्स्ट

Friday, May 17, 2013

हेलीकॉप्टर डील : खेल के खिलाड़ी


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इटली से हुए 3600 करोड़ रुपए के वीवीआईपी हेलीकॉप्टर सौदे में 362 करोड़ रुपए की दलाली  के मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सोमवार को कहा कि सरकार के पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है और वह संसद में हर मुद्दे पर बहस कराने को तैयार हैं। गौरतलब है कि इटली की अगस्ता वेस्टलैंड से 12 वीवीआईपी हेलीकॉप्टरों की खरीद में रिश्वतखोरी के मुद्दे को विपक्ष संसद के सत्र में जोरशोर से उठाने की तैयारी कर रहा है। दूसरी ओर रक्षा मंत्री एके एंटनी भी विपक्ष के तीखे सवालों का जवाब देने के लिए पूरा होमवर्क करने में जुटे हैं। वहीं एके एंटनी पर मुख्य आरोप यह है कि इटली में हेलीकॉप्टर कंपनी के प्रमुख के गिरफ्तार होने के बाद सरकार ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे।

3,546 करोड़ रुपए के हेलीकॉप्टर सौदे में दलाली का मामला उजागर होने के बाद इस रक्षा खरीद समझौते की जांच में पूर्व वायुसेना प्रमुख एसपी त्यागी का नाम आया है। इस घोटाले के तार दुनिया के कई देशों तक पहुंच रहे हैं। दलाली के इस पूरे खेल में शामिल प्रमुख खिलाडिय़ों पर एक नजर:

गियुसिपी ओरसी : फिनमैकेनिका कंपनी का सीईओ और चेयरमैन था इसे इटली में गिरफ्तार किया जा चुका है। आरोप है कि उसने 12 अगस्त को वेस्टलैंड हेलीकॉप्टरों की डील हासिल करने के लिए बिचौलियों की मदद ली और इसके लिए उनको 51 मिलियन यूरो (करीब 350 करोड़ रुपए) दिए।

गुइडो राल्फ हाशके : भारत में दलाली पहुंचाने के मामले में मुख्य सूत्रधार है। इस मामले में पिछले साल गिरफ्तार हुआ था। हाशके के पास स्विट्जरलैंड के अलावा अमेरिका की भी नागरिकता है। भारतीय रक्षा बिजनेस सर्किल में उसकी जबरदस्त पकड़ है। वह निर्बाध रूप से भारत आता रहता था और यहां के रक्षा सेक्टर की कार्यशैली से भलीभांति वाकिफ है। सेबी रिकॉर्ड के अनुसार वह 2009 तक एमजीएफ एमार के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में भी शामिल था।

कार्लो गेरोसा : हाशके का बिजनेस पार्टनर है। हेलीकॉप्टर डील के बारे में हाशके और पार्टनर कार्लो गेरोसा की बातचीत को गुप्त तरीके से रिकॉर्ड किया गया है।

क्रिस्टीन माइकल : ब्रिटेन का नागरिक है। भारत में शक्तिशाली राजनीतिक संपर्क हैं। कई बड़े नेताओं तक पहुंच। पिता वोल्फगांग रिचर्ड मैक्स माइकल के भी जबरदस्त भारतीय संपर्क हैं। माइकल, गियुसिपी ओरसी का विश्वासपात्र है। फिनमैकेनिका ने उसको 31 मिलियन यूरो की दलाली पहुंचाने का जिम्मा सौंपा। उसने रकम को इटली के राजनीतिज्ञों और यूरोप में अन्य लोगों तक पहुंचाया। स्विट्जरलैंड में जारी गिरफ्तारी वारंट से बचने के लिए दुबई में है।

गौतम खेतान : दिल्ली का वकील है और हाशके का बिजनेस पार्टनर है। हाशके और गेरोसा का कानूनी सलाहकार है। वह और हाशके चंडीगढ़ स्थित फर्म ऐरोमेट्रिक्स के प्रमोटर हैं। हाशके और गेरोसा की बातचीत में इसका नाम बार-बार आया है।

त्यागी बंधु : संजीव (जूली), डोक्सा और संदीप त्यागी पूर्व वायुसेना प्रमुख एसपी त्यागी के करीबी रिश्तेदार हैं। पेशे से बिजनेसमैन हैं। नई दिल्ली के बाहरी इलाके में इनका फार्म हाउस है। पूर्व वायु सेना प्रमुख से हाशके की मुलाकात इन्हीं लोगों ने कराई।

एसपी त्यागी : 2005-07 के दौरान वायुसेना प्रमुख रहे। हाशके ने कहा है कि एडब्ल्यू 101 हेलीकॉप्टर के तकनीकी पहलुओं पर उसने त्यागी से विस्तृत बातचीत की थी। उसी आधार पर अगस्ता वेस्टलैंड ने एक तकनीकी रूप से मजबूत बेहतरीन दस्तावेज तैयार किया। जो कि होड़ में मौजूद प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले बेहतर था। त्यागी ने उस दस्तावेज का बारीकी से विश्लेषण करने के बाद अगस्ता वेस्टलैंड को वापस देते हुए कहा कि इसको आधिकारिक रूप से भारतीय वायु सेना के पास भेज दो। त्यागी ने माना है कि उनकी बिचौलिए हाशके से मुलाकात हुई थी, लेकिन भ्रष्टाचार के किसी भी मामले का उन्होंने खंडन किया है।

दलाली
हाशके ने इटली अधिकारियों के सामने स्वीकार किया है कि उसने एसपी त्यागी से छह-सात बार मुलाकात की थी। उस दौरान उसने हेलीकॉप्टर के तकनीकी पहलुओं पर बातचीत की थी।
  • नवंबर, 2012 में अपने बयान में उसने स्वीकार किया है कि दलाली के रूप में उसको सौदे का 3.5 प्रतिशत यानी 20 मिलियन यूरो (144 करोड़ रुपए) मिले थे।
  • इसका 60 प्रतिशत यानी करीब 12 मिलियन यूरो उसने त्यागी बंधुओं को पहुंचा दिया।
  • बाकी बचे आठ मिलियन यूरो हाशके और कार्लो गेरोसा ने आपस में बांट लिए।
  • किसी भी जांच एजेंसी की निगाह से बचने के लिए भारत में वह रकम सॉफ्टवेयर निर्यात के फर्जी इंजीनियरिंग कॉन्ट्रेक्ट के जरिए ट्यूनीशिया के रास्ते भारत पहुंचाई गई।
लेन-देन में शामिल लोग
  • क्रिस्टीन
  • हाशके
  • हाशके कार्लो
  • त्यागी बंधु
समझौता

  • प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति समेत वीवीआईपी लोगों के इस्तेमाल के लिए फरवरी, 2010 में 12 अगस्त को वेस्टलैंड 101 हेलीकॉप्टर का समझौता सरकार और इटली की दिग्गज रक्षा कंपनी फिनमैकेनिका के बीच हुआ था।
  • फिनमैकेनिका की ब्रिटेन स्थित सहयोगी हेलीकॉप्टर निर्माता कंपनी का नाम अगस्त को वेस्टलैंड है। इस कंपनी पर भारत में सौदा हथियाने के लिए दलाली देने का आरोप है।

रक्षा घोटाले जिनसे हिली दुनिया..
रूस, चीन, इजरायल, इटली, फ्रांस जैसे हथियार बनाने वाले प्रमुख देशों के साथ-साथ दुनिया के दो तिहाई देशों में रक्षा सौदे में दलाली और भ्रष्टाचार आम बात है। बड़े रक्षा सौदों के ठेके हासिल करने के लिए रिश्वतखोरी का सहारा लेना कंपनियों की आदत-सी बन गई है। पूरी दुनिया में इस तरह के भ्रष्टाचार के मामले उजागर हो चुके हैं, जिनमें कुछ में से कुछ में तो आरोपी पर कार्रवाई भी हुई। पिछले कुछ सालों में दुनिया के विभिन्न देशों में हुए रक्षा घोटाले और उसमें हुई कार्रवाई पर डालते हैं एक नजर :
  1. रूस ने रक्षा मंत्री को हटाया : वैसे तो रक्षा घोटाले में अधिकारियों पर कार्रवाई आम बात मानी जाती है, लेकिन रूस में तो घोटाले में रक्षा मंत्री को ही अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। दुनिया के प्रमुख हथियार डीलर वाले देशों में शुमार रूस में कुछ महीने पहले राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने पिछले साल नवंबर में रक्षा मंत्री अनातोली सेरद्युकोव को विभाग में 95 मिलियन डॉलर के घोटाले के आरोप में पद से हटा दिया था। उन पर आरोप था कि रक्षा मंत्रालय की संपत्तियों को तीन अरब रूबल के घाटे में उन्होंने एक व्यावसायिक फर्म को बेचा। इस कदम से पुतिन ने यह संदेश देने की कोशिश की कि रक्षा विभाग में भ्रष्टाचार को किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
  2. कनाडा में लड़ाकू विमान का घोटाला : हाल में अमेरिका से एफ-35 लड़ाकू विमानों की खरीद पर कनाडा में खूब हंगामा मचा। अप्रैल 2012 में कनाडा के ऑडिटर जनरल ने भी खरीद पर सवाल खड़े किए। इस रक्षा सौदे को देश के आर्थिक हितों के खिलाफ बताया गया। कनाडा के मीडिया की सुर्खियों में रहे इस सौदे को पूरी तरह से गलत करार दिया गया।
  3. फ्रांस का पनडुब्बी घोटाला : पनडुब्बी और लड़ाकू जहाज बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी डीएनएसएस और मलेशिया सरकार के बीच दो स्कॉर्पियन पनडुब्बी को लेकर समझौता हुआ। लेकिन समझौते पर उंगली उठने के बाद 2010 में फ्रांस सरकार ने मामले की जांच का आदेश दिया। बाद में खुलासा हुआ कि इस सौदे में मलेशिया के तत्कालीन रक्षा मंत्री के दोस्त की कंपनी ने भूमिका निभाई और उसने फ्रांस और मलेशिया के कई अधिकारियों को रिश्वत दी।
  4. ताइवान का युद्धपोत घोटाला : फ्रांस की कंपनी थेल्स और ताइवान के बीच युद्धपोत के लिए समझौता हुआ। इस सौदे को लेकर आरोप लगा कि थेल्स ने इस ठेके को हासिल करने के लिए पांच लाख डॉलर से ज्यादा की रिश्वत दोनों देशों के अधिकारियों को दी, जबकि ये युद्धपोत ताइवान की जरूरतों के लिए भी फिट नही बैठते थे। बाद में जब जांच शुरू हुई तो सौदों में शामिल रहे आठ अधिकारियों की संदिग्ध हालत में मौत हो गई। जांच के दौरान स्विस बैंक के 60 खातों में जमा साढ़े सात करोड़ डॉलर से ज्याद की रकम को सीज कर लिया गया। जून 2007 में इस रकम में से 34 लाख डॉलर की रकम स्विस बैंक ने ताइवान को लौटा दी, जबकि फ्रांस की अदालत ने थेल्स कंपनी पर जून 2011 में छह करोड़ तीस लाख यूरो का जुर्माना लगाया।
  5. श्रीलंका में घोटाला : श्रीलंका के पूर्व सेनाध्यक्ष सरत फोंसेका को हथियार सौदे में भ्रष्टाचार को लेकर कोर्ट मार्शल किया गया, जिसमें उन्हें तीन साल की सजा की सिफारिश की गई। इसके साथ ही उनका दर्जा, पेंशन और पदक वापस लेने के आदेश दिए गए थे। फोंसेका पर आरोप था कि सेनाध्यक्ष रहते हुए हथियार सौदों में अपने दामाद कंपनी का उन्होंने पक्ष लिया था।
  6. इराक में रक्षा सौदा घोटाला : इराक और रूस के बीच अक्टूबर 2009 में 4.2 अरब डॉलर से अधिक का हथियार सप्लाई का सौदा हुआ था। लेकिन इस सौदे को लेकर मीडिया रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि प्रधानमंत्री नूरी अल मलिकी के बेटे तथा कुछ सांसद इस डील के पीछे थे और इसमें उन्होंने रिश्वत भी ली। इसकी जांच जारी है।

अरबों रुपए के घोटाले
यूपीए सरकार में लगातार सामने आ रहे घोटाले उसके लिए परेशानी का सबब बन गए हैं। इनकी वजह से देश की साख को भी बट्टा लगा है। टूजी घोटाला हो या सीडब्ल्यूजी घोटाला या फिर कोयला घोटाला, सभी का आंकड़ा लाख करोड़ तक पहुंच जाता है। विपक्ष का आरोप है कि संप्रग सरकार के यदि सभी घोटालों को मिला लिया जाए किसी संपन्न देश के सालाना बजट से ज्यादा के तो यहां घोटाले ही हुए हैं।

2जी घोटाला संप्रग सरकार के पहले कार्यकाल में ही हुआ था, लेकिन वह सामने आया दूसरे कार्यकाल में। किसानों की कर्ज माफी योजना में घोटाला तो नजर भी आने लगा है। संप्रग सरकार की बदनामी का कारण बनने वाले कुछ प्रमुख घोटाले इस प्रकार हैं :
  • 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला : 2008 में जारी कैग की रिपोर्ट के अनुसार तत्कालीन टेलीकॉम मंत्री ए राजा के मनमाने रवैये और नीतियों के चलते 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन से देश को 1.76 लाख करोड़ रुपए का घाटा हुआ था। बोली प्रक्रिया की जगह पहले आओ पहले पाओ नीति पर अमल किया गया। यह घोटाला 1.76 लाख करोड़ रुपए का निकला।
  • राष्ट्रमंडल खेल घोटाला : 2010 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान कई प्रोजेक्टों में धांधली पाई गई। निविदाओं से लेकर मनमाने तरीके से ऊंचे दामों पर सामानों को खरीदा गया। कई ऐसी कंपनियों को भुगतान किया गया जो अस्तित्व में ही नहीं थीं। यह घोटाला करीब 70 हजार करोड़ रुपए का है।
  • कोयला घोटाला : 2009-2012 के बीच सरकार द्वारा निजी कंपनियों को आवेदन के आधार पर कोयले के 57 ब्लॉक आवंटित करने से इन कंपनियों को लाभ हुआ। बोली की प्रक्रिया से खजाने को नुकसान नहीं होता। कैग ने इस घोटाले में 1.86 लाख करोड़ रुपए के नुकसान का आकलन किया है।
बिजनेस का अनिवार्य हिस्सा है रिश्वत : बर्लुस्कोनी
इटली के पूर्व प्रधानमंत्री सिलवियो बर्लुस्कोनी ने रिश्वत मामले में जेल में बंद फिनमेकानिका एसपीए के पूर्व मुखिया ग्यूसेप ओर्सी का बचाव करते हुए गुरुवार को कहा है कि रिश्वत दुनिया भर में कारोबार का अनिवार्य हिस्सा है। भारत व इटली के बीच वीवीआईपी हेलीकॉप्टर घोटाले पर बर्लुस्कोनी के इस बयान से विवाद पैदा हो गया है।

तीन बार इटली के प्रधानमंत्री रहे बलरुस्कोनी ने एक टेलीविजन को दिए अपने साक्षात्कार के दौरान कहा, रिश्वत सच्चाई है जो मौजूद है और इस तरह की अनिवार्य हालात से इनकार करने का कोई मतलब नहीं है। बर्लुस्कोनी ने कहा कि यह कोई अपराध नहीं है। उन्होंने कहा कि हम उस देश में किसी को कमीशन के भुगतान के बारे में बात कर रहे हैं क्योंकि उस देश में इस तरह के नियम हैं।

Wednesday, May 15, 2013

The IM Story


आतंकवाद के साप ने एक बार फिर भारत पर अपना जहर उगला है और हैदराबाद को दूसरी बार इसका शिकार बनाया है। हैदराबाद में हुए आतंकी धमाके की सुगबुगाहट कुछ महीने पहले से ही दिखने लगी थी। दरअसल, मुंबई और पुणे धमाकों में शामिल इंडियन मुजाहिदीन के तीन संदिग्ध आतंकी मुंबई के आसपास पिछले दो साल से भेष बदलकर घूम रहे थे। एटीएस के मुताबिक ये आतंकी बड़ी आतंकी योजना को अंजाम देने की फिराक में थे। एटीएस ने संदिग्ध आतंकियों की तस्वीरें जारी कर खबर देने वाले को 10 लाख रुपए इनाम देने का एलान भी किया था।

महाराष्ट्र एटीएस ने मुताबिक चारों मुंबई, पुणे के गुनहगार हैं और अब ये महाराष्ट्र में फिर कोई बड़ी आतंकवादी घटना को अंजाम देने का प्लान बना रहे हैं। यासीन भटकल उर्फ अहमद उर्फ जर्रार उर्फ सिद्धीबाबा उर्फ इमरान उर्फ शाहरुख, तहसीन उर्फ वसीम उर्फ मोनू उर्फ हसन, असदुल्लाह उर्फ जावेद उर्फ हड्डी उर्फ तबरेज उर्फ शाकिर उर्फ दानियाल और वकस उर्फ अहमद। महाराष्ट्र एटीएस के मुताबिक इन चारों ने 13 जुलाई 2011 को मुंबई और एक अगस्त 2012 को पुणे में हुए सीरियल बम धमाकों को अंजाम दिया। एटीएस के मुताबिक यासीन भटकल जो कि इंडियन मुजाहिदीन का मोस्ट वांटेड आतंकी है वो मुंबई और पुणे के अलावा कई और धमाकों में वांटेड है। बाकी तीनों भी न सिर्फ धमाकों की साजिश में शामिल थे बल्कि ये सभी धमाकों के प्लांटर्स भी हैं, यानि इन्होंने उन धमाकों को अंजाम देने के लिए बमों को उनकी जगहों पर रखा था।

महाराष्ट्र एटीएस के मुताबिक इनमें से तीन यासीन भटकल, तहसीन और असदुल्लाह पिछले दो सालों से मुंबई और उसके आसपास रह रहे हैं। उन्हें फिलहाल वकस उर्फ अहमद के बारे में ज्यादा पुख्ता जानकारी नहीं है। उसके मुताबिक शायद वो देश से बाहर निकल गया है। एटीएस की मानें तो ये सभी भेष बदलने में माहिर हैं और पिछले 2 साल से ये सभी मुंबई के आसपास कभी छात्र बनकर हॉस्टल में रह रहे हैं। कभी आईटी कंपनी के कर्मचारी बनकर रह रहे हैं तो कभी कॉल सेंटर के कर्मचारी बनकर रह रहे हैं। एटीएस कई बार इनके करीब पहुंची लेकिन ये इतने शातिर हैं कि इन्होंने एटीएस के पहुंचने से पहले ही अपना ठिकाना बार-बार बदल लिया। आखिरकार दो साल की तलाश में नाकाम रहने के बाद अब एटीएस ने इन्हें पकडऩे के लिए इनकी तस्वीर जारी की है। साथ ही इनके बारे में खबर देने वाले को 10 लाख रुपए के इनाम का भी एलान किया है।

आतंकियों के नापाक मंसूबों को रोकने के लिए एंटी टेरर सेल यानी एटीसी की नजर हॉस्टल और कॉल सेंटरों पर खास तौर से है। यही नहीं एटीएस ने देश के सभी पुलिस थानों और खुफिया विभागों को भी इन आतंकियो की तस्वीरें भेज दी हैं। एटीएस की सबसे बडी उम्मीद अब लोगों से हैं क्योंकि आंतकियों के चेहरे से छात्र का नकाब हटाने में आम आदमी ही अहम भूमिका निभा सकता है।

एक नजर डालते हैं दहशतगर्दों की हालिया करतूतों पर :

  • दिल्ली, सात सितंबर 2011 : सुबह दिल्ली हाईकोर्ट के गेट नंबर पांच के बाहर बम धमाका। नौ की मौत और 50 घायल।
  • मुंबई, 13 जुलाई, 2011 : शाम को हुए तीन बम धमाके से 17 की मौत और 131 लोग घायल।
  • दिल्ली, 19 सितंबर, 2010 : मोटरसाइकिल पर सवार अज्ञात बंदूकधारियों ने दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेलों से पहले जामा मस्जिद के बाहर विदेशी पर्यटकों की एक बस को निशाना बनाया और दो ताईवानी नागरिकों को घायल कर दिया।
  • बेंगलुरू, अप्रैल 17,2010 : बेंगलुरू के चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर हुए दो बम धमाकों में 15 लोग घायल।
  • पुणे, फरवरी 10, 2010 : पुणे में जर्मन बेकरी में हुए धमाके में पांच महिलाओं और कुछ विदेशियों समेत नौ लोग मारे गए और 45 घायल हुए।
मुंबई हमले
  • मुंबई, नवंबर 26-29, 2008 : मुंबई के तीन स्थानों: ताज होटल, ओबेरॉय होटल और विक्टोरिया टर्मिनस पर हुए हमले तीन दिन तक चले और इनमें लगभग 170 लोग मारे गए और 200 अन्य घायल हो गए।
  • असम, अक्टूबर 30, 2008 : असम में एक साथ 18 जगहों पर हुए बम धमाकों में 70 से अधिक लोग मारे गए और सौ से अधिक घायल हो गए।
  • इम्फाल, अक्टूबर 21, 2008 : मणिपुर पुलिस कमांडो परिसर पर हुए हमले में 17 लोग मारे गए
  • मालेगांव, सितंबर 29, 2008 : महाराष्ट्र के मालेगांव में एक वाहन में बम धमाके के कारण पांच लोगों की मौत।
  • मोडासा, सितंबर 29, 2008 : गुजरात के मोडासा में एक मस्जिद के पास हुए धमाके में एक व्यक्ति की जान चली गई।
दिल्ली में धमाका
  • दिल्ली, सितंबर 27, 2008 : दिल्ली में महरौली के बाजार में फेंके गए एक देसी बम के कारण तीन लोग मारे गए।
  • दिल्ली, सितंबर 13, 2008 : दिल्ली में अलग-अलग जगहों पर हुए बम धमाकों में कम के कम 26 लोग मारे गए और अनेक घायल हुए।
  • अहमदाबाद, जुलाई 26, 2008 : दो घंटे के भीतर 20 बम विस्फोट होने से 50 से अधिक लोग मारे गए।
  • जयपुर, मई 13, 2008 : शहर में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में 68 लोग मारे गए और अनेक घायल हुए।
  • रामपुर, जनवरी 1, 2008 : उत्तर प्रदेश के रामपुर में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के कैंप पर हुए हमले में आठ लोगों की मौत।
  • लखनऊ, फैजाबाद, वाराणसी, नवंबर 23, 2007 : उत्तर प्रदेश के तीन शहरों में हुए धमाकों में 13 मारे गए कई घायल हुए।
  • अजमेर, अक्टूबर 11, 2007 : राजस्थान के अजमेर शरीफ में हुए धमाके में दो मारे गए।
हैदराबाद में धमाके
  • हैदराबाद, अगस्त 25, 2007 : आंध्र प्रदेश के हैदराबाद में हुए धमाके में 35 लोगों की जान गई।
  • हैदराबाद, मई 18, 2007 : जयदराबाद में मक्का मस्जिद धमाके में 13 लोग मारे गए।
  • समझौता एक्सप्रेस, फरवरी 19, 2007 : भारत और पाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस में हरियाणा में धमाके, 66 यात्री मारे गए।
  • मालेगांव, सितंबर 8, 2006 : महाराष्ट्र के मालेगांव में तीन धमाकों में 32 लोग मारे गए और सौ से अधिक घायल हुए।
  • मुंबई, जुलाई 11, 2006 : मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में 170 लोग मारे गए और 200 घायल हो गए।
ब्लास्ट के बाद किसने क्या कहा?
प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने बम धमाकों को 'कायराना हमला' करार दिया है तो बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने इसकी गंभीरता से जांच कराने की मांग की है। वहीं, कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे की काबिलियत पर ही सवाल उठा दिया है।

हमले बर्दाश्त नहीं
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि इस तरह की कायरतापूर्ण हरकतें शांति और सौहाद्र्र में खलल डालने वाली हैं। ऐसे हमले बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे। हम लोगों से शांति बनाए रखने की अपील करते हैं।

कायराना हमला
पीएमओ की ओर से किए गए ट्वीट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री ने बम विस्फोटों की कड़ी निंदा की है। साथ ही लोगों से धैर्य और शांति बनाए रखने की अपील की है।

गंभीरता से हो जांच
भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने विस्फोट में शिकार हुए लोगों के लिए दुख प्रकट करते हुए ईश्वर से मृतकों के परिजनों को इस गम से लडऩे की शक्ति प्रदान करने की कामना की। उन्होंने सरकार से इस मामले की गंभीरता से जांच कराने की मांग की।

दुख का सामना करने की जरूरत
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया कि यह वाकई में बेहद ही निंदनीय काम है। इस घटना पर मुझे गहरा दुख है। भगवान इस घटना में मारे गए लोगों की आत्मा को शांति दें और उनके घर वालों को इससे लडऩे की शक्ति प्रदान करें। देशवासियों को इस समय संगठित होकर इस दुख का सामना करने की जरूरत है।

काबिलियत पर सवाल
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे की काबिलियत पर ही सवाल उठा दिया है। उन्होंने कहा है कि जब गृह मंत्री का प्रमोशन उनकी कार्यक्षमता के बजाए वफादारी पर हुआ है तो ऐसे में उनसे क्या अपेक्षा की जा सकती है?

चार दिन पहले काटे थे सीसीटीवी के तार
दिलसुख नगर में लगे सीसीटीवी कैमरों के तार चार दिन पहले ही काट दिए गए थे। जबकि इससे पहले बताया जा रहा था कि उस इलाके के सीसीटीवी कैमरे खराब थे। आतंकी हमले की सूचना और एलर्ट के बाद भी हैदराबाद में सुरक्षा लचर रही, इस खुलासे से पुलिस की तैयारियों और सुरक्षा व्यवस्था को लेकर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं।

ऐसे दिया गया हैदराबाद ब्लास्ट को अंजाम!

पुणे माड्यूल तर्ज पर ब्लास्ट
सूत्रों के मुताबिक लश्कर ने इस प्लानिंग का पूरा खाका यासीन भटकल और उसके साथियों को भी समझा दिया था। धमाकों का शक इंडियन मुजाहिदीन के पुणे मॉड्यूल पर है, क्योंकि ये हैदराबाद के धमाके पुणे के धमाकों से पूरी तरह मेल खा रहे हैं। अभी तक की जांच में धमाकों में इस्तेमाल किए गए सामान का पता चला है। आईईडी बनाने के लिए अमोनियम नाइट्रेट, सल्फ्यूरिक एसिड और कुछ ज्वलनशील पदार्थों का इस्तेमाल किया गया।

मोबाइल बना हथियार
सुरक्षा एजेंसियों को शक है कि धमाकों के लिए मोबाइल फोन को हथियार बनाया गया। मोबाइल ट्रिगर के जरिए ही हैदराबाद में दोनों धमाके किए गए। यही वजह है कि अब पुलिस दिलसुख नगर में किए गए सारे मोबाइल कॉल्स की डिटेल्स को खंगाल रही है। जांच एजेंसियां धमाके से आधे घंटे पहले और आधे घंटे बाद किए गए सारे कॉल की डिटेल्स निकालने में जुटी हैं। दिलसुख नगर में इस दौरान कुल 42,379 कॉल्स किए गए। सुरक्षा एजेंसियों को शक है कि इन्हीं कॉल्स में धमाकों का राज छिपा है।

धमाके के बाद कश्मीर से आई 8 संदिग्ध कॉल 
हैदराबाद सीरियल बम धमाके में जांच एजेंसियों को सुराग मिलने लगीं हैं। सूत्रों के मुताबिक धमाके के बाद हैदराबाद के शाहिन बाग में जम्मू कश्मीर से कॉल आई। करीब आठ कॉल आई। फिलहाल जांच एजेंसियां इस बारे में ज्यादा खुलासा नहीं करना चाहती है। महाराष्ट्र के नांदेड़ और अहमद नगर में महाराष्ट्र एटीएस की टीम छापेमारी कर रही है। जांच एजेंसियों का कहना है कि महाराष्ट्र के नांदेड़ और अहमद नगर में छापेमारी से कुछ लीड मिल सकते हैं। लेकिन कोई ठोस लीड की बात करें तो जांच एजेंसियों का कहना है कि इस बाबत उनके पास कुछ भी ठोस नहीं है। फिलहाल एनआईए, एनएसजी और महाराष्ट्र एटीएस की टीम हैदराबाद में ब्लास्ट स्थल पर मौजूद हैं। फॉरेंसिक साक्ष्य उठाए जा रहे हैं। जांच एजेंसियां जानकारी के आधार पर स्केच बना रही है।

ऑनलाइन बैंकिंग और शॉपिंग का बढ़ता बाजार


टैप, क्लिक और स्वाइप... ये तीन वह शब्द हैं, जो मौजूदा समय में शॉपिंग और फंड ट्रांसफर के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं। आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल ने शॉपिंग और बैंकिंग को पहले से कहीं ज्यादा आसान और पहुंच वाला बना दिया है। तकनीक की बदौलत बैंक के दस्तावेजों ने कम्प्यूटर फाइल्स का रूप ले लिया है और कैश काउंटर पर बैठने वाले की जगह एटीएम मशीनों ने ले ली है। पहले बैंकों में रोजाना होने वाले आर्थिक लेनदेनों को रजिस्टर में लिखकर रखा जाता था, जिसे दिन का काम खत्म होने के बाद अपडेट किया जाता था। अब यह काम कम्यूटरीकृत हो गया है, जिसका फायदा बैंक के आम ग्राहकों को मिल रहा है।

लगभग डेढ़ दशक पहले तक बैंक की शाखाएं बैंक और ग्राहक के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी हुआ करती थीं। लेकिन अब परिदृश्य बदल चुका है। अब ग्राहकों को बैंकिंग के लिए घड़ी देखकर नहीं जाना पड़ता है। चाहे रुपए निकालने की बात हो या फिर जमा करने की। यहां तक कि फंड ट्रांसफर का काम भी बिना बैंक गए ही होने लगा है। बैंक आपके टेलीफोन, मोबाइल और कम्प्यूटर पर उपलब्ध है।

अल्टरनेटिव बैंकिंग
आईसीआईसीआई बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले पांच वर्षों के दौरान बैंकिंग से जुड़े उनके कई काम ऑनलाइन हो चुके हैं। जिसमें फंड ट्रांसफर, बचत खाता खोलना, चेकबुक मंगाना और डिमांड ड्राफ्ट के लिए बैंक की शाखा के चक्कर नहीं लगाने पड़ते हैं। साथ ही रोजमर्रा के बिल जिनमें बिजली, पानी, टेलीफोन और मोबाइल के बिल शामिल हैं, को भी बैंक की मदद से बिना शाखा जाए ही जमा किया जा सकता है। बैंकों ने अपनी इन सेवाओं को अल्टरनेटिव बैंकिंग का नाम दिया है। वर्तमान बैंकिंग परिदृश्य में लगभग सभी बैंकों के 40 प्रतिशत ग्राहक अल्टरनेटिव बैंकिंग का उपयोग कर रहे हैं और उनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।

जल्द ही अल्टरनेटिव बैंकिंग उपयोग करने वालों की संख्या 80 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी। बैंक के ऐसे ग्राहकों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, जो बिना ब्रांच में गए अपनी बैंकिंग के काम पूरा कर लेते हैं। इस समय केवल 15 प्रतिशत ग्राहक ही बैंक की शाखाओं में पहुंच रहे हैं।

एटीएम सबसे पुराना और लोकप्रिय
भारतीय बैंकिंग के आधुनिकीकरण में एटीएम -ऑटोमेटेड टेलर मशीन- का रोल काफी महत्वपूर्ण साबित हुआ है। यह अल्टरनेटिव बैंकिंग का सबसे पुराना, सफल और मौजूदा माध्यम है। एटीएम मशीनों ने भारतीय बैंकिंग की दिशा बदलने में जबरदस्त रोल निभाया है। यही वजह है कि बड़े और सरकारी बैंकों के अलावा छोटे तथा को-ऑपरेटिव बैंक भी अपनी एटीएम यूनिट स्थापित करने लगे हैं। पिछले तीन वर्षों में पूरे देश में एटीएम मशीनों की संख्या दोगुनी से ज्यादा होकर एक लाख का आंकड़ा पार कर चुकी हैं।

इनमें से 70 प्रतिशत मशीनें शहरी इलाकों में लगी हैं। बाकी मशीनें कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित की गई हैं। अंतरराष्ट्रीय सर्वे एजेंसी सेलेंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2016 तक एटीएम मशीनों की संख्या दोगुनी हो जाएगी, जिनमें से 50 फीसदी छोटे शहरों में लगाई जाएंगी।

कैश से कहीं ज्यादा उपयोग
वर्तमान समय में एटीएम का उपयोग केवल नगद निकासी के लिए नहीं रह गया है। इसका उपयोग डिमांड ड्राफ्ट ऑर्डर, चेकबुक ऑर्डर के साथ ही फिक्स डिपॉजिट करने के लिए भी किया जा रहा है।

रिजर्व बैंक की पहल
बैंकिंग में बदलावों के लिए भारतीय रिवर्ज बैंक ने भी खासा काम किया है। कार्ड से होने वाले भुगतान और ऑनलाइन लेन-देन की प्रक्रिया को सुगम बनाकर उसने इसका सीधा फायदा आम बैंक उपभोक्ताओं को पहुंचाया है। आरबीआई की वेबसाइट पर उपलब्ध एक रिपोर्ट के मुताबिक 2011-12 के दौरान देश में ऑनलाइन ट्रांजेक्शंस की संख्या 71 फीसदी बढ़ी है। इसी दौरान चेक से होने वाले ट्रांजेक्शंस का प्रतिशत लगातार गिरता गया। 2007-08 से 2011-12 के दौरान पेपर बेस्ड पेमेंट में 8.4 प्रतिशत की कमी देखी गई।

मोबाइल का दौर
पिछले पांच वर्षों के दौरान मोबाइल से होने वाले भुगतानों का प्रतिशत बढ़ा है। मोबाइल मनी सुविधा शुरू होने के बाद इसमें और अधिक इजाफा हुआ है। हालांकि इसके उपयोगकर्ताओं का प्रतिशत अभी काफी कम है, लेकिन माना जा रहा है कि इसमें बढ़ोतरी होगी। आरबीआई के कार्यकारी निदेशक जी. पद्मनाभन के मुताबिक मोबाइल बैंकिंग तकनीक का भविष्य उज्जवल है और इस दिशा में लगातार काम हो रहा है। उन्होंने कहा कि मौजूदा भारतीय अर्थव्यवस्था में केवल दो प्रतिशत लेनदेन ही इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट के जरिए किया जा रहा है। अभी भी देश में ऐसे स्थानों की संख्या बहुत कम है, जहां कार्ड के जरिए भुगतान लिया जाता है।

  • देश के 10 मिलियन से ज्यादा रिटेलर्स में से केवल 0.6 प्रतिशत ही कार्ड से भुगतान स्वीकार करते हैं।

Monday, February 25, 2013

अंदर नक्सली और आतंकवादी, बाहर दुश्मन देश


आपमें से अधिकांश ने आतंकवादियों और लिट्टे के 'ह्यूमन बॉम्ब' के बारे में सुना होगा। लेकिन नक्सलियों ने पेट के अंदर बॉम्ब प्लांट कर सिक्योरिटी एजेंसीज से लेकर आम आदमी तक के होश उड़ा दिए हैं। अभी तक बारूदी सुरंगों के जरिए जवानों पर हमला करने वाले माओवादियों ने दहशत फैलाने की यह नया तरीका अपनाना शुरू किया है। ये वाकया झारखंड के लातेहार जिले में जारी माओवादी और सुरक्षा बलों के बीच एनकाउंटर के बाद सामने आया है। गौरतलब है कि अभी तक दुनिया में सिर्फ मानव बम जैसी घटनाएं भी सामने आईं थीं, जिसमें आतंकवादी अपने शरीर पर विस्फोटक बांधकर खुद को धमाके से उड़ा देता था।

सर्जरी से प्लांट किया था आईईडी
लातेहार के नक्सली हमले में शहीद सीआरपीएफ के जवान बाबूलाल पटेल के पेट में नक्सलियों ने 1.5 किलोग्राम की एक आईईडी सर्जरी करके प्लांट कर दी थी। रिम्स (रांची इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस) के पोस्टमार्टम हाऊस में जब डॉक्टर्स और स्टाफ ने उनकी बॉडी को पोस्टमार्टम के लिए आपॅरेट किया तो सभी डर के साथ-साथ हैरान भी रह गए। डॉक्टर्स ने इसकी जानकारी सीआरपीएफ  ऑफिसर्स को दी, तब जाकर मामला खुला। गुरुवार की सुबह हजारीबाग से आई बम डिटेक्शन एंड डिस्पोजल स्क्वॉयड (बीडीडीएस) ने दोपहर दो बजे के करीब आईईडी को डिफ्यूज कर दिया। लातेहार जिले के बरवाडीह के कटिया जंगल में सात जनवरी से 'ऑपरेशन एनाकोंडा' के तहत नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन चल रहा है।

ऐसे हुआ खुलासा
लातेहार में तीन दिनों से 'ऑपरेशन एनाकोंडा' के तहत शहीद पांच जवानों के शवों का पोस्टमार्टम नौ जनवरी की रात में डीसी विनय कुमार चौबे के निर्देश पर किया जा रहा था। टीम में शामिल डॉ. अजीत कुमार चौधरी, डॉ.विनय कुमार, पोस्टमार्टम हाऊस का कर्मचारी मोहन मलिक, राजू मलिक, टिंकू जवानों के शव का पोस्टमार्टम कर रहे थे। टीम ने दो जवान सुदेश कुमार और चम्पालाल मालवीय का शव का पोस्टमार्टम किया। उस समय बाबूलाल पटेल का शव भी मॉर्चरी में गया। जैसे ही टीम शव का पोस्टमार्टम करने की तैयारी करने लगी, उसी समय राजू चिल्लाया, सर इसका तो पहले ही पोस्टमार्टम हो चुका है। सभी ने जाकर देखा तो बाबूलाल पटेल का पेट 15 फीट लंबा चीरा हुआ था और उसे बोरा सिलने के स्टाइल में सील दिया था। जब डॉक्टर्स ने उसे छूकर देखा तो पेट के अंदर कड़ी चीज होने का अहसास हुआ। डॉक्टर्स ने तुरंत पोस्टमार्टम रोक दिया। बाहर आकर उन्होंने इसकी जानकारी रिम्स के डायरेक्टर डॉ तुलसी महतो और सीआरपीएफ के अधिकारियों को दी गई। फिर, बताया गया कि जवान के शरीर से पहले ही छेड़छाड़ की गई है। डॉक्टर्स को यह बताया गया कि घटनास्थल से ही जवान के शव को रिम्स भेजा गया है। इसके बाद सीआरपीएफ ऑफिसर्स ने जवान के शव को बाहर रखने के लिए कहा और बम निरोधक दस्ता को बुलाया गया। बम निरोधक दस्ता ने पेट के अंदर बम होने की पुष्टि की।

एक और जवान की  सिलाई
रिम्स में आए एक जवान के शव का जब पोस्टमार्टम किया जा रहा था तो उस समय भी डॉक्टर्स ने पाया कि उसके शरीर का निचला हिस्सा पूरी तरह डैमेज हो गया था। उसके पेट पर भी सिलाई के निशान मिले थे।

पहला केस आया सामने
भारत में इस तरह से बम लगाने का यह पहला मामला है। विशेषज्ञों के मुताबिक, इस तरह के मामले को उन्होंने कभी हैंडल नहीं किया था और यह उनका पहला अनुभव था। हालांकि, नक्सलियों द्वारा शरीर के अंग में सीरिज में बम लगाए गए थे, ताकि प्रेशर पडऩे पर बम में धमाका हो जाए और ज्यादा से ज्यादा कैजुअलटी हो। विशेषज्ञों ने बताया कि इस तरह की तकनीक को श्रीलंका में लिट्टे द्वारा उपयोग किया जाता रहा है।

लगाया था शव के नीचे बम
पुलिस को धोखा देने के लिए और ज्यादा से ज्यादा क्षति पहुंचाने की नीयत से शहीदों के शव के नीचे बम लगा रखा था। सभी शवों के नीचे लगाए गए बम को बॉम्ब स्क्वॉयड ने डिफ्यूज किया था। पर, इनमें से कुछ जवानों के शवों का पेट ऑपरेट कर उसमें बम फिट कर दिया गया था।

घटना का बैकग्राउंड
अभियान के पहले दिन नक्सलियों ने सीआरपीएफ, एसटीएफ के जवानों पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसानीं शुरू कर दी। ताबड़तोड़ हमले में दस जवान शहीद हो गए और 20 जवान जख्मी हो गए थे।

डॉक्टर्स कमेंट
रिम्स के डॉ. अजीत कुमार चौधरी और लैब टेक्निशियन दयामय मुखर्जी ने बताया कि उन लोगों को पहले यह आशंका हुई कि आखिर इसका पोस्टमार्टम किसने किया है। चूंकि जिस ढंग से सिलाई की गई थी वह डॉक्टर की सिलाई नहीं लग रही थी। वह किसी पैरा मेडिकल के द्वारा सिलाई लग रही थी। फिर, शव को 15 इंच तक सिला गया था। अमूमन पेशेवर डॉक्टर किसी बॉडी को उतनी लंबाई तक नहीं सिलता। उसे बोरे की तरह सिल दिया गया था। फिर, इसकी जांच की गई कि यदि जवान का ऑपरेशन पहले ही हुआ होगा तो घाव लेकर वह 'ऑपरेशन एनाकोंडा' में भाग क्यों लेगा। इसलिए उन लोगों को शक हुआ और पोस्टमार्टम रोक दिया गया।

...तो उड़ जाता रिम्स
बीडीडीएस के अधिकारी का कहना था कि यदि सिलाई को तोड़ा जाता तो एक बड़ा ब्लास्ट भी हो सकता था। इस ब्लास्ट की चपेट में आकर रिम्स की मॉर्चरी बिल्डिंग को काफी नुकसान पहुंचता और कई लोग मारे जाते। इस तरह के बम को प्रेशर रिलीज डिवाइस बम कहा जाता है। इसमें चार-पांच लोगों के उडऩे की संभावना बनती है।

Wednesday, February 13, 2013

चार राज्यों के 42 विधायकों पर दर्ज हैं बलात्कार के मामले

असम में कांग्रेसी विधायक बिक्रम सिंह ब्रह्म को
महिलाओं ने सार्वजनिक रूप से पीटा

दिल्ली गैंगरेप की घटना के बाद पूरे देश में आक्रोश है। लोग दोषियों को फांसी और महिलाओं के खिलाफ अपराध को लेकर कड़े कानून की मांग कर रहे हैं। लेकिन यदि सरकार में ही बैठे कई नेता बलात्कार के आरोपी हों तो फिर क्या उम्मीद की जा सकती है। उधर, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि वह बलात्कार के मामले में चार्जशीटेड विधायक व सांसदों को निलंबित करने का निर्देश नहीं दे सकता है। यह मामला विधायिका का है और वह उसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा।

केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा बलात्कारियों के नाम, फोटो और पता वेबसाइट पर सार्वजनिक करने की तैयारी बीच यह बात सामने आई है कि देशभर में 42 ऐसे विधायक हैं जिन पर महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दर्ज हैं, जिनमें छह ऐसे हैं जिन पर सीधे बलात्कार का आरोप है।

नेशनल इलेक्शन वॉच (एनईडब्ल्यू) और एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स (एडीआर) द्वारा हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है। यह रिपोर्ट जनप्रतिनिधियों द्वारा चुनाव में नामांकन के दौरान दायर शपथ पत्र के आधार पर तैयार की गई है। इन संस्थानों ने माना है कि कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी ऐसे नेताओं को टिकट देती है जिन पर रेप के आरोप लगे हुए हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, जिन छह विधायकों पर बलात्कार के आरोप हैं उनमें से तीन उत्तर प्रदेश के हैं। ये विधायक सपा से हैं और इनके नाम श्रीभगवान शर्मा, अनूप संदा और मनोज कुमार पारस हैं। वहीं बाकी के तीन का नाम मो. अलीम खान (उप्र, भाजपा), जेठाभाई जी अहिर (गुजरात, भाजपा), कंडीकुंता वेकांता प्रसाद (तेलगू देशम पार्टी, आंध्र प्रदेश) है।

दूसरी ओर, जिन 36 विधायकों का नाम महिलाओं के शोषण के मामले में सामने आए आए हैं उनमें से छह कांग्रेस, पांच भाजपा और तीन सपा के हैं।

राज्यवार बात करें तो महिलाओं का शोषण करने वाले सबसे ज्यादा विधायक उत्तर प्रदेश से हैं। इनकी संख्या सर्वाधिक आठ हैं। इसके बाद उड़ीसा और पश्चिम बंगाल का नाम आता है, जहां के सात-सात विधायक हैं। वहीं बलात्कार के आरोपी 27 उम्मीदवारों ने पिछले साल में अलग-अलग जगह से चुनाव लड़े हैं।

एनईडब्ल्यू और एडीआर के मुताबिक अन्नाद्रमुक के सांसद एस सेममाल और तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुवेंदु अधिकारी ने यह माना है कि उन पर महिला का अपमान और उसके साथ क्रूरता का व्यवहार करने का आरोप लगाया गया है। ऐसे जनप्रतिनिधियों से भला और क्या उम्मीद की जा सकती है।

विभिन्न राज्यों में महिला के खिलाफ अपराध करने वाले आरोपी विधायकों की सूची इस प्रकार है:

उत्तर प्रदेश : श्रीभगवान शर्मा, मोहम्मद अलीम खान, अनूप संदा, मनोज कुमार पारस, डॉ. रीता जोशी, रामवीर सिंह, उदय राज राजाराम
ओडिशा : डॉ. एनरुसिंहा साहू, माहेश्वरी मोहंती, शिबाजी माझी, प्रदीप महारथा, भीमसेन चौधरी, समीर रंजन दास, प्रताप चंद्र
पश्चिम बंगाल : बेचराम मन्ना, विल्सन चंप्रामरी, दीपक कुमार हल्दर, भूपेंद्रनाथ हल्दर, विश्वजीत दास, डॉ. हरका बहादुर छत्री, अशोक मल
महाराष्ट्र : अतुल देशकर, भूसे दादाजी दागादू, हर्षवर्धन जाधव, प्रकाश सावंत
झारखंड : चमरा लिंडा, बंधु तिर्की, बन्ना गुप्ता
दिल्ली : मोहन सिंह विष्ट, शोएब इकबाल
राजस्थान : नवल किशोर, भरोसी लाल
आंध्र प्रदेश : कांडीकुंता वी प्रसाद, प्रभाकर चिंतामनेनी
पंजाब : रंजीत सिंह ढिल्लन
बिहार : राम बालक सिंह
तमिलनाडु : सेंथी बालाजी
असम : अबुल कलाम आजाद
गुजरात : जेठाभाई जी अहिर
मध्य प्रदेश : मोती कश्यप
कर्नाटक : मंजू ए

Tuesday, February 12, 2013

शहरी विकास का खेल


कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया (सीएजी) की पिछले साल जारी की आखिरी रिपोर्ट में देश में शहरी विकास के नाम पर हो रहे घपले की पोल खोली गई थी। सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार ने देश के कई शहरों में विकास के लिए जवाहरलाल नेहरू नेशनल अर्बन रिनुवल मिशन (जेएनएनयूआरएम) नाम की योजना चला रखी है। आम बजट में इसके लिए फंड का प्रावधान भी किया गया है। लेकिन असली खेल फंड की राशि को लेकर ही खेला जा रहा है। सीएजी का कहना है कि इस मिशन के तहत जारी फंड को दूसरी योजनाओं में उपयोग किया जा रहा है और कुछ राज्यों में इसे इस्तेमाल ही नहीं किया गया है। जिस वजह से राशि लैप्स हो गई है।

सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक शहरी विकास के लिए शुरू किया गया यह मिशन अपने उद्देश्य से भटककर फ्लॉप हो चुका है। साथ ही इससे जुड़े नोडल मंत्रालयों की कार्यशैली पर भी सवाल उठाए गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी विकास, शहरी गरीबी उन्मूलन और आवास मंत्रालय के बीच आपसी समन्वय की कमी के साथ ही विशेषज्ञता की कमी के चलते यह मिशन विफल हुआ है।

सक्षम नहीं थे मंत्रालय
सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस स्तर की वृहद योजना को लागू करने और उसकी मॉनिटरिंग करने की विशेषज्ञता मंत्रालयों के पास न होने की वजह से योजना सफल नहीं हो पाई। इन्हीं कमियों के चलते जेएनएनयूआरएम के लिए जारी फंड को डाइवर्ट करके अन्य योजनाओं में लगा दिया गया।

एक लाख करोड़ का मिशन
गौरतलब है कि इस मिशन को शहरी गरीबों के उत्थान के लिए शुरू किया गया था। योजना आयोग की पहल पर शुरू की गई इस योजना के तहत पूरे देश में एक लाख करोड़ रुपए खर्च करके विकास किया जाना था। जिसमें केंद्र सरकार ने 66084.65 करोड़ रुपए अपनी ओर से दिए थे। लेकिन अब तक इसके लिए 45066.23 करोड़ रुपए ही बजट द्वारा आवंटित किए गए हैं और इसमें से भी 40584.21 रिलीज किए गए हैं।

अधूरे हैं काम
दिल्ली, भोपाल, इंदौर, रायपुर और बिलासपुर जैसे कई शहर इस योजना की जद में हैं। लेकिन कहीं भी यह पूरी नहीं हो सकी है। यहां तक कि राष्ट्रीय राजधानी में भी जेएनएनयूआरएम के कई कार्य अधूरे पड़े हैं। जबकि मिशन का पहला चरण मार्च 2012 में ही खत्म हो जाना तय किया गया था।

आवासीय योजनाएं भी विफल
सीएजी के मुताबिक जेएनएनयूआरएम के तहत देश के कई शहरों को झुग्गी मुक्त बनाने की योजना थी। रिपोर्ट में बताया गया है कि 82 आवासीय परियोजनाओं में से 73 अब तक अधूरी हैं। और तो और सात शहरों में तो इसे शुरू भी नहीं किया जा सका है।

मनचाहा इस्तेमाल
सबसे ज्यादा अनियमितता जेएनएनयूआरएम के फंड प्रबंधन में बताई गई है। सीएजी की रिपोर्ट में बताया गया है कि 114.68 करोड़ रुपए का फंड अन्य योजनाओं में खर्च कर दिया गया है। इसी तरह से मई 2010 में आंध्रप्रदेश हाउसिंग बोर्ड को 72.72 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे, जिसे बोर्ड ने राज्य सरकार की राजीव गृहकल्प योजना में उपयोग कर लिया है।

क्या है जेएनएनयूआरएम
दिसंबर 2005 में जवाहरलाल नेहरू नेशनल अर्बन रिनुवल मिशन की शुरुआत की गई थी। इसका उद्देश्य देश के शहरों में अधोसंरचना विकास और गरीबी उन्मूलन करना था। इस योजना के तहत स्थानीय प्रशासन को विकास कार्य योजनाएं तय समय में पूरी करना था।

  • 2005 से 2012 के बीच इस योजना में एक लाख करोड़ रुपए खर्च किया जाना था। इसके लिए केंद्र सरकार ने 66.09 हजार करोड़ रुपए दिए।
  • शुरुआत में इस मिशन को देश के 65 शहरों में लागू किया गया था।
  • जेएनएनयूआरएम के अंतर्गत दो उप-मिशन भी बनाए गए थे, जिसमें शहरी अधोसंरचना और शहरी गरीबों के लिए आधारभूत सुविधाएं मुहैया कराना था।
  • शहरी विकास, शहरी गरीबी उन्मूलन और आवास मंत्रालय को इसके लिए बतौर नोडल एजेंसी काम करना था।

हार्ड फैक्ट्स

  • 16.07 लाख रुपए ड्वेलिंग यूनिट्स के लिए जारी किए गए, जिसमें से 4.18 लाख के काम मार्च 2011 तक पूरा होना था। जबकि खर्च हुए केवल 2.21 लाख।
  • 56 सीवरेज और पाइपलाइन प्रोजेक्ट अप्रूव किए गए थे, जिसमें से केवल चार ही पूरे हुए हैं।
  • 19 सड़कें और फ्लाइओवर बनाए जाने थे, लेकिन चार ही बन सके।
  • 37 वाटर सप्लाई प्रोजेक्ट्स में से तीन ही पूरे हुए हैं।

फेल हुए रिफॉर्म्स

  • शहरी विकास मंत्रालय ने जेएनएनयूआरएम की मॉनिटरिंग के लिए वेब आधारित ऑनलाइन सिस्टम विकसित किया था। हालांकि उसने भी दम तोड़ दिया।
  • केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी रही।
  • अधिकतर डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोट्र्स में पर्यावरण एवं सामाजिक प्रभावों का कोई उल्लेख नहीं किया गया था।

राष्ट्रीय शर्म के विषय



एक देश जो उपग्रह प्रक्षेपित करने और बनाने में सक्षम हो, परमाणु विखंडन में अपनी पकड़ बना रहा हो। उसके लिए बलात्कार के अलावा और भी कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां उसे राष्ट्रीय शर्म का सामना करना पड़ रहा है। ब्रिटेन ने अपनी राजधानी लंदन के बीचो-बीच के गुजरने वाले थेम्स नदी की सफाई की योजना बनाई और उसे सफलतापूर्वक पूरा किया। वहीं भारत की राजधानी दिल्ली से होकर बहने वाली यमुना के हालात ऐसे हैं कि उसके आसपास से गुजरने वाले को भी नाक ढंककर निकलना पड़ता है।

आइए कुछ ऐसे ही विषयों की पड़ताल करें, जिनमें सुधार के बिना देश की छवि को बदलना नामुमकिन है:

तोंदु पुलिस बल
पिछले तीन दशकों में आतंकवाद और हमलों ने अपना रूप काफी बदल लिया है। ऐसे में जरूरत ऐसे पुलिसवालों की है, जो कमांडो की तर्ज पर एक्शन ले सकें और कानून तोडऩे वालों में जिनका खौफ हो। लेकिन ऐसा नहीं है। देश के हर राज्य में पुलिस बल तोंदु होता जा रहा है। इसका असर इनकी सक्रियता और डयूटी पर भी दिखाई देता है। अपराध रोकने के लिए इनका फिट रहना भी जरूरी है।

यमुना
यमुना नदी का उल्लेख 1700-1100 ईसवी पूर्व लिखे गए ऋग्वेद में भी मिलता है। वेदों में पूजनीय बताई गई इस नदी की हालत इतनी बदतर हो चुकी है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रदूषण पर जारी अपनी रिपोर्ट में यमुना को गंदे नाले से भी गया-गुजरा बताया है। वहीं लंदन की थेम्स और पेरिस की सीन नदी को देखकर पता चलता है कि कौन सा देश नदियों को कितना महत्व दे रहा है।

मृत्युदंड
किसी भी सभ्य समाज में मृत्युदंड को सही नहीं माना जाता है। हालांकि 26/11 की घटना के मुख्य आरोपी अजमल कसाब को फांसी दिए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि मृत्युदंड देने के कानूनी पहलुओं पर विचार किया जाना आवश्यक है।

रेलवे टॉयलेट्स
देश के एक रेलमंत्री में एक बयान में कहा था कि भारतीय रेलवे ट्रैक दुनिया के सबसे बड़े ओपन टॉयलेट हैं। भारतीय रेलों में आज भी ऐसे टॉयलेट नहीं लगाए जा सके हैं, जो पर्यावरण को दूषित न करें।

सीवेज की सफाई
हमारे देश में आज भी सीवेज की सफाई के लिए कामगारों को नियुक्त किया जाता है। महाशक्ति बनते देश की राजधानी में हर साल कई सफाईकर्मियों की मौत सीवेज में उतरने और वहां की जहरीली गैस की वजह से हो जाती है। यह हालात तब हैं, जबकि देश में मैला ढोना गैरकानूनी है।

यूनिवर्सल ब्रॉडबैंड
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के तकनीकी सलाहकार राज रेड्डी ने कहा था कि किसी भी देश के विकास के लिए सूचनाओं का आम लोगों तक पहुंचना बहुत जरूरी है। उनका तर्क था कि असाक्षर व्यक्ति भी चित्रों और चिन्हों के जरिए संदेश समझ सकता है। इसलिए ब्रॉडबैंड के जरिए इंटरनेट से दी जाने वाली सरल सूचनाएं हर आम-ओ-खास के लिए लाभकारी होती हैं।

बुलेट ट्रेन
चीन ने हाल ही में दुनिया की सबसे तेज चलने वाली बुलेट ट्रेन की सबसे लंबे रूट की सेवा शुरू की है। बीजिंग के गुआंग्जू के बीच की 2298 किलोमीटर की दूरी को यह ट्रेन 300 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से पूरा करती है। वहीं इसके मुकाबले भारत में ट्रेनों की औसत गति मात्र 85 किलोमीटर प्रति घंटा है। युवा भारतीय चाहते हैं कि उन्हें काम के लिए ज्यादा से ज्यादा वक्त मिले। इसके लिए तेज ट्रांसपोर्टेशन होना बहुत जरूरी है।

Monday, February 11, 2013

2014 की राह पर राजनाथ-मोदी



राजनाथ सिंह और नरेंद्र मोदी
दिल्ली में भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह और गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी के बीच रविवार को मुलाकात हुई। कहने के लिए मोदी राजनाथ सिंह को बधाई देने आए थे, लेकिन मुलाकात के बाद दोनों ने साफ कर दिया कि उनके बीच लोकसभा चुनाव को लेकर लंबी चर्चा भी हुई। हालांकि, बड़ा सवाल यह है कि क्या राजनाथ सिंह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी भाजपा को लोकसभा चुनाव जीता पाएगी?

इस सवाल का सटीक जवाब लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद ही पता चलेगा। सूत्रों के मुताबिक भाजपा में अंदरखाने नरेंद्र मोदी को चुनाव प्रचार की कमान सौंपने की तैयारी चल रही है। यह सारी कवायदराहुल गांधी को टक्कर देने के लिए की जा रही है। खास बात यह है कि इस जोड़ी की नजर यूपी पर भी है।

दरअसल 80 लोकसभा सीट वाला उत्तरप्रदेश केंद्र में सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। फिलहाल वहां पर भाजपा के खाते में केवल 10 सीटे हैं। लिहाजा पार्टी का एक वर्ग चाहता है कि नरेंद्र मोदी, अटल बिहारी वाजपेयी की सीट लखनऊ से चुनाव लड़ें ताकि यूपी में भाजपा का कुम्हलाया कमल फिर से खिल सके। मतलब पहली नजर में राजनाथ सिंह और नरेंद्र मोदी के बीच ऑल इज वेल नजर आ रहा है, लेकिन क्या वाकई जिस तरह दोनों गले मिले उसी तरह दोनों के दिल मिल चुके हैं।

इस सवाल की शुरुआत तब हुई जब राजनाथ सिंह पहली बार भाजपा के अध्यक्ष बने थे। तब राजनाथ सिंह ने मोदी को केंद्रीय संसदीय बोर्ड से हटा दिया था। इसके अलावा मोदी के करीबी अरुण जेटली को प्रवक्ता पद से हटा दिया था, जिसके बाद दोनों के रिश्तों में जबरदस्त खटास आ गई थी।

हालांकि, हाल के दिनों में मोदी और राजनाथ सिंह के रिश्तों में सुधार आया है। मोदी ने चुनाव से पहले स्वामी विवेकानंद विकास यात्रा निकाली थी और उसके उद्घाटन में उन्होंने राजनाथ सिंह को ही मुख्य अतिथि बनाया था। बाद में चुनाव प्रचार में भी राजनाथ सिंह ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।

इसके बदले मोदी ने भाजपा अध्यक्ष के चयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। खबर है कि जब गडकरी के नाम पर विवाद हो गया था तब मोदी ने अपनी पहली पसंद राजनाथ सिंह को बताया और उनकी सहमति मिलने के बाद राजनाथ सिंह का अध्यक्ष बनना तय हो गया। इससे यह तो जाहिर है मौजूदा समय में राजनाथ सिंह और नरेंद्र मोदी की दूरियां काफी हद तक मिट चुकी हैं।

मोदी के नाम पर विरोध
नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के मुद्दे पर भाजपा के नेता सार्वजनिक तौर पर साफ-साफ कहने से बचते रहे हैं। लेकिन यशवंत सिन्हा उनके समर्थन में पूरी तरह से सामने आ गए हैं। उनका कहना है कि मोदी की प्रधानमंत्री उम्मीदवारी का समर्थन कर वह देश और पार्टी के कार्यकर्ताओं की भावनाओं को व्यक्त कर रहे हैं। सिन्हा ने अपनी राय ऐसे वक्त जाहिर की, जबकि पार्टी के नए अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी इस मुद्दे पर खुल कर बोलने से बचते रहे हैं।

मोदी का मिशन 2014
उधर, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय राजनीति में आने के संकेत दे दिए हैं। भाजपा के नए अध्यक्ष राजनाथ सिंह को बधाई देने के लिए मोदी दिल्ली गए थे। गौरतलब है कि हाल ही में एक सर्वे में इस बात का खुलासा किया गया है कि नरेंद्र मोदी देश के अगले प्रधानमंत्री के रूप में सबसे चहेते राजनेता हैं और उन्हें देश के करीब 57 प्रतिशत लोग प्रधानमंत्री की कुर्सी पर देखना चाहते हैं। इस सर्वे के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं में भारी उत्साह है और इसको लेकर पार्टी के आला नेताओं में भी सुगबुगाहट है कि अगर मिशन-2014 को कामयाबी की मंजिल तक पहुंचाना है तो नरेंद्र मोदी को आगे लाना होगा।

लोकसभा चुनावों की तैयारी
घमासान से उबरने की कोशिश कर भाजपा अब अगले लोकसभा चुनाव की रणनीति बनाने में जुट गई है।
वहीं संघ की मंशा है कि राजनाथ-मोदी-गडकरी तीनों ही अहम भूमिका में रहकर पार्टी के अन्य बड़े नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, वेंकैया नायडू और सभी राज्यों के मुख्यमंत्री या उस पद के दावेदारों को भी साथ लेकर चलें।

इनकी बदौलत राज'नाथ
मोहन भागवत : नितिन गडकरी की कंपनी पूर्ति समूह पर दोबारा छापे की कार्रवाई के बाद भाजपा के अंदर ही उनके नाम पर विरोध शुरू हो गया। राजनाथ का नाम आगे किया गया, जिस पर अंतिम समय में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी हामी भर दी।

लालकृष्ण आडवाणी : गडकरी को दूसरा कार्यकाल दिए जाने के पक्ष में नही थे। राजनाथ के नाम पर उनकी सहमति भी भारी साबित हुई।

सुषमा स्वराज : सुषमा को राजनाथ के काफी करीब माना जाता है। इसलिए सिंह के नाम पर उनकी सहमति तो पहले से ही थी। आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर भी वो संगठन की जिम्मेदारी नहीं चाह रही थीं।

अरुण जेटली : राजनाथ और जेटली के बीच संबंधों को इतिहास खटास भरा रहा है। लेकिन मोदी से नजदीकी के चलते जेटली को राजनाथ का समर्थन करना पड़ा।

नितिन गडकरी : भाजपा अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद गडकरी चाहते थे कि कुर्सी राजनाथ को ही मिले। संघ की वजह से दोनों के बीच समीकच्रण अच्छे रहे हैं।

लव-हेट रिलेशनशिप
जनवरी 2007: तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने नरेंद्र मोदी को पार्टी के संसदीय बोर्ड से हटा दिया था। मोदी समर्थक अरुण जेटली को भी उन्होंने राष्ट्रीय प्रवक्ता पद से हटा दिया था।

दिसंबर 2007: गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान राजनाथ ने मोदी के पक्ष में कुछ नहीं किया। नतीजतन रिश्तों में खाई बढ़ती चली गई।

2009 लोकसभा चुनाव: इन चुनावों में राजनाथ सिंह और नरेंद्र मोदी ने एक साथ चुनाव प्रचार किया था, लेकिन दोनों के बीच लगभग संवादहीनता बनी हुई थी।

दिसंबर 2012 : गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान राजनाथ सिंह ने भी प्रचार में हिस्सा लिया था। यहां उन्होंने मोदी की खूब तारीफ की थी।

23 जनवरी 2013: राजनाथ सिंह को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया और मोदी सबसे पहले उन्हें बधाई देने पहुंचे थे।

27 जनवरी : मोदी, राजनाथ से मिलने उनके दिल्ली स्थित निवास पर गए थे। इसके बाद सिंह ने कहा था कि वो मोदी को संगठन में और अधिक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपना चाहते हैं।

पिघलते ग्लेशियर्स : आशंका से अधिक विकराल होंगे महासागर



भविष्य में ग्रीनलैंड और अंटाकर्टिक की बर्फ पिघलने से आईपीसीसी की अनुमानित आशंका से कहीं अधिक विकराल हो जाएंगे महासागर। आने वाले वर्षों में समुद्र का जलस्तर अपेक्षा से कहीं अधिक बढ़ जाएगा। मंगलवार को खबर आई कि आर्कटिक क्षेत्र का मैजेस्टिक ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहा है। वहां गए वैज्ञानिकों ने दल जो तस्वीरें जारी की हैं, उसमें ग्लेशियर्स कम और पानी ज्यादा दिखाई दे रहा है। पर्यावरणविद इसके लिए इंसानों को जिम्मेदार मान रहे हैं। दरअसल ग्लेशियर्स का मामूली रूप से पिघलना और उनका आकार बदलना कुदरती प्रक्रिया का हिस्सा है। लेकिन जिस तेजी से पिछले एक दशक में यह पिघल रहे हैं, वो पूरी दुनिया के लिए खतरे की घंटी के समान है। साल-दर-साल यह पिघलते जा रहे हैं, लेकिन उनके स्थान पर नए ग्लेशियर्स का निर्माण नहीं हो पा रहा है।

यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल के अनुसंधानकर्ताओं ने अपने शोध में पाया है कि इंटर-गवर्नमेंट पैनल ऑन क्लाइमेटचेंज (आइपीसीसी) की चौथी मूल्यांकन रिपोर्ट में जो आंकड़े बताए गए हैं। समुद्री जलस्तर उससे कहीं ज्यादा बढऩे की उम्मीद है। यह शोध अपने आप में अनूठा है क्योंकि बर्फ पिघलने पर संगठित विशेषज्ञों के आंकड़ों को एकसाथ लेकर उसका विश्लेषण किया गया है। इसे गणितीय आधार पर बर्फ को पानी में तब्दील होने के फैलाव के आधार पर आंका गया है। अंर्टाकटिक और ग्रीनलैंड पर बिछी बर्फ की चादर पृथ्वी पर मौजूद ग्लेशियरों का 99.5 फीसदी है। इसके पूरा पिघलने से वैश्विक समुद्र का स्तर कमोबेश 63 मीटर तक ऊंचा हो जाएगा। चूंकि बर्फ की यह चादर ही समुद्र के जलस्तर को बढ़ाने में सबसे बड़ा योगदान देती है। इसी कारण भविष्य अनिश्चितता से भरा हुआ माना जा रहा है। ऐसे ही एक शोध में प्रोफेसर जानेथन बामबर और प्रोफेसर विली एस्पिनल ने बताया कि बर्फ पिघलने की स्थिति पर खासी अनिश्चितता है। उन्होंने बताया कि निकाले गए मीडियन के अनुसार वर्ष 2100 तक बर्फ की चादर पिघलकर समुद्र स्तर बढ़ाने में 29 सेंमंी बढ़ाने का काम कर सकती है। इसमें 5 फीसदी की संभावना यह भी है कि समुद्र स्तर अधिकतम 84 सेंटीमीटर तक बढ़ सकता है। कुछ अन्य सूत्रों से मिले आकड़ों के अनुसार सन् 2100 तक समुद्रस्तर एक मीटर तक बढऩा संभव है। महासागर का इतना विकराल रूप निश्चित रूप से मानव जाति के अस्तित्व के लिए खतरा साबित हो सकता है।

उल्लेखनीय है कि आइपीसीसी की रिपोर्ट में समुद्र स्तर में छह संभावित स्थितियों में 18 सेंटीमीटर से 59 सेंटीमीटर तक की ही बढ़ोतरी हो सकती है। शोध में यह बात भी सामने आई है कि दुनिया भर के वैज्ञानिक समूह इस बात को भी किसी एक कारण से स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं कि हाल के वर्षों में सैटेलाइट से मिले चित्रों और अन्य आंकड़ों के मुताबिक बर्फ की चादर में  कमी क्यों आई है। हालांकि, यह भी स्पष्ट नहीं है कि एक लंबे समय के परिवर्तन का नतीजा है या मौसम प्रणाली में अचानक आए परिवर्तनों का असर है। यह शोध विज्ञान पत्रिका नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित किया गया है।

बर्फ में दबे बदलाव के राज
हमारी धरती का दस फीसदी हिस्सा बर्फ से ढंका हुआ है। लेकिन अब यह बर्फ तेजी से पिघल रही है। फिनलैंड के ग्लेशियर की 2,000 साल पुरानी परतें भी बढ़ते तापमान की गवाही दे रही हैं। हिमालय के ग्लेशियर भी पिछले तीस सालों में काफी प्रभावित हुए हैं। गंगोत्री जैसी जगहों पर हिमनदों का पीछे खिसकना साफ देखा जा रहा है। यूरोप का सबसे बड़ा ग्लेशियर फिनलैंड में है, इसकी बर्फ की कुछ परतें तो दो हजार साल पुरानी है। लेकिन बढ़ता तापमान इस पूरे हिस्से को तहस-नहस कर सकता है। पर्यावरण विज्ञानी इस खतरे को रोकने के लिए ग्लेशियर की गहराई में झांक रहे हैं। बर्फ की परतें बता रही हैं कि बीती दो शताब्दियों में समय के साथ धरती ने तापमान में कैसे उतार चढ़ाव देखे।

बढ़ते तापमान और ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने की वजह से पूरा पर्यावरण चक्र गड़बड़ा रहा है। नदियां लबालब हो रही है, हल्की सी बारिश होने पर भी बाढ़ की नौबत आ रही है। कई इलाके सूखे का सामना कर रहे हैं। समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। इससे बांग्लादेश, मालदीव और पापुआ न्यू गिनी जैसे कई देशों के डूबने का खतरा खड़ा हो रहा है। हालात बड़े खतरे की तरफ इशारा कर रहे हैं।

बीते एक दशक में यह चेतावनी लगातार दी जा रही है कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए हो सकता है। भारत में हर व्यक्ति प्रति दिन औसतन 125 लीटर पानी इस्तेमाल करता है। अमेरिका में यह मात्रा करीब 550 लीटर है जो कि दुनिया में सबसे ज्यादा है। भारत दुनिया का वह देश है जो सबसे ज्यादा पानी जमीन से निकालता है। देश में करीब दो करोड़ कुएं हैं।

तापमान बढऩा है हिमपात की वजह!
इराक के लोगों ने पिछले एक सौ वर्षों में पहली बार बर्फगोलों का खेल खेलकर आनंद लिया है। लेकिन जापान में एक डाकिया बर्फ पर ऐसा फिसला कि उसकी जान ही चली गई। उत्तरी कोरिया में बर्फ इतनी ज्यादा गिरने लगी है कि जलाशयों में जल की सतह पर बर्फ की इतनी मोटी परत जमने लगी है। अब इस देश में बर्फ के नीचे मछली पकडऩे के तरीकों के बारे में सोचा जा रहा है।

सवाल यह है कि इतनी ज्यादा बर्फ का गिरना अच्छे लक्षण हैं या बुरे। यह बड़ी अजीब बात है कि वायुमंडल का तापमान बढऩे की वजह से दुनिया में पहले की तुलना में आजकल अधिक हिमपात हो रहा है। यह बात हाल ही में रूसी शहर नोवोसिबिस्र्क में आयोजित एक सेमिनार में रूस के भूगोल संस्थान के निदेशक व्लादिमीर कॉत्लियकोव ने कही थी। वैज्ञानिक ने समझाया कि आजकल पृथ्वी पर तापमान बढऩे के कारण हवामंडल में नमी की मात्रा भी बढ़ गई है जिसके परिणामस्वरूप दुनिया के ठंडे जलवायु वाले क्षेत्रों में पहले से अधिक बर्फबारी हो रही है।

तापमान का असर
तापमान बढऩे से पृथ्वी के ध्रुवों पर और ऊंचे पर्वतों की चोटियों पर सदियों से जमे हुए ग्लेशियर बड़ी तेजी से पिघलने लगे हैं। लेकिन इसके साथ ही सर्दियों में पहले की तुलना में अधिक मात्रा में बर्फ गिरने लगी है। नए वर्ष, 2013 में यूरेशिया का अधिकांश भाग बर्फ से ढका हुआ था।

हमारी पृथ्वी पर इस 'सफेद चादर' की भूमिका बड़ी अहम है। यदि पृथ्वी पर बर्फ नहीं होती तो यहां अत्यधिक गर्मी पड़ती। दरअसल, यही बर्फ सूर्य की किरणों को परावर्तित करती है। इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि अंटार्कटिका की बर्फ हमारी पृथ्वी तक पहुंचने वाली सौर ऊर्जा का 90 प्रतिशत तक हिस्सा परावर्तित कर देती है।

रंजिश का शिकार तो नहीं हो गई विश्वरूपम



विश्वरूपम के एक दृश्य में कमल हासन
कमल हासन की फिल्म विश्वरूपम पर लगे प्रतिबंध के कारणों पर पूरे देश में बहस तेज हो गई है। विश्लेषकों का मानना है कि इसके पीछे संप्रदाय विशेष के आहत होने से ज्यादा बड़ा कारण व्यावसायिक और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता है। कहा जा रहा है कि विश्वरूपम पर लगा प्रतिबंध तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता, डीएमके अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि और केंद्रीय वित्तमंत्री पी. चिंदंबरम की आपसी राजनीतिक उठापटक का नतीजा है।

तमिल राजनीति के इन तीनों महारथियों के बीच संतुलन न रख पाने का नुकसान कमल हासन को उठाना पड़ रहा है। जिस राजनीतिक खेल की ओर कमल हासन ने इशारा किया था वह यही है। विश्वरूपम पर लगे प्रतिबंधों के पीछे तमिलनाडु की थिएटर लॉबी और फिल्म के सैटेलाइट राइट्स भी एक वजह बताए जा रहे हैं।

'धोती वाला' प्रधानमंत्री बना पहली मुसीबत
कमल ने दरअसल दिसंबर के अंत में एक कार्यक्रम में किसी 'धोती वाले' के प्रधानमंत्री बनने की हिमायत की थी। धोती वाला ये तमिल राजनीतिज्ञ कोई और नहीं बल्कि पी. चिदंबरम हैं। इस कार्यक्रम में उन्होंने करुणानिधि की भी तारीफ की। चिदंबरम और करुणानिधि तमिलनाडु की राजनीति में जयललिता के लिए दु:स्वप्न जैसे हैं। वे न जया के प्रतिद्वंद्वी हैं बल्कि विश्लेषकों के अनुसार वे उनके दुश्मन जैसे हैं।
जाहिर है कि एक साथ दो दुश्मनों की तारीफ कोई भी राजनीतिज्ञ पसंद नहीं करेगा। करुणानिधि और चिदंबरम से कमल हासन की नजदीकी जयललिता को नागवार गुजर रही है और ऐसे में बेबाक बयानी ने रहा-सहा खेल बिगाड़ दिया।

जया टीवी को नहीं मिले सैटेलाइट राइट्स
विश्वरूपम पर लगे प्रतिबंध के पीछे व्यावसयिक वजहें भी बताई जा रही हैं। दरअसल फिल्म की मुसीबतें उसी दिन शुरु हो गई थीं, जिस दिन कमल हासन ने इसे डीटीएच पर रिलीज करने का ऐलान किया था। इस ऐलान से पहले कमल की फिल्म के सैटेलाइट राइट्स का समझौता जया टीवी से कर चुके थे। जया टीवी का संबंध जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके से है। जया टीवी ने फिल्म का ऑडियो भी रिलीज किया था। लेकिन जैसे ही कमल हासन ने फिल्म के डीटीएच पर रिलीज की घोषणा की, जया टीवी ने सैटेलाइट टीवी के अधिकार खरीदने से मना कर दिया। नतीजतन कमल ने सैटेलाइट टीवी के राइट्स स्टार विजय को बेच दिए।
हालांकि डीएमके अध्यक्ष करुणानिधि का कहना है कि जया टीवी, विश्वरूपम के सैटेलाइट अधिकार औने-पौने दामों में खरीदना चाहता था, जो कमल के व्यावसायिक हित में नहीं था।

डीटीएच राइट्स से थिएटर लॉबी खफा
विश्वरूपम के डीटीएच पर रिलीज के मसले पर तमिलनाडु की थिएटर मालिकों की लॉबी भी कमल हासन के खिलाफ हो गई थी। उन्हें डर है कि कमल एक ऐसी परंपरा न शुरू कर दें जिससे भविष्य में उनका धंधा ही चौपट हो जाए। थिएटर लॉबी का दबाव भी इस फिल्म पर प्रतिबंध के पीछे एक वजह बताया जा रहा है।

क्रिएटिव अबॉर्शन
विश्वरूपम को लेकर विवाद और उस पर तमिलनाडु सरकार के बैन से दुखी दक्षिण के सुपर स्टार कमल हासन ने इस पूरे प्रकरण को 'क्रिएटिव अबॉर्शन' करार देते हुए कहा कि 'लग रहा है वे मेरे बच्चे को जन्म लेने से पहले ही मार देना चाहते हैं।' उन्होंने कहा है कि वे (तमिलनाडु सरकार) तब तक आराम से नहीं बैठेंगे जब तक फिल्म को खत्म न कर दें और मुझे वित्तीय रूप से बर्बाद न कर दें। मैं वित्तीय बर्बादी का सामना करने के लिए तैयार हूं, लेकिन दबाव में झुकूंगा नहीं। हासन ने कहा कि वे मुझे आर्थिक रूप से तोड़ सकते हैं लेकिन मेरी आत्मा को नहीं तोड़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि वह फिल्म के तमिल वर्जन के प्रिंट को मुख्यमंत्री जयललिता के कार्यालय के सामने जलाएंगे।

इनटोलरेंट इंडिया
कमल हासन की फिल्म विश्वरूपम पर संकट के बादल छाए हुए हैं। तमिलनाडु सरकार ने फिल्म पर प्रतिबंध लगा दिया है। फिल्म रिलीज कराने के लिए कमल हासन न्यायालय का दरवाजा खटखटा रहे हैं। बॉलीवुड में फिल्मों के साथ विवाद का एक गहरा नाता है। आजकल तो फिल्म हिट कराने में विवाद अहम भूमिका निभा रहे हैं। आपको बॉलीवुड की कुछ ऐसी फिल्मों के बारे में बताते हैं, जिनके साथ विवाद साए की तरह जुड़े हैं:

चक्रव्यूह: नक्सली विषय पर बनी इस फिल्म का एक गाना काफी विवादित रहा। सलीम-सुलेमान ने बताया कि जिस गाने पर विवाद खड़ा हुआ है उसमें समाज की असमानता को गीत के जरिए बताया गया है। यह मामला भी अदालत तक पहुंचा था, लेकिन सुप्रीमकोर्ट ने वैधानिक स्पष्टीकरण के साथ गाना दिखाने की अनुमति दे दी थी।

रॉकस्टार: फिल्म के एक गाने 'साडा हक' के दौरान फ्री तिब्बत लिखे झंडे फहराते हुए दिख रहे थे। सेंसर बोर्ड को इस पर आपत्ति हुई और उसने निर्देशक इम्तियाज अली को वह दृश्य हटाने के लिए कहा। आखिरकार फिल्म के गाने के दौरान उन झंडों को ब्लर करके दिखाया गया।

आरक्षण: साल 2011 में आरक्षण फिल्म को उत्तर प्रदेश और पंजाब में प्रतिबंधित किया गया था। फिल्म के संवाद को लेकर वर्ग विशेष में नाराजगी थी। फिल्म रिलीज होने से पहले तक अधिकतर लोगों को लगता था कि फिल्म आरक्षण में रिजर्वेशन के समर्थन और विरोध की कहानी होगी। फिल्म रिलीज होने के बाद कई लोगों की शंकाएं खत्म हुईं। लेकिन इस फिल्म के कुछ डायलॉग की वजह से यूपी और पंजाब में इस पर बैन लगा दिया गया।

माय नेम इज खान: माय नेम इज खान की रिलीज के दौरान भी ऐसी ही कुछ बातें कही गई थीं कि इस फिल्म में कुछ ऐसे नाम और दृश्य हैं जो एक समुदाय के विरोध में हैं। इतना ही नहीं शिवसेना ने मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र में इस फिल्म के विरोध में काफी हंगामा किया। कई सिनेमा घरों में तोडफ़ोड़ की।

बिल्लू: फिल्म बिल्लू पर भी जातिसूचक शब्द का उपयोग करने की वजह से काफी हंगामा हुआ। अंत में सैलून और पार्लर एसोसिएशन के विरोध के बाद फिल्म के नाम से बार्बर शब्द हटाया गया।

वाटर: 2005 में आई फिल्म वाटर, विधवाओं की जिंदगी पर बनी थी। कुछ साल पहले वाराणसी में इसकी शूटिंग की कोशिश की गई थी। लेकिन वहां के पुजारियों ने इसका इतना विरोध किया कि प्रशासन भी यूनिट को सुरक्षा देने में असफल हो गई थी। बाद में इसकी स्टारकास्ट बदलकर श्रीलंका में इसकी शूटिंग की गई थी।

परजानिया: 2007 में राहुल ढोलकिया ने गुजरात दंगों पर परजानिया नाम की फिल्म बनाई थी। कई कट्टर हिंदू संगठनों ने इसका जमकर विरोध किया था। इसके बाद गुजरात में इस फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगी।

कितना मोटा हाथी


पहले प्रियंका वाड्रा के पति रॉबर्ट वाड्रा, फिर नितिन गडकरी और अब मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार। इन सभी का संबंध कंपनियों और उनमें किए गए निवेश से जुड़ा हुआ है। इधर मायावती तीसरी बार उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं और उधर, उनके छोटे भाई आनंद कुमार का रियल एस्टेट बिजनेस अभूतपूर्व तरक्की करने लगा। 2007 से 2012 तक मायावती राज्य की मुख्यमंत्री रहीं और इसी दौरान आनंद की कंपनी लगातार मुनाफे पर मुनाफ कमाती रही। गुरुवार को एक अंग्रेजी अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक आनंद कुमार की कंपनी का नोएडा में काम कर रही कई कंपनियों के साथ संबंध है। मायावती के खास सहयोगी और राज्यसभा सदस्य सतीश चंद्र मिश्र के बेटे की कंपनी भी इसमें शामिल है। रिपोर्ट के मुताबिक नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बिजनेस कर रही जेपी, यूनीटेक और डीएलएफ के साथ आनंद की कंपनी के व्यावसायिक हित जुड़े हुए हैं। खास बात यह है उत्तरप्रदेश में चल रहे अधिकांश रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में यह तीनों कंपनियां शामिल हैं।

750 करोड़ की कंपनी
2007 में मायावती के सीएम बनने के बाद आनंद कुमार ने 49 नई कंपनियां बनाईं जिनके कारोबार के बारे में बहुत कम लोगों को ही पता है। लेकिन पांच साल बाद मार्च 2012 में उनके पास 750 करोड़ रुपए थे। अखबार के मुताबिक कारनॉस्टी नाम की कंपनी के जरिए आनंद कुमार की कंपनी और बाकी रियल एस्टेट कंपनियां आपस में जुड़ी हुई हैं। आनंद कुमार के साथ कारोबारी सहयोगी या उनकी कंपनियों के निदेशक 2006 में बनी कारनॉस्टी मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी से जुड़े हुए हैं। कारनॉस्टी कंपनी रियल एस्टेट, स्पोट्र्स मैनेजमेंट, सिक्योरिटी, हॉस्पिटलिटी के कारोबार में हैं और उसकी कुल 14 सब्सिडियरी कंपनियां हैं। मार्च 2012 में कंपनी की वैल्यू 620 करोड़ रुपए की थी।

कारनॉस्टी का किस कंपनी में कितना निवेश?
आनंद के सहयोगियों के जरिए बड़ी रियल एस्टेट कंपनियों ने कारनॉस्टी में 376 करोड़ का भारी-भरकम निवेश 2010 से 2012 के बीच किया है। कारनॉस्टी मैनेजमेंट में 2010 से 2012 के बीच डीएलएफ ने 6 करोड़ और यूनिटेक ने 335 करोड़ का निवेश किया था।

लेन-देन पर सवाल!
आनंद कुमार की सात और कंपनियां सवालों के घेरे में आ गई है। अंग्रेजी के ही एक अन्य अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक इन कंपनियों को 757 करोड़ रुपए नकद मिले हैं। इसके बाद ईडी की नजर इस बात पर है कि इन कंपनियों के पास इतना पैसा कहां से आया। आनंद कुमार की सबसे पुरानी 1987 में बनी कंपनी होटल लाइब्रेरी क्लब प्राइवेट लिमिटेड को ही पिछले पांच वर्षों के दौरान 346 करोड़ रुपए मिले हैं। ये पैसा कंपनी को निवेश की बिक्री से मिला है लेकिन न तो ये साफ है कि ये निवेश क्या था और किसे बेचा गया। इन सातों कंपनियों के डायरेक्टर आनंद कुमार हैं।

अखबार के मुताबिक रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के पास आनंद कुमार की कंपनियों ने जो दस्तावेज दिए हैं उनकी जांच से पता चलता है कि 7 में से 6 कंपनियां 2007 के बाद स्थापित की गई। कंपनियों के दस्तावेज से पता चलता है कि सिर्फ एक कंपनी का कारोबार बड़ा है और बाकी छह कंपनियों का कारोबार बहुत ही कम है। अखबार के मुताबिक मायावती के नजदीकी नेता और राज्यसभा सदस्य सतीश चंद्र मिश्रा के बेटे कपिल मिश्रा भी आनंद कुमार की एक कंपनी के निदेशक हैं।

क्लर्क से कंपनी के मालिक
आनंद कुमार की इन कंपनियों को ज्यादातर पैसा या तो बहुत ज्यादा प्रीमियम पर शेयर बेचने से मिला या इन कंपनियों ने थर्ड पार्टी से मिले एडवांस को जब्त किया या फिर ऐसे निवेश को बेचा जिसके बारे में कोई जानकारी ही नहीं है। गौरतलब है कि सात कंपनियों के मालिक आनंद कुमार ने अपना करियर नोएडा अथॉरिटी में बतौर क्लर्क शुरू किया था। मायावती के छोटे भाई 37 साल के आनंद कुमार के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। वो बीएसपी कार्यकर्ताओं से बहुत कम ही मेलजोल रखते हैं। मायावती ने साल 2011 में एक चुनावी रैली में कहा था कि उनके भाई हमेशा उनके साथ खड़े रहे हैं।

ताज कॉरिडोर मामला
मायावती की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उनको बड़ा झटका देते हुए ताज कॉरिडोर मामले में केस चलाने की अनुमति नहीं देने के राज्यपाल के फैसले को चुनौती देने वाली अर्जी पर नोटिस जारी किया है। अदालत ने मायावती के साथ उनकी सरकार में पर्यावरण मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दकी, सीबीआई और केंद्र सरकार को नोटिस दिया है। कोर्ट ने इनसे 4 हफ्ते में जवाब भी मांगा है। इसके ठीक पहले उनके छोटे भाई के नियंत्रण वाली कुछ कंपनियों से हुए अरबों रुपए के लेन-देन को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।

बे-हिसाब लेनदेन
अंग्रेजी अखबार के मुताबिक आनंद कुमार की कंपनियों में करोड़ों रुपए का लेन-देन हुआ है और कंपनी के पास इसका कोई हिसाब नहीं है। होटल लाइब्रेरी क्लब प्राइवेट लिमिटेड में हुए निवेश के मामले में रियल एस्टेट की अन्य बड़ी कंपनियों जेपी, यूनिटेक और डीएलएफ का नाम भी सामने आ रहा है। हालांकि डीएलएफ ने इसे सामान्य बिजनेस करार दिया है। डीएलएफ ने कहा है यह बिजनेस पूरी तरह से पारदर्शी है और इसके लिए कोई राजनीतिक फायदा नहीं लिया गया। आनंद पर आरोप है कि उन्होंने मायावती के मुख्यमंत्री बनने के बाद रसूख का इस्तेमाल किया।

पत्नी के नाम बेनामी कंपनियां
भाजपा नेता किरीट सौमेया ने दावा किया था  कि मायावती के भाई आनंद कुमार और उनकी पत्नी के नाम 26 बेनामी कंपनियां बनाई गई हैं और इसमें हजारों करोड़ रुपए का लेन-देन हुआ है। बकौल किरीट सोमाया उनके पास मायावती की सारी काली कमाई के सबूत मौजूद हैं और आने वाले दिनों में वो इस बारे में और भी बड़े खुलासे करेंगे।

5 साल में 10 हजार करोड़ रुपए किरीट सोमैया ने कहा कि मायावती के भाई ने पांच साल के भीतर 10,000 करोड़ रुपए की संपत्ति कैसे बनाई, इसकी जांच सीबीआई से कराई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि मायावती का कार्यकाल शुरू होने से पहले जिस आनंद कुमार के पास एक जनवरी 2007 तक केवल पांच कंपनियां थीं, पांच साल बाद एक जनवरी 2012 को उनके पास 300 से अधिक कंपनियां हो गईं।

Tuesday, January 29, 2013

यादें 2012


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