संयुक्त राष्ट्र महासभा में मलाला युसुफजई द्वारा दिए गए भाषण का अनुवाद
मैं सबसे पहले उस सर्वशक्तिमान, दयालु और परोपकारी खुदा का नाम लेती हूं।
सम्माननीय संयुक्त राष्ट्र महासचिव श्रीमान बान की मून,
महासभा के आदरणीय अध्यक्ष वुक जेरेमिक,
संयुक्त राष्ट्र वैश्विक शिक्षा के एनवॉय सम्मानीय गॉर्डन ब्राउन,
सभी वरिष्ठ सम्मानीय एवं मेरे प्यारे भाइयो और बहनो
आज, काफी लंबे अंतराल के बाद मुझे कुछ बोलने का मौका मिला है। इतने सम्माननीय लोगों के बीच आना मेरे लिए गौरव की बात है और यह क्षण मेरे जीवन के यादगार पलों में हमेशा रहेगा।
मैं नहीं समझ पा रही हूं कि अपनी बात को कहां से शुरू करूं। मैं यह भी नहीं जानती हूं कि लोग मुझसे क्या सुनने की उम्मीद कर रहे हैं। लेकिन मैं सबसे पहले उस सर्वशक्तिमान ईश्वर का धन्यवाद देना चाहती हूं, जिसके लिए हम सभी एक समान हैं और फिर उन सभी का आत्मीय आभार, जिन्होंने मेरे जीवन के लिए प्रार्थनाएं की हैं। मेरे प्रति लोगों का जो स्नेह है मैं उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकती हूं। मुझे दुनियाभर से शुभकामना संदेशों से भरे काड्र्स और तोहफे मिले हैं। इसके लिए मैं एक बार फिर सभी का शुक्रिया करती हूं। मैं उन बच्चों की भी आभारी हूं, जिनके अबोध शब्दों ने मुझे हमेशा प्रेरित किया है। मैं उन सभी वरिष्ठों को भी धन्यवाद देना चाहती हूं, जिनकी दुआओं ने मुझे शक्ति दी।
मैं उन सभी नर्स, डॉक्टर्स ,पाकिस्तान और ब्रिटेन के अस्पताल तथा यूएई की सरकार का भी शुक्रिया करती हूं, जिनकी मदद और इलाज की बदौलत मैं ठीक हो सकी हूं। मैं संयुक्त राष्ट्र संघ के ग्लोबल एजुकेशन फस्र्ट इनिशिएटिव कार्यक्रम को चलाने के फैसले पर महासचिव बान की मून और एनवॉय गॉर्डन ब्राउन का पूरी तरह समर्थन करती हूं। साथ ही मैं उनके नेतृत्व के लिए उन्हें धन्यवाद देती हूं। मुझे उम्मीद है कि वे हमेशा हम सभी को इसी तरह से काम करने के लिए प्रेरित करते रहेंगे।
प्यारे भाइयो और बहनो, हमेशा एक बात याद रखिएगा कि मलाला-डे मेरा दिन नहीं है। यह उन सभी महिलाओं और बच्चों का दिन है, जिन्होंने अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाई है। आज दुनियाभर में न जाने कितने मानवाधिकार संगठन हैं, जो शांति, समानता और शिक्षा के अधिकार के लिए काम कर रहे हैं। दुनिया में हजारों लोग हर साल आतंकी घटनाओं में मारे जाते हैं और लाखों घायल होते हैं। मैं भी उन्हीं में से एक हूं।
इसलिए मैं यहां खड़ी हूं...उन कई लड़कियों में से एक।
मैं अपने लिए नहीं, सभी लड़के और लड़कियों के बोल रही हूं।
मैंने अपनी आवाज शोर मचाने के लिए नहीं उठाई है, बल्कि मैं उन लोगों की आवाज बनना चाहती हूं, जिनकी बातें अनसुनी रह जाती हैं।
जो अपने अधिकारों के लिए लड़ते हैं :
उन्हें शांति से जीने का अधिकार मिले
समाज में समानता और सम्मान मिले
बराबरी का हक और दर्जा मिले
और शिक्षा का अधिकार मिले।
प्यारे दोस्तो, नौ अक्टूबर 2012 को तालिबान ने मेरे माथे के बाईं ओर गोली मारी थी। उसने मेरी दोस्त पर भी गोली चलाई थी। उसे लगा था कि उसकी गोलियों से हमारी आवाजें खामोश हो जाएंगी। लेकिन वो नाकाम रहे। इसके बाद उस खामोशी के बीच से हजारों आवाजें सामने आईं। आतंकवादी सोचते थे कि उनकी इस हरकत से मैं अपने लक्ष्य से भटक जाऊंगी, लेकिन मेरे जीवन से वे केवल कमजोरी, डर और निराशा को ही मार सके। उनकी इस कायराना हरकत के बाद मेरे अंदर दृढ़ता और ऊर्जा का जन्म हुआ। मैं आज भी वही मलाला हूं, आज भी मेरा वही लक्ष्य है, जो हमले के पहले था और आज भी मैं उतनी ही आशावान हूं। अब भी मैं अपने सपने को पूरा करने के लिए उतनी ही हिम्मत के साथ काम कर रही हूं।
प्यारे भाइयो और बहनो, मैं किसी के खिलाफ नहीं हूं। न ही मैं, यहां तालिबान या किसी अन्य आतंकी गुट से अपनी निजी दुश्मनी या बदले का जिक्र करने आई हूं। मैं यहां हर बच्चे के लिए शिक्षा के अधिकार पर बात करने आई हूं। मैं चाहती हूं कि शिक्षा का अधिकार दुनिया में सभी के लिए हो। तालिबान और चरमपंथियों के बच्चों को तो खासतौर पर शिक्षा दी जानी चाहिए।
मुझे उस तालिबान से कोई घृणा नहीं है, जिसने मुझे गोली मारी थी। अगर वह मेरे सामने हो और मेरे हाथों में बंदूक हो, तब भी मैं उसे गोली नहीं मारूंगी। मैंने पैगम्बर मोहम्मद सा. से दयाभाव सीखा है और यही ज्ञान मुझे ईसा मसीह और भगवान बुद्ध को पढ़कर भी मिला है।
मार्टिन लूथर किंग, नेलसन मंडेला और मुहम्मद अली जिन्ना से भी मुझे इसी परंपरा की सीख मिली है। महात्मा गांधी, बचा खान और मदर टेरेसा के भी यही सिद्धांत थे। मैंने अपने माता-पिता से भी क्षमा करना ही सीखा है। मेरी आत्मा भी मुझसे यही कहती है कि सभी के लिए दिल में स्नेह रखो और अमन पसंद रहो।
प्यारी बहनो और भाइयो, जब हम अंधेरे में होते हैं तभी हमें प्रकाश का महत्व समझ में आता है। जब चारों ओर खामोशी और सन्नाटा हो, तभी आवाज की अहमियत समझ आती है। इसी तरह जब हम पाकिस्तान के उत्तरी क्षेत्र स्वात में थे और हर रोज बंदूक और धमाके सुनते थे, तभी हमें यह अहसास हुआ कि किताब और कलम कितनी जरूरी हैं।
एक कहावत है कि 'कलम के आगे तलवार भी नहीं टिक सकती है', यह वाकई सच है। आतंकी मेरी कलम और किताबों से खौफजदा थे। तालीम की ताकत से वो खौफ में थे। यहां तक कि वे एक औरत से डर गए थे। एक औरत की आवाज उन्हें डरा रही थी। यही वजह है कि हाल ही में क्वेटा में आतंकियों ने 14 निर्दोष मेडिकल स्टूडेंट्स को मौत के घाट उतार दिया। इसी कारण उन्होंने मेरी कई महिला टीचर्स और खैबर पख्तूनवा व फाटा में काम करने वाले पोलियो कार्यकर्ताओं की भी हत्या की है। वे रोज किसी न किसी स्कूल को धमाके से उड़ा रहे हैं। इसकी वजह समाज में आ रहे बदलाव और समानता है।
सम्मानीय महासचिव महोदय, शिक्षा के लिए अमन का होना बहुत जरूरी है। दुनिया के कई हिस्सों, खासकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान में आतंकवाद के चलते बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं। हम इस तरह की लड़ाई से ऊब चुके हैं। दुनिया के कई हिस्सों में महिलाएं और बच्चे परेशान और साधनहीन हैं। भारत में बच्चों को बालश्रम में लगाया जाता है। नाइजीरिया में कई स्कूल तबाह हो चुके हैं। अफगानिस्तान में दशकों से लोग चरमपंथ का शिकार हैं। छोटी बच्चियों को बालश्रम और घरेलू कामकाज में जोत दिया जाता है और कम उम्र में भी उनकी शादी भी कर दी जाती है। ऐसे देशों में महिला और पुरुष दोनों को ही गरीबी, अज्ञानता, अन्याय, नस्लीय भेदभाव, मूलभूत अधिकारों से वंचित रखा जाता है।
प्यारे साथियो, मेरा ध्यान महिलाओं के अधिकार और लड़कियों की शिक्षा पर है, क्योंकि वे ही सर्वाधिक पीडि़त होती हैं। एक समय था जब महिला सामाजिक कार्यकर्ता अपने अधिकारों के लिए पुरुषों का साथ चाहती थीं, लेकिन अब हम यही काम अपने बूते पर कर रही हैं। मेरा कहने का यह कतई मतलब नहीं है कि पुरुषों को महिलाओं के अधिकारों के लिए बात नहीं करना चाहिए। बल्कि मेरा आशय यह है कि महिलाओं को अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए आत्मनिर्भर होने की जरूरत है।
प्यारे भाइयो और बहनो, अब वक्त आ गया है कि हम अपनी आवाज बुलंद करें। आज हम, दुनिया के सभी नेतृत्वों का आह्वान करते हैं कि वे अपनी नीतियों को शांति और समृद्धि के अनुकूल बनाएं। हमारी दुनिया के सभी नेताओं से अपील है कि वे महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को मूल अधिकारों में शामिल करें। जो कदम महिलाओं की गरिमा के विरुद्ध हो उसे अस्वीकार किया जाना चाहिए। दुनिया की सभी सरकारों से हमारी अपील है कि वे हर बच्चे के लिए शिक्षा को अनिवार्य करें। उनसे हमारी यह भी अपील है कि आतंकवाद और हिंसा के खिलाफ लड़ें और बच्चों के साथ क्रूरता को बंद किया जाए। सभी विकसित देशों से उम्मीद है कि वे लड़कियों के लिए शैक्षणिक अवसरों का विस्तार करेंगे।
सभी समुदायों से हम कहना चाहते हैं कि वे जाति, धर्म, क्षेत्र और लिंगभेद के आधार पर अलगाव और असमानता को समाप्त करने के लिए कदम उठाएं। अगर हम में से आधे लोग पीछे रह जाएंगे तो हम कभी आगे नहीं बढ़ सकेंगे। मैं दुनिया में अपनी सभी बहनों से कहना चाहूंगी कि वे बहादुर बनें और क्षमताओं को पहचानें।
प्यारे भाइयो और बहनो, हमें दुनिया के हर बच्चे के उज्ज्वल भविष्य के लिए शिक्षा और स्कूल की जरूरत है। जब तक कि सभी के लिए शिक्षा की व्यवस्था नहीं हो जाती, तब तक हमारा यह सफर पूरा नहीं हो सकता है। हमें कोई नहीं रोक सकता है। हम अपने अधिकार के लिए आवाज उठाते रहेंगे और इसके बूते बदलाव लाकर भी रहेंगे। इसके लिए हमें अपने शब्दों की ताकत पर विश्वास रखना होगा। इसी से दुनिया बदलेगी। शिक्षा के लिए हम सभी एक हैं और एक साथ हैं। अगर हम लक्ष्य तक पहुंचना चाहते हैं तो हमें अपने आप को ज्ञान के हथियार और एकता की ढाल से लैस करना होगा।
प्यारे भाइयो और बहनो, हमें यह भी याद रखना होगा कि दुनिया में लाखों लोग गरीबी, अन्याय और अनभिज्ञता के शिकार हैं। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि लाखों बच्चे आज भी स्कूल से बाहर हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे भाई और बहन आज भी उज्ज्वल और शांतिपूर्ण भविष्य का इंतजार कर रहे हैं।
आइए, हम सभी अशिक्षा, गरीबी और आतंकवाद के खिलाफ कलम और किताब उठाएं, क्योंकि यही वो हथियार हैं, जिनके जरिए हम इन तीनों से लड़ सकते हैं।
एक बच्चा, एक शिक्षक, एक कलम और किताब दुनिया को बदल सकते हैं।
शिक्षा ही एकमात्र हल है। एजुकेशन फर्स्ट
मैं सबसे पहले उस सर्वशक्तिमान, दयालु और परोपकारी खुदा का नाम लेती हूं।
सम्माननीय संयुक्त राष्ट्र महासचिव श्रीमान बान की मून,
महासभा के आदरणीय अध्यक्ष वुक जेरेमिक,
संयुक्त राष्ट्र वैश्विक शिक्षा के एनवॉय सम्मानीय गॉर्डन ब्राउन,
सभी वरिष्ठ सम्मानीय एवं मेरे प्यारे भाइयो और बहनो
आज, काफी लंबे अंतराल के बाद मुझे कुछ बोलने का मौका मिला है। इतने सम्माननीय लोगों के बीच आना मेरे लिए गौरव की बात है और यह क्षण मेरे जीवन के यादगार पलों में हमेशा रहेगा।
मैं नहीं समझ पा रही हूं कि अपनी बात को कहां से शुरू करूं। मैं यह भी नहीं जानती हूं कि लोग मुझसे क्या सुनने की उम्मीद कर रहे हैं। लेकिन मैं सबसे पहले उस सर्वशक्तिमान ईश्वर का धन्यवाद देना चाहती हूं, जिसके लिए हम सभी एक समान हैं और फिर उन सभी का आत्मीय आभार, जिन्होंने मेरे जीवन के लिए प्रार्थनाएं की हैं। मेरे प्रति लोगों का जो स्नेह है मैं उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकती हूं। मुझे दुनियाभर से शुभकामना संदेशों से भरे काड्र्स और तोहफे मिले हैं। इसके लिए मैं एक बार फिर सभी का शुक्रिया करती हूं। मैं उन बच्चों की भी आभारी हूं, जिनके अबोध शब्दों ने मुझे हमेशा प्रेरित किया है। मैं उन सभी वरिष्ठों को भी धन्यवाद देना चाहती हूं, जिनकी दुआओं ने मुझे शक्ति दी।
मैं उन सभी नर्स, डॉक्टर्स ,पाकिस्तान और ब्रिटेन के अस्पताल तथा यूएई की सरकार का भी शुक्रिया करती हूं, जिनकी मदद और इलाज की बदौलत मैं ठीक हो सकी हूं। मैं संयुक्त राष्ट्र संघ के ग्लोबल एजुकेशन फस्र्ट इनिशिएटिव कार्यक्रम को चलाने के फैसले पर महासचिव बान की मून और एनवॉय गॉर्डन ब्राउन का पूरी तरह समर्थन करती हूं। साथ ही मैं उनके नेतृत्व के लिए उन्हें धन्यवाद देती हूं। मुझे उम्मीद है कि वे हमेशा हम सभी को इसी तरह से काम करने के लिए प्रेरित करते रहेंगे।
प्यारे भाइयो और बहनो, हमेशा एक बात याद रखिएगा कि मलाला-डे मेरा दिन नहीं है। यह उन सभी महिलाओं और बच्चों का दिन है, जिन्होंने अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाई है। आज दुनियाभर में न जाने कितने मानवाधिकार संगठन हैं, जो शांति, समानता और शिक्षा के अधिकार के लिए काम कर रहे हैं। दुनिया में हजारों लोग हर साल आतंकी घटनाओं में मारे जाते हैं और लाखों घायल होते हैं। मैं भी उन्हीं में से एक हूं।
इसलिए मैं यहां खड़ी हूं...उन कई लड़कियों में से एक।
मैं अपने लिए नहीं, सभी लड़के और लड़कियों के बोल रही हूं।
मैंने अपनी आवाज शोर मचाने के लिए नहीं उठाई है, बल्कि मैं उन लोगों की आवाज बनना चाहती हूं, जिनकी बातें अनसुनी रह जाती हैं।
जो अपने अधिकारों के लिए लड़ते हैं :
उन्हें शांति से जीने का अधिकार मिले
समाज में समानता और सम्मान मिले
बराबरी का हक और दर्जा मिले
और शिक्षा का अधिकार मिले।
प्यारे दोस्तो, नौ अक्टूबर 2012 को तालिबान ने मेरे माथे के बाईं ओर गोली मारी थी। उसने मेरी दोस्त पर भी गोली चलाई थी। उसे लगा था कि उसकी गोलियों से हमारी आवाजें खामोश हो जाएंगी। लेकिन वो नाकाम रहे। इसके बाद उस खामोशी के बीच से हजारों आवाजें सामने आईं। आतंकवादी सोचते थे कि उनकी इस हरकत से मैं अपने लक्ष्य से भटक जाऊंगी, लेकिन मेरे जीवन से वे केवल कमजोरी, डर और निराशा को ही मार सके। उनकी इस कायराना हरकत के बाद मेरे अंदर दृढ़ता और ऊर्जा का जन्म हुआ। मैं आज भी वही मलाला हूं, आज भी मेरा वही लक्ष्य है, जो हमले के पहले था और आज भी मैं उतनी ही आशावान हूं। अब भी मैं अपने सपने को पूरा करने के लिए उतनी ही हिम्मत के साथ काम कर रही हूं।
प्यारे भाइयो और बहनो, मैं किसी के खिलाफ नहीं हूं। न ही मैं, यहां तालिबान या किसी अन्य आतंकी गुट से अपनी निजी दुश्मनी या बदले का जिक्र करने आई हूं। मैं यहां हर बच्चे के लिए शिक्षा के अधिकार पर बात करने आई हूं। मैं चाहती हूं कि शिक्षा का अधिकार दुनिया में सभी के लिए हो। तालिबान और चरमपंथियों के बच्चों को तो खासतौर पर शिक्षा दी जानी चाहिए।
मुझे उस तालिबान से कोई घृणा नहीं है, जिसने मुझे गोली मारी थी। अगर वह मेरे सामने हो और मेरे हाथों में बंदूक हो, तब भी मैं उसे गोली नहीं मारूंगी। मैंने पैगम्बर मोहम्मद सा. से दयाभाव सीखा है और यही ज्ञान मुझे ईसा मसीह और भगवान बुद्ध को पढ़कर भी मिला है।
मार्टिन लूथर किंग, नेलसन मंडेला और मुहम्मद अली जिन्ना से भी मुझे इसी परंपरा की सीख मिली है। महात्मा गांधी, बचा खान और मदर टेरेसा के भी यही सिद्धांत थे। मैंने अपने माता-पिता से भी क्षमा करना ही सीखा है। मेरी आत्मा भी मुझसे यही कहती है कि सभी के लिए दिल में स्नेह रखो और अमन पसंद रहो।
प्यारी बहनो और भाइयो, जब हम अंधेरे में होते हैं तभी हमें प्रकाश का महत्व समझ में आता है। जब चारों ओर खामोशी और सन्नाटा हो, तभी आवाज की अहमियत समझ आती है। इसी तरह जब हम पाकिस्तान के उत्तरी क्षेत्र स्वात में थे और हर रोज बंदूक और धमाके सुनते थे, तभी हमें यह अहसास हुआ कि किताब और कलम कितनी जरूरी हैं।
एक कहावत है कि 'कलम के आगे तलवार भी नहीं टिक सकती है', यह वाकई सच है। आतंकी मेरी कलम और किताबों से खौफजदा थे। तालीम की ताकत से वो खौफ में थे। यहां तक कि वे एक औरत से डर गए थे। एक औरत की आवाज उन्हें डरा रही थी। यही वजह है कि हाल ही में क्वेटा में आतंकियों ने 14 निर्दोष मेडिकल स्टूडेंट्स को मौत के घाट उतार दिया। इसी कारण उन्होंने मेरी कई महिला टीचर्स और खैबर पख्तूनवा व फाटा में काम करने वाले पोलियो कार्यकर्ताओं की भी हत्या की है। वे रोज किसी न किसी स्कूल को धमाके से उड़ा रहे हैं। इसकी वजह समाज में आ रहे बदलाव और समानता है।
सम्मानीय महासचिव महोदय, शिक्षा के लिए अमन का होना बहुत जरूरी है। दुनिया के कई हिस्सों, खासकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान में आतंकवाद के चलते बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं। हम इस तरह की लड़ाई से ऊब चुके हैं। दुनिया के कई हिस्सों में महिलाएं और बच्चे परेशान और साधनहीन हैं। भारत में बच्चों को बालश्रम में लगाया जाता है। नाइजीरिया में कई स्कूल तबाह हो चुके हैं। अफगानिस्तान में दशकों से लोग चरमपंथ का शिकार हैं। छोटी बच्चियों को बालश्रम और घरेलू कामकाज में जोत दिया जाता है और कम उम्र में भी उनकी शादी भी कर दी जाती है। ऐसे देशों में महिला और पुरुष दोनों को ही गरीबी, अज्ञानता, अन्याय, नस्लीय भेदभाव, मूलभूत अधिकारों से वंचित रखा जाता है।
प्यारे साथियो, मेरा ध्यान महिलाओं के अधिकार और लड़कियों की शिक्षा पर है, क्योंकि वे ही सर्वाधिक पीडि़त होती हैं। एक समय था जब महिला सामाजिक कार्यकर्ता अपने अधिकारों के लिए पुरुषों का साथ चाहती थीं, लेकिन अब हम यही काम अपने बूते पर कर रही हैं। मेरा कहने का यह कतई मतलब नहीं है कि पुरुषों को महिलाओं के अधिकारों के लिए बात नहीं करना चाहिए। बल्कि मेरा आशय यह है कि महिलाओं को अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए आत्मनिर्भर होने की जरूरत है।
प्यारे भाइयो और बहनो, अब वक्त आ गया है कि हम अपनी आवाज बुलंद करें। आज हम, दुनिया के सभी नेतृत्वों का आह्वान करते हैं कि वे अपनी नीतियों को शांति और समृद्धि के अनुकूल बनाएं। हमारी दुनिया के सभी नेताओं से अपील है कि वे महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को मूल अधिकारों में शामिल करें। जो कदम महिलाओं की गरिमा के विरुद्ध हो उसे अस्वीकार किया जाना चाहिए। दुनिया की सभी सरकारों से हमारी अपील है कि वे हर बच्चे के लिए शिक्षा को अनिवार्य करें। उनसे हमारी यह भी अपील है कि आतंकवाद और हिंसा के खिलाफ लड़ें और बच्चों के साथ क्रूरता को बंद किया जाए। सभी विकसित देशों से उम्मीद है कि वे लड़कियों के लिए शैक्षणिक अवसरों का विस्तार करेंगे।
सभी समुदायों से हम कहना चाहते हैं कि वे जाति, धर्म, क्षेत्र और लिंगभेद के आधार पर अलगाव और असमानता को समाप्त करने के लिए कदम उठाएं। अगर हम में से आधे लोग पीछे रह जाएंगे तो हम कभी आगे नहीं बढ़ सकेंगे। मैं दुनिया में अपनी सभी बहनों से कहना चाहूंगी कि वे बहादुर बनें और क्षमताओं को पहचानें।
प्यारे भाइयो और बहनो, हमें दुनिया के हर बच्चे के उज्ज्वल भविष्य के लिए शिक्षा और स्कूल की जरूरत है। जब तक कि सभी के लिए शिक्षा की व्यवस्था नहीं हो जाती, तब तक हमारा यह सफर पूरा नहीं हो सकता है। हमें कोई नहीं रोक सकता है। हम अपने अधिकार के लिए आवाज उठाते रहेंगे और इसके बूते बदलाव लाकर भी रहेंगे। इसके लिए हमें अपने शब्दों की ताकत पर विश्वास रखना होगा। इसी से दुनिया बदलेगी। शिक्षा के लिए हम सभी एक हैं और एक साथ हैं। अगर हम लक्ष्य तक पहुंचना चाहते हैं तो हमें अपने आप को ज्ञान के हथियार और एकता की ढाल से लैस करना होगा।
प्यारे भाइयो और बहनो, हमें यह भी याद रखना होगा कि दुनिया में लाखों लोग गरीबी, अन्याय और अनभिज्ञता के शिकार हैं। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि लाखों बच्चे आज भी स्कूल से बाहर हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे भाई और बहन आज भी उज्ज्वल और शांतिपूर्ण भविष्य का इंतजार कर रहे हैं।
आइए, हम सभी अशिक्षा, गरीबी और आतंकवाद के खिलाफ कलम और किताब उठाएं, क्योंकि यही वो हथियार हैं, जिनके जरिए हम इन तीनों से लड़ सकते हैं।
एक बच्चा, एक शिक्षक, एक कलम और किताब दुनिया को बदल सकते हैं।
शिक्षा ही एकमात्र हल है। एजुकेशन फर्स्ट
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