हां, शायद भारतीय महान होते हैं। क्योंकि आजादी के आंदोलन के बाद कभी भी उन्होंने कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं किया। या यूं कहें कि हमारे तथाकथित "सिस्टम" ने उसे ऐसा करने ही नहीं दिया। वो सिस्टम जिसके बारे में "शायद" शासन और प्रशासन भी नहीं जानते होंगे। तभी सिस्टम की वजह से एंडरसन जैसा व्यक्ति भाग जाता है। इसी सिस्टम की वजह से गैस त्रासदी जैसी घटना को सामान्य दुर्घटना की तरह ट्रीट किया जाता है। इतना ही नहीं, इसी सिस्टम के चलते छत्तीसगढ़ के एक पूर्व मुख्यमंत्री ने पूरी की पूरी नदी एक निजी कंपनी को बेचने की योजना बना डाली थी। इतना ही नहीं उन्होंने एक ऐसा बिल भी पास करवा दिया था, जिसके बाद पूरे राज्य में कुकुरमुत्ते की तरह विश्वविद्यालय खुलने लगे। जिसे भी डिग्री चाहिए, वो अपना ही विश्वविद्यालय बनाकर डिग्री ले ले।
इसी सिस्टम की देन हैं ऐसे अधिकारी और अफसर, जो कहने के लिए तो जनसेवा के लिए हैं, लेकिन उनकी नजर दूसरों की बहू-बेटियों पर रहती हैं। और यदि किसी ने उनके खिलाफ मुंह खोलने की हिमाकत कर ली तो समझो उसकी तो शामत ही आ जाएगी। दुनिया भर की धाराओं का उपयोग उसी के खिलाफ कर लिया जाएगा। मुझे एक किस्सा याद आता है। घटना भोपाल के एक आईजी की पत्नी से जुड़ा है।
उसके पहले मैं आप सभी से एक बात पूछना चाहूंगा, कि क्या आपमें से किसी का मोबाइल कभी चोरी हुआ है। क्या आपमें से किसी ने मोबाइल चोरी की घटना किसी पुलिस थाने में लिखवाने की कोशिश की है। जितना मुझे पता है, देशभक्ति और जनसेवा का अपमान करने वाले पुलिस अधिकारी कभी भी मोबाइल चोरी की शिकायत दर्ज नहीं करते हैं। वो हमेशा मोबाइल गुम होने की शिकायत लिखते हैं। क्योंकि चोरी की शिकायत, मतलब एफआईआर, और एफआईआर का मतलब कि थाने में एक और केस बढ़ जाएगा और उसे फॉलोअप करने का कष्ट करना पड़ेगा।
लेकिन आईजी की पत्नी वाली घटना के बाद से मुझे यह समझ आ गया कि सारी सुविधाएं और शासन प्रशासन सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए है, जो उसका हिस्सा हैं। आईजी साहब की बीवी का मोबाइल सब्जी मंडी से चोरी हो गया तो पुलिस ने पूरे शहर में नाकेबंदी कर दी। सारी तकनीक का उपयोग कर मोबाइल ट्रेस किया गया और आखिरकार भोपाल से कई किलोमीटर दूर एक दूसरे शहर से मोबाइल बरामद भी कर लिया गया।
तो यह तो है पुलिसिया मुस्तैदी।
एसपीएस राठौर वाले मामले से तो आप सभी अच्छी तरह वाकिफ ही होंगे। कैसे पद और ताकत का सारा इस्तेमाल उसने अपने बचाव के लिए किया। और तो और अभी भी उसे मिली सजा, ऊंठ के मुंह मे जीरे के समान ही है।
ऐसा ही हाल नेताओं का भी है। गैस त्रासदी वाले मुद्दे को 26 साल तक खींच डाला और नतीजा, खोदा पहाड़ निकली चुहिया वाला रहा।
अब और लिखने का मन नहीं कर रहा है। क्या-क्या लिखूं और किस पर अफसोस करें। दोषी तो हम भी हैं। यदि हम यानी जनता जागरुक हो तो इतना सबकुछ कभी नहीं हो सकता है। पर खैर.....सवाल अब भी वहीं का वहीं है कि क्या वाकई हम उस महान देश के वाशिंदे हैं।
samrath ko nahi dosh gusaain
ReplyDeleteNahin Bhartiya mahan nahi hain, yeh sirf mahan hone a dhong karte hain, aur purane kisse suna kar khud ko aur baccho ko dilasa dete rahte hain ki hamare andar abhi bhi imandari bachi hui hai.
ReplyDeletePar imandari to ek taraf ab to insaniyat bhi kayi bhartiyon mein dhoodhne nahi milegi