Thursday, June 3, 2010

नौकरशाही और नेताशाही की एकता

भारत, इंडोनेशिया और फिलीपींस, ये तीन देश एशिया के सबसे भ्रष्ट और निकृष्ट नौकरशाही वाले देश घोषित किए गए हैं। पॉलिटिकल एंड इकोनॉमिक रिस्क कंसलटेंसी की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि इन देशों की नौकरशाही (ब्यूरोक्रेसी) असक्षम एवं लालफीताशाही से बंधी हुई है।

वहीं सिंगापुर तथा हांगकांग की नौकरशाही को सबसे ज्यादा सक्षम माना गया है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि भारतीय राजनेता हमेशा यह कहते हुए सुने जा सकते हैं कि वो देश से भ्रष्टाचार को खत्म कर देंगे, तथा नौकरशाही में सुधार लाएंगे। लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा है। रिपोर्ट में बताया गया है सत्ता का केंद्र होने की वजह से नेता भी इसमें सुधार करने में असक्षम हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक इसका सबसे बुरा असर विदेशी निवेश पर पड़ रहा है, और यदि इसे सुधारा नहीं गया तो हालात बदतर होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।

यह तो हुई रिपोर्ट की बात, और यह असलियत भी यही है कि नौकरशाही कई मौकों पर नेताशाही पर हावी साबित हो जाती है। उदाहरण के लिए मध्यप्रदेश को लेते हैं। कमोबेश यहां हर वर्ष आयकर और भ्रष्टाचार निरोधक दस्ते द्वारा नौकरशाहों के घरों एवं संबंधित स्थानों पर छापा मारा जाता है और करोड़ों की संपत्ति का पता चलता है।

लेकिन इन नौकरशाहों पर कभी कार्रवाई नहीं होती है। मामला चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो। उदाहरण कई हैं, बस कुछ अखबार पलटने की जरूरत है। हां अगर यह नौकरशाह चाहें तो नेताओं के घोटाले जरूर उजागर हो जाते हैं। जैसा कि होता रहा है पूरे देश में। कई बार ऐसा नहीं भी होता है। क्योंकि वहां आपसी मेलजोल से काम हो कर लिया जाता है। दरअसल यह एक गठबंधन है। नेताओं और नौकरशाही का गठबंधन। इसे खत्म करना कम से कम हमारे देश में तो मुमकिन नहीं जान पड़ता है।

इसकी कई वजह हैं। पहली तो यह कि हमारे देश के ‘माननीय’ नेता या तो कम पढ़े-लिखे होते हैं या फिर अनपढ़ होते हैं। उनके लिए देश के विकास से अभिप्राय सिर्फ भाषण देने, दौरे और बयानबाजी तक ही सीमित होती है। सरकारी कामकाज और क्रॉस चेकिंग जैसा काम सिर्फ गिने-चुने नेता ही करते हैं। या यूं कहें कि स्कॉलर टाइप के नेता ही ऐसे कामों में रुचि लेते हैं।

इसका सीधा फायदा मिलता है नौकरशाहों को। वो अपनी सुविधानुसार इन ‘माननीयों’ को समझाते रहते हैं। हम लोग आए दिन इस तरह की खबरें पढ़ते रहते हैं कि फलां नेता या मंत्री अपने विभाग के नौकरशाहों से परेशान है। कलेक्टर से परेशान है, वगैरह। लेकिन उनकी कोई सुनता नहीं है। वहीं कई बार ऐसी खबरें भी आती हैं कि नेताओं की वजह से परेशान नौकरशाह या तो प्रतिनियुक्ति में चले जाते हैं या फिर तबादला ले लेते हैं।

अब बात करते हैं दूसरी वजह पर। इस वजह को गठबंधन या 'नेक्सस' भी कहा जा सकता है। कुछ ‘समझदार’ टाइप के नेता इस तरह की व्यवस्था बनाकर चलते हैं, जिससे उनके भ्रष्टाचार की राह एकदम आसान बनी रहे। इसके लिए वो अपने नजदीकी नौकरशाहों की टीम बनाते हैं, जिनके साथ मिलकर कानूनी तरीके से भ्रष्टाचार किया जा सके। इस भ्रष्टाचार के कई तरीके हैं, मसलन पसंदीदा पद या विभाग में अपने ‘खास’ अधिकारी की नियुक्ति। ऐसे में बिना किसी लाग लपेट के सारे काम आसानी से हो जाते हैं।

ऐसी व्यवस्था आपको पंचायत से लेकर नगर निगम तक और राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक में देखने को मिल सकती है। बस जरूरत है तो समीकरणों को समझने की। कई ऐसे उदाहरण मौजूद भी हैं, जो वर्तमान में सत्तासीन हैं।

यहां एक बात और बताना ठीक रहेगा कि जो नौकरशाह होते हैं, ये अपना करियर पाथ बड़े ही व्यवस्थित तरीके से बनाकर चलते हैं, ताकि रिटायरमेंट के बाद भी ‘व्यवस्था’ बनी रहे। कहने का मतलब कि यह तो आप सबने देखा ही होगा कि कैसे रिटायरमेंट के बाद कई आला नौकरशाह राजनीति के गलियारे में पहुंच जाते हैं। इस गलियारे में पहुंचने का रास्ता, विधान सभा, राज्य सभा, लोकसभा या किसी आयोग के रास्ते से होकर आता है। यहां आने का मकसद हमेशा जनसेवा तो नहीं होता है। क्योंकि नौकरशाह होकर जब काम नहीं कर सके तो नेता बनने के बाद क्या करेंगे, इसमें संशय तो रहेगा ही।

खैर, काफी हो गया विश्लेषण। हम यानी जनता जानती सब है पर कर कुछ नहीं सकती है, क्योंकि जनता के पास एकमात्र हथियार है, वोट, जो पांच साल में एक बार ही देने का अवसर आता है। इसलिए अभी बात करना ज्यादा प्रभावी नहीं होगा।

धन्यवाद

4 comments:

  1. संविधान की धारा ४९(ओ) के अंतर्गत लोगों के पास नो -वोट का भी अधिकार है। पर जागरूकता नहीं बार बार उन्हीं भ्रष्ट नेताओं को चुनते हैं और भ्रष्टाचार को चुप चाप सहते हैं।

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  2. आप सही कह रहे हैं सर। लेकिन इस धारा का प्रयोग करके वोट न देना कोई स्थायी उपाय भी तो नहीं है। अगर कोई व्यक्ति सोचे कि वह जनता की पंचायत तक पहुंचे तो उसे पैसे या बाहुबल के जोर पर दबा दिया जाता है। यदि भ्रष्टाचार की शिकायत किसी से करें भी तो किससे। जो सुनेगा वो भी उनका साथी हो सकता है।

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  3. जिन्दा लोगों की तलाश! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!

    काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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    उक्त शीर्षक पढकर अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन सच में इस देश को कुछ जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।

    आग्रह है कि बूंद से सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो निश्चय ही विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

    हम ऐसे कुछ जिन्दा लोगों की तलाश में हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

    इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

    अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

    अतः हमें समझना होगा कि आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

    शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-ष्भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थानष् (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

    सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

    जो भी व्यक्ति स्वेच्छा से इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष
    भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
    7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
    फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
    E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

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