Thursday, December 9, 2010

देश बड़ा या नेता

आप सबने यह खबर तो जरूर देखी, सुनी और पढ़ी ही होगी कि अमेरिका में भारत की राजदूत के साथ पैट डाउन सुरक्षा जांच की गई। जब यह खबर मीडिया के जरिए आई तो तुरंत प्रतिक्रियाएं आना शुरू हो गईं। लगभग सभी ने इसे देश की आन-बान-शान और न जाने किस-किस से इसे जोड़कर रख दिया साथ ही अमेरिका की आलोचना भी की। हमारे विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने यहां तक कह डाला कि इस तरह से भारतीय अधिकारियों की बेइज्जती को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और वो अमेरिका से अपनी नाराजगी जरूर जताएंगे।

लेकिन असल मुद्दा यह है कि जैसे हम हैं क्या वैसा दूसरों का होना जरूरी है। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि हम खुद को कानून से ऊपर मानते हैं, लेकिन दूसरे देशों में भी ऐसा हो यह जरूरी तो नहीं है। बड़े बुजुर्गों ने ऐसे ही नहीं फरमाया था कि "जैसा देश वैसा भेष"। यदि उनकी इस बात को अमल में लाते तो ऐसी परेशानी ही नहीं आती। यही कारण है कि अमेरिका की सुरक्षा व्यवस्था को हमने आन पर ले लिया है। अधिकांश यह सुनने को मिल रहा है कि अमेरिका जिनिवा समझौते को दरकिनार करता रहता है। लेकिन सोचने वाली बात यह भी है कि इसी सुरक्षा व्यवस्था का फायदा उसे आज मिल रहा है, जबकि इसकी कमी का खामियाजा हम भुगत ही रहे हैं। हमारे देश में सरकारी अंगरक्षक तथा लाल पीली बत्तियों का काफिला लेकर शान समझा जाता है। यही वजह है कि कानून के रखवाले इन रंगों की बत्ती वाले वाहन में बैठे हुए लोगों को बिना किसी और पूछताछ के कहीं भी जाने देते हैं।

आपको याद ही होगा कि जब भी कोई नेता जेल जाता है, तो उसके लिए वहां पर हर तरफ की वीआईपी सुरक्षा मौजूद रहती है। मसलन, वो जेल जाते ही बीमार हो जाता है और तुरंत उसे किसी अस्पताल में प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाता है। जहां वो पूरी अय्याशी के साथ अपना इलाज करवाता है।

एक सच यह भी है कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे या फिर उनसे सांठगांठ रखने वालों पर कानून के लंबे हाथ कभी पहुंच ही नहीं पाते हैं। यदा कदा किसी मोहरे को यदि कानून ने सजा दे दी तो उसका गुणगान ऐसे किया जाता है, जैसे स्वयं धर्मराज ने इंसाफ किया हो, तथा इसके बाद कोई अपराधी बनेगा ही नहीं। यहां पर मुझे विनोद दुआ (वरिष्ठ पत्रकार, एनडीटीवी समाचार चैनल) जी की कही हुई बात एकदम सही लगती है कि हमारे देश में सबसे पहले नेता हैं उसके बाद देश की बारी आती है। जबकि अमेरिका और यूरोप जैसे देश में कानून और देश शीर्ष पर हैं, नेता या आम आदमी एक समान हैं। मगर अफसोस कि यह समानता हमारे देश के लिए शायद दिवा स्वप्न है।

असल हमारे देश में देश जैसा कंसेप्ट तो बचा ही नहीं है। यहां हम नहीं बल्कि मैं का प्रभाव ज्यादा बड़ा हो गया है। यही वजह है कि नेता या आला अफसर हमारे लिए नहीं बल्कि अपने लिए काम करते हैं। यदि उदाहरण गिनाने बैंठूं तो महीनों लग जाएंगे गिनती पूरी होने में।

हमारे देश में, क्षमा चाहूंगा, मेरे देश में नेता और अफसर सिर्फ पैसे के लिए काम करते हैं। यहां पर मैं तनख्वाह की बात नहीं कर रहा हूं, बल्कि टेबल के ऊपर और नीचे से आने वाले लिफाफों और सूटकेसों का जिक्र कर रहा हूं। हो सकता है कि कई लोग मेरी बातों से सहमत न भी हों, पर सच तो यही है कि हमारा देश तरक्की तो कर रहा है लेकिन इस तरक्की का फायदा किसे मिल रहा है, यह तो आप सभी लोग ने देख, सुन और पढ़ रहे होंगे। कहीं कोई राजा बन रहा है तो कोई भ्रष्टाचार के नए आदर्श स्थापित कर रहा है।

खैर यह तो हमारे देश के लिए आम बात हो चुकी है।

वैसे हमारे देश के नेता आजकल अपने प्रोटोकॉल को लेकर भी काफी परेशान हो रहे हैं। उनका मानना है कि जिस तरह से भारत में उनकी मेहमान नवाजी होती है, वैसी अमेरिका में नही होती है। लेकिन उनको कौन समझाए कि हर देश में भारत की तरह व्यवस्था नहीं है। हमारे देश में नेताओं और बड़े अधिकारियों को कई अलिखित अधिकार भी प्राप्त हैं। जिनमें सुरक्षा जांच न करवाना सबसे बड़ा अधिकार है। यदि गलती से किसी के साथ जांच जैसा कुछ हुआ तो जांच करने वाली की शामत आना अटल है। वहीं अगर अमेरिका में कोई जांच अधिकारी अपनी ड्यूटी से चूक जाए तो उसकी शामत आ जाती है। यही वजह है कि अमेरिका में 26/11 के बाद कोई आतंकी घटना नहीं हो पाई है। जबकि हमारे देश में नेता, अफसर और सुरक्षा एजेंसियां कुंभकरण से भी गहरी नींद में सोती हैं या फिर शायद कान में तेल डालकर बैठी हैं।

यही वजह है कि पहले कारगिल के रास्ते हमला किया गया उसके बाद संसद भवन में घुसकर हमला किया गया। इतने से भी संतुष्टि नहीं मिली तो मुंबई में 26 नवंबर का हमला किया गया। वैसे भी मुंबई में हुए हमलों को तारीख से ही याद किया जा सकता है क्योंकि वहां हर एक दो वर्ष में कोई न कोई आतंकवादी घटना होती ही रहती है और सबको याद रखने के लिए तारीख याद रखना जरूरी है। क्योंकि आतंकवादियों के लिए हमारे देश में आतंकी हमला करना किसी बच्चे के खेल से ज्यादा कठिन नहीं है।

और जहां तक बात है भ्रष्टाचार की, तो उसमें हम नोबेल के हकदार हैं। साल दर साल हम इसमें अपने अंक बढ़ाते जा रहे हैं। यहां तक कि इस वर्ष की रिपोर्ट में तो हमारे देश को दुनिया का सबसे ज्यादा भ्रष्ट देश होने का खिताब भी हासिल हो गया है। हमारा देश भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और लचर कानून व्यवस्था के मामले पर टॉप में है। यदि विश्वास न हो तो इस वर्ष और पिछले कई वर्षों की ट्रांसपेरेसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट्स को देख सकते हैं।

लेकिन इन सबके लिए जिम्मेदार हैं हमारे नेता, अफसर और जनता भी। व्यवस्थाएं इतनी सड़ चुकी हैं कि जनता को इन पर भरोसा बचा ही नहीं है। रही सही कसर पूरा कर देते हैं ये हमारे माननीय टाइप के लोग। जो इन्हें धता बताकर अपना हर काम कर लेते हैं।

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