वाकया मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और अखिल भारतीय कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह जी से संबंधित है। शुक्रवार को दिग्गीराजा ने कहा कि हेमंत करकरे की मौत की वजह 26/11 के आतंकवादी नहीं बल्कि हिंदू आतंकी संगठन हैं। उन्होंने अपने बयान की पृष्ठभूमि बनाने के लिए यह तक कह डाला कि हमले के कुछ घंटे पहले ही उन्हें करकरे ने यह बताया था।
हालांकि करकरे की पत्नी की नाराजगी के बाद दिग्गी राजा अपने बयान से पलट गए। लेकिन हंसी वाली बात यह कि आखिर दिग्विजय सिंह को इस तरह का भद्दा झूठ बोलने की जरूरत क्या थी। यहां पर कुछ तकनीकी पहलू भी हैं, जिनको जाने बिना पूर्व सीएम साहब ने जबान की लगाम छोड़ दी थी। करकरे महाराष्ट्र एटीएस के अधिकारी थे, उनका दिग्गी से क्या लेना देना था। दूसरा यह कि दिग्गी के पास महाराष्ट्र कांग्रेस का प्रभार भी नहीं था। न ही वो देश के गृहमंत्री थे, तो फिर आखिर करकरे अपनी आशंका उनसे क्यों जताते।
खैर यह तो एक खालिस झूठ था, जो सही समय पर पकड़ा गया। लेकिन दूसरा कड़वा सच यह है कि हमारे देश की राजनीतिक पार्टियां भ्रष्टाचार और कु्र्सी प्रेम में इस तरह आकंठ डूबी हैं कि अपने फायदे के लिए वो दिन को रात और रात को दिन भी कहने से पीछे नहीं हटेंगे। आपको याद होगा जब 26/11 के हमले के बाद तत्कालीन केंद्रीय मंत्री एआर एंतुले ने कहा था कि इस हमले के पीछे हिंदू आतंकी संगठनों का हाथ है।
इस बात का खुलासा विकीलीक्स ने भी किया है कि मुंबई हमले को कांग्रेस धर्म के आधार पर भुनाना चाह रही थी। यह सोचने वाली बात यह है कि आखिर कब हमारे नेता परिपक्व होंगे। इस तरह की ओछी हरकतों की वजह से ही देश में नेताओं की आए दिन भद पिटती रहती है। चुनावों में वोट देने वालों का प्रतिशत गिर रहा है। लोगों का सरकारी मशीनरी से भरोसा उठ रहा है। हालांकि हमारी मशीनरी भी विश्वसनीय नहीं है।
लेकिन यह समझ नहीं आता है कि हमारे नेता अपने स्वार्थ के लिए किस हद तक गिर सकते हैं। संसद चलने नहीं देते, जरूरी कानूनों को पास नहीं होने देते हैं। कुर्सी मिलते ही अपनी जेबें गरम करने लगते हैं। सारी जांच एजेंसियां इनके आगे नतमस्तक रहती हैं। किसी भी मामले की जांच सच के आधार पर नहीं बल्कि राजनीतिक फायदे को ध्यान में रखकर की जाती है।
पुलिस और प्रशासन की हालत किसी से छिपी नहीं है। मामले को रफादफा करने के लिए वो लोग हरसंभव प्रयत्न करते हैं। लोकतंत्र के स्तंभों की नीवें हिल रही हैं। इनके हिलने की वजह का एकमात्र कारण गंदी राजनीति है। ऐसे देश का भविष्य क्या होगा। जब तक नेताओं की जमात मैं से ऊपर उठकर देश के बारे में नहीं सोचेगी, तब तक न तो जनहित ही हो सकेगा और न ही देश कोई शक्ति बन सकेगा।
खैर यह तो एक खालिस झूठ था, जो सही समय पर पकड़ा गया। लेकिन दूसरा कड़वा सच यह है कि हमारे देश की राजनीतिक पार्टियां भ्रष्टाचार और कु्र्सी प्रेम में इस तरह आकंठ डूबी हैं कि अपने फायदे के लिए वो दिन को रात और रात को दिन भी कहने से पीछे नहीं हटेंगे। आपको याद होगा जब 26/11 के हमले के बाद तत्कालीन केंद्रीय मंत्री एआर एंतुले ने कहा था कि इस हमले के पीछे हिंदू आतंकी संगठनों का हाथ है।
इस बात का खुलासा विकीलीक्स ने भी किया है कि मुंबई हमले को कांग्रेस धर्म के आधार पर भुनाना चाह रही थी। यह सोचने वाली बात यह है कि आखिर कब हमारे नेता परिपक्व होंगे। इस तरह की ओछी हरकतों की वजह से ही देश में नेताओं की आए दिन भद पिटती रहती है। चुनावों में वोट देने वालों का प्रतिशत गिर रहा है। लोगों का सरकारी मशीनरी से भरोसा उठ रहा है। हालांकि हमारी मशीनरी भी विश्वसनीय नहीं है।
लेकिन यह समझ नहीं आता है कि हमारे नेता अपने स्वार्थ के लिए किस हद तक गिर सकते हैं। संसद चलने नहीं देते, जरूरी कानूनों को पास नहीं होने देते हैं। कुर्सी मिलते ही अपनी जेबें गरम करने लगते हैं। सारी जांच एजेंसियां इनके आगे नतमस्तक रहती हैं। किसी भी मामले की जांच सच के आधार पर नहीं बल्कि राजनीतिक फायदे को ध्यान में रखकर की जाती है।
पुलिस और प्रशासन की हालत किसी से छिपी नहीं है। मामले को रफादफा करने के लिए वो लोग हरसंभव प्रयत्न करते हैं। लोकतंत्र के स्तंभों की नीवें हिल रही हैं। इनके हिलने की वजह का एकमात्र कारण गंदी राजनीति है। ऐसे देश का भविष्य क्या होगा। जब तक नेताओं की जमात मैं से ऊपर उठकर देश के बारे में नहीं सोचेगी, तब तक न तो जनहित ही हो सकेगा और न ही देश कोई शक्ति बन सकेगा।
केवल सभाओं और संसद में चिंता जाहिर कर देने से या भाषण दे देने भर से देश इस रोग से मुक्त नहीं हो पाएगा। इसके लिए चाहिए कठोर इच्छाशक्ति, जिसकी कमी किसी टॉनिक से पूरी नहीं की जा सकती है।
आप सही कह रहे हैं। लगता है दिग्गी राजा ने हालिया बिहार विधान सभा के चुनाव नतीजों पर ध्यान नहीं दिया। लालू भी कुछ समय पहले तक इसी तरह लोगों को सिर्फ बयानों के दम पर बलगराते रहे थे और पिछले लोकसभा आम चुनाव के बाद अब बिहार विधानसभा चुनाव में जनता ने उन्हें उनकी हैसियत बता दी है। दिग्गी राजा को भी यह याद दिलाने की जरूरत नहीं होनी चाहिए कि जनता समझती है और अब मौका मिलने पर ऐसे लोगों को सबक सिखाने से भी नहीं चूकती। अब वक्त है कि दिग्गी राजा ऐसी ओझी राजनीति से बाज आएं वरना जनता जब जवाब देगी तो ऐसे नेताओं के लिए काफी मुश्किल घड़ी होगी।
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