दूर हो जाएं आपसे कोई गम न हो बस चाहें इतना
कुछ कमी लगे जब हम न हों
हर एक खुशी में आपकी शामिल हों
ना हो सामने तो हमारी यादें हों
हमारे आपके रिश्ते की डोर इतनी पावन हो
जिसका गवाह प्रकृति और कण-कण हो
इस दोस्ती के अनमोल रिश्ते में न कोई विघ्न हो
न विषाद की रेखा न कोई दूरी हो
हो तो बस खुशियां ही खुशियां हो
हों खूबसूरत यादें और बातें हों,
जो आए कुछ भुलाने की नौबत कभी तो
तो फिर बस हम न हों।
** कवियत्रीः सपना गुरु, पेशे से विज्ञान शोधकर्ता हैं **
Tuesday, April 27, 2010
तो फिर बस
दूर हो जाएं आपसे कोई गम न हो बस चाहें इतना
कुछ कमी लगे जब हम न हों
हर एक खुशी में आपकी शामिल हों
ना हो सामने तो हमारी यादें हों
हमारे आपके रिश्ते की डोर इतनी पावन हो
जिसका गवाह प्रकृति और कण-कण हो
इस दोस्ती के अनमोल रिश्ते में न कोई विघ्न हो
न विषाद की रेखा न कोई दूरी हो
हो तो बस खुशियां ही खुशियां हो
हों खूबसूरत यादें और बातें हों,
जो आए कुछ भुलाने की नौबत कभी तो
तो फिर बस हम न हों।
** कवियत्रीः सपना गुरु, पेशे से विज्ञान शोधकर्ता हैं **
कुछ कमी लगे जब हम न हों
हर एक खुशी में आपकी शामिल हों
ना हो सामने तो हमारी यादें हों
हमारे आपके रिश्ते की डोर इतनी पावन हो
जिसका गवाह प्रकृति और कण-कण हो
इस दोस्ती के अनमोल रिश्ते में न कोई विघ्न हो
न विषाद की रेखा न कोई दूरी हो
हो तो बस खुशियां ही खुशियां हो
हों खूबसूरत यादें और बातें हों,
जो आए कुछ भुलाने की नौबत कभी तो
तो फिर बस हम न हों।
** कवियत्रीः सपना गुरु, पेशे से विज्ञान शोधकर्ता हैं **
खामोशियां हैं आसपास और कुछ सवाल भी
कुछ रास्ता है सीधा सा और कुछ है आसपास जाल भी
मुकद्दर ले जा रहा है जाने कहा और किस ओर है मंजिल
धुधली हैं राहें….दूर होता है साहिल…..
काश कोई संभाले कुछ देर को ही सही
इस वक्त और दूर जाते लम्हों की कहानी.....
दूरियां हैं साथ और कुछ मुश्किलें भी
राहों पे बिखरे शूलों की कुछ अटकलें भी
बेतहाशा भाग रहे हैं किस शमा की चाह में
अब तो चाहूं साथ इस अजनबी राह में
काश कोई आए और संभाले सही
जीवन की डोर और बीतते वक्त की कहानी.....
कवियत्रीः सपना गुरु, पेशे से विज्ञान शोधकर्ता हैं।
खामोशियां हैं आसपास और कुछ सवाल भी
कुछ रास्ता है सीधा सा और कुछ है आसपास जाल भी
मुकद्दर ले जा रहा है जाने कहा और किस ओर है मंजिल
धुधली हैं राहें….दूर होता है साहिल…..
काश कोई संभाले कुछ देर को ही सही
इस वक्त और दूर जाते लम्हों की कहानी.....
दूरियां हैं साथ और कुछ मुश्किलें भी
राहों पे बिखरे शूलों की कुछ अटकलें भी
बेतहाशा भाग रहे हैं किस शमा की चाह में
अब तो चाहूं साथ इस अजनबी राह में
काश कोई आए और संभाले सही
जीवन की डोर और बीतते वक्त की कहानी.....
कवियत्रीः सपना गुरु, पेशे से विज्ञान शोधकर्ता हैं।
Wednesday, April 14, 2010
नौकरियां ही नौकरियां
दैनिक भास्कर समूह 11 राज्यों में 3 भाषाओं के 48 संस्करणों के साथ देश का सबसे बड़ा समाचार पत्र समूह है। समाचार पत्र, रेडियो और वेब आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण स्थान हासिल कर ब्रांड भास्कर आज उत्कृष्ठता, तत्परता, गुणवत्ता, प्रगतिशीलता और नवीन विचारधारा का पर्याय बन गया है।
दैनिक भास्कर समूह ने पिछले 2 दशकों में पाठकों को नजदीक से समझकर व उनकी अपेक्षाओं को जानकर पत्रकारिता को एक पूरी नई सोच देकर अखबार को पाठकों से जोड़ने व उनके अनुरूप बनाने का एक नया प्रयास किया है।
इसी छवि को कायम रखते हुए दैनिक भास्कर समूह अब बिहार और झारखंड के विभिन्न स्थानों से शीघ्र ही अपने संस्करणों का प्रकाशन प्रारंभ करने जा रहा है। इसके लिए इन दोनों राज्यों के मूल निवासियों अथवा वहां कार्य कर चुके ऐसे अनुभवी पत्रकारों के विभिन्न पदों के लिए आवेदन आमंत्रित हैं जो भास्कर समूह द्वारा शुरू किए गए इस मिशन से जुड़कर इसे निरंतर आगे बढ़ाने में साथ दे सकें।
पद :
1. समाचार संपादक
2. उप समाचार संपादक
3. मुख्य उप संपादक
4. उप संपादक
5. प्रशिक्षु उप संपादक
6. चीफ रिपोर्टर
7. डिप्टी चीफ रिपोर्टर
8. रिपोर्टर, प्रशिक्षु रिपोर्टर
9. वाणिज्य संवाददाता
10. खेल संवाददाता
11. ब्यूरो प्रमुख
12. वरिष्ठ संवाददाता
13. संवाददाता
14. फोटोग्राफर, विज्वलाइजर
15. कार्टूनिस्ट, डिजाइनर
16. मैग्जीन / फीचर संपादक
अनुभव :
* विभिन्न समाचार पत्रों में विभिन्न पदों पर कम से कम पांच वर्षों का अनुभव.
शैक्षणिक योग्यता :
* स्नातकोत्तर, अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान आवश्यक. साथ में कंप्यूटर की जानकारी एवं अनुभव.
उम्र :
1. कनिष्ठ पदों के लिए उम्र की अधिकतम सीमा 25 वर्ष
2. वरिष्ठ पदों के लिए उम्र की अधिकतम सीमा 35 वर्ष.
कैसे आवेदन करें :
* अपने बारे में संपूर्ण विवरण और अपने नवीनतम फोटोग्राफ के साथ निम्न पते पर आवेदन करें.
समूह संपादक
दैनिक भास्कर समाचार पत्र समूह,
402, रतन ज्योति बिल्डिंग,
राजेंद्र प्लेस, नई दिल्ली 110008
अथवा
अपने आवेदन और फोटोग्राफ निम्न पते पर ई-मेल द्वारा प्रेषित करें
groupeditor@bhaskarnet.com
सभी पदों के लिए आवेदन प्राप्ति की अंतिम तिथि :
* 21 अप्रैल 2010
दैनिक भास्कर समूह ने पिछले 2 दशकों में पाठकों को नजदीक से समझकर व उनकी अपेक्षाओं को जानकर पत्रकारिता को एक पूरी नई सोच देकर अखबार को पाठकों से जोड़ने व उनके अनुरूप बनाने का एक नया प्रयास किया है।
इसी छवि को कायम रखते हुए दैनिक भास्कर समूह अब बिहार और झारखंड के विभिन्न स्थानों से शीघ्र ही अपने संस्करणों का प्रकाशन प्रारंभ करने जा रहा है। इसके लिए इन दोनों राज्यों के मूल निवासियों अथवा वहां कार्य कर चुके ऐसे अनुभवी पत्रकारों के विभिन्न पदों के लिए आवेदन आमंत्रित हैं जो भास्कर समूह द्वारा शुरू किए गए इस मिशन से जुड़कर इसे निरंतर आगे बढ़ाने में साथ दे सकें।
पद :
1. समाचार संपादक
2. उप समाचार संपादक
3. मुख्य उप संपादक
4. उप संपादक
5. प्रशिक्षु उप संपादक
6. चीफ रिपोर्टर
7. डिप्टी चीफ रिपोर्टर
8. रिपोर्टर, प्रशिक्षु रिपोर्टर
9. वाणिज्य संवाददाता
10. खेल संवाददाता
11. ब्यूरो प्रमुख
12. वरिष्ठ संवाददाता
13. संवाददाता
14. फोटोग्राफर, विज्वलाइजर
15. कार्टूनिस्ट, डिजाइनर
16. मैग्जीन / फीचर संपादक
अनुभव :
* विभिन्न समाचार पत्रों में विभिन्न पदों पर कम से कम पांच वर्षों का अनुभव.
शैक्षणिक योग्यता :
* स्नातकोत्तर, अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान आवश्यक. साथ में कंप्यूटर की जानकारी एवं अनुभव.
उम्र :
1. कनिष्ठ पदों के लिए उम्र की अधिकतम सीमा 25 वर्ष
2. वरिष्ठ पदों के लिए उम्र की अधिकतम सीमा 35 वर्ष.
कैसे आवेदन करें :
* अपने बारे में संपूर्ण विवरण और अपने नवीनतम फोटोग्राफ के साथ निम्न पते पर आवेदन करें.
समूह संपादक
दैनिक भास्कर समाचार पत्र समूह,
402, रतन ज्योति बिल्डिंग,
राजेंद्र प्लेस, नई दिल्ली 110008
अथवा
अपने आवेदन और फोटोग्राफ निम्न पते पर ई-मेल द्वारा प्रेषित करें
groupeditor@bhaskarnet.com
सभी पदों के लिए आवेदन प्राप्ति की अंतिम तिथि :
* 21 अप्रैल 2010
Monday, April 5, 2010
कहने को तो छोटी सी बात है पर मुद्दा बड़ा है
क्या कोई यह बता सकता है कि आखिर दिल्ली से सटे गाजियाबाद शहर यानी एनसीआर इलाके में बिजली की इतनी किल्लत क्यों हैं। यहां यानी गाजियाबाद में तय कटौती समय के अलावा भी अघोषित कटौती चलती रहती है। यहां के लगभग हर घर में इनवर्टर पाया ही जाता है।
आखिर इसकी वजह क्या है वो तब जबकि पिछले महीने लगभग सभी अखबारों में यूपी बिजली विभाग का फुल पेज विज्ञापन भी छपा था जिसमें दावा किया गया था कि राज्य में सरप्लस बिजली का उत्पादन होने लगा है। अगर वाकई हो रहा है तो आखिर बिजली जा कहां रही है। या फिर वह महज एक विज्ञापन था।
क्या वाकई जनता की याददाश्त कमजोर होती है जो ऐसे लोगों को चुनकर लोकतंत्र के मंदिरों में भेज देती है जो अपने घरों में तो एसी लगवाए रहते हैं और एसी कारों में घूमते हैं। और चुनावी बादल घिरते ही मूलभूत सुविधाओं और बिजली के लिए टर्राने लगते हैं। पता नहीं ऐसे लोगों को वोट ही क्यों दिया जाता है जो अपना वादा पूरा नहीं करते हैं।
शायद इसीलिए मुझे अपने एक मित्र बात अच्छी लगती है जो वैसे तो लोहिया जी का वाक्य है कि जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं करती हैं।
तो क्या हम जिंदा कौमें नहीं हैं।
हालातों को देखकर तो यही लगता है। मैं यहां पर न तो किसी सरकार की बुराई करना चाह रहा हूं और न ही किसी की बड़ाई। देश के सबसे राज्य की दुर्दशा देखकर यह सब शब्दों में तब्दील होकर लिखा गए हैं। ऐसा राज्य जहां से देश के पहले प्रधानमंत्री चुने गए और सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री भी यहीं निकले। सबसे ज्यादा सांसद भी यहीं पाए जाते हैं। विधायिका की तो बात ही क्या करें। चाहे वर्तमान राज्य सरकार हो या पूर्ववर्ती सभी ने जनता को चूना लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। राज्य के हालात किसी से छुपे नहीं हैं और यहां के नेताओं के भी। पर शायद लोकतंत्र की यही मजबूरी है।
आखिर इसकी वजह क्या है वो तब जबकि पिछले महीने लगभग सभी अखबारों में यूपी बिजली विभाग का फुल पेज विज्ञापन भी छपा था जिसमें दावा किया गया था कि राज्य में सरप्लस बिजली का उत्पादन होने लगा है। अगर वाकई हो रहा है तो आखिर बिजली जा कहां रही है। या फिर वह महज एक विज्ञापन था।
क्या वाकई जनता की याददाश्त कमजोर होती है जो ऐसे लोगों को चुनकर लोकतंत्र के मंदिरों में भेज देती है जो अपने घरों में तो एसी लगवाए रहते हैं और एसी कारों में घूमते हैं। और चुनावी बादल घिरते ही मूलभूत सुविधाओं और बिजली के लिए टर्राने लगते हैं। पता नहीं ऐसे लोगों को वोट ही क्यों दिया जाता है जो अपना वादा पूरा नहीं करते हैं।
शायद इसीलिए मुझे अपने एक मित्र बात अच्छी लगती है जो वैसे तो लोहिया जी का वाक्य है कि जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं करती हैं।
तो क्या हम जिंदा कौमें नहीं हैं।
हालातों को देखकर तो यही लगता है। मैं यहां पर न तो किसी सरकार की बुराई करना चाह रहा हूं और न ही किसी की बड़ाई। देश के सबसे राज्य की दुर्दशा देखकर यह सब शब्दों में तब्दील होकर लिखा गए हैं। ऐसा राज्य जहां से देश के पहले प्रधानमंत्री चुने गए और सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री भी यहीं निकले। सबसे ज्यादा सांसद भी यहीं पाए जाते हैं। विधायिका की तो बात ही क्या करें। चाहे वर्तमान राज्य सरकार हो या पूर्ववर्ती सभी ने जनता को चूना लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। राज्य के हालात किसी से छुपे नहीं हैं और यहां के नेताओं के भी। पर शायद लोकतंत्र की यही मजबूरी है।
कहने को तो छोटी सी बात है पर मुद्दा बड़ा है
क्या कोई यह बता सकता है कि आखिर दिल्ली से सटे गाजियाबाद शहर यानी एनसीआर इलाके में बिजली की इतनी किल्लत क्यों हैं। यहां यानी गाजियाबाद में तय कटौती समय के अलावा भी अघोषित कटौती चलती रहती है। यहां के लगभग हर घर में इनवर्टर पाया ही जाता है।
आखिर इसकी वजह क्या है वो तब जबकि पिछले महीने लगभग सभी अखबारों में यूपी बिजली विभाग का फुल पेज विज्ञापन भी छपा था जिसमें दावा किया गया था कि राज्य में सरप्लस बिजली का उत्पादन होने लगा है। अगर वाकई हो रहा है तो आखिर बिजली जा कहां रही है। या फिर वह महज एक विज्ञापन था।
क्या वाकई जनता की याददाश्त कमजोर होती है जो ऐसे लोगों को चुनकर लोकतंत्र के मंदिरों में भेज देती है जो अपने घरों में तो एसी लगवाए रहते हैं और एसी कारों में घूमते हैं। और चुनावी बादल घिरते ही मूलभूत सुविधाओं और बिजली के लिए टर्राने लगते हैं। पता नहीं ऐसे लोगों को वोट ही क्यों दिया जाता है जो अपना वादा पूरा नहीं करते हैं।
शायद इसीलिए मुझे अपने एक मित्र बात अच्छी लगती है जो वैसे तो लोहिया जी का वाक्य है कि जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं करती हैं।
तो क्या हम जिंदा कौमें नहीं हैं।
हालातों को देखकर तो यही लगता है। मैं यहां पर न तो किसी सरकार की बुराई करना चाह रहा हूं और न ही किसी की बड़ाई। देश के सबसे राज्य की दुर्दशा देखकर यह सब शब्दों में तब्दील होकर लिखा गए हैं। ऐसा राज्य जहां से देश के पहले प्रधानमंत्री चुने गए और सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री भी यहीं निकले। सबसे ज्यादा सांसद भी यहीं पाए जाते हैं। विधायिका की तो बात ही क्या करें। चाहे वर्तमान राज्य सरकार हो या पूर्ववर्ती सभी ने जनता को चूना लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। राज्य के हालात किसी से छुपे नहीं हैं और यहां के नेताओं के भी। पर शायद लोकतंत्र की यही मजबूरी है।
आखिर इसकी वजह क्या है वो तब जबकि पिछले महीने लगभग सभी अखबारों में यूपी बिजली विभाग का फुल पेज विज्ञापन भी छपा था जिसमें दावा किया गया था कि राज्य में सरप्लस बिजली का उत्पादन होने लगा है। अगर वाकई हो रहा है तो आखिर बिजली जा कहां रही है। या फिर वह महज एक विज्ञापन था।
क्या वाकई जनता की याददाश्त कमजोर होती है जो ऐसे लोगों को चुनकर लोकतंत्र के मंदिरों में भेज देती है जो अपने घरों में तो एसी लगवाए रहते हैं और एसी कारों में घूमते हैं। और चुनावी बादल घिरते ही मूलभूत सुविधाओं और बिजली के लिए टर्राने लगते हैं। पता नहीं ऐसे लोगों को वोट ही क्यों दिया जाता है जो अपना वादा पूरा नहीं करते हैं।
शायद इसीलिए मुझे अपने एक मित्र बात अच्छी लगती है जो वैसे तो लोहिया जी का वाक्य है कि जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं करती हैं।
तो क्या हम जिंदा कौमें नहीं हैं।
हालातों को देखकर तो यही लगता है। मैं यहां पर न तो किसी सरकार की बुराई करना चाह रहा हूं और न ही किसी की बड़ाई। देश के सबसे राज्य की दुर्दशा देखकर यह सब शब्दों में तब्दील होकर लिखा गए हैं। ऐसा राज्य जहां से देश के पहले प्रधानमंत्री चुने गए और सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री भी यहीं निकले। सबसे ज्यादा सांसद भी यहीं पाए जाते हैं। विधायिका की तो बात ही क्या करें। चाहे वर्तमान राज्य सरकार हो या पूर्ववर्ती सभी ने जनता को चूना लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। राज्य के हालात किसी से छुपे नहीं हैं और यहां के नेताओं के भी। पर शायद लोकतंत्र की यही मजबूरी है।
कोला पीने से घट जाती है पुरुष प्रजनन शक्ति
लंदन। कोला प्रेमी सावधान हो जायें क्योंकि एक नये अध्ययन में दावा किया गया है कि दिन में एक लीटर या अधिक शीतल पेय पीने से पुरुष की प्रजनन शक्ति घट जाती है और शुक्राणुओं की संख्या 30 प्रतिशत तक कम हो जाती है। अध्ययन का नेतृत्व करने वाली टीना कोल्ड जेनसन ने कहा कि यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि बहुत अधिक कोला पीने वाले लोग कई मामलों में भिन्न होते हैं।
उन्होंने कहा कि कैफीन से आदमी के प्रजनन स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में चंद अध्ययन ही हुए हैं। दल ने अध्ययन का निर्णय इसलिए किया क्योंकि डेनमार्क के युवकों में कैफीन मिश्रित शीतल पेय की खपत पिछले दशकों में काफी बढ़ी है।
डेनमार्क के कोपनहेगन विश्वविद्यालय अस्पताल के अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार इस प्रभाव का कारण कैफीन होने की संभावना नहीं है। द टेलीग्राफ में प्रकाशित खबर के अनुसार शीतलपेय के अन्य तत्व या खराब जीवनशैली इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। दल ने 2500 से अधिक युवाओं का अध्ययन किया।
अध्ययन में पाया गया कि जो लोग कोला नहीं पीते उनके शुक्राणुओं की गुणवत्ता बेहतर होती है। बेहतर गुणवत्ता का पैमाना प्रति मिलीलीटर वीर्य में पांच करोड़ शुक्राणु होते हैं। इसका कारण बेहतर जीवनशैली भी हो सकती है। इसके विपरीत एक लीटर से अधिक कोला पीने वाले पुरुषों के प्रति मिलीलीटर वीर्य में साढ़े तीन करोड़ शुक्राणु पाये गये। ऐसे लोग ज्यादा फास्ट फूड और कम फल एवं सब्जी खाते हैं।
यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि क्या इस स्थिति के लिए कोला या खराब जीवनशैली, दोनों को दोषी ठहराया जाये। रिपोर्ट के अनुसार शुक्राणुओं की संख्या कम होने पर प्रजनन शक्ति गंवाने का जोखिम अधिक होता है।
लाइवहिंदुस्तान से साभार
उन्होंने कहा कि कैफीन से आदमी के प्रजनन स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में चंद अध्ययन ही हुए हैं। दल ने अध्ययन का निर्णय इसलिए किया क्योंकि डेनमार्क के युवकों में कैफीन मिश्रित शीतल पेय की खपत पिछले दशकों में काफी बढ़ी है।
डेनमार्क के कोपनहेगन विश्वविद्यालय अस्पताल के अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार इस प्रभाव का कारण कैफीन होने की संभावना नहीं है। द टेलीग्राफ में प्रकाशित खबर के अनुसार शीतलपेय के अन्य तत्व या खराब जीवनशैली इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। दल ने 2500 से अधिक युवाओं का अध्ययन किया।
अध्ययन में पाया गया कि जो लोग कोला नहीं पीते उनके शुक्राणुओं की गुणवत्ता बेहतर होती है। बेहतर गुणवत्ता का पैमाना प्रति मिलीलीटर वीर्य में पांच करोड़ शुक्राणु होते हैं। इसका कारण बेहतर जीवनशैली भी हो सकती है। इसके विपरीत एक लीटर से अधिक कोला पीने वाले पुरुषों के प्रति मिलीलीटर वीर्य में साढ़े तीन करोड़ शुक्राणु पाये गये। ऐसे लोग ज्यादा फास्ट फूड और कम फल एवं सब्जी खाते हैं।
यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि क्या इस स्थिति के लिए कोला या खराब जीवनशैली, दोनों को दोषी ठहराया जाये। रिपोर्ट के अनुसार शुक्राणुओं की संख्या कम होने पर प्रजनन शक्ति गंवाने का जोखिम अधिक होता है।
लाइवहिंदुस्तान से साभार
कोला पीने से घट जाती है पुरुष प्रजनन शक्ति
लंदन। कोला प्रेमी सावधान हो जायें क्योंकि एक नये अध्ययन में दावा किया गया है कि दिन में एक लीटर या अधिक शीतल पेय पीने से पुरुष की प्रजनन शक्ति घट जाती है और शुक्राणुओं की संख्या 30 प्रतिशत तक कम हो जाती है। अध्ययन का नेतृत्व करने वाली टीना कोल्ड जेनसन ने कहा कि यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि बहुत अधिक कोला पीने वाले लोग कई मामलों में भिन्न होते हैं।
उन्होंने कहा कि कैफीन से आदमी के प्रजनन स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में चंद अध्ययन ही हुए हैं। दल ने अध्ययन का निर्णय इसलिए किया क्योंकि डेनमार्क के युवकों में कैफीन मिश्रित शीतल पेय की खपत पिछले दशकों में काफी बढ़ी है।
डेनमार्क के कोपनहेगन विश्वविद्यालय अस्पताल के अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार इस प्रभाव का कारण कैफीन होने की संभावना नहीं है। द टेलीग्राफ में प्रकाशित खबर के अनुसार शीतलपेय के अन्य तत्व या खराब जीवनशैली इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। दल ने 2500 से अधिक युवाओं का अध्ययन किया।
अध्ययन में पाया गया कि जो लोग कोला नहीं पीते उनके शुक्राणुओं की गुणवत्ता बेहतर होती है। बेहतर गुणवत्ता का पैमाना प्रति मिलीलीटर वीर्य में पांच करोड़ शुक्राणु होते हैं। इसका कारण बेहतर जीवनशैली भी हो सकती है। इसके विपरीत एक लीटर से अधिक कोला पीने वाले पुरुषों के प्रति मिलीलीटर वीर्य में साढ़े तीन करोड़ शुक्राणु पाये गये। ऐसे लोग ज्यादा फास्ट फूड और कम फल एवं सब्जी खाते हैं।
यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि क्या इस स्थिति के लिए कोला या खराब जीवनशैली, दोनों को दोषी ठहराया जाये। रिपोर्ट के अनुसार शुक्राणुओं की संख्या कम होने पर प्रजनन शक्ति गंवाने का जोखिम अधिक होता है।
लाइवहिंदुस्तान से साभार
उन्होंने कहा कि कैफीन से आदमी के प्रजनन स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में चंद अध्ययन ही हुए हैं। दल ने अध्ययन का निर्णय इसलिए किया क्योंकि डेनमार्क के युवकों में कैफीन मिश्रित शीतल पेय की खपत पिछले दशकों में काफी बढ़ी है।
डेनमार्क के कोपनहेगन विश्वविद्यालय अस्पताल के अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार इस प्रभाव का कारण कैफीन होने की संभावना नहीं है। द टेलीग्राफ में प्रकाशित खबर के अनुसार शीतलपेय के अन्य तत्व या खराब जीवनशैली इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। दल ने 2500 से अधिक युवाओं का अध्ययन किया।
अध्ययन में पाया गया कि जो लोग कोला नहीं पीते उनके शुक्राणुओं की गुणवत्ता बेहतर होती है। बेहतर गुणवत्ता का पैमाना प्रति मिलीलीटर वीर्य में पांच करोड़ शुक्राणु होते हैं। इसका कारण बेहतर जीवनशैली भी हो सकती है। इसके विपरीत एक लीटर से अधिक कोला पीने वाले पुरुषों के प्रति मिलीलीटर वीर्य में साढ़े तीन करोड़ शुक्राणु पाये गये। ऐसे लोग ज्यादा फास्ट फूड और कम फल एवं सब्जी खाते हैं।
यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि क्या इस स्थिति के लिए कोला या खराब जीवनशैली, दोनों को दोषी ठहराया जाये। रिपोर्ट के अनुसार शुक्राणुओं की संख्या कम होने पर प्रजनन शक्ति गंवाने का जोखिम अधिक होता है।
लाइवहिंदुस्तान से साभार
Saturday, April 3, 2010
क्या सानिया की शादी राष्ट्रीय मुद्दा है
पिछले कुछ दिनों से खबरिया टीवी चैनलों से लेकर अखबार के पन्नों तक जो विषय सबसे ज्यादा गरम है वह है भारत की टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा की पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ी शोएब से शादी का। पता नहीं क्यों मीडिया इसे इतना ज्यादा तवज्जो दे रहा है। ऐसा लग रहा है कि सानिया की शादी का असर दोनों देशों के रिश्तों पर पड़ेगा। जबकि ऐसा होना होता तो तभी हो जाता जब रीना राय ने मोहसीन खान से निकाह किया था।
खैर तब तो कोई फर्क नहीं पड़ा, लेकिन इस बार भी ऐसा शोर मचा रहे हैं मानो अब कोई फर्क पड़ेगा। मुझे निजी तौर पर ऐसा लगता है कि मीडिया के पास खबरों का अकाल है, इसलिए इन खबरों को दिनभर चलाया जा रहा है और विशेषज्ञों से गहन चर्चाएं कराई जा रही हैं। खैर इनकी शादी के होने या न होने से देश की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। हां लेकिन कुछ लोगों को मुद्दा जरूर मिल गया है। चाहे वो भारत के लोग हों या फिर पाकिस्तान के। आपने भी ये सुन रखा होगा कि अब कहा जा रहा है कि सानिया भारत से ही खेलती रहेंगी या फिर पाकिस्तान से खेलेंगी। हालांकि एक और बड़ा मुद्दा तो शोएब की पहली शादी का है।
यानी अभी गांव बसा नहीं और…………. आगे तो आप समझ ही गए होंगे।
मैं तो नहीं समझ पा रहा हूं कि इसे तूल क्यों दिया जा रहा है यदि आपको पता हो तो मुझे भी बताएं।
क्या सानिया की शादी राष्ट्रीय मुद्दा है
पिछले कुछ दिनों से खबरिया टीवी चैनलों से लेकर अखबार के पन्नों तक जो विषय सबसे ज्यादा गरम है वह है भारत की टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा की पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ी शोएब से शादी का। पता नहीं क्यों मीडिया इसे इतना ज्यादा तवज्जो दे रहा है। ऐसा लग रहा है कि सानिया की शादी का असर दोनों देशों के रिश्तों पर पड़ेगा। जबकि ऐसा होना होता तो तभी हो जाता जब रीना राय ने मोहसीन खान से निकाह किया था।
खैर तब तो कोई फर्क नहीं पड़ा, लेकिन इस बार भी ऐसा शोर मचा रहे हैं मानो अब कोई फर्क पड़ेगा। मुझे निजी तौर पर ऐसा लगता है कि मीडिया के पास खबरों का अकाल है, इसलिए इन खबरों को दिनभर चलाया जा रहा है और विशेषज्ञों से गहन चर्चाएं कराई जा रही हैं। खैर इनकी शादी के होने या न होने से देश की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। हां लेकिन कुछ लोगों को मुद्दा जरूर मिल गया है। चाहे वो भारत के लोग हों या फिर पाकिस्तान के। आपने भी ये सुन रखा होगा कि अब कहा जा रहा है कि सानिया भारत से ही खेलती रहेंगी या फिर पाकिस्तान से खेलेंगी। हालांकि एक और बड़ा मुद्दा तो शोएब की पहली शादी का है।
यानी अभी गांव बसा नहीं और…………. आगे तो आप समझ ही गए होंगे।
मैं तो नहीं समझ पा रहा हूं कि इसे तूल क्यों दिया जा रहा है यदि आपको पता हो तो मुझे भी बताएं।
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