Wednesday, July 29, 2009

फिर भी कविता लिख लेता हूँ...

सुबह से लेकर रात तक... भागती रहती है जिंदगी ..
कभी इस खबर.. कभी उस खबर...
इनके बीच मै बेखबर सा होकर घूमता रहता हूँ...
बदबूदार राजनीति... नालियों में सड़ती नवजात बेटियाँ.. सेलेब्रेटियों के पाखंड..

चौराहे पर एक कट चाय पीकर... फिर भी कविता लिख लेता हूँ...

निर्मोही सा... अब ये मन... नहीं पसीजता किसी घटना से...
मोहल्ले के कुत्ते की मौत पर.... मै कभी बहुत रोया था....
अब नर संहारो से भी कोई सरोकार नहीं ....

फिर भी देर रात घर लौटते वक़्त..
मै मुंडेर पर ..चिडियों का पानी भर देता हूँ...

परिभाषा काल की मुझे नहीं मालूम.. जाने कब क्या हो...
कोई मिला तो हंस लिए... न मिला तो चल दिए...
पदचाप अपने ...निशब्द भी मिले... तो यू ही कुछ गुनगुना लिया...
षडयंत्र, राजनीति, विरोध, प्रदर्शन... जीवन के अब सामान्य पहलू से हो चले...

बचपन...की याद बहुत आती है... खेतो की मिट्टी में गुजरा था बचपन..
अब धमाको में उड़े.. बच्चो का खून...
अपनी खबर देखते-पढ़ते... करवट बदलते रात काट देता हूँ मैं
मैं फिर भी कविता लिख लेता हूँ

प्रिय मित्र अंकित श्रीवास्तव की यह रचना पढ़िए। अंकित दैनिक भास्कर समाचार समूह की भोपाल कॉरपोरेट एडिटोरियल डेस्क पर कार्यरत हैं।

फिर भी कविता लिख लेता हूँ...

सुबह से लेकर रात तक... भागती रहती है जिंदगी ..
कभी इस खबर.. कभी उस खबर...
इनके बीच मै बेखबर सा होकर घूमता रहता हूँ...
बदबूदार राजनीति... नालियों में सड़ती नवजात बेटियाँ.. सेलेब्रेटियों के पाखंड..

चौराहे पर एक कट चाय पीकर... फिर भी कविता लिख लेता हूँ...

निर्मोही सा... अब ये मन... नहीं पसीजता किसी घटना से...
मोहल्ले के कुत्ते की मौत पर.... मै कभी बहुत रोया था....
अब नर संहारो से भी कोई सरोकार नहीं ....

फिर भी देर रात घर लौटते वक़्त..
मै मुंडेर पर ..चिडियों का पानी भर देता हूँ...

परिभाषा काल की मुझे नहीं मालूम.. जाने कब क्या हो...
कोई मिला तो हंस लिए... न मिला तो चल दिए...
पदचाप अपने ...निशब्द भी मिले... तो यू ही कुछ गुनगुना लिया...
षडयंत्र, राजनीति, विरोध, प्रदर्शन... जीवन के अब सामान्य पहलू से हो चले...

बचपन...की याद बहुत आती है... खेतो की मिट्टी में गुजरा था बचपन..
अब धमाको में उड़े.. बच्चो का खून...
अपनी खबर देखते-पढ़ते... करवट बदलते रात काट देता हूँ मैं
मैं फिर भी कविता लिख लेता हूँ

प्रिय मित्र अंकित श्रीवास्तव की यह रचना पढ़िए। अंकित दैनिक भास्कर समाचार समूह की भोपाल कॉरपोरेट एडिटोरियल डेस्क पर कार्यरत हैं।

Thursday, July 23, 2009

साबित हो गया बिहार में जंगलराज

अब तक सुनते आए हैं कि बिहार देश का पिछड़ा राज्य है, यहां जंगल राज है। अपराधियों और बाहुबलियों का बोलबाला है। पुलिस प्रशासन खत्म हो चुका है। लेकिन आज की घटना के बाद यह साबित हो गया है, वाकई प्रदेश में कानून व्ववस्था का अस्तित्व खत्म हो चुका है। इससे नीच घटना क्या होगी कि किसी प्रदेश की राजधानी में खुलेआम इस तरह की घटना हो और पुलिस का दूर-दूर तक पता ही न हो।

जिन लोगों ने उसे भरी सड़क में उस लड़की के कपड़े उतारे और उसे खुले बदन दौड़ाया, मेरी राय में तो उन सबको गोली मार देना चाहिए।

मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आखिर इसमें किस-किस को दोषी माना जाए। उन कुत्तों की फौज को जिन्होंने उस औरत के शरीर को बेआबरु किया, जो औरत मां, बहन और बीवी होती है। या उन नपुंसकों की फौज को जिसे प्रशासन और पुलिस कहा जाता है। घिन आती है ऐसे लोगों पर।

पूरी घटना जी न्यूज पर देखी जा सकती है।

हुआ यूं कि पटना के एक स्थानीय होटल से एक जोड़े को निकाला गया तो कुछ तालिबानी माइंडसेट वाले संस्कृति के ठेकेदारों ने उन्हें घेर लिया। इन आवारा लोगों के समुदाय ने लड़के को खूब पीटा और लड़की के बदन से सारे कपड़े नोचकर उसे सड़क में दौड़ाया। यही है एक लोकतांत्रिक देश में महिलाऒं की स्थिति का कड़वा सच।

बिहार की राजधानी पटना में आज तालिबान जैसी घटना का एक शर्मनाक नजारा देखने को मिला। शहर के भीड़-भाड़ वाले रास्ते पर एक लड़की के उपर चोरी का झूठा आरोप लगाकर उसके जिस्म पर मौजूद कपड़े फाड़े गए।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक लड़की अपने ब्वॉय फ्रेंड के साथ घूम रही थी तभी दोनों में किसी बात को लेकर अनबन हुई और लड़की ने लड़के से उसका मोबाइल छीन लिया जिसके बाद लड़के ने लड़की पर चोरी का आरोप लगाकर भीड़ एकत्रित कर लिया जिसके बाद शुरु हो गया तालिबानी हैवानियत। वहां मौजूद कुछ लोगों ने लड़के-लड़की को जिस्मफरोसी के धंधें में लिप्त होने को लेकर दोनों को जमकर पीटा,इसके बाद समाज के ये गुंडे लड़की का सबके सामने बीच सड़क पर चीर हरण करने लगे।

लड़की के शरीर पर मौजूद कपड़ो को ये लोग कुत्तों की तरफ फाड़ दिए। सबसे बड़ी बात यह है कि उस भीड़ में ऐसा कोई भी शख्स नहीं था जो यह बोल सके कि यह गलत हो रहा है। सभी इस घटना को रोमांचक अंदाज में लेकर मजा ले रहे थे। लड़की चीख-पुकार कर रहम की भीख मांग रही थी लेकिन सभी मूक बनकर सिर्फ नजारा देख रहे थे।

इतने शर्मनाक घटना के बाद वहां की पुलिस अपना बचाव करते हुए नचर आई। पुलिस ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं हुआ है। किसी लड़की के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है।

घटना के बाद पूरे देश में इसकी कड़ी प्रतिक्रिया हो रही है। इस संबंध में भूतपूर्व रेलवे मंत्री लालू प्रसाद यादव का कहना है कि बिहार में इस प्रकार की घटना अपने आपमें बेहद ही शर्मजनक है। उन्होंने मुख्यमंत्री नितीश कुमार पर प्रहार करते हुए कहा कि इनके शासन में नियम कानून की सरेआम धज्जियां उड़ रही हैं कहीं भी कानून के साथ खिलवाड़ शुरु हो जाता है। यादव ने कहा कि वे पीड़ित लड़की को न्याय दिलाने के लिए पूरा प्रयास करेंगे।

साबित हो गया बिहार में जंगलराज

अब तक सुनते आए हैं कि बिहार देश का पिछड़ा राज्य है, यहां जंगल राज है। अपराधियों और बाहुबलियों का बोलबाला है। पुलिस प्रशासन खत्म हो चुका है। लेकिन आज की घटना के बाद यह साबित हो गया है, वाकई प्रदेश में कानून व्ववस्था का अस्तित्व खत्म हो चुका है। इससे नीच घटना क्या होगी कि किसी प्रदेश की राजधानी में खुलेआम इस तरह की घटना हो और पुलिस का दूर-दूर तक पता ही न हो।

जिन लोगों ने उसे भरी सड़क में उस लड़की के कपड़े उतारे और उसे खुले बदन दौड़ाया, मेरी राय में तो उन सबको गोली मार देना चाहिए।

मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आखिर इसमें किस-किस को दोषी माना जाए। उन कुत्तों की फौज को जिन्होंने उस औरत के शरीर को बेआबरु किया, जो औरत मां, बहन और बीवी होती है। या उन नपुंसकों की फौज को जिसे प्रशासन और पुलिस कहा जाता है। घिन आती है ऐसे लोगों पर।

पूरी घटना जी न्यूज पर देखी जा सकती है।

हुआ यूं कि पटना के एक स्थानीय होटल से एक जोड़े को निकाला गया तो कुछ तालिबानी माइंडसेट वाले संस्कृति के ठेकेदारों ने उन्हें घेर लिया। इन आवारा लोगों के समुदाय ने लड़के को खूब पीटा और लड़की के बदन से सारे कपड़े नोचकर उसे सड़क में दौड़ाया। यही है एक लोकतांत्रिक देश में महिलाऒं की स्थिति का कड़वा सच।

बिहार की राजधानी पटना में आज तालिबान जैसी घटना का एक शर्मनाक नजारा देखने को मिला। शहर के भीड़-भाड़ वाले रास्ते पर एक लड़की के उपर चोरी का झूठा आरोप लगाकर उसके जिस्म पर मौजूद कपड़े फाड़े गए।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक लड़की अपने ब्वॉय फ्रेंड के साथ घूम रही थी तभी दोनों में किसी बात को लेकर अनबन हुई और लड़की ने लड़के से उसका मोबाइल छीन लिया जिसके बाद लड़के ने लड़की पर चोरी का आरोप लगाकर भीड़ एकत्रित कर लिया जिसके बाद शुरु हो गया तालिबानी हैवानियत। वहां मौजूद कुछ लोगों ने लड़के-लड़की को जिस्मफरोसी के धंधें में लिप्त होने को लेकर दोनों को जमकर पीटा,इसके बाद समाज के ये गुंडे लड़की का सबके सामने बीच सड़क पर चीर हरण करने लगे।

लड़की के शरीर पर मौजूद कपड़ो को ये लोग कुत्तों की तरफ फाड़ दिए। सबसे बड़ी बात यह है कि उस भीड़ में ऐसा कोई भी शख्स नहीं था जो यह बोल सके कि यह गलत हो रहा है। सभी इस घटना को रोमांचक अंदाज में लेकर मजा ले रहे थे। लड़की चीख-पुकार कर रहम की भीख मांग रही थी लेकिन सभी मूक बनकर सिर्फ नजारा देख रहे थे।

इतने शर्मनाक घटना के बाद वहां की पुलिस अपना बचाव करते हुए नचर आई। पुलिस ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं हुआ है। किसी लड़की के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है।

घटना के बाद पूरे देश में इसकी कड़ी प्रतिक्रिया हो रही है। इस संबंध में भूतपूर्व रेलवे मंत्री लालू प्रसाद यादव का कहना है कि बिहार में इस प्रकार की घटना अपने आपमें बेहद ही शर्मजनक है। उन्होंने मुख्यमंत्री नितीश कुमार पर प्रहार करते हुए कहा कि इनके शासन में नियम कानून की सरेआम धज्जियां उड़ रही हैं कहीं भी कानून के साथ खिलवाड़ शुरु हो जाता है। यादव ने कहा कि वे पीड़ित लड़की को न्याय दिलाने के लिए पूरा प्रयास करेंगे।

Monday, July 13, 2009

मुकाती जी बने पत्रिका के मैगजीन हेड

श्री पंकज मुकाती को राजस्थान पत्रिका के मैग्जीन डेस्क का प्रभारी बनाया गया है। इससे पहले वो इंदौर में पत्रिका के स्थानीय संपादक थे।

Monday, July 6, 2009

बजट से यूं बनती है एक छन्दमुक्त कविता

वे छह छंदमुक्त कविताएं सुना लेने के पश्चात् सातवीं के लिए ‘स्टार्ट’ ले रहे थे। ज्ञान की खूंखार चमक चेहरे पर थी। छह सुना लेने की प्रचंड संतुष्टि से आप्लावित दिखाई दे रहे थे।
‘ये लीजिए जनाब, एक और, शीर्षक है अंतर्देशीय-पत्र..’  अंतर्देशीय, तुम और मैं..। पहला पन्ना, भले कर्मो का खाता-बही, दूसरा पन्ना, संसार के भंवर में नय्या फंसी तीसरा पन्ना, पास बुलाता दुष्कर्मो का कोहरा, चौथा पन्ना, लिप्सा-लालसाओं का जाल घना, पांचवां पन्ना,.. इसके पहले वे कुछ बोलते मैंने निवेदन किया,‘अंतर्देशीय में तो चार ही पन्ने..!’‘कविता की आत्मा में तर्क मत बैठाओ’ वे बोले। 
मैंने समझ लिया बहस करुंगा तो ‘यातना का कालखंड’ ज्यादा बढ़ जाएगा। बोलने को ही था कि वे फिर बोल पड़े।  ‘इसी कविता को लो अंतर्देशीय जैसे क्षुद्र प्रतीक में भी जीवन की सच्चई व्यक्त करने की ताकत है, हम एक दूसरे के इतने छिद्रान्वेषण में लगे रहते हैं कि संसार की मामूली से मामूली चीजों तक से शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते, इसी से तो मानव की अधोगति हो रही है।’
फिर मेरे जवाब की प्रतीक्षा किए बिना ही शुरू हो गए। ‘नवगति-अधोगति-दुर्गति’ मनुष्य की लाइफ स्टाइल की चेंजिंग पर है, सरलीकृत करते हुए उन्होंने बताया। उन्होंने फिर पढ़ा, ‘नवगति-अधोगति-दुर्गति’ ‘दर्द-दुख-दारुण्यआंसू’ इसी क्रम से ये वेदनाएं बढ़ती हैं, उन्होंने इस बार दार्शनिक व्याख्या की। हां, तो दर्द-दुख-दारुण्यआंसू प्रीत-पैसा-पतंग जालिमलोशन-जालिमलोशन-जालिमलोशन, हमने लाईन पूरी की। ‘छी: छी:.. उन्होंने कहा ध्यान मत भटकाओ। पहले चार लाईन पूरी करने दो। ‘नवगति-अधोगति-दुर्गति’ ‘दर्द-दुख-दारुण्यआंसू’ ‘प्रीत-पैसा-पतंग’ ‘प्रणब बाबू-प्रणब बाबू- प्रणब बाबू’ हें..! मैं गिरते-गिरते बचा। ‘ये कैसी कविता है’ ‘छंदमुक्त-बंधमुक्त-गंधमुक्त’ जीवन में महक फैलाने वाली’-उन्होंने व्याख्या की। ‘ये कैसी कविता है, जो जीवन की दार्शनिकता-सांसारिकता की विवेचना करते-करते वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी पर खत्म होती है’- अपने प्रतिवाद को मैंने विस्तार दिया।
‘ये कोई मामूली कविता नहीं हैं, इसमें सार छुपा हुआ है-जीवन सार’ उन्होंने बताया। -‘जीवनसार’..?
-‘हां, जीवनसार.. पहली लाइन में बात है लाइफ स्टाइल चेंजिंग’ को लेकर, दूसरी लाइन बात करती है वेदनाओं के बढ़ते चले जाने की फिर तीसरी लाइन में संसार की निस्सारता के बारे में गूढ़ बात की गई है। चौथी लाइन में जीवन की वास्तविकता की बात कही गई है’ वे फुसफुसाए।
‘क्या वास्तविकता!!’ मैंने उनसे सरल भाषा में विवरण की मांग रख दी। ‘देखो, शेयर मार्केट में पैसा लगाओगे, फिर महंगाई बढ़ेगी। शेयर गिरेंगे, पैसा डूब जाएगा, लाइफ स्टाइल चेंज हो जाएगी, दुख पर दुख मिलने लगेंगे यानि क्रम से वेदनाएं बढ़ेंगी तो संसार तो नश्वर लगेगा ही, बोलो सच है कि नहीं’ उन्होंने और सरलीकृत ढंग से समझाया।
‘फिर इनके पीछे जिम्मेदार कौन हैं हमारे वित्तमंत्रीजी जिनके एक भाषण से सब उलट-पुलट हो जाता है। यहां तक की एक आदमी कवि ह्दय तक हो जाता है।’
‘हां, तो.. फिर?’ ‘फिर क्या मानव को वैराग्य की दिशा में ले जाए-मोक्ष के बारे में सोचने पर विवश करे। उस महान आत्मा से ज्यादा और किसके नाम से आमजन की इस पहली वास्तविक कविता का समापन किया जा सकता है’, उन्होंने बात समेटी।
‘लेकिन गुरु, इतनी महान वास्तविक रचना का आइडिया आपके पास आया कहां से’- मैंने उठते-उठते जानना चाहा।
‘शेयर मार्केट में 5 लाख गंवाने के बाद’ -कहकर वे उठे और बच्चों को दरवाजा छोड़कर बाहर खेलने के आदेश देने में व्यस्त हो गए।

-अनुज खरे

बजट से यूं बनती है एक छन्दमुक्त कविता

वे छह छंदमुक्त कविताएं सुना लेने के पश्चात् सातवीं के लिए ‘स्टार्ट’ ले रहे थे। ज्ञान की खूंखार चमक चेहरे पर थी। छह सुना लेने की प्रचंड संतुष्टि से आप्लावित दिखाई दे रहे थे।
‘ये लीजिए जनाब, एक और, शीर्षक है अंतर्देशीय-पत्र..’  अंतर्देशीय, तुम और मैं..। पहला पन्ना, भले कर्मो का खाता-बही, दूसरा पन्ना, संसार के भंवर में नय्या फंसी तीसरा पन्ना, पास बुलाता दुष्कर्मो का कोहरा, चौथा पन्ना, लिप्सा-लालसाओं का जाल घना, पांचवां पन्ना,.. इसके पहले वे कुछ बोलते मैंने निवेदन किया,‘अंतर्देशीय में तो चार ही पन्ने..!’‘कविता की आत्मा में तर्क मत बैठाओ’ वे बोले। 
मैंने समझ लिया बहस करुंगा तो ‘यातना का कालखंड’ ज्यादा बढ़ जाएगा। बोलने को ही था कि वे फिर बोल पड़े।  ‘इसी कविता को लो अंतर्देशीय जैसे क्षुद्र प्रतीक में भी जीवन की सच्चई व्यक्त करने की ताकत है, हम एक दूसरे के इतने छिद्रान्वेषण में लगे रहते हैं कि संसार की मामूली से मामूली चीजों तक से शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते, इसी से तो मानव की अधोगति हो रही है।’
फिर मेरे जवाब की प्रतीक्षा किए बिना ही शुरू हो गए। ‘नवगति-अधोगति-दुर्गति’ मनुष्य की लाइफ स्टाइल की चेंजिंग पर है, सरलीकृत करते हुए उन्होंने बताया। उन्होंने फिर पढ़ा, ‘नवगति-अधोगति-दुर्गति’ ‘दर्द-दुख-दारुण्यआंसू’ इसी क्रम से ये वेदनाएं बढ़ती हैं, उन्होंने इस बार दार्शनिक व्याख्या की। हां, तो दर्द-दुख-दारुण्यआंसू प्रीत-पैसा-पतंग जालिमलोशन-जालिमलोशन-जालिमलोशन, हमने लाईन पूरी की। ‘छी: छी:.. उन्होंने कहा ध्यान मत भटकाओ। पहले चार लाईन पूरी करने दो। ‘नवगति-अधोगति-दुर्गति’ ‘दर्द-दुख-दारुण्यआंसू’ ‘प्रीत-पैसा-पतंग’ ‘प्रणब बाबू-प्रणब बाबू- प्रणब बाबू’ हें..! मैं गिरते-गिरते बचा। ‘ये कैसी कविता है’ ‘छंदमुक्त-बंधमुक्त-गंधमुक्त’ जीवन में महक फैलाने वाली’-उन्होंने व्याख्या की। ‘ये कैसी कविता है, जो जीवन की दार्शनिकता-सांसारिकता की विवेचना करते-करते वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी पर खत्म होती है’- अपने प्रतिवाद को मैंने विस्तार दिया।
‘ये कोई मामूली कविता नहीं हैं, इसमें सार छुपा हुआ है-जीवन सार’ उन्होंने बताया। -‘जीवनसार’..?
-‘हां, जीवनसार.. पहली लाइन में बात है लाइफ स्टाइल चेंजिंग’ को लेकर, दूसरी लाइन बात करती है वेदनाओं के बढ़ते चले जाने की फिर तीसरी लाइन में संसार की निस्सारता के बारे में गूढ़ बात की गई है। चौथी लाइन में जीवन की वास्तविकता की बात कही गई है’ वे फुसफुसाए।
‘क्या वास्तविकता!!’ मैंने उनसे सरल भाषा में विवरण की मांग रख दी। ‘देखो, शेयर मार्केट में पैसा लगाओगे, फिर महंगाई बढ़ेगी। शेयर गिरेंगे, पैसा डूब जाएगा, लाइफ स्टाइल चेंज हो जाएगी, दुख पर दुख मिलने लगेंगे यानि क्रम से वेदनाएं बढ़ेंगी तो संसार तो नश्वर लगेगा ही, बोलो सच है कि नहीं’ उन्होंने और सरलीकृत ढंग से समझाया।
‘फिर इनके पीछे जिम्मेदार कौन हैं हमारे वित्तमंत्रीजी जिनके एक भाषण से सब उलट-पुलट हो जाता है। यहां तक की एक आदमी कवि ह्दय तक हो जाता है।’
‘हां, तो.. फिर?’ ‘फिर क्या मानव को वैराग्य की दिशा में ले जाए-मोक्ष के बारे में सोचने पर विवश करे। उस महान आत्मा से ज्यादा और किसके नाम से आमजन की इस पहली वास्तविक कविता का समापन किया जा सकता है’, उन्होंने बात समेटी।
‘लेकिन गुरु, इतनी महान वास्तविक रचना का आइडिया आपके पास आया कहां से’- मैंने उठते-उठते जानना चाहा।
‘शेयर मार्केट में 5 लाख गंवाने के बाद’ -कहकर वे उठे और बच्चों को दरवाजा छोड़कर बाहर खेलने के आदेश देने में व्यस्त हो गए।

-अनुज खरे

क्या है पुलिस के मायने

सभी ब्लॉगर साथियों को नमस्कार।

काफी समय बाद कुछ लिख रहा हूं। मन तो रोज ही होता है पर इंसानी फितरत यानी आलस्य कि कल लिख लेंगे, की वजह से नहीं लिख पा रहा था। कई दिनों से मेरे मन में एक बात घूम रही है। हालांकि हम लोग हमेशा ही इस विषय पर बात करते रहते हैं, लेकिन बड़े अफसोस की बात है कि पूरा मामला बातों पर ही खत्म हो जाता है। मुद्दा टीवी चैनलों की भाषा में तो काफी गंभीर कहा जा सकता है। लेकिन यहां भी बात किसी मुकाम तक नहीं पहुंच पाती है।

खैर, मैं शब्दों का इस्तेमाल आपको बोर करने के लिए नहीं करुंगा, क्योंकि जानता हूं कि वक्त कीमती होता है। मेरे मन में जो बात हलचल मचा रही है वह है हमारी सड़ी हुई पुलिस व्यवस्था की। एक ऐसी व्यवस्था जिसका खौफ अपराधियों में है ही नहीं। मैं आपका ध्यान कुछ हालिया घटनाऒं की ऒर दिलाना चाहता हूं।

बात है भोपाल में कुछ दिनों पहले हुए सामूहिक बलात्कार की। जब घटना हुई तो सबसे पहले पुलिस पर निशाना साधा गया। फिर शुरु हुई आनन फानन में होने वाली जांच। ऐसी जांच जिनके परिणाम विरली परिस्थियों में ही प्राप्त होते हैं। लेकिन आपको यह नहीं लगता है कि देश में बलात्कार और हत्याएं आम बात बनती जा रही हैं। लॉ एंड ऑर्डर जैसी व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी सी लगती है। नेताऒं को एक दूसरे पर कीचड़ उछालने भ्रष्टाचार मचाने और थोथी घोषणाएं करने से फुरसत ही नहीं है। वैसे इसके पीछे दोष किसका है। क्या सिर्फ नेताऒं और पुलिस का नहीं। समाज और जनता का भी है। सबकुछ एक दूसरे से बंधा हुआ है। यानी की सिस्टम ही सड़ा है। इसे ठीक करने के लिए कौन आगे आएगा।

अब एक और बात। भोपाल और इंदौर में पुलिस ने महत्वपूर्ण चौराहों पर पुलिस सहायता केंद्र बना रखे हैं। लेकिन इनमें पुलिसकर्मी तीज-त्योहार ही देखे जा सकते हैं। कई सहायता केंद्रों के तो ताले तक नहीं खुले। हां, वहीं कुछ ऐसे केंद्र जो शराब की दुकानों के आसपास बने हैं, वहां मुस्तैदी देखी जा सकती है। कहने में कोई गुरेज नहीं कि इस मुस्तैदी के पीछे सोमरस की ललक और मुद्रा दोनों ही होते हैं।

हमारी पुलिस की सारी ताकत कमजोरों पर ही दिखती है। मुझे हालिया वाकया याद आ रहा है, जिसमें भोपाल के साकेत नगर इलाके के रहवासियों ने शिकायत की थी, कि उनके मोहल्ले में रहने वाले सीएम साहब के भाई के यहां चोरी हुई तो पुलिस ने मामले को कुछ ही दिन में सुलझाकर आरोपियों को पकड़ भी लिया पर उसी इलाके के बाकी घरों में लगातार हो रही चोरी का कोई सुराग नहीं है।

है ना यह पुलिस की काबिलियत। केवल वही मामले सुलझते हैं जिनके पीछे वीआईपी जैसा कुछ हो।

अगर ऐसा नहीं होता तो भोपाल के भीड़भाड़ वाले बाजार विट्टन मार्केट में सरेआम गोलियां नहीं चलती। वो भी तब जबकि थाना वहां से महज इतना दूर है कि अगर कोई सामान्य व्यक्ति चिल्लाए तो थाने के अंदर बैठे लोग भी सुन सकते हैं। इस पर देशभक्ति जनसेवा लिखे बैच पहनने वाली पुलिस का कहना है कि वो हर किसी पर नजर नहीं रख सकती है।

तो हम कब कह रहे हैं कि एक एक बंदे पर नजर रखो पर कम से कम क्रिमिनल्स पर इतनी लगाम तो रखो कि वो गुनाह करने के पहले एक बार पुलिसिया खौफ के बारे में सोचें। हालांकि ऐसा संभव है इसकी उम्मीद नहीं के बराबर है।

आखिर में एक बात और कि अगर आपमें किसी को पुलिस का पूरा मतलब मालूम हो तो मुझे जरुर बताइएगा। क्योंकि जो मतलब मुझे पता है वो तो शायद हमारी पुलिस पर तो फिट नहीं बैठता है।

P for Polite =?
O for Obedient =?
L for Loyal =?
I for Intelligent =?
C for Courageous =?
E for Eager to help =?

अगर आप बोर हुए हों तो माफी चाहूंगा पर दिल में था सो शब्द बनकर बाहर आ गए।

अमूल्य वक्त देने का शुक्रिया।

क्या है पुलिस के मायने

सभी ब्लॉगर साथियों को नमस्कार।

काफी समय बाद कुछ लिख रहा हूं। मन तो रोज ही होता है पर इंसानी फितरत यानी आलस्य कि कल लिख लेंगे, की वजह से नहीं लिख पा रहा था। कई दिनों से मेरे मन में एक बात घूम रही है। हालांकि हम लोग हमेशा ही इस विषय पर बात करते रहते हैं, लेकिन बड़े अफसोस की बात है कि पूरा मामला बातों पर ही खत्म हो जाता है। मुद्दा टीवी चैनलों की भाषा में तो काफी गंभीर कहा जा सकता है। लेकिन यहां भी बात किसी मुकाम तक नहीं पहुंच पाती है।

खैर, मैं शब्दों का इस्तेमाल आपको बोर करने के लिए नहीं करुंगा, क्योंकि जानता हूं कि वक्त कीमती होता है। मेरे मन में जो बात हलचल मचा रही है वह है हमारी सड़ी हुई पुलिस व्यवस्था की। एक ऐसी व्यवस्था जिसका खौफ अपराधियों में है ही नहीं। मैं आपका ध्यान कुछ हालिया घटनाऒं की ऒर दिलाना चाहता हूं।

बात है भोपाल में कुछ दिनों पहले हुए सामूहिक बलात्कार की। जब घटना हुई तो सबसे पहले पुलिस पर निशाना साधा गया। फिर शुरु हुई आनन फानन में होने वाली जांच। ऐसी जांच जिनके परिणाम विरली परिस्थियों में ही प्राप्त होते हैं। लेकिन आपको यह नहीं लगता है कि देश में बलात्कार और हत्याएं आम बात बनती जा रही हैं। लॉ एंड ऑर्डर जैसी व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी सी लगती है। नेताऒं को एक दूसरे पर कीचड़ उछालने भ्रष्टाचार मचाने और थोथी घोषणाएं करने से फुरसत ही नहीं है। वैसे इसके पीछे दोष किसका है। क्या सिर्फ नेताऒं और पुलिस का नहीं। समाज और जनता का भी है। सबकुछ एक दूसरे से बंधा हुआ है। यानी की सिस्टम ही सड़ा है। इसे ठीक करने के लिए कौन आगे आएगा।

अब एक और बात। भोपाल और इंदौर में पुलिस ने महत्वपूर्ण चौराहों पर पुलिस सहायता केंद्र बना रखे हैं। लेकिन इनमें पुलिसकर्मी तीज-त्योहार ही देखे जा सकते हैं। कई सहायता केंद्रों के तो ताले तक नहीं खुले। हां, वहीं कुछ ऐसे केंद्र जो शराब की दुकानों के आसपास बने हैं, वहां मुस्तैदी देखी जा सकती है। कहने में कोई गुरेज नहीं कि इस मुस्तैदी के पीछे सोमरस की ललक और मुद्रा दोनों ही होते हैं।

हमारी पुलिस की सारी ताकत कमजोरों पर ही दिखती है। मुझे हालिया वाकया याद आ रहा है, जिसमें भोपाल के साकेत नगर इलाके के रहवासियों ने शिकायत की थी, कि उनके मोहल्ले में रहने वाले सीएम साहब के भाई के यहां चोरी हुई तो पुलिस ने मामले को कुछ ही दिन में सुलझाकर आरोपियों को पकड़ भी लिया पर उसी इलाके के बाकी घरों में लगातार हो रही चोरी का कोई सुराग नहीं है।

है ना यह पुलिस की काबिलियत। केवल वही मामले सुलझते हैं जिनके पीछे वीआईपी जैसा कुछ हो।

अगर ऐसा नहीं होता तो भोपाल के भीड़भाड़ वाले बाजार विट्टन मार्केट में सरेआम गोलियां नहीं चलती। वो भी तब जबकि थाना वहां से महज इतना दूर है कि अगर कोई सामान्य व्यक्ति चिल्लाए तो थाने के अंदर बैठे लोग भी सुन सकते हैं। इस पर देशभक्ति जनसेवा लिखे बैच पहनने वाली पुलिस का कहना है कि वो हर किसी पर नजर नहीं रख सकती है।

तो हम कब कह रहे हैं कि एक एक बंदे पर नजर रखो पर कम से कम क्रिमिनल्स पर इतनी लगाम तो रखो कि वो गुनाह करने के पहले एक बार पुलिसिया खौफ के बारे में सोचें। हालांकि ऐसा संभव है इसकी उम्मीद नहीं के बराबर है।

आखिर में एक बात और कि अगर आपमें किसी को पुलिस का पूरा मतलब मालूम हो तो मुझे जरुर बताइएगा। क्योंकि जो मतलब मुझे पता है वो तो शायद हमारी पुलिस पर तो फिट नहीं बैठता है।

P for Polite =?
O for Obedient =?
L for Loyal =?
I for Intelligent =?
C for Courageous =?
E for Eager to help =?

अगर आप बोर हुए हों तो माफी चाहूंगा पर दिल में था सो शब्द बनकर बाहर आ गए।

अमूल्य वक्त देने का शुक्रिया।