देश की प्रत्येक नारी को अपने पति पर संदेह करना चाहिए। उसके हर ज्ञात-अज्ञात कारण पर संदेह रखना ही चाहिए। संदेह करने के हर कारण पर संदेह करना चाहिए। जहां संदेह करने का कारण न भी हो, वहां भी संदेह करना चाहिए। घरेलू कामों में रत रहकर भी निरंतर संदेह की माला फेरते रहना चाहिए।
संदेह करना नारी का आभूषण है, बिंदी है, कानों के टॉप्स हैं, हाथों के कंगन हैं। संदेह करना नारी का मौलिक अधिकार है। पारिवारिक जीवन में सारे इंकलाब इसी गुण के कारण आते हैं। इंकलाब से ही नए सृजन, नए समाज का निर्माण होता है। नए समाज में नारी की स्थिति बेहतर होती है। साबित रूप से संदेह ही इन सारे परिवर्तनों की जड़ है। अत: संदेह करना ही चाहिए।
नारी को ही संदेह करना चाहिए। पुरुष संदेह करके आखिर कर क्या लेगा। फिलहाल तो संदेह के सैकड़ों प्रकारों का चलन है। कुछ घरेलू उपयोग तो कुछ बाहरी प्रयोग के लिए हैं। कुल मिलाकर हर प्रकार का अनन्यतम उद्देश्य है पति की हर गतिविधि पर गहरी नजर, कड़ी पड़ताल और मौके-बेमौके तात्कालिक पूछताछ।
पूछताछ के दौरान काल्पनिक स्थितियों के निर्माण तथा स्वर में उतार-चढ़ाव की मात्रा अत्यंत जरूरी है। संदेह तभी वांछित प्रभाव छोड़ता है, जब करने वाली उपरोक्त दोनों गुणों से ओतप्रोत हो।
यदि नारी में कल्पनाशीलता का गुण न हो तो संदेह सतही हो सकता है। स्वर साधने का तगड़ा रियाज नहीं हो तो प्रभाव की फ्रीक्वेंसी हल्की पड़ सकती है। अत: संदेह-साधना रियाज की मांग करती है। संदेह साधिका को योगिनी होना पड़ता है। पति की जेबों-रूमालों-ईमेलों पर सूक्ष्म नजर रखनी पड़ती है। उन्हें किसी बुजुर्ग महिला तक के साथ देखते ही नेत्रों को विस्फारित करने का तरीका सीखना पड़ता है। इतना गुस्सा दिखाना पड़ता है कि पतिदेव के छक्के छूट जाएं।
कई पति तो इसी दहशत में किसी काल्पनिक लड़की तक से अपने संबंधों को स्वीकार कर लेते हैं। कई भुक्तभोगी पतियों का अनुभव इस दिशा में बड़ा विकट है। पत्नी के श्रंगार करने पर कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती है। यदि पति तैयार होने में देर कर रहा है तो पत्नी की ओर से निश्चित कमेंट आएगा। आप कितना भी कहो, ऑफिस ही तो जा रहा हूं्, लेकिन दो ही मिनट में पिछला बैकग्राउंडर जोड़ते हुए मामले को शंकास्पद मोड़ दे दिया जाएगा।
फिर बातों के इतने रंदे चलाए जाएंगे कि पावडर चपोड़े पति का चेहरा लकड़ी की तरह छिल-छिलकर जमीन पर बिखर जाएगा। कई पतियों का तो कहना है कि यदि कभी गलती से आपने घर में गुनगुना भर लिया तो इसके पीछे छिपे राज को वे इतने प्यार से आपको ही बताएंगी कि आदमी घर-मोहल्ले के सारे वाद्य यंत्रों के साथ-साथ आस-पड़ोस के समस्त गाने वालों का गला घोंटकर ही फिर इस पाप से उबर सकता है।
कुछ नारियां अत्यधिक तेज होती हैं। उनके संदेह करने के तरीके अत्यंत नवाचारी होते हैं। पति डाल-डाल तो वह पात-पात होती हैं। पति गुड़ होता है तो वह सैक्रीन हो जाती हैं। पति की हर चाल की काट के लिए मारक तुरुप लाती हैं।
तुरुप के रूप में वह अपने माता-पिता से लेकर पति के माता-पिता तक का इस्तेमाल करने से नहीं चूकती हैं। आंसुओं को हमेशा स्टॉक में रखती हैं। उसका इस्तेमाल डबल तुरुप के रूप में करती हैं। अरे.., अरे.. एक मिनट भाई साब.. मैंने भी आपको सुनाने में देर लगा दी तो निश्चित ही मेरे घर में भी संदेह के बादल घिर आएंगे, मुझे बख्शो.. आप भी सीधे घर की ओर लपको..।
लेखकः श्री अनुज खरे की रचना दैनिक भास्कर के राग दरबारी कॉलम से साभार (लेखक दैनिक भास्कर के पोर्टल भास्कर डॉट कॉम के वेबसंपादक हैं।)
मेरा सौभाग्य है कि मुझे उनसे सीखना का अवसर दोबारा प्राप्त हुआ है।
अद्भुत संदेहपरक रचना
ReplyDeleteवैसे सच बोलने कि भी हिम्मत चाहिए....सो वह तो दिखती है .....लेकिन जिस के सामने यह सच बोलना चाहिए......वहां कौन बोलेगा?.....लेकिन मुकाबला करने की हिम्मत शायद पति रूपी प्राणी कभी नही जुटा पाता.......निजि अनुभव से बता रहें हैं.....शंका मत करना....बढिया पोस्ट लिखी है बधाई।
ReplyDeleteपढकर हम भी सीधा घर ही जा रहे हैं जी, बस आपको टिप्पणी करने के लिए ही रूके थे.....आप भी निकल ही लीजिए, अगर देर हो गई तो कहीं "बेलन अस्त्र" का प्रहार न झेलना पड जाए।
ReplyDeleteफिर भी पति कभी नहीं सुधरते..
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