श्याम बेनेगल के महान निर्माण ‘भारत एक खोज’ की शुरुआत में संस्कृत के वेद आधारित श्लोकों से रचा गया गीत समूह स्वरों में गूंजता था। था क्या, अब भी कानों में गूंज रहा है। यह स्वार मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति को दो घड़ी के लिए उसके मानसिक, नैतिक और दैहिक स्तर से कुछ ऊंचा उठा देता है। जरा याद करें:
सृष्टि से पहले सत नहीं था
असत भी नहीं
अंतरिक्ष भी नहीं
आकाश भी नहीं था
छिपा था क्या कहां
किसने ढका था उस पल को
अगम अतल जल भी कहां था
सृष्टि का कौन है कर्ता
कर्ता है वह अकर्ता
ऊंचे आकाश में रहता
सदा अध्यक्ष बना रहता
वही सचमुच में जानता
या नहीं भी जानता
है किसी को नहीं पता
वो था हिरण्यगर्भ सृष्टि से पहले विद्यमान
वही तो सारी भूत जाति का स्वामी महान
जो है अस्तित्ववान
धरती आसमान धारण कर
ऐसे किसी देवता की उपासना करें हम
हवि देकर
जिस के बल पर तेजोमय है अंबर
पृथ्वी हरी-भरी, स्थापित, स्थिर,
स्वर्ग और सूरज भी स्थिर
ऐसे किसी देवता की उपासना करें हम
हवि देकर
गर्भ में अपने अग्नि धारण कर पैदा कर
व्यापा था जल इधर-उधर, नीचे-ऊपर
जगा चुके व एकमेव प्राण बनकर
ऐसे किसी देवता की उपासना करें हम
हवि देकर
ऊं! सृष्टि निर्माता, स्वर्ग रचयिता, पूर्वज रक्षा कर
सत्य धर्म पालक अतुल जल नियामक रक्षा कर
फैली हैं दिशाएं बाहु जैसी उसकी सब में सब कर
ऐसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर
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बहुत बढिया......
ReplyDeleteबहुत बढिया......
ReplyDeleteबहुत बढिया......
ReplyDeleteआजकल इतने अच्छे गीत सुनने को नहीं मिलते हैं।
ReplyDeleteभाई जान वाकई आपने तो पुरानी यादें ताजा कर दीं... बहुत-बहुत शुक्रिया आपका
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति
ReplyDeleteअच्छी रचना प्रेषित की है।आभार।
ReplyDeleteइसका संगीत भी अति उत्तम था ।
ReplyDeleteवनराज भाटिया ने वैदिक उदात्तता के साथ पूरा न्याय किया था.
बहुत बहुत धन्यवाद्
वाह मंत्रमुग्ध करते शब्द !
ReplyDeleteआजकल भगवान की शरणागत हो गए हैं क्या भाई?
ReplyDeleteवैसे ऐसी बातें हम किसी बुजुर्गवार के ब्लाग पर ही देखने की उम्मीद कर रहे थे।
आजकल भगवान की शरणागत हो गए हैं क्या भाई?
ReplyDeleteवैसे ऐसी बातें हम किसी बुजुर्गवार के ब्लाग पर ही देखने की उम्मीद कर रहे थे।