अगस्त 1947 से लगातार हर वर्ष दक्षिण एशिया के दो देश, भारत और पाकिस्तान अपना स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं। 14 अगस्त को पाकिस्तान में यौम-ए-आजादी मनाई जाती है तो अगले दिन 15 अगस्त को भारत में स्वतंत्रता दिवस की धूम रहती है। लेकिन एक सवाल ऐसा है जो आज के युवाओं के मन-मस्तिष्क में रह-रहकर उठना चाहिए, वह यह है कि आखिर किन वजहों से भारत को दो (पूर्वी पाकिस्तान को मिलाकर 3) हिस्सों में बांट दिया।
बंटवारे को लेकर हमें जो ज्ञान किताबों और टीवी से मिलता है, वह यह है कि अंग्रेजों ने भारत से अपनी हुकूमत खत्म करने के पहले यह कदम उठाया था। इस बंटवारे की वजह से एक करोड़ से भी ज्यादा लोगों को अपनी-अपनी मातृभूमि छोड़कर जाना पड़ा था और आधिकारिक रूप से एक लाख से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था।
ब्रिटिश हुकूमत में मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र को पाकिस्तान और हिंदुओं के आधिक्य वाले क्षेत्र को भारत घोषित किया था। हालांकि माना तो यह भी जाता है कि इस बंटवारे के पीछे राजनीतिक महत्वकांक्षा सबसे बड़ी वजह थी। ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन के अभिलेखों के मुताबिक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के शीर्ष नेतृत्व की जिद के चलते बंटवारा किया गया और भारत और पाकिस्तान नाम से दो देश बनाए गए। इसमें से एक देश जिसे पूर्वी पाकिस्तान या पूर्वी बंगाल कहा जाता था (अब बांग्लादेश) वह पश्चिमी पाकिस्तान से 1700 किलोमीटर दूर था। इस तरह से कहा जाए तो धर्म के आधार पर भारत के तीन टुकड़े हुए थे।
यह संभव है कि मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना की यह ख्वाहिश रही हो कि मुस्लिमों को एक अलग आजाद देश दे दिया जाए, जहां वो अपने मुताबिक रह सकें। हालांकि पाकिस्तान का विचार सन 1930 से पहले तक अस्तित्व में ही नहीं था। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद आर्थिक रूप से जीर्ण होने पर ब्रिटिश सरकार ने यह तय किया कि भारत में औपनिवेश बनाए रखना अब उनके लिए फायदे का सौदा नहीं रह गया है। रही सही कसर तब पूरी हो गई, जब ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार बनी, जिसने यह तय किया था कि 1948 तक भारत की सत्ता भारतीयो के हाथ में दे दी जाएगी। हालांकि इस पर अमल एक वर्ष पहले ही हो गया और वो भी आनन-फानन में।
ब्रिटिश सरकार ने जल्द से जल्द वो भारत से अपना बोरिया बिस्तर समेटनी की योजना बनाई और जल्दबाजी में बिना नतीजों की परवाह किए भारत का बंटवारा कर पाकिस्तान बना दिया गया।
आपको जानकर हैरत होगी कि 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान में आजादी का जश्न और भारत 15 अगस्त को भारत में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। लेकिन दोनों देशों के बीच सीमा रेखा का निर्धारण 17 अगस्त 1947 को किया गया। ब्रिटेन के वकील साइरिल रेडक्लिफ ने भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा का निर्धारण किया था। उन्हें भारतीय परिस्थितियों की थोड़ी बहुत समझ थी। उन्होंने कुछ पुराने जर्जर नक्शों पर उन्होंने इस सीमा को तय किया था। बंटवारे की लकीर को खींचने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा 1940 में कराई गई जनगणना को आधार बनाया गया था। इसी से यह स्पष्ट होता है कि देश का बंटवारा किस कदर जल्दबाजी में किया गया होगा।
वहीं भारत के अंतिम वायसराय लुईस माउंटबेटन ने भी महत्वपूर्ण मसलों पर विमर्श किए बगैर ही ब्रिटिश शासन के अंत की घोषणा कर दी थी।
दुनिया के कई देशों ने भारत के बंटवारे पर आश्चर्य जाहिर किया था। यह सवाल भी उठे थे कि आखिर इस काम को बिना नतीजों का अनुमान लगाए हुए, जल्दबाली में क्यों किया गया। इसका जवाव भी भारत में ही छिपा हुआ है। दरअसल, 1947 से कुछ वर्ष पहले से ही ब्रिटिश हुकूमत को यह आभास होने लगा था कि उनके लिए भारत पर राज करना अब महंगा साबित हो रहा है। दूसरे विश्य युद्ध के बाद ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति बदतर हो रही थी। अंग्रेजी नेताओं को अपने ही देश में ही जवाब देना भारी पड़ रहा था। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अंग्रेजी सेना की 55 बटालियनों को तैनात करने की वजह से दंगे भड़क गए थे। इसके बाद अलावा खाद्यान्न संकट, सूखा और बढ़ती बेरोजगारी ने अंग्रेजों के लिए भारत पर राज करना महंगा सौदा बना दिया था। 1942 के बंगाल के अकाल के बाद अंग्रेजों ने भारत में राशन प्रणाली शुरू कर दी थी। इससे भी भारतीय जनता में आक्रोश बढ़ गया था।
उस वक्त तक अंग्रेजों की तरफदारी करने वाली मुस्लिम लीग का मोह भी उनसे भंग हो गया था। 16 अगस्त 1947 को मोहम्मद अली जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन डे कहा था। उनकी मांग थी कि मुस्लिमों के लिए पाकिस्तान नाम से एक अलग मुल्क घोषित किया जाए। इस मांग ने जोर पकड़ा तो पूरा उत्तर भारत दंगे की आग में जल उठा। हजारों-हजार लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। इस दंगे से ब्रिटिश हुकूमत की बंटवारे की योजना को बल मिल गया। उन्होंने यह तय किया कि हिंदू और मुस्लिम एक ही देश में मिलकर नहीं रह सकेंगे, इसलिए मुल्क का बंटवारा जरूरी है। जबकि सच यह था कि राजनीतिक नियंत्रण और पर्याप्त सैन्य बल न होने की वजह से दंगे फैले थे।
पंजाब और सिंध प्रांत में रहने वाले मुस्लिम भी पाकिस्तान के पक्षधर थे। दरअसल इस क्षेत्र में उन्हें हिंदु व्यापारियों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती थी। इसलिए मुल्क के बंटवारे से उनकी यह समस्या खत्म होने वाली थी। वहीं पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के लोग भी गैर-मुस्लिम सूदखोरों के चंगुल से आजाद होना चाहते थे। हालांकि बंटवारे से सबसे ज्यादा व्यावसायिक फायदा भारत को ही हुआ। देश की आर्थिक तरक्की में 90 फीसदी भागीदारी वाले शहर और उद्योग भारत के हिस्से में ही थे। इसमें दिल्ली, मुंबई और कलकत्ता जैसे बड़ शहर भी शामिल थे। वहीं पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित थी, जिस पर प्रभावशाली लोगों का एकाधिकार था।
बंटवारे को लेकर हमें जो ज्ञान किताबों और टीवी से मिलता है, वह यह है कि अंग्रेजों ने भारत से अपनी हुकूमत खत्म करने के पहले यह कदम उठाया था। इस बंटवारे की वजह से एक करोड़ से भी ज्यादा लोगों को अपनी-अपनी मातृभूमि छोड़कर जाना पड़ा था और आधिकारिक रूप से एक लाख से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था।
ब्रिटिश हुकूमत में मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र को पाकिस्तान और हिंदुओं के आधिक्य वाले क्षेत्र को भारत घोषित किया था। हालांकि माना तो यह भी जाता है कि इस बंटवारे के पीछे राजनीतिक महत्वकांक्षा सबसे बड़ी वजह थी। ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन के अभिलेखों के मुताबिक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के शीर्ष नेतृत्व की जिद के चलते बंटवारा किया गया और भारत और पाकिस्तान नाम से दो देश बनाए गए। इसमें से एक देश जिसे पूर्वी पाकिस्तान या पूर्वी बंगाल कहा जाता था (अब बांग्लादेश) वह पश्चिमी पाकिस्तान से 1700 किलोमीटर दूर था। इस तरह से कहा जाए तो धर्म के आधार पर भारत के तीन टुकड़े हुए थे।
यह संभव है कि मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना की यह ख्वाहिश रही हो कि मुस्लिमों को एक अलग आजाद देश दे दिया जाए, जहां वो अपने मुताबिक रह सकें। हालांकि पाकिस्तान का विचार सन 1930 से पहले तक अस्तित्व में ही नहीं था। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद आर्थिक रूप से जीर्ण होने पर ब्रिटिश सरकार ने यह तय किया कि भारत में औपनिवेश बनाए रखना अब उनके लिए फायदे का सौदा नहीं रह गया है। रही सही कसर तब पूरी हो गई, जब ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार बनी, जिसने यह तय किया था कि 1948 तक भारत की सत्ता भारतीयो के हाथ में दे दी जाएगी। हालांकि इस पर अमल एक वर्ष पहले ही हो गया और वो भी आनन-फानन में।
ब्रिटिश सरकार ने जल्द से जल्द वो भारत से अपना बोरिया बिस्तर समेटनी की योजना बनाई और जल्दबाजी में बिना नतीजों की परवाह किए भारत का बंटवारा कर पाकिस्तान बना दिया गया।
आपको जानकर हैरत होगी कि 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान में आजादी का जश्न और भारत 15 अगस्त को भारत में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। लेकिन दोनों देशों के बीच सीमा रेखा का निर्धारण 17 अगस्त 1947 को किया गया। ब्रिटेन के वकील साइरिल रेडक्लिफ ने भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा का निर्धारण किया था। उन्हें भारतीय परिस्थितियों की थोड़ी बहुत समझ थी। उन्होंने कुछ पुराने जर्जर नक्शों पर उन्होंने इस सीमा को तय किया था। बंटवारे की लकीर को खींचने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा 1940 में कराई गई जनगणना को आधार बनाया गया था। इसी से यह स्पष्ट होता है कि देश का बंटवारा किस कदर जल्दबाजी में किया गया होगा।
वहीं भारत के अंतिम वायसराय लुईस माउंटबेटन ने भी महत्वपूर्ण मसलों पर विमर्श किए बगैर ही ब्रिटिश शासन के अंत की घोषणा कर दी थी।
दुनिया के कई देशों ने भारत के बंटवारे पर आश्चर्य जाहिर किया था। यह सवाल भी उठे थे कि आखिर इस काम को बिना नतीजों का अनुमान लगाए हुए, जल्दबाली में क्यों किया गया। इसका जवाव भी भारत में ही छिपा हुआ है। दरअसल, 1947 से कुछ वर्ष पहले से ही ब्रिटिश हुकूमत को यह आभास होने लगा था कि उनके लिए भारत पर राज करना अब महंगा साबित हो रहा है। दूसरे विश्य युद्ध के बाद ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति बदतर हो रही थी। अंग्रेजी नेताओं को अपने ही देश में ही जवाब देना भारी पड़ रहा था। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अंग्रेजी सेना की 55 बटालियनों को तैनात करने की वजह से दंगे भड़क गए थे। इसके बाद अलावा खाद्यान्न संकट, सूखा और बढ़ती बेरोजगारी ने अंग्रेजों के लिए भारत पर राज करना महंगा सौदा बना दिया था। 1942 के बंगाल के अकाल के बाद अंग्रेजों ने भारत में राशन प्रणाली शुरू कर दी थी। इससे भी भारतीय जनता में आक्रोश बढ़ गया था।
उस वक्त तक अंग्रेजों की तरफदारी करने वाली मुस्लिम लीग का मोह भी उनसे भंग हो गया था। 16 अगस्त 1947 को मोहम्मद अली जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन डे कहा था। उनकी मांग थी कि मुस्लिमों के लिए पाकिस्तान नाम से एक अलग मुल्क घोषित किया जाए। इस मांग ने जोर पकड़ा तो पूरा उत्तर भारत दंगे की आग में जल उठा। हजारों-हजार लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। इस दंगे से ब्रिटिश हुकूमत की बंटवारे की योजना को बल मिल गया। उन्होंने यह तय किया कि हिंदू और मुस्लिम एक ही देश में मिलकर नहीं रह सकेंगे, इसलिए मुल्क का बंटवारा जरूरी है। जबकि सच यह था कि राजनीतिक नियंत्रण और पर्याप्त सैन्य बल न होने की वजह से दंगे फैले थे।
पंजाब और सिंध प्रांत में रहने वाले मुस्लिम भी पाकिस्तान के पक्षधर थे। दरअसल इस क्षेत्र में उन्हें हिंदु व्यापारियों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती थी। इसलिए मुल्क के बंटवारे से उनकी यह समस्या खत्म होने वाली थी। वहीं पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के लोग भी गैर-मुस्लिम सूदखोरों के चंगुल से आजाद होना चाहते थे। हालांकि बंटवारे से सबसे ज्यादा व्यावसायिक फायदा भारत को ही हुआ। देश की आर्थिक तरक्की में 90 फीसदी भागीदारी वाले शहर और उद्योग भारत के हिस्से में ही थे। इसमें दिल्ली, मुंबई और कलकत्ता जैसे बड़ शहर भी शामिल थे। वहीं पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित थी, जिस पर प्रभावशाली लोगों का एकाधिकार था।
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