आम आदमी पार्टी यानी आप ने भ्रष्टाचार हटाने और सुशासन लाने के नाम पर खूब प्रचार किया और उन्हें इसका फल भी मिला। दिल्ली विधानसभा चुनाव में उन्हें अप्रत्याशित जीत हासिल हुई और पंद्रह वर्षों से सत्ता पर काबिज कांग्रेस पार्टी पर झाड़ू फिर गई। काफी उठा पटक के बाद अरविंद केजरीवाल ने सरकार बनाने की हामी भरी और कांग्रेस पार्टी ने समर्थन भी दिया।
इसके बाद सादगी के ओवरडोज से भरे भाषणों का दौर शुरू हुआ। लालबत्ती, सरकारी गाड़ी और बंगला न लेने की घोषणाओं की बाढ़ आ गई। दिल्ली विधानसभा के सत्र के पहले दिन सादगी दिखाई भी दी। क्योंकि कोई ऑटो से पहुंचा था तो कोई रिक्शे से। हालांकि यह सादगी का चोला केवल छह दिन में ही उतर गया।
अरविंद केजरीवाल जल्द ही दस कमरों के फ्लैट में रहने के लिए जाने वाले हैं। इतना ही नहीं उनके मंत्रिमंडल के साथी भी वीआईपी नंबरों वाले एसयूवी वाहनों में सचिवालय पहुंचने लगे। तिस पर मनीष सिसोदिया का तर्क कि उनकी पार्टी ने लालबत्ती न लेने की बात कही थीं और बंगलों में न रहने की बात की थी। बिना लालबत्ती की कार और सरकारी फ्लैट में तो रहना जायज बताया।
एक क्षेत्रीय कहावत में इसे गुड़ खाना और गुलगुले से परहेज करना भी कहा जाता है। आम आदमी पार्टी के उदय के साथ लोगों ने काफी उम्मीदें बनाई हैं। लेकिन यह कब तक कायम रहेगी यह कहना मुश्किल लग रहा है। अगर इसे सादगी कहते हैं तो फिर ममता बनर्जी और मानिक सरकार को क्या कहेंगे। लाल बहादुर शास्त्री और महात्मा गांधी को क्या कहेंगे।
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