भई 2011 तो गया। लेकिन जाते-जाते कुछ ऐसे कारनामे कर गया है, जिनका असर 2012 पर तो रहेगा। मसलन अण्णा ने सरकार को नाको ऐसे चने चबवाए जिससे उसे जनता की ताकत का अंदाजा तो हो ही गया है। यह अलग बात है कि नेता अपनी हरकतों से कभी बाज नहीं आते हैं। क्या करें, जात ही ऐसी है। खैर, अण्णा फैक्टर के अलावा भ्रस्टाचार और घोटालों के खुलासे का अजगर भी पूरे साल सरकार से लिपटा रहा। महंगाई भी आए-दिन डंक मारती रही। हालांकि इस डंक के दंश को केवल जनता ने ही झेला और उसकी कराह सुनने वाला भी कोई नहीं है।
देश में नए-नए चोर किस्म के धन-कुबेरों का खुलासा भी होता रहा। राजनीतिक उथल-पुथल पूरे देश में दिखी। कर्नाटक में येदियुरप्पा ने खुद को कुर्सी से ऐसा चिपकाया कि उन्हें घसीट कर उतारना पड़ा। देश का प्रमुख विपक्षी दल यानी भारतीय जनता पार्टी, जिसमें कार्यकर्ता के अलावा सभी पाए जाते हैं। मेरा कहने का मतलब है, जो भी नेतागण वहां हैं, वो सभी खुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार ही मानते हैं। कोई उपवास रखने लगता है तो कोई डुगडुगी बजाता हुआ अपने रथ से देश की यात्रा पर निकल पड़ता है। एयरकंडीशन और सभी सुविधायुक्त रथ में बैठकर गरीबों के हित की बात करते हैं।
देश में एक प्रदेश है, मध्यप्रदेश। जहां के मुख्यमंत्री खुद को प्रदेश की महिलाओं का भाई कहते नहीं थकते हैं। यह अलग बात है कि सीएम भाई के होते हुए भी 2011 में कई बहनों को जला दिया गया, बलात्कार किया गया और तो और देश में सबसे ज्यादा बाल अपराध भी यहीं होते हैं। दूसरी तरफ हैं अपनी बहन जी। जी हां, सही समझे आप। देश के सबसे बड़े प्रदेश की मुखिया, जो अगले महीने जनता के दर से यूपी विधानसभा के दरवाजे तक पहुंचने के लिए रास्ता तलाशने की तैयारी कर रही हैं। पूर्ण बहुमत वाली बहिन जी की सरकार ने पांच साल ऐश ही किया। प्रदेश के हालात तो आपको टीवी चैनलों और अखबारों से मिल ही जाते हैं। ऐसा कोई अपराध नहीं है, जो यहां न होता हो। लूट, हत्या, अपहरण, बलात्कार, भ्रष्टाचार....सब यहां आराम से हो जाता है। पुलिस तो कहिए कि एक विभाग है, जिसका काम वर्दी पहनकर लूट करना है।
एक आंखो देखा किस्सा सुनाता हूं आपको। वैसे यूपी के एनसीआर में रहने वाले इससे वाकिफ होंगे। मैंने हॉट सिटी कहे जाने वाले गाजियाबाद में एक खास स्थान पर जबरदस्त जाम देखा। जाम एक पुलिया पर लगा हुआ था, और दोनों ओर पुलिस की जीपें भी खड़ी थीं। मजेदार बात यह कि वहां खड़े खाकीदारी पूरी गंभीरता के साथ अपनी हथेलियों के बीच तंबाकू घिस रहे थे, लगा कि बस इसे मुंह में दबाते ही जाम हटाने के लिए तत्पर हो जाएंगे। हुआ भी ऐसा ही। तंबाकू दबाकर दरोगा जी एक छोटा हाथी (टाटा ऐस को यहां इसी नाम से पुकारते हैं) के ड्रायवर के पास पहुंचे और पूछा कि सब्जी भरकर कहां जा रहे हो। निकालो 100 रुपये वरना जब्त कर लूंगा तुम्हारा हाथी। फिर उनकी नजर लोडिंग ऑटो पर पड़ी। वहां भी यही बात दोहराई गई। इसके बाद दरोगा जी वापस जाकर अपनी जीप में लेट गए। रही बात जाम की तो उसे छंटने में 45 मिनट लग गए। ऐसी मुस्तैदी आपने शायद ही देखी होगी कहीं।
खैर छोडि़ए, यह तो पूरे देश का ही हाल है। शायद बदलेगा नहीं।
हम महंगाई की बात कर रहे थे। तो इस साल हमारी केंद्र सरकार ने कई चुटकुले भी छोड़े। जैसे 32 रुपये रोजाना आमदनी वाले को गरीब न मानना। महंगाई को 100 दिन में काबू कर लेना। वैसे यह डायलॉग 2009 में यूपीए की दूसरी पारी के तुरंत बाद पहली बार सुनने को मिला था, तब से अब तक लगातार इसे रिवाइंड करके सुनाया जाता रहा है। पता नहीं 100 दिन का सरकारी पैमाना क्या है। कहीं वो भी 32 रुपये जैसा कुछ होगा, जो नामसझ आम आदमी होने की वजह से हम समझ नहीं पा रहे हैं।
चापलूसी के नए कीर्तिमान भी 2011 में बनाए गए। कोई मैडम को खुश करने के लिए बयान जारी करता रहा तो कोई बाबा को खुश करने के लिए। आम आदमी से तो किसी को कोई वास्ता ही नहीं है। किसी ने कहा कि आरटीआई सिरदर्द बन रहा है, इसे हटाओ। तो किसी को सोशल नेटवर्किंग साइट्स से ही परेशानी होने लगी।
2011 ने भारत ही नहीं पूरी दुनिया को कई सबक सिखाए हैं। पहला सबक यह कि जनता ही जनार्दन है। जो शायद चार तानाशाह भी भूल चुके थे, जिनकी अक्ल ठिकाने लगा दी गई। अमेरिका जैसे सुपर पावर ही हालत जगजाहिर है। वहां आर्थिक तंगी है तो भारतवर्ष में सरकारी खजाने से ज्यादा पैसा स्विट्जरलैंड के बैंक खातों में जमा है।
नेता और अफसर करोड़ो-अरबों के नीचे का घोटाला नहीं करते हैं, मानो उनकी साख का सवाल है। उज्जैन और इंदौर में करोड़पति चपरासी और बाबू मिलते हैं तो भोपाल में अरबपति आईएएस पति-पत्नी। अंबानी साहब ने दुनिया का सबसे महंगा बंगला बना लिया फिर पता चला कि साहब उसमें तो वास्तुदोष है। अब उसमें रहे कौन। तो ये हैं अपने देश के हालात।
देश में नए-नए चोर किस्म के धन-कुबेरों का खुलासा भी होता रहा। राजनीतिक उथल-पुथल पूरे देश में दिखी। कर्नाटक में येदियुरप्पा ने खुद को कुर्सी से ऐसा चिपकाया कि उन्हें घसीट कर उतारना पड़ा। देश का प्रमुख विपक्षी दल यानी भारतीय जनता पार्टी, जिसमें कार्यकर्ता के अलावा सभी पाए जाते हैं। मेरा कहने का मतलब है, जो भी नेतागण वहां हैं, वो सभी खुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार ही मानते हैं। कोई उपवास रखने लगता है तो कोई डुगडुगी बजाता हुआ अपने रथ से देश की यात्रा पर निकल पड़ता है। एयरकंडीशन और सभी सुविधायुक्त रथ में बैठकर गरीबों के हित की बात करते हैं।
देश में एक प्रदेश है, मध्यप्रदेश। जहां के मुख्यमंत्री खुद को प्रदेश की महिलाओं का भाई कहते नहीं थकते हैं। यह अलग बात है कि सीएम भाई के होते हुए भी 2011 में कई बहनों को जला दिया गया, बलात्कार किया गया और तो और देश में सबसे ज्यादा बाल अपराध भी यहीं होते हैं। दूसरी तरफ हैं अपनी बहन जी। जी हां, सही समझे आप। देश के सबसे बड़े प्रदेश की मुखिया, जो अगले महीने जनता के दर से यूपी विधानसभा के दरवाजे तक पहुंचने के लिए रास्ता तलाशने की तैयारी कर रही हैं। पूर्ण बहुमत वाली बहिन जी की सरकार ने पांच साल ऐश ही किया। प्रदेश के हालात तो आपको टीवी चैनलों और अखबारों से मिल ही जाते हैं। ऐसा कोई अपराध नहीं है, जो यहां न होता हो। लूट, हत्या, अपहरण, बलात्कार, भ्रष्टाचार....सब यहां आराम से हो जाता है। पुलिस तो कहिए कि एक विभाग है, जिसका काम वर्दी पहनकर लूट करना है।
एक आंखो देखा किस्सा सुनाता हूं आपको। वैसे यूपी के एनसीआर में रहने वाले इससे वाकिफ होंगे। मैंने हॉट सिटी कहे जाने वाले गाजियाबाद में एक खास स्थान पर जबरदस्त जाम देखा। जाम एक पुलिया पर लगा हुआ था, और दोनों ओर पुलिस की जीपें भी खड़ी थीं। मजेदार बात यह कि वहां खड़े खाकीदारी पूरी गंभीरता के साथ अपनी हथेलियों के बीच तंबाकू घिस रहे थे, लगा कि बस इसे मुंह में दबाते ही जाम हटाने के लिए तत्पर हो जाएंगे। हुआ भी ऐसा ही। तंबाकू दबाकर दरोगा जी एक छोटा हाथी (टाटा ऐस को यहां इसी नाम से पुकारते हैं) के ड्रायवर के पास पहुंचे और पूछा कि सब्जी भरकर कहां जा रहे हो। निकालो 100 रुपये वरना जब्त कर लूंगा तुम्हारा हाथी। फिर उनकी नजर लोडिंग ऑटो पर पड़ी। वहां भी यही बात दोहराई गई। इसके बाद दरोगा जी वापस जाकर अपनी जीप में लेट गए। रही बात जाम की तो उसे छंटने में 45 मिनट लग गए। ऐसी मुस्तैदी आपने शायद ही देखी होगी कहीं।
खैर छोडि़ए, यह तो पूरे देश का ही हाल है। शायद बदलेगा नहीं।
हम महंगाई की बात कर रहे थे। तो इस साल हमारी केंद्र सरकार ने कई चुटकुले भी छोड़े। जैसे 32 रुपये रोजाना आमदनी वाले को गरीब न मानना। महंगाई को 100 दिन में काबू कर लेना। वैसे यह डायलॉग 2009 में यूपीए की दूसरी पारी के तुरंत बाद पहली बार सुनने को मिला था, तब से अब तक लगातार इसे रिवाइंड करके सुनाया जाता रहा है। पता नहीं 100 दिन का सरकारी पैमाना क्या है। कहीं वो भी 32 रुपये जैसा कुछ होगा, जो नामसझ आम आदमी होने की वजह से हम समझ नहीं पा रहे हैं।
चापलूसी के नए कीर्तिमान भी 2011 में बनाए गए। कोई मैडम को खुश करने के लिए बयान जारी करता रहा तो कोई बाबा को खुश करने के लिए। आम आदमी से तो किसी को कोई वास्ता ही नहीं है। किसी ने कहा कि आरटीआई सिरदर्द बन रहा है, इसे हटाओ। तो किसी को सोशल नेटवर्किंग साइट्स से ही परेशानी होने लगी।
2011 ने भारत ही नहीं पूरी दुनिया को कई सबक सिखाए हैं। पहला सबक यह कि जनता ही जनार्दन है। जो शायद चार तानाशाह भी भूल चुके थे, जिनकी अक्ल ठिकाने लगा दी गई। अमेरिका जैसे सुपर पावर ही हालत जगजाहिर है। वहां आर्थिक तंगी है तो भारतवर्ष में सरकारी खजाने से ज्यादा पैसा स्विट्जरलैंड के बैंक खातों में जमा है।
नेता और अफसर करोड़ो-अरबों के नीचे का घोटाला नहीं करते हैं, मानो उनकी साख का सवाल है। उज्जैन और इंदौर में करोड़पति चपरासी और बाबू मिलते हैं तो भोपाल में अरबपति आईएएस पति-पत्नी। अंबानी साहब ने दुनिया का सबसे महंगा बंगला बना लिया फिर पता चला कि साहब उसमें तो वास्तुदोष है। अब उसमें रहे कौन। तो ये हैं अपने देश के हालात।
जनता ही जनार्दन है उसे इस बात को किसी को बारबार बताने कि जरुरत न हो तब तो बात बने. याद वर्षभर का लेखा-जोखा संक्षेप में बेहतर ढंग से पेश किया गया है.
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