हमारे देश के गृह मंत्री जी का कहना है कि उनके पास सीमित संसाधन हैं, नक्सलियों के खिलाफ उपयोग करने के लिए। बताइए, अगर नक्सलियों का ही सामना नहीं कर पाएंगे तो आतंकवादियों और शत्रु देशों का क्या करेंगे। कुल जमा बात यह कि हमारे देश की यह परंपरा है कि जब तक आग बेकाबू न हो जाए तब तक पानी नहीं डालना चाहिए। कहावत तो है कि आग लगाकर पानी को दौड़ना या फिर आग लगने पर पानी को दौड़ना। लेकिन अब यह बदल चुकी है। अब कहा जा सकता है कि आग लगे तो सोचो कि अगर खुद ही बुझ जाए तो ठीक और अगर नहीं बुझती है तब सोचेंगे कि कैसे बुझाई जाए।
नक्सवाद नासूर की तरह फैलता ही जा रहा है। देश की प्रभुसत्ता को चुनौती दे रहा है। विकास में बाधा बन रहा है। बेकसूर लोगों को मौत के घाट उतार रहा है। सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहा है। आखिर राज्य सरकार और केंद्र सरकार के कान में जूं क्यों नहीं रेंगे रही है। अगर सरकार के पास ही संसाधन सीमित हैं तो फिर किससे मदद की उम्मीद की जाए। देश के लोगों की रक्षा और सुरक्षित जीवन यापन सरकार की जिम्मेदारी है। लेकिन समस्या तो यह है कि हमारे देश में हर मुद्दे को राजनीति के चश्मे से ही देखा जाता है। चाहे इसकी कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े।
-------------------------------------------------
इस खबर को पढि़ए और जरा सरकार की शोचनीय स्थिति पर भी गौर करिए।
तारीख : 6 अप्रैल 2010
* नक्सलियों ने दंतेवाड़ा में मकराना के जंगलों में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल [सीआरपीएफ] की एक टुकड़ी पर हमला किया, 76 जवान शहीद..
तारीख : 8 मई 2010
* बीजापुर जिले में नक्सलियों ने सीआरपीएफ के बुलेट प्रूफ वाहन को बारूदी सुरंग से उड़ा दिया, 7 जवानों की मौत हो गई..
तारीख : 16 मई 2010
* राजनांदगांव के तेरेगांव के नजदीक नक्सलियों ने मुखबिरी के आरोप में सरपंच सहित छह ग्रामीणों को मौत के घाट उतार दिया..
..ये वे तारीखें हैं, जो पिछले एक माह में नक्सलियों के लगातार हमलों और सुरक्षा बलों के जवानों या आम आदमी के खून से 'लाल' हुई हैं। इन्हीं तारीखों में एक कड़ी सोमवार 17 मई 2010 की भी जुड़ गई। नक्सलियों ने एक बार फिर राज्य और केंद्र के सत्ता प्रतिष्ठानों को चुनौती देते हुए दंतेवाड़ा जिले में बारूदी सुरंग से एक यात्री बस को उड़ा दिया। इस हमले में बस में सवार 50 यात्रियों की मौत हो गई। मरने वालों में 20 विशेष पुलिस अधिकारी [एसपीओ]भी थे। छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार द्वारा उन आम लोगों को एसपीओ का दर्जा दिया जाता है, जो नक्सलियों के खिलाफ संघर्ष में राज्य पुलिस के सहयोग के लिए सहमत होते हैं। पुलिस जरूरी प्रारंभिक प्रशिक्षण देकर एसपीओ तैयार करती है।
पुलिस के मुताबिक, शाम करीब 4 बजकर 45 मिनट पर दंतेवाड़ा जिले के गड़ीरास ने भुसारास बीच सुकमा से दंतेवाड़ा जा रही यात्री बस को नक्सलियों ने निशाना बनाया। बारूदी सुरंग को पक्की सड़क के नीचे दबाया गया था और नक्सलियों ने इसमें रिमोट कंट्रोल के जरिए विस्फोट किया। यह हमला नक्सलियों द्वारा छत्तीसगढ़ सहित पांच राज्यों में 48 घंटे के बंद की घोषणा के एक दिन बाद किया गया है। बंद की घोषणा केंद्र द्वारा नक्सलियों के खिलाफ छेड़े गए अभियान के विरोध में की गई है। रायपुर से करीब 450 किलोमीटर दूर किए गए इस हमले में नक्सलियों ने जिलेटिन की छड़ वाली विस्फोटक प्रणाली का इस्तेमाल किया।
विस्फोट इतना जबरदस्त था कि बस कई फुट दूर उछलकर चली गई और क्षत विक्षत मानव अंग सड़क के किनारे पड़े नजर आए। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह ने 35 लोगों के मारे जाने की पुष्टि की है हालांकि केंद्रीय गृह मंत्रालय में विशेष सचिव आंतरिक सुरक्षा [उत्थान कुमार बंसल] ने मरने वालों की संख्या ज्यादा होने की बात स्वीकार की है। वैसे, बस में 65 से 70 व्यक्तियों के सवार होने की क्षमता थी। रमण सिंह ने इस घटना को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी. चिदंबरम से बातचीत की है और मंगलवार को वह दिल्ली पहुंच रहे हैं।
मानकों का फिर उल्लंघन
इस घटना में मानक नियमों के उल्लंघन की बात भी सामने आई है। मानकों के अनुसार पुलिसकर्मियों और विशेष पुलिस अधिकारियों को असैन्य वाहन में सफर करना प्रतिबंधित है। जबकि निशाना बनाई गई बस में विशेष पुलिस अधिकारी आम यात्रियों के साथ मौजूद थे।
घटना की निंदा
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस हमले की निंदा की है और कहा है कि इसमें मारे गए ज्यादातर लोग आम नागरिक हैं। राज्य के सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी [भाजपा] के प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन ने दिल्ली में कहा, 'यह एक बर्बर हमला है और भाजपा इसकी कड़े शब्दों में निंदा करती है। सरकार को इस चुनौती से पूरी ताकत के साथ निपटना चाहिए।'
प्रमुख नक्सली हमले
29 जून 2008- उड़ीसा के बालीमेला जलाशय में नक्सलियों ने एक नाव पर सवार चार विशेष पुलिस अधिकारियों व 60 ग्रेहाउंड कमांडो पर हमला किया। 38 जवान मारे गए।
16 जून 2008- उड़ीसा के मलकानगिरी जिले में बारूदी सुरंग में विस्फोट कर पुलिस वैन को उड़ाया। 21 पुलिसकर्मियों की मौत।
13 अप्रैल 2009- उड़ीसा के कोरापुट जिले में बाक्साइट की एक खान पर हमला। अर्द्धसैनिक बल के 10 जवान शहीद।
22 मई 2009- महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के जंगल में 16 पुलिसकर्मियों की हत्या।
10 जून 2009- झारखंड के सारंदा के जंगलों में नियमित पेट्रोलिंग के दौरान सुरक्षा बलों पर हमला। नौ पुलिसकर्मी मारे गए जिसमें सीआरपीएफ के जवान भी शामिल थे।
13 जून 2009-झारखंड में बोकारो के पास एक छोटे से कस्बे में बारूदी सुरंग की चपेट में आकर 10 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई और कई घायल हो गए।
27 जुलाई 2009-छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में बारूदी सुरंग में विस्फोट कर छह लोगों की हत्या।
26 सितंबर 2009- छत्तीसगढ़ के जगदलपुर जिले के परागुडा गांव में भाजपा सांसद बलिराम कश्यप के बेटे की हत्या कर दी।
8 अक्टूबर 2009-महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में पुलिस चौकी पर हमला। 17 पुलिसकर्मी मारे गए।
15 फरवरी 2010-पश्चिम बंगाल के पश्चिम मेदिनीपुर जिले के सिलदा में एक पुलिस कैंप पर हमला। इस्टर्न फ्रंटियर राइफल्स के 24 जवान शहीद।
4 अप्रैल 2010-उड़ीसा के कोराटपुर जिले में बारूदी सुरंग में विस्फोट कर नक्सल विरोधी विशेष बल के 11 जवानों की हत्या कर दी।
6 अप्रैल 2010-अब तक के सबसे बड़े नक्सली हमले में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में एक पुलिसकर्मी सहित सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद।
8 मई 2010-छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में नक्सलियों ने एक बुलेटप्रूफ वाहन उड़ाया। सीआरपीएफ के आठ जवान मारे गए।
16 मई 2010- राजनांदगांव के तेरेगांव के नजदीक नक्सलियों ने मुखबिरी के आरोप में सरपंच सहित छह ग्रामीणों को मौत के घाट उतार दिया।
खबरः दैनिक जागरण डॉट कॉम से साभार
वो जागे हुए ही तो है!उन्हें पता है कहाँ क्या कार्यवाही करने से कितने वोट का घाटा-मुनाफा हो सकता है!पर पता नहीं वो क्यों भूल रहे है जब वोट देने वाले ही नहीं बचेंगे तो वोट देगा कौन...?
ReplyDeleteकुंवर जी,
बस्तर के जंगलों में नक्सलियों द्वारा निर्दोष पुलिस के जवानों के नरसंहार पर कवि की संवेदना व पीड़ा उभरकर सामने आई है |
ReplyDeleteबस्तर की कोयल रोई क्यों ?
अपने कोयल होने पर, अपनी कूह-कूह पर
बस्तर की कोयल होने पर
सनसनाते पेड़
झुरझुराती टहनियां
सरसराते पत्ते
घने, कुंआरे जंगल,
पेड़, वृक्ष, पत्तियां
टहनियां सब जड़ हैं,
सब शांत हैं, बेहद शर्मसार है |
बारूद की गंध से, नक्सली आतंक से
पेड़ों की आपस में बातचीत बंद है,
पत्तियां की फुस-फुसाहट भी शायद,
तड़तड़ाहट से बंदूकों की
चिड़ियों की चहचहाट
कौओं की कांव कांव,
मुर्गों की बांग,
शेर की पदचाप,
बंदरों की उछलकूद
हिरणों की कुलांचे,
कोयल की कूह-कूह
मौन-मौन और सब मौन है
निर्मम, अनजान, अजनबी आहट,
और अनचाहे सन्नाटे से !
आदि बालाओ का प्रेम नृत्य,
महुए से पकती, मस्त जिंदगी
लांदा पकाती, आदिवासी औरतें,
पवित्र मासूम प्रेम का घोटुल,
जंगल का भोलापन
मुस्कान, चेहरे की हरितिमा,
कहां है सब
केवल बारूद की गंध,
पेड़ पत्ती टहनियाँ
सब बारूद के,
बारूद से, बारूद के लिए
भारी मशीनों की घड़घड़ाहट,
भारी, वजनी कदमों की चरमराहट।
फिर बस्तर की कोयल रोई क्यों ?
बस एक बेहद खामोश धमाका,
पेड़ों पर फलो की तरह
लटके मानव मांस के लोथड़े
पत्तियों की जगह पुलिस की वर्दियाँ
टहनियों पर चमकते तमगे और मेडल
सस्ती जिंदगी, अनजानों पर न्यौछावर
मानवीय संवेदनाएं, बारूदी घुएं पर
वर्दी, टोपी, राईफल सब पेड़ों पर फंसी
ड्राईंग रूम में लगे शौर्य चिन्हों की तरह
निःसंग, निःशब्द बेहद संजीदा
दर्द से लिपटी मौत,
ना दोस्त ना दुश्मन
बस देश-सेवा की लगन।
विदा प्यारे बस्तर के खामोश जंगल, अलिवदा
आज फिर बस्तर की कोयल रोई,
अपने अजीज मासूमों की शहादत पर,
बस्तर के जंगल के शर्मसार होने पर
अपने कोयल होने पर,
अपनी कूह-कूह पर
बस्तर की कोयल होने पर
आज फिर बस्तर की कोयल रोई क्यों ?
अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त साहित्यकार, कवि संजीव ठाकुर की कलम से