आज यानी शुक्रवार को टीवी पर एक खबर देखी। खबर तमिलनाडु की थी, जहां एक पुलिसवाले को कुछ गुंडों ने अधमरा कर सड़क पर मरने के लिए छोड़ दिया था। अगले कुछ मिनटों में वहां से तमिलनाडु के दो मंत्रियों का काफिला निकला पर किसी ने भी उसे उठाकर अस्पताल ले जाने की जहमत नहीं उठाई। इसे हरामखोरी की हद नहीं तो क्या कहेंगे। बल्कि मेरे मन में तो उन मंत्रियों के लिए गालियां उबल रही हैं।
ये वो नेता हैं जो भाषण देते वक्त तो खुद को जनता का सेवक बताने से नहीं चूकते हैं पर जब वाकई जनसेवा की बात आती है तो इनका रुतबा आड़े आता है। इस दर्दनाक वाकये के बाद तो मुझे लगता है कि यदि ये दोनों मंत्री किसी सभा में जाएं तो टीवी सीरियल लापतागंज के एक एपिसोड की ही तरह इनका स्वागत विशेष किस्म के हार और अल्फाजों से किया जाना चाहिए।
उस शहीद सब इंस्पेक्टर को लाख-लाख नमन और हरामखोरों को लानत के साथ मैं लिखना बंद करुंगा। ऐसे लोगों पर शब्द और समय दोनों ही बर्बाद करना नहीं चाहता हूं।