रात भर दबा के पी, खुल्लम खुल्ला बार में,
सारा दिन गुजार दिया बस उसी खुमार में,
गम गलत हुआ जरा तो इश्क जागने लगा,
रोज धोखे खा रहे हैं जबकि हम तो प्यार में,
कैश जितना जेब में था, वो तो देकर आ गये,
बाकी जितनी पी गये, वो लिख गई उधार में,
यों चढ़ा नशा कि होश, होश को गंवा गया,
और नींद पी गई उसे बची जो जार में,
वो दिखे तो साथ में लिये थे अपने भाई को,
गुठलियाँ भी साथ आईं, आम के अचार में,
याद की गली से दूर, नींद आये रात भर,
सो गया मैं चैन से चादर बिछा मजार में,
हुआ ज़फ़र के चार दिन की उम्र का हिसाब यूँ,
कटा है एक इश्क में, कटेंगे तीन बार में,
होश की दवाओं में, बहक गये "लेले" भी,
फूल की तलाश थी, अटक गये हैं खार में....
फिर 'समीरलाल' की जगह 'लेले'
ReplyDeleteकैश जितना जेब में था, वो तो देकर आ गये,
ReplyDeleteबाकी जितनी पी गये, वो लिख गई उधार में,
" ha ha ha bhai wah, hume to sach mey acche lgee"
Regards
बहुत आभार अनिल भाई:
ReplyDeleteहोश की दवाओं में, बहक गये "समीर" भी,
फूल की तलाश थी, अटक गये हैं खार में....
:)
काफी गहरा मर्म छुपा हुआ है इस कविता में.
ReplyDeleteऊपर ऊपर से टटोलने से नही मिलने वाला.
anilji bahut achchhe....very good
ReplyDeletebahut achchhe anilji ....
ReplyDelete