Thursday, February 14, 2008

राजनीति का गंदा चेहरा


महाराष्ट्र में भाषा के आधार पर जो गंदा खेल खेला जा रहा है उसके लिए सिर्फ राज ठाकरे अकेले ही जिम्मेदार नहीं है। उनके साथ राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी और केंद्र सरकार भी बराबर की जिम्मेदार है। राज्य को क्षेत्रवाद की आग में जबरन झोंका जा रहा है और वो भी सिर्फ अपनी राजनीतिक भूख मिटाने के लिए। आखिरकार उन गरीब मजदूरों ने राज ठाकरे या फिर महाराष्ट्र का क्या बिगाड़ा है जो उन्हें पलायन के लिए मजबूर किया जा रहा है। क्या अपनी जान की कुर्बानी देकर देश को आजादी दिलाने वालों ने कभी यह सोचा होगा कि कभी उनकी दिलाई आजादी का इस तरह से दुरुपयोग किया जाएगा। अंग्रेज जिन्होंने हम पर सालों शासन किया था उनमें और आज के खादीधारी नेताऒं में कोई अंतर नहीं रह गया है। देश को एकता के धागे में पिरोने के बजाय वो बोली और रहन-सहन के नाम पर बांट रहे हैं। राज ठाकरे भी अच्छी तरह से जानते हैं कि उनकी इस मुहिम का कोई भी राजनीतिक पार्टी खुलकर विरोध नहीं करेगी। क्योंकि सभी को इससे अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने का मौका जो मिल गया है।

केंद्र सरकार भी यह कहकर अपना पलड़ा झाड़ रही है कि राज्य में लॉ और अ।र्डर की स्थिति के लिए वो नहीं राज्य सरकार जिम्मेदार है। लेकिन यह मामला केंद्र या फिर राज्य का नहीं है बल्कि यह मामला है संविधान के उल्लंघन का। आखिर हमारे देश के न्यायविदों को क्या हो गया है जरा-जरा सी बात को कानून की आंच दिखाने वाले देश के नामी वकील यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी इस मुद्दे पर पूरी तरह से खामोश है। कई मामलों में खुद ब खुद संग्यान लेने वाली अदालतें खामोश हैं। राज ठाकरे भी थोड़ी बहुत सुगबुगाहट इसलिए दिखा रहे हैं क्योंकि राज की इस हरकत से उनका वोट बैंक भी प्रभावित हो रहा है।

प्रदेश सरकार भी इस मुद्दे पर राज से खौफ खाई हुई है। उन्हे यह डर है कि अगर राज के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की गई तो मराठी मानुस नाराज न हो जाए। लेकिन उन गरीबों का क्या जिनकी रोजी-रोटी इन सबमें छिन गई। जिन्हे प्रदेश छोड़कर सिर्फ इसलिए जाना पड़ रहा है क्योंकि वे मराठी नहीं बोल सकते। राज की हिम्मत तो देखिए कि उन्होंने मीडिया को भी दो हिस्सों में बांट दिया है। हिंदी मीडिया को उन्होंने भैया मीडिया की उपमा दे दी है। शायद राज को यह जानकारी नहीं है कि राज्य की प्रगति में मराठियों से ज्यादा गैर-मराठियों का योगदान रहा है। टाटा बिरला अंबानी जिनके उद्योग पूरे देश के अलावा महाराष्ट्र में भी हैं वे मराठी तो नहीं है और न ही मराठी बोलते हैं।

राज के इस मराठी प्रेम को देश की बांटने की कोशिश कहा जाए तो गलत नहीं होगा। जिसकी छूट संविधान ने दे रखी है राज उसके खिलाफ काम कर रहे हैं जो कि देश के सर्वोच्च कानून को ठेंगा दिखाने जैसा है। उधर बेचारे हिंदी प्रदेश के नागरिकों की व्यथा यह है कि उनका कोई माई-बाप नहीं है। जिन्हें भी उनकी सुध आती है तो सिर्फ वोट के लिए। लालू यादव ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से शिकायत करके अपने काम की इतिश्री कर ली। दूसरे हिंदी नेताऒं के कान में जूं तक नहीं रेंग रही है। सबकुछ सामने होने के बावजूद वे अपने-अपने मुंह में दही जमाए बैठे हैं। एक्का-दुक्का नेता थोड़ी बहुत चूं कर भी देते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि उनकी कोई सुनेगा नहीं और कर्तव्य भी पूरा हो जाएगा। इसमें कोई दो-राय नहीं है कि राज ठाकरे की लगाई यह आग पूरे देश में फैलेगी। मेरा तो मानना है कि राज देश को बंटवारे के कगार पर ले जा रहे है। अगर उन्हें रोका नहीं गया तो यह आग देश के हर उस राज्य को जला देगी जहां किसी भाषा विशेष समुदाय का बाहुल्य है। कहने का साफ मतलब है कि इसकी जद में दक्षिण के राज्यों के अलावा उत्तर भारत के कई राज्य भी आ सकते हैं।

5 comments:

  1. मी मराठी के नाम पर जो भी यहां हो रहा है यह पूरे देश के लिए शर्मनाक है, लेकिन इसमें सरकार और मीडिया की भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, वरना जिस आदमी की कोई औकात नहीं थी उसे हमने हीरो बना दिया है, यह ऐसा ही है जैसे मीडिया ने तोगडिया को सर पर चढ़ा दिया थाा

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  2. गरीब मजदूरों, टैक्‍सी ड्राइवरों और फेरी वालों को मारकर ये लोग अपनी बहादुरी दिखा रहे हैं। जबकि, महाराष्‍ट्र के वीरो ने अपने से दो गुने सक्षम दुशमनों के पैर उखाड़े थे। लेकिन लगता है नई पीढ़ी अपने गौरवपूर्ण इतिहास को भूल गई है और गरीबों को मार मार कर अपने को वीर कहलवाना चाहती है। अब तक संसार में दो ही ऐसे महानुभाव हुए हैं जिन्‍होंने अखंड भारत का सपना देखा एक, कृष्‍ण और दूसरे छत्रपति शिवाजी। लेकिन अब लोग खंड खडं भारत देखना चाहते हैं शायद।

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  3. anil ji ne bilkul sahi kaha hai. raj aur unke jaise doosre kahdiwale gundo par lagam ki jarurat hai varna ye log ek din desh ko baant kar bech denge.

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  4. मनोजजी आपने मेरी बात को और भी अच्छे से समझाया है। राज को यह समझना होगा कि अगर उन्होंने अपनी हरकतों पर लगाम नहीं लगाई तो देश के लिए जरूर हानिकर रहेगा। कमलजी ने भी सही फरमाया है कि गरीब-मजदूरों को मारकर न जाने वो क्या जताना चाहते हैं। राज ठाकरे के ग्यानवर्धन के लिए उन्हें यह याद दिलाना जरूरी है कि देश की आजादी की चिंगारी महाराष्ट्र से नहीं उत्तर भारत से भड़की थी। मैं यह बाद में इसमें पूरे देश ने हिस्सा लिया। अगर तब भी लोग यह कहते राज की तरह सोच रखते तब तो देश को आजादी मिल गई होती। वैसे राज ठाकरे राजनीति के आशीर्वाद से जन्मे उस भस्मासुर की तरह हो गए हैं जो अब देश को भस्म करने की ओर अग्रसर हैं।

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  5. अनिल आर्टिकल अच्‍छा है पर थोडे और अध्‍ययन की जरूरत है। और सुनो सूचना पक्ष हावी हो रहा है विचार पक्ष को जीवित करो

    बहरहाल वह भी आ जाएगा लिखते रहो कम से कम विरोध बेहतर है
    बधाइयां

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