पिछले लगभग एक पखवाड़े से बरेली मे दंगे फसाद की खबरें सुर्खियों में है। इस पर बसपा सुप्रीमो और राज्य की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती का अपनी पार्टी का समारोह मनाना वो भी इस तरीके से मानो कि वह कोई राष्ट्रीय पर्व रहा हो। यह सब इस ओर इशारा करता है कि राजनेताओं में किस चीज की लालसा हावी है। इन तथाकथित जनप्रतिनिधियों को जनता से कोई मतलब नहीं है। मतलब सिर्फ धन से है। बरेली में लोग मरें या शहर को आग लग जाए, इससे मैडम सीएम को कोई लेनदेन नहीं है। अगर होता तो प्रशासन को चुस्त करती और इस पर चिंता जरूर व्यक्त करतीं।
मुझे इस घटना पर मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जी का कथन याद आ गया, जो कि उन्होंने गोधरा में हुए दंगे के बाद दिया था। उन्होंने एक ऐसी बात कही थी जो एकदम सही है, कि अगर किसी राज्य का सीएम न चाहे तो उस राज्य में पत्ता तक नहीं हिल सकता है। दरअसल गोधरा कांड की लपटें मध्यप्रदेश में भी पहुंचने वाली थीं, खंडवा और आसपास के इलाके में तनाव व्याप्त हो ही रहा था कि दिग्विजय सिंह जी ने मौके को भांप लिया और मामला वहीं दब गया। यहां मैं न तो बसपा की मुखालफत कर रहा हूं और न ही कांग्रेस या दिग्गी राजा की बड़ाई। मैं सिर्फ इच्छाशक्ति पर ध्यान दिलाना चाह रहा हूं।
क्योंकि जिस राज्य का एक बड़ा हिस्सा सूखाग्रस्त हो उस राज्य में कई सौ करोड़ रुपए सिर्फ मूर्तियों और प्रतीक स्थल बनाने पर खर्च किए जाएं वो भी किसी समुदाय के नाम पर। आखिर इससे उन दलितों को क्या फायदा हो रहा है या होगा जिनके नाम पर इसे बनाया गया है। जिनको फायदा हो रहा है उसे पूरा देश देख रहा है।
खैर अपनी अपनी श्रद्धा है। मैंने कई लोगों के मुंह से सुना है कि भारतीय जनमानस की याददाश्त काफी कमजोर है। यही वजह है कि चुनाव के वक्त तक लोग ये सब भूल जाएंगे। और हमारे "जनप्रतिनिधि" जो जनता की कभी सुनते ही नहीं हैं अपने मकसद में कामयाब होते रहते हैं।
वैसे हमारे देश के लोकतंत्र के कई फायदे तो बहुत सारे नुकसान भी हैं। जिन्हें जानते तो सब हैं पर चुप रहना ही उचित समझते हैं।
Tuesday, March 16, 2010
मामला गड़बड़ है
पिछले लगभग एक पखवाड़े से बरेली मे दंगे फसाद की खबरें सुर्खियों में है। इस पर बसपा सुप्रीमो और राज्य की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती का अपनी पार्टी का समारोह मनाना वो भी इस तरीके से मानो कि वह कोई राष्ट्रीय पर्व रहा हो। यह सब इस ओर इशारा करता है कि राजनेताओं में किस चीज की लालसा हावी है। इन तथाकथित जनप्रतिनिधियों को जनता से कोई मतलब नहीं है। मतलब सिर्फ धन से है। बरेली में लोग मरें या शहर को आग लग जाए, इससे मैडम सीएम को कोई लेनदेन नहीं है। अगर होता तो प्रशासन को चुस्त करती और इस पर चिंता जरूर व्यक्त करतीं।
मुझे इस घटना पर मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जी का कथन याद आ गया, जो कि उन्होंने गोधरा में हुए दंगे के बाद दिया था। उन्होंने एक ऐसी बात कही थी जो एकदम सही है, कि अगर किसी राज्य का सीएम न चाहे तो उस राज्य में पत्ता तक नहीं हिल सकता है। दरअसल गोधरा कांड की लपटें मध्यप्रदेश में भी पहुंचने वाली थीं, खंडवा और आसपास के इलाके में तनाव व्याप्त हो ही रहा था कि दिग्विजय सिंह जी ने मौके को भांप लिया और मामला वहीं दब गया। यहां मैं न तो बसपा की मुखालफत कर रहा हूं और न ही कांग्रेस या दिग्गी राजा की बड़ाई। मैं सिर्फ इच्छाशक्ति पर ध्यान दिलाना चाह रहा हूं।
क्योंकि जिस राज्य का एक बड़ा हिस्सा सूखाग्रस्त हो उस राज्य में कई सौ करोड़ रुपए सिर्फ मूर्तियों और प्रतीक स्थल बनाने पर खर्च किए जाएं वो भी किसी समुदाय के नाम पर। आखिर इससे उन दलितों को क्या फायदा हो रहा है या होगा जिनके नाम पर इसे बनाया गया है। जिनको फायदा हो रहा है उसे पूरा देश देख रहा है।
खैर अपनी अपनी श्रद्धा है। मैंने कई लोगों के मुंह से सुना है कि भारतीय जनमानस की याददाश्त काफी कमजोर है। यही वजह है कि चुनाव के वक्त तक लोग ये सब भूल जाएंगे। और हमारे "जनप्रतिनिधि" जो जनता की कभी सुनते ही नहीं हैं अपने मकसद में कामयाब होते रहते हैं।
वैसे हमारे देश के लोकतंत्र के कई फायदे तो बहुत सारे नुकसान भी हैं। जिन्हें जानते तो सब हैं पर चुप रहना ही उचित समझते हैं।
मुझे इस घटना पर मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जी का कथन याद आ गया, जो कि उन्होंने गोधरा में हुए दंगे के बाद दिया था। उन्होंने एक ऐसी बात कही थी जो एकदम सही है, कि अगर किसी राज्य का सीएम न चाहे तो उस राज्य में पत्ता तक नहीं हिल सकता है। दरअसल गोधरा कांड की लपटें मध्यप्रदेश में भी पहुंचने वाली थीं, खंडवा और आसपास के इलाके में तनाव व्याप्त हो ही रहा था कि दिग्विजय सिंह जी ने मौके को भांप लिया और मामला वहीं दब गया। यहां मैं न तो बसपा की मुखालफत कर रहा हूं और न ही कांग्रेस या दिग्गी राजा की बड़ाई। मैं सिर्फ इच्छाशक्ति पर ध्यान दिलाना चाह रहा हूं।
क्योंकि जिस राज्य का एक बड़ा हिस्सा सूखाग्रस्त हो उस राज्य में कई सौ करोड़ रुपए सिर्फ मूर्तियों और प्रतीक स्थल बनाने पर खर्च किए जाएं वो भी किसी समुदाय के नाम पर। आखिर इससे उन दलितों को क्या फायदा हो रहा है या होगा जिनके नाम पर इसे बनाया गया है। जिनको फायदा हो रहा है उसे पूरा देश देख रहा है।
खैर अपनी अपनी श्रद्धा है। मैंने कई लोगों के मुंह से सुना है कि भारतीय जनमानस की याददाश्त काफी कमजोर है। यही वजह है कि चुनाव के वक्त तक लोग ये सब भूल जाएंगे। और हमारे "जनप्रतिनिधि" जो जनता की कभी सुनते ही नहीं हैं अपने मकसद में कामयाब होते रहते हैं।
वैसे हमारे देश के लोकतंत्र के कई फायदे तो बहुत सारे नुकसान भी हैं। जिन्हें जानते तो सब हैं पर चुप रहना ही उचित समझते हैं।
Wednesday, March 10, 2010
ये होते हैं फ्रस्टेटेड टाइप के लोग
आज सुबह जब मैं दफ्तर आ रहा था तो एक घटना देखने को मिली। घटना ऐसी कि जिसे देखकर गुस्सा भी आया और फिर ये लगा कि आखिर दोषी किसे मानें। हुआ यूं कि एक ऑटो वाले ने एक कार वाले को साइड नहीं दिया और आगे बढ़ गया। बदले में उस बदमिजाज कार वाले का दिमाग गरम हो गया। एसी गाड़ी में बैठने के बाद भी गरम दिमाग। उसने आगे जाकर गाड़ी ऑटो के आगे लगा दी और उतरकर ऑटो वाले को गालियां देने लगा और जब इतने से भी उसका मन नहीं भरा तो ऑटो वाले को पीटना शुरू कर दिया। बेचारा ऑटो वाला पिटता रहा। समझ नहीं आ रहा था कि साइट न देना गुनाह है या उस आदमी का फ्रस्टेशन। मुझे तो लग रहा था कमबख्त वह आदमी घर से ही ऐसे निकला होगा। बीवी से झगड़ा हुआ होगा और नाश्ता नहीं किया होगा या फिर ऑफिस का कोई काम पेंडिंग होगा जिसे वो जल्दी पहुंचकर पूरा करना चाह रहा होगा और रास्ते की सारी अड़चने उसे गुस्सा दिला रही होंगी।
लेकिन ऐसे लोग ही खुद के लिए भी खतरा होते हैं। इसलिए इन्हें मेडिटेशन की जरूरत है। ईश्वर इन्हें सदबुद्धि दे।
लेकिन ऐसे लोग ही खुद के लिए भी खतरा होते हैं। इसलिए इन्हें मेडिटेशन की जरूरत है। ईश्वर इन्हें सदबुद्धि दे।
ये होते हैं फ्रस्टेटेड टाइप के लोग
आज सुबह जब मैं दफ्तर आ रहा था तो एक घटना देखने को मिली। घटना ऐसी कि जिसे देखकर गुस्सा भी आया और फिर ये लगा कि आखिर दोषी किसे मानें। हुआ यूं कि एक ऑटो वाले ने एक कार वाले को साइड नहीं दिया और आगे बढ़ गया। बदले में उस बदमिजाज कार वाले का दिमाग गरम हो गया। एसी गाड़ी में बैठने के बाद भी गरम दिमाग। उसने आगे जाकर गाड़ी ऑटो के आगे लगा दी और उतरकर ऑटो वाले को गालियां देने लगा और जब इतने से भी उसका मन नहीं भरा तो ऑटो वाले को पीटना शुरू कर दिया। बेचारा ऑटो वाला पिटता रहा। समझ नहीं आ रहा था कि साइट न देना गुनाह है या उस आदमी का फ्रस्टेशन। मुझे तो लग रहा था कमबख्त वह आदमी घर से ही ऐसे निकला होगा। बीवी से झगड़ा हुआ होगा और नाश्ता नहीं किया होगा या फिर ऑफिस का कोई काम पेंडिंग होगा जिसे वो जल्दी पहुंचकर पूरा करना चाह रहा होगा और रास्ते की सारी अड़चने उसे गुस्सा दिला रही होंगी।
लेकिन ऐसे लोग ही खुद के लिए भी खतरा होते हैं। इसलिए इन्हें मेडिटेशन की जरूरत है। ईश्वर इन्हें सदबुद्धि दे।
लेकिन ऐसे लोग ही खुद के लिए भी खतरा होते हैं। इसलिए इन्हें मेडिटेशन की जरूरत है। ईश्वर इन्हें सदबुद्धि दे।
Friday, March 5, 2010
भारत से दोगुना हुआ चीन का रक्षा बजट
सेना के आधुनिकीकरण की प्रतिबद्धता जताते हुए चीन ने गुरुवार को अपने रक्षा बजट में 7.5 प्रतिशत के इजाफे की घोषणा की। देश का रक्षा बजट अब 77.9 अरब डॉलर हो गया है, जो भारत से लगभग दोगुना है।
शिन्हुआ ने चीन की संसद के प्रवक्ता ली झाओक्सिंग के हवाले से कहा कि बढ़ी हुई राशि का उपयोग चीन की सैन्य क्षमताओं के इजाफे और विभिन्न खतरों से निपटने में किया जाएगा। उन्होंने दावा किया कि चीन का रक्षा खर्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का सिर्फ 1.4 प्रतिशत है, जो अमेरिका में चार प्रतिशत है।
चीन के पास दुनिया में सबसे बड़ी सेना है, जिसमें लगभग 23 लाख सैनिक हैं। ली ने कहा कि राशि का एक बड़ा भाग सैनिकों की स्थिति सुधारने और उनके वेतन में खर्च किया जाएगा।
लेकिन अर्थ विशेषज्ञों का मानना है कि चीन कभी भी सैन्य खर्च के मामले में पारदर्शी नहीं रहा और इस ओर उसका कुल खर्च उससे लगभग दोगुना है, जितने का वह दावा करता है।
कहीं इसके पीछे चीन की कुछ और मंशा तो नहीं है। (लाइव हिंदुस्तान से साभार)
शिन्हुआ ने चीन की संसद के प्रवक्ता ली झाओक्सिंग के हवाले से कहा कि बढ़ी हुई राशि का उपयोग चीन की सैन्य क्षमताओं के इजाफे और विभिन्न खतरों से निपटने में किया जाएगा। उन्होंने दावा किया कि चीन का रक्षा खर्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का सिर्फ 1.4 प्रतिशत है, जो अमेरिका में चार प्रतिशत है।
चीन के पास दुनिया में सबसे बड़ी सेना है, जिसमें लगभग 23 लाख सैनिक हैं। ली ने कहा कि राशि का एक बड़ा भाग सैनिकों की स्थिति सुधारने और उनके वेतन में खर्च किया जाएगा।
लेकिन अर्थ विशेषज्ञों का मानना है कि चीन कभी भी सैन्य खर्च के मामले में पारदर्शी नहीं रहा और इस ओर उसका कुल खर्च उससे लगभग दोगुना है, जितने का वह दावा करता है।
कहीं इसके पीछे चीन की कुछ और मंशा तो नहीं है। (लाइव हिंदुस्तान से साभार)
भारत से दोगुना हुआ चीन का रक्षा बजट
सेना के आधुनिकीकरण की प्रतिबद्धता जताते हुए चीन ने गुरुवार को अपने रक्षा बजट में 7.5 प्रतिशत के इजाफे की घोषणा की। देश का रक्षा बजट अब 77.9 अरब डॉलर हो गया है, जो भारत से लगभग दोगुना है।
शिन्हुआ ने चीन की संसद के प्रवक्ता ली झाओक्सिंग के हवाले से कहा कि बढ़ी हुई राशि का उपयोग चीन की सैन्य क्षमताओं के इजाफे और विभिन्न खतरों से निपटने में किया जाएगा। उन्होंने दावा किया कि चीन का रक्षा खर्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का सिर्फ 1.4 प्रतिशत है, जो अमेरिका में चार प्रतिशत है।
चीन के पास दुनिया में सबसे बड़ी सेना है, जिसमें लगभग 23 लाख सैनिक हैं। ली ने कहा कि राशि का एक बड़ा भाग सैनिकों की स्थिति सुधारने और उनके वेतन में खर्च किया जाएगा।
लेकिन अर्थ विशेषज्ञों का मानना है कि चीन कभी भी सैन्य खर्च के मामले में पारदर्शी नहीं रहा और इस ओर उसका कुल खर्च उससे लगभग दोगुना है, जितने का वह दावा करता है।
कहीं इसके पीछे चीन की कुछ और मंशा तो नहीं है। (लाइव हिंदुस्तान से साभार)
शिन्हुआ ने चीन की संसद के प्रवक्ता ली झाओक्सिंग के हवाले से कहा कि बढ़ी हुई राशि का उपयोग चीन की सैन्य क्षमताओं के इजाफे और विभिन्न खतरों से निपटने में किया जाएगा। उन्होंने दावा किया कि चीन का रक्षा खर्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का सिर्फ 1.4 प्रतिशत है, जो अमेरिका में चार प्रतिशत है।
चीन के पास दुनिया में सबसे बड़ी सेना है, जिसमें लगभग 23 लाख सैनिक हैं। ली ने कहा कि राशि का एक बड़ा भाग सैनिकों की स्थिति सुधारने और उनके वेतन में खर्च किया जाएगा।
लेकिन अर्थ विशेषज्ञों का मानना है कि चीन कभी भी सैन्य खर्च के मामले में पारदर्शी नहीं रहा और इस ओर उसका कुल खर्च उससे लगभग दोगुना है, जितने का वह दावा करता है।
कहीं इसके पीछे चीन की कुछ और मंशा तो नहीं है। (लाइव हिंदुस्तान से साभार)
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